थोड़ा समय मिला तो समाचार देखे,
एक पट्टी घूम रही थी.. (निजी समाचार चैनल पर)
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मदद करने वाली पंचायतों का उत्तराखंड सरकार सम्मान करेगी ।
अभी तक तबाही से उबरे भी नहीं हैं, बचाव कार्य पूरे भी नहीं हुए हैं और इनके राजनीति चालू हो गई है।
जनता बचाव कार्य से खुश नहीं . (निजी समाचार चैनल पर)
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यहाँ पर दो तीन परिवार को समाचार चैनल लेकर बैठा हुआ था, जिनके खुद के परिजन इस आपदा का शिकार हुए, वे सरकार को बद इंतजामी के लिये कोस रहे थे.. जैसे टीवी चैनल कोपभवन ही बन गया हो। ( यहाँ कोसने की जगह क्या ये लोग वहाँ आपदा प्रबंधन में अपने स्तर पर मदद नहीं कर सकते थे, और किसी और के अपने को बचा नहीं सकते थे).. टीवी एंकर तो अपने चेहरे पर इतना अवसाद लिये बैठा था, जैसे उसे वाकई बहुत दुख हुआ हो ।
बचाव कार्य बहुत अच्छा है (सरकारी दूरदर्शन चैनल पर)
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सरकारी चैनल राज्यसभा और डीडी न्यूज पर दिखाया जा रहा था, किस तरह लोगों को बचाया जा रहा है, और एक ग्रामीण बचाव कार्य से खुश था उसका अनुभव टीवी पर दिखाया गया, जिससे लगा कि शायद निजी चैनल वालों का सरकार से बैर है।
सरकारी चैनल पर बचाव के बारे में सकारात्मक बातें दिखायीं जा रही हैं, जिनसे हर्ष होता है, परंतु वहीं निजी सरकारी चैनल नकारात्मक बातें दिखायीं जा रही हैं, जिनसे मन अवसादित होता है, निजी चैनल तो वही दिखाते हैं जो जनता देखना चाहती है और सरकारी चैनल वह दिखाते हैं जो सरकार जनता को दिखाना चाहती है, या एक पहलू यह भी हो सकता है कि तथ्यों का असली चेहरा शायद सरकारी लोग दिखा पाते हों, क्योंकि नकारात्मक बातें कहने वाले बहुत मिल जायेंगे परंतु सकारात्मक बातें कहने वाले बहुत कम, मतलब कि सरकारी समाचार चैनल वालों को सकारात्मक खबरें बनाने का दबाब तो रहता ही है, और उसके लिये ऐसे लोगों को ढूँढ़ना और भी दुष्कर कार्य होता होगा, यह तो एंकरों का क्षैत्र है इसके बारे में वही लोग अच्छे से बता सकते हैं, अपना डोमैन तो है नहीं, कि अपन अपने अनुभव पर विश्लेषण ठेल दें।
डीडी वन पर जो ऐंकर थे उन्हें पहले कहीं किसी निजी न्यूज चैनल पर समाचार पढ़ते हुए और इस तरह की समीक्षाओं/वार्ताओं में जोर जोर से चिल्लाते हुए देखा है, उनके हाथ चलाने के ढंग से ही समझ में आ रहा था कि वे अपने शो का नियंत्रण किसी ओर को देना ही नहीं चाहते हैं, और ना ही किसी की सुनना चाहते हैं, बस सब वही बोलें जो वे सुनना चाहते हैं या यूँ कहें कि अपने शब्द दूसरे के मुँह में डालने की कोशिश कर रहे हों।
मन ही मन सोचा कि इनको क्या ये भी अपने कैरियर के लिये इधर से उधर स्विच मारते होंगे, जहाँ अच्छा पैसा और पद मिला अच्छा काम मिला उधर ही निकल लिये, फ़िर थोड़े दिनों बाद कहीं और किसी निजी समाचार चैनल पर नजर आ जायेंगे।
पर यह तो समझ में आया सकारात्मक और नकारात्मक खबरों का असर बहुत होता है, तो इस मामले में हमें सरकारी समाचार चैनल बहुत पसंद आया, श्रेय इसलिये देना होगा कि उनको ग्राऊँड लेवल पर जाकर बहुत काम करना पड़ता है और निजी चैनल वालों के लिये यह बहुत आसान है क्योंकि नकारात्मक कहने के लिये एक ढूँढों हजार मिलते हैं।
आपने सही कहा विवेक भाई , यही स्थिति है आज । आम दर्शक के रूप में कई बार इन्हें लतियाने का मन करता है तो कई बार इनकी पीठ ठोंकने का ।
निजी चेनल तो अपने अनुसार ख़बरों को तोड़ रहे हैं मरोड़ रहे हैं …
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार(29-6-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
सूचनार्थ!
अपना दृष्टिकोण पहले ही बना लेते हैं और समुचित उदाहरणों से सिद्ध कर देते हैं।
कोई चैनल नहीं देख पा रहा कि राहत सामग्री किधर जा रही है. चैनल जो पैसा इकट्ठा कर रहे हैं वह किधर जा रहा है.