सुबह उठते समय बहुत सारे विचार अपनी पूर्ण ऊर्जा में रहते हैं, और शनै: शनै: उन विचारों के अपने प्रारूप बनने लगते हैं, उन विचारों में कई प्रकट हो जाते हैं, मतलब कि किसी ना किसी से वे विचार वाद-विवाद या किसी अन्य रूप में कह दिये जाते हैं। कुछ विचार जो प्रवाहमान रहते हैं, वे अपने संपूर्ण वेग से हर समय अपनी पूर्ण ऊर्जा से रक्त वाहिनियों में रक्त के कणों में बहते रहते हैं, उनकी रफ़्तार इतनी तेज होती है जो शायद ही नापी जा सकती होगी।
विचारों की गति के समान शायद ही कोई गति वाला यंत्र विज्ञान बना पाया होगा, जो एक ही पल में कई वर्ष पहले और दूसरे ही पल में कहीं और किसी ओर समयकाल में ले जाता है। विचारों की इस तीव्र गति के कारण ही हम हमेशा विचलित रहते हैं, कुछ विचारों को हम व्यवहारिकता के धरातल पर ले आते हैं, और कुछ विचार शायद ही कभी दुनिया में प्रकट होते हैं, यह शायद हरेक व्यक्ति का अपना एक बहुत ही निजी घेरा होता है, जिसको वह किसी भी अपने, बेहद अपने से भी प्रकट नहीं करता।
विचारों की ऊर्जा से मन प्रसन्न भी हो जाता है और इस कारण से जो ऊर्जा शरीर को मिलती है, उसे कई बार अनुभव भी किया जा सकता है, कई बार ऐसे ही बैठे ठाले ही कोई विचार अचानक ही मन में आता है और अचानक ही रक्त संचार धमनियों मॆं रफ़्तार से होने लगता है, जिससे लगता है कि अचानक ही कोई नई ताकत हमारे अंदर आ गई है, शायद इस प्रक्रिया से कुछ हार्मोन्स का अवतरण होता होगा, जिससे मन का अवसाद, मन का फ़ीकापन दूर हो जाता है।
नकारात्मक ऊर्जा वाले विचार शरीर के अंदर अत्यंत शिथिलता भर देते हैं, जो भीरूपन जैसा होता है, जिससे हमें छोटी से छोटी बातों से डर लगने लगता है और हरेक घटना के पीछे वही ऊर्जा कार्य करती दिखती है, सही कार्य भी करने वाले होंगे तो भी उस नकारात्मक ऊर्जा के प्रभाव से हमारा मानस कहीं ना कहीं बिगड़ने लगता है और गलतियाँ करने लगते हैं।
वहीं सकारात्मक ऊर्जा वाले विचार शरीर के अंदर बेहद उत्साह का संचार करते हैं, अत्यंत शक्तिशाली महसूस करने लगते हैं, कोई बड़ा कार्य भी बौना लगने लगता है। असहजता का अवसान हो जाता है, अगर तबियत खराब होती है तब भी उसका अनुमान नहीं हो पाता है, सकारात्मक ऊर्जा के दौरान अधिकतर हम दुश्कर कार्य अच्छे से कर पाते हैं।
ऊर्जा कैसी भी हो, अपना मानस पटल हमें बहुत ही पारदर्शी रखना होगा, ध्यान रखना होगा कि नकारात्मक ऊर्जा का जब भी दौर हो, उस समय कैसे सकारात्मक ऊर्जा का संचार कर सकते हैं, सकारात्मक ऊर्जा लाने के लिये जो अच्छा लगता हो, वह करें, मुझे लगता है सफ़लता जरूर मिलेगी।
ऐसे ही कुछ विचार प्रस्फ़ुटित होने के लिये इंतजार करते रहते हैं जिन्हें हम मन ही मन परिपक्व बनाते हैं, जिससे जब भी वह विचार हमारे मन की परिधि से निकल कर बाहर आये तो उस विचार से मान सम्मान और ऐश्वर्य की प्राप्ति हो।
अभी तक विचारों को सुबह लिखने की आदत नहीं पड़ी है, क्योंकि अगर सुबह ही विचार लिखने बैठ गये तो फ़िर प्रात: भ्रमण मुश्किल हो जाता है पर सुबह के विचारों को कहीं ना कहीं इतिहास बना लेना चाहिये, मानव मन है जो विचारों को जितना लंबा याद रख सकता है और उतनी ही जल्दी याने कि अगले ही क्षण भूल भी सकता है। ऐसे पता नहीं कितने विचारों की हानि हो चुकी है। जो शायद कहीं ना कहीं जीवन का मार्ग और दशा बदलने का कार्य करते हैं।
सही है..सुबह का समय किसको दें यह एक बड़ी समस्या है। विचारों को लिखने बैठो तो प्रातः भ्रमण छूट जाता है। इस समय ठंड इतनी है कि भ्रमण त्याग, विचार ही ले–दे रहे हैं। 🙂
विचार के साथ समस्या यही है कि यदि समय रहते इन्हें कागज़ पर उतार न लिया जाए तो ये उतनी ही तेज़ी से चले भी जाते हैं
स्वयंस्फूर्त विचार
सुबह विचार भर भर कर बहते हैं, बस समेटने के लिये उठ नहीं पाते हैं।