आज अक्टूबर २०१३ शुरू हो रहा है, ऐसे पता नहीं कितने ही अक्टूबर आये और चले गये, ऐसे कितने ही महीने आये और चले गये, अब तो याद भी नहीं कि कौन सा महीना खुशी लाया था, और कौन सा महीना बिना खुशी के आया या निकला था । बहुत सोचता हूँ परंतु सोचने की भी एक सीमा होती है, उसके परे जाना बहुत कठिन होता है।
सोचते सोचते कब, पता नहीं कब !! वह सोच हल्की सी चिंता में बदल जाती है, और फ़िर वह चिंता कब हल्की छोटी सी से बदलकर बड़ी हो जाती है, पता ही नहीं चलता है, हर समय दिमाग में वह बात ही घूमती रहती है, कई बार तो ऐसा लगता है कि बस अब यह बात दिमाग में बहुत हो गई, कहीं उल्टी करके निकाल दें, तो शायद कुछ राहत महसूस हो।
जिंदगी में कई बार दोराहे आते हैं, जहाँ से हमें कोई भी एक रास्ता चुनना होता है, और हर बार किस्मत इतनी अच्छी भी नहीं होती कि रास्ता सही मिल जाये, और जो सही वाला रास्ता छोड़ा था, उस पर फ़िर वापिस आने का कोई भी मौका मिलने की संभावना नहीं होती, वो कहते हैं कि हरेक चीज का सही वक्त होता है, तो बस वह वक्त निकल गया होता है और इंसान केवल हाथ मलता रह जाता है या फ़िर जिंदगीभर उसका पछतावा करता रहता है।
सबको विभिन्न प्रकार की चिंताएँ घेरे रहती हैं, कभी बिना बात के भी चिंताग्रस्त होते हैं और कभी बवाल वाली चिंता को यूँ ही बिना किसी चिंता के दिमाग पर जोर दिये, निपटा देते हैं, हाँ बस यह देखा कि इंसान को अपना हृदय मजबूत रखना चाहिये, चीजों के प्रति लगाव कम रहना चाहिये, यह लगाव बहुत सारी चिंताओं का कारण होता है।
हमें अटल सत्य की ओर सम्मुख होना चाहिये, किसी होने वाली बात के बारे में जानना और उसके बारे में सोचना और उसके लिये अपनी चिंता पालना, यह मानव की स्वाभाविक प्रक्रिया है। जो हमें सोचने को मजबूर करती है और कई कठिनाइयों को पार करने में सहयोग देती है।
चिंता किसी भी कार्य के प्रति हो फ़िर वह दुख देने वाला हो, या दुख से उबारकर सुख देने वाला हो, चिंता से व्यक्ति परिपक्व होता है और गंभीरता उसके मन मानस और मष्तिष्क में जगह बनाने लगती है।
सद्विचार
जैसा भय था, जैसी आशा थी, वैसा भविष्य कभी मिला ही नहीं। यदि ऐसा है तो भविष्य से क्या घबराना।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल – बुधवार – 2/10/2013 को
जो जनता के लिए लिखेगा, वही इतिहास में बना रहेगा- हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः28 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर …. Darshan jangra
हर समय गुजर ही जाता है