एक किस्सा बताते हैं, एक बार नौकरीशुदा आदमी ने सोचा चलो अपने गृहनगर में नये फ़्लैट बन रहे हैं, और अपनी पहुँच में हैं तो क्यों ना उसमें एक फ़्लैट ले लिया जाये, पता लगाया गया बंदा भारत के दूसरे कोने में रहता था, उसने अपने पापा को कहा कि आप इसके बारे में पता कीजिये, पापा ने कहा कि उसका एक दलाल है जो कि अपने वो किराने वाली दुकान वाले का भाई ही है, और वह कह रहा है कि १० लाख में मिल जायेगा, और पूरे १० लाख पर लोन भी हो जायेगा और उसने १ बीएचके ५०,००० रूपये देकर पापा के मार्फ़त फ़्लैट बुक करवा लिया ।
जब वह बंदा एक महीने बाद अपने गृहनगर गया तो जब उसने दलाल और बिल्डर से बात की तो पता चला कि लोन तो केवल ७.६५ लाख पर ही होगा, बाकी तो ब्लैक में देना है, मतलब कि लगभग २.३५ लाख जेब से लगाने होंगे, बंदे ने कहा कि मेरे पास तो केवल १० लाख का २०% याने कि २ लाख रूपये हैं, और एक पैसा ऊपर देने के लिये नहीं है, और आपने बुक करवाते समय पूरी जानकारी नहीं दी। तो बिल्डर और दलाल दोनों ने कहा कि आप चिंता मत करो आपको २.३५ लाख का पर्सनल लोन दिलवा देंगे, बंदे ने कहा भई गृहऋण का ब्याज होता है १० % और पर्सनल लोन का ब्याज होता है १५-१६%, ये ऊपर का ५-६% कौन भुगतने वाला है, मैं तो यह ऊपर का ब्याज नहीं दूँगा, तो दलाल और बिल्डर दोनों भड़क गये कि एक तो हम आपको ऋण दिलवा रहे हैं और आप नाटक कर रहे हैं ।
उस बंदे की अपने गृहनगर में बहुत सी बैंकों में अच्छी पहचान भी थी और बैंक वालों से दोस्ती भी थी, जब वह अपने बैंक के मैनेजर दोस्तों से मिला तो पता चला कि अभी तक इस बिल्डर को किसी भी राष्ट्रीयकृत और निजी बैंक ने एनओसी नहीं दी है, और उन्होंने बताया कि बिल्डर ऐसे ही प्रोजेक्ट के नाम पर पैसा बाजार से उठाते हैं और बैंक से ऋण दिलवा कर लोगों को फ़ँसवा देते हैं, फ़िर २-३ फ़्लोर बनाकर बिल्डिंग बनाना बंद कर देते हैं और अधिकतर ऋण की किश्तें जो कि बैंक से उन्हें लेनी होती हैं, वे इस प्रकार रखते हैं कि २-३ फ़्लोर तक ही उनके पास सारी रकम आ जाये। एक बार सारी रकम आ जाती है तो ये लोग भाग लेते हैं और जनता को अच्छा खासा चूना लगा देते हैं। इस तरह के बहुत सारे केस हो चुके हैं, और जनता को पता ही नहीं चल पाता है।
मैनेजर मित्र की बातें अक्षरश: सत्य थीं, क्योंकि बैंक से ऋण लेने का फ़्लो बिल्डर ने दिया था वह बिल्कुल वैसा ही था केवल २ फ़्लोर बनने के पहले ही वह सारा पैसा बैंक से लेता, और भाग लेता ।
अब उस बंदे ने निश्चय किया कि वह इस फ़्लैट को नहीं लेगा और अपने पैसे उन्हें वापिस करने के लिये कहेगा जो कि उसने बुकिंग के नाम पर दिये थे, परंतु उन्होंने पैसे देने से मना कर दिया और कहा कि आप अपनी तरफ़ से कैंसिल कर रहे हैं, इसलिये एक भी पैसा वापिस नहीं मिला । हालांकि उस बंदे के भी अच्छे कॉन्टेक्ट्स थे परंतु उसने सोचा कि यह केस लीगल तरीके से ही लड़ा जाये, क्योंकि उसके अभिभावक उसके गृहनगर में अकेले रहते थे।
तब उसने अपने कुछ ब्लॉगर मित्रों की सहायता से मार्गदर्शन प्राप्त किया और बिल्डर और दलाल की शिकायत कलेक्टर और एस.पी. ऑफ़िस में की, जब वह बंदा कलेक्टर से मिलने गया तो कलेक्टर ने कहा कि अगर हमें भी आज फ़्लैट खरीदना है तो ब्लैक में पैसा देना ही होगा, बंदे को कलेक्टर की बात सुनकर बहुत आघात लगा। फ़िर भी वह कलेक्टर और एसपी ऑफ़िस में अपने आवेदन पर आवक लेकर आ गया और फ़िर वह तो वापिस अपनी नौकरी के लिये चला गया, उसने अपने पापा को फ़िर एक सप्ताह बाद कहा कि फ़िर से उसी आवेदन की फ़ोटोकॉपी करवाकर उस पर फ़िर से आवक ले आये और उस पर लिख दे Reminder 1 फ़िर Reminder 2 भी भिजवाया और एक सप्ताह बाद ही तहसीलदार की कोर्ट से नोटिस आ गया।
तहसीलदार की कोर्ट में वादी तरफ़ से कोई उपस्थित नहीं हुआ परंतु दलाल खुद से आगे होकर आया और कहा कोर्ट के बाहर ही सैटलमेंट कर लेते हैं, और आधे रूपये में कोर्ट के बाहर सैटलमेंट कर लिया, वह भी इसलिये कि अभिभावकों को परेशानी होती। नहीं तो उसे उसके पूरे पैसे वापिस जरूर मिल जाते, परंतु कुछ चीजें होती हैं जो पैसे से बढ़ कर होती हैं।
उस बंदे ने २५ हजार केवल यह समझकर सीखने के लिये खर्च कर दिये कि फ़्लैट लेने के पहले क्या चीजें जरूरी हैं और जरूरी चीजें पहले ही पता कर ली जायें, जब पैसा एक नंबर में कमाया जाता है तो फ़िर २ नंबर में क्यों दिया जाये। खैर उसका घर का सपना, सपना ही रह गया ।
अंधाधुंध दरबार में गधे (और लकड़बग्घे) पंजीरी खाएँ … धोखाधड़ी और घोटालों की ऐसी शर्मनाक घटनाये आम होना दुखद है।
Jeevan ka katu satya hai mere dost…
सच कहा, जहाँ इतना खर्च करना है, सोच समझ कर तो करना चाहिये।
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इस भाव में सबक मँहगा नहीं रहा।