प्रेमपत्र.. मेरी कविता

वे प्रेमपत्र जो हमने

एक दूसरे को लिखे थे

कितना प्यार उमड़ता था

उन पत्रों में

तुम्हारा एक एक शब्द

कान में लहरी जैसा गूँजता रहता था

 

पहला प्रेमपत्र तब तक पढ़ता था

जब तक नये शब्द ना आ जायें

तुम्हारे प्रेमपत्रों से

ऊर्जा, संबल और शक्ति मिलते थे

कई बातें और शब्द तो अभी भी

मानस पटल पर अंकित हैं

 

तुम मेरे जीवन में

आग बनकर आयीं

जीवन प्रेम का  दावानल हो गया

आज भी तुम्हारी बातें, शब्द

मुझे उतने ही प्रिय हैं प्रिये

बस वक्त बदल गया है

 

मेरे प्रेमपत्र तुमने अभी भी

सँभाल कर रखे हैं

जिन्हें तुम आज भी पढ़ती हो

और अगर मैं गलती से पकड़ भी लेता हूँ

तो

वह शरमाना आँखें झुकाना

प्यारी सी लजाती हँसी

बेहद प्यारी लगती है

 

एक मैं हूँ

जो तुम्हारे प्रेमपत्र

पता नहीं कहाँ कब

आखिरी बार

रखे थे

पढ़े थे

पत्र भले ही मेरे पास ना हों

सारे शब्द आज भी

हृदय में अंकित हैं

 

एक निवेदन है

तुम फ़िर से प्रेमपत्र लिखो ना !!

3 thoughts on “प्रेमपत्र.. मेरी कविता

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