हमने २००५ में कृतिदेव फ़ोंट(kruti dev Font) से विन्डोज ९५ (Windows 95) में ब्लॉग लेखन (blog writing) की शुरूआत की थी, उस समय और भी प्रसिद्ध फ़ोंट (Famous font) थे, पर हमें क्या लगभग सभी को कृतिदेव (Kruti Dev Font) ही पसंद आता था। इधर कृतिदेव (Kruti Dev Font) में लिखते थे और इंटरनेट पर प्रकाशित करने की कोशिश भी करते थे, परंतु कई बार इंटरनेट की रफ़्तार बहुत धीमी होने के कारण, पोस्टें अपने कंप्यूटर में ही रह जाती थीं।
कृतिदेव (Kruti Dev Font) में लिखा पहले हमने ईमेल में कॉपी पेस्ट करके अपने दोस्त को भेजा, तो उन्हें पढ़ने में नहीं आया, तब पता चला कि उनके कंप्यूटर में कृतिदेव फ़ोंट (Kruti Dev Font) ही नहीं है, जब उन्होंने कृतिदेव फ़ोंट (Kruti Dev Font) को संस्थापित किया और फ़िर से ईमेल को खोला और उसकी कुछ सैटिंग इनटरनेट एक्स्प्लोरर ब्राऊजर में की, तब जाकर वे ईमेल को पढ़ने में सफ़ल रहे, हमारे लिये तो यह भी एक बहुत बड़ी उपलब्धि था, आखिर हमने अपनी मातृभाषा हिन्दी में पहली बार ईमेल लिखा था, और जो पढ़ा भी गया।
इधर साथ ही ब्लॉगर पर अपना ब्लॉग बनाने की कोशिश भी जारी थी, एक तो इन्टरनेट की दुनिया के लिये हम नये नवेले थे और दूसरी तरफ़ कोई बताने वाला नहीं था, क्योंकि ब्लॉगिंग में किसी का ध्यान ही नहीं था, कुछ भी करने के लिये रूचि का होना बहुत जरूरी है, उस समय लोग अधिकतर सायबर कैफ़े (Cyber cafe) में याहू के पब्लिक चैट करने के लिये जाते थे, जो कि उस समय काफ़ी प्रसिद्ध था। Your asl please !!! यह उनका पहला वाक्य होता था।
ब्लॉगर प्लेटफ़ॉर्म का पता भी हमें किसी ब्लॉग के एक्स्टेंशन से मिला था, जो कि हमने लायकोस और नेटस्केप सर्च इंजिन में जाकर ढूँढ़ा था, जब ब्लॉग बनाने पहुँचे तो ब्लॉगर ने हमारे पते के लिये ब्लॉग का पता पूछा, उस समय हम अपना उपनाम कल्पतरू लगाना बेहद पसंद करते थे, और इसी नाम से कई कविताएँ अखबारों में प्रकाशित भी हो चुकी थीं, सो हमने अपने ब्लॉग का नाम कल्पतरू ही रखने का निश्चय किया।
पहली पोस्ट को हमने कई प्रकार से लिखा, कई स्टाईल में लिखा, पेजमेकर में डिजाईन बनाकर लिखा, कोरल फ़ोटोशाप में अलगर तरीके से लिखा, पर पेजमेकर और कोरल की फ़ाईल्स ब्लॉगर अपलोड ही नहीं करता था, और ना ही कॉपी पेस्ट का कार्यक्रम सफ़ल हो रहा था, आखिरकार हमने वर्ड में लिखा हुआ पहला ब्लॉग लेख कॉपी करके ब्लॉगर के कंपोज / नये पोस्ट के बक्से में पेस्ट किया, जिसमें भी हम उसकी फ़ॉर्मेटिंग वगैराह नहीं कर पाये। पर आखिरकार २८ जून २००५ को हमने अपना पहला ब्लॉग लेख प्रकाशित कर ही दिया, हालांकि उस समय हमें ब्लॉग पर केवल हिन्दी लिखने के लिये आये थे, क्योंकि हमारे सामने यह एक बहुत बड़ी बाधा थी, और अपने आप से वादा भी था, कि आखिर इन्टरनेट पर हिन्दी कैसे लिखी जा रही है, और हम इसे लिखकर बतायेंगे भी, तो पहली पोस्ट किसी अखबार में छपी एक छोटी सी कहानी थी जो हमने टाईप करके प्रकाशित की थी।
उस समय पहली पोस्ट पर कोई टिप्पणी नहीं आई थी, पर अगली पोस्ट जो कि हमने १२ जुलाई २००५ को लिखी थी, जिसे अगस्त में पढ़ा गया, और पहली टिप्पणी थी देबाशीष की, जिसमें उन्होंने हमें बताया था कि फ़ीड में कुछ समस्या है, तो वापिस से सारी पोस्टें सुधारनी होंगी। फ़िर नितिन बागला और अनूप शुक्ल जी की टिप्पणी आई। अनूप जी की टिप्पणी से हमें बहुत साहस बँधा कि चलो कोई तो है जो अपने को झेलने को तैयार है, उनकी पहली टिप्पणी हमारे ब्लॉग पर थी “स्वागत है आपका हिंदी ब्लागजगत में । पत्थर पर लिखी जा सकने योग्य रचनाओं की प्रतीक्षा रहेगी।”
जारी…
अद्भुत है वह सब याद करना एक बार फ़िर से।
आपकी पोस्टों की सबसे अच्छी खूबसूरती इनकी पठनीयता और आकार के लिहाज से एक बार में ही पढ लिया जाने लायक रहा। संस्मरण जारी रखें। बांच रहे हैं……
संस्मरण जारी रखें। बांच रहे हैं……..हम भी हम भी ।
i am also reading
लिखते रहिये हम पढ़ते रहेगें
हम भी चुप्पे चुप्पे बाँच रहे ……..लगे रहिये 🙂
हिंदी ब्लॅागिंग के शुरूआती दिन वाकई काफी तकनीकी दिककतों से भरे हुए थे ।
हम सभी को बड़ी रोचक यात्रा से निकलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। सुन्दर अनुभव।
क्या बात कही आपने.. वाकई मजा आ गया.. मैंने भी 2001 में जब पहली बार अपने एक मित्र को हिंदी में ईमेल किया तब उस ईमेल में DevLys फौंट अटैच करके उसे इंस्टाल करने की पूरी प्रक्रिया साथ में अंग्रेजी में लिख भेजा था. और जब उसने पढ़ा और बताया तो आनंद आ गया था.. 😀
निदिध्यासन याने अपने आपको आप ही अभ्यासः कराना जिससे आत्मकल्याण हो | जो जीवनका लक्ष्यभी है | जड़ शरीर, इन्द्रिया, मन और बुद्धिसे परे खुशामत खुदा को ही प्यारी होती है | इससे नीचे जड़ता गए तो ईश्वरको बुरा लगता है | बस वैसेही जड़ता से परे पतीही परमेश्वर है | मंदीरमें रखीं ईश्वरकी प्रतिमा का दर्शन करते हुवे जो अपने अंदर चेतन का अनुभव करता है उसे ही ईश्वर दर्शनका लाभ होता है | जिसे भगवद गीतामें कुछ ऐसे वर्णन किया है ईश्वर अंश जीव अविनाशी चेतन अमल शहजा सुख राशी | जिसे हम कुछ ऐसेभी समझ शकते है हमारे अंदर के चेतनका सहारा लेके शरीर और मन – बुद्धि को मल रहित करना जिससे ईश्वर चैतन्य का अमल हो शके हमारे द्वारा इस जगपे जो उस चैतन्य ईश्वरकाही है |
आपने बहुत ही सूंदर सारगर्भित व् सुरुचिपूर्ण यात्रा संस्मरण लिखे ह । मेरी और से बधाई व् प्रार्थना क़ि इसे जारी रखें ।