कमीज खरीदने की जरूरत महसूस होने लगी थी, कंपनी बदली थी, पहले वाली कंपनी में जीन्स टीशर्ट भी रोज चल जाती थी, परंतु जिस कंपनी में आये थे, वहाँ सप्ताह में ४ दिन औपचारिक कपड़े पहनने का रिवाज था और जब लगातार पिछले २ वर्षों से जीन्स से ही गुजारा चल रहा था तो औपचारिक कपड़ों में कमी होना स्वाभाविक ही थी, और दो वर्षों में तो औपचारिक कपड़ों में नये रंग नये रूप के कपड़े आ जाते हैं, वैसे भी महानगरों में फ़ैशन बहुत जल्दी बदलता है। वैसे हमने देखा है कि कुछ ही लोग ढंग के औपचारिक कपड़े पहनते हैं, वरना तो केवल पहनने से मतलब होता है, किसी भी रंग की पतलून के ऊपर किसी भी रंग की कमीज पहन ली।
वहीं कुछ लोग औपचारिक कपड़ों में भी सँवरे नजर आते हैं, जिस करीने से कपड़े पहनते हैं, जिन रंगों का संयोजन वे कमीज और पतलून में करते हैं वह आँखों को भाता है। कई बार कुछ रंग इतने अच्छे दिख जाते हैं कि हम भी उसी रंग के कपड़े बाजार में अपने लिये ढूँढ़ने लगते हैं। यह मानवीय स्वाभाव है।
मुझे याद है जब खाकी प्रचलन में आई, तब मैंने भी खाकी ली और उसके साथ सफ़ेद कमीज का संयोजन बहुत ही फ़बता था, परंतु हमारे छोटे से कार्यालय में भी सोमवार को कम से कम तीन चार लोग उसी तरह के रंग संयोजन में देखे जा सकते थे, ऐसा लगता था कि कंपनी का ड्रेसकोड हो गया है। अधिकतर सोमवार को सफ़ेद कमीज पहने हुए लोग देखे जा सकते हैं, शायद इसके पीछे कार्पोरेट सभ्यता का असर हो।
हमने भी नये रंग की शर्ट लेनी थी, हम कमीज खरीदने दुकान में गये और लगभग सारे रंग देख डाले परंतु कुछ समझ में नहीं आया, हमने कहा भई कुछ अच्छा प्याजी रंग की कमीज दिखाईये, क्योंकि उस रंग में बहुत सारे सूक्ष्म रंगों से आच्छादित कपड़े आते हैं, जो कि आँखों को चुभते भी नहीं है और कोमलता का अहसास करवाते हैं, और गहरे रंग के कपड़े जिसमें चमक होती है वे आँखों को चुभते हैं और मन को भी नहीं भाते हैं, जब हमने एक अच्छे से प्याजी हल्के रंग की कमीज ली तो देखा कि अब इसके लिये पतलून भी लेनी होगी, फ़िर हमने पतलून भी ली जो बराबर रंग संयोजन में हो।
अब इस बात को बहुत समय बीत चला है, उस समय वह रंग संयोजन बहुत ही कम लोगों के पास होता था, परंतु आजकल यह रंग संयोजन कम से कम कमीज का बहुत ही सामान्य हो चला है, अब जिस दिन मैं वह कमीज पहनकर जाता हूँ तो मुझे तो अधिकतर लोग उसी रंग की कमीज पहने दिखते हैं।
यह भी मानवीय स्वभाव है कि जिस दिन हम जिस रंग के कपड़े पहनते हैं तो उसी रंग के परिधानों पर हमारी नजर रूक ही जाती है।
मुझे तो श्वेत से प्रेम हो चला है।
नमस्कार आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शुक्रवार (20-09-2013) के चर्चामंच – 1374 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
आज की ब्लॉग बुलेटिन चुप रहनें के फ़ायदे… ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है …
सादर आभार !
बेहतरीन प्रस्तुति
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अपकी पोस्ट पढ़ कर याद आया, मैं भी प्रैस की हुई कुछ कमीज़ों की सलवटें निकाल लूं जरा 🙂
इस समय प्याजी कलर का भाव है -चलेगा !