चाँद जब रोटी सा गोल होता है,
पूर्ण श्वेत, अपने पूर्ण रूप में,
उसकी आभा और निखर आती है,
मिलते तो रोज हैं छत पर,
पर देखना तुम्हें केवल इसी दिन होता है,
काश की चाँद हर हफ़्ते पूर्ण हो,
महीने में एक बार तुम्हें देखना,
फ़िर दो पखवाड़े उसी सुरमई तस्वीर को,
सीने से चिपकाकर सोता हूँ,
तुम्हारी यादों में रहता हूँ,
तुम्हारे सपने बुनता हूँ,
तुमसे मिलने के लिये बेताब रहता हूँ,
कभी ऐसा लगता है चाँद,
तुम जल्दी आ जाते हो,
पर एक बात कहूँ,
अब मैं बहुत बैचेनी से इंतजार करता हूँ,
तुम मेरी जिंदगी का हिस्सा जो बन चुके हो..
आपकी यह पोस्ट आज के (०९ मई, २०१३) ब्लॉग बुलेटिन – ख़्वाब पर प्रस्तुत की जा रही है | बधाई
धन्यवाद जी
वाह बहुत खूब ..
धन्यवाद जी
ब्लॉग बुलेटिन की ५०० वीं पोस्ट ब्लॉग बुलेटिन की ५०० वीं पोस्ट पर नंगे पाँव मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है … सादर आभार !
आभार आपका
वाह….
बहुत सुन्दर!!!!
अनु
प्रकृति है ही इतनी सुंदर !!
कविता का मकसद समझ नहीं पाया। वैसे भी, कविता की समझ मुझे कम ही है।
प्रेमियों का मिलन पूर्णिमा पर होना बताया गया है..
सच कहा तब रोशनी पूरी होती है किसी को देख लेने की और रोटी भी पूरी दिखती है।
🙂