सब्जी तो बचपन से माँ के हाथ की खाते आ रहे हैं, पहले चूल्हे में लकङी और कोयला जलाकर माँ ताँबे के बर्तन में हाथ में लोहे की गोल फूँकनी से फूँक मारकर धुएं के बीच मेरी मनपसंद सब्जी तरकारी बनाती थी, मेरे बालमन को पहले उस धुएं में बहुत मजा आता था पर जब भी माँ धुएं के कारण खाँसती तो मन खिन्न हो जाता था और मैं खुद वो लोहे की फूँकनी लेकर लकङी और कोयले की आँच को तेज करने में माँ की मदद करता था ।
कुछ वर्षों बाद स्टोव के साथ माँ की जिंदगी में बदलाव आया, केरोसिन वाला पीतल का स्टोव जिसमें हवा का दबाव बनाकर माचिस से जलाया करते थे, पर चूल्हा रोटी के लिये चलता रहा, सब्जी का स्वाद बदल गया, पहले जो खुश्बू सब्जी में आती थी वो खुश्बू स्टोव की सब्जी में नहीं आती थी, माँ इस नये स्वाद के लिये बेबस थी, कभी शिकायत होती कि केरोसिन की महक खाने में आ जाती है, या कभी कोई स्वाद ही नहीं, माँ ने कई स्टोव बदलवाये पर इतना ज्यादा फर्क नहीं पङा । जीवन अपनी गति से चल रहा था, भाग इसलिये नहीं रहा था क्योंकि सब्जी का स्वाद नहीं बदल रहा था ।
कुछ समय बाद केरोसिन की जगह एल.पी.जी. ने ले ली, अब माँ के चौके में से चूल्हे की विदाई तय हो चुकी थी, क्योंकि अब गैस के चूल्हे में माँ को दो बर्नर मिल गये थे, अब माँ का चौके में काम कुछ ज्यादा आसान हो गया था, बिना धुएं और केरोसिन की गंध की तकलीफ के बिना खाना बनाना बेहद आसान हो गया था, पर अब चौके के बदलाव ने फिर परेशानी खङा कर दी, चौके में ऊपर तक तेल की चिकनाई पहुँचने
लगी, स्टोव तो घर के बाहर रख देते पर गैस के चूल्हे में यह सुविधा मिलने से रही, तो चिमनी के बारे में समझा गया और चौके में चिमनी लगवा दी गई, सब्जी में सभी ने पहले से ज्यादा स्वाद पाया, रोटी भी चूल्हे के मुकाबले थोङी ठीक थीं, पर धीरे धीरे आदत पङ गई। गैस में भी सब्जी बनाते समय माँ को हमेशा खङी रहना होता था, माँ के पैरों के दर्द ने भी मुझे एहसास दिलवाया।
लगी, स्टोव तो घर के बाहर रख देते पर गैस के चूल्हे में यह सुविधा मिलने से रही, तो चिमनी के बारे में समझा गया और चौके में चिमनी लगवा दी गई, सब्जी में सभी ने पहले से ज्यादा स्वाद पाया, रोटी भी चूल्हे के मुकाबले थोङी ठीक थीं, पर धीरे धीरे आदत पङ गई। गैस में भी सब्जी बनाते समय माँ को हमेशा खङी रहना होता था, माँ के पैरों के दर्द ने भी मुझे एहसास दिलवाया।
और एक दीपावली पर मैं और पापा जाकर माँ के लिये एक माइक्रोवेव ले आये, माँ ने माइक्रोवेव के बारे में सुन रखा था, पर फिर भी घर में देखकर विस्मित हुई, माइक्रोवेव को घर की डाइनिंग टेबल पर रख लिया गया, माइक्रोवेव के साथ कुछ प्लास्टिक के बर्तन भी आये थे जो कि माइक्रोवेव में खाना पकाने में सक्षम थे, परंतु माँ ने कहा कि अगर सब्जी बनानी है तो प्लास्टिक के बर्तन में तो नहीं बनायेंगे, अब चूँकि स्टील के बर्तन माइक्रोवेव में उपयोग नहीं हो सकते थे तो माँ को बोरोसिल के काँच के बर्तन बेहद पसंद आये, जिन्हें माइक्रोवेव में भी उपयोग में लाया जा सकता था और फ्रिज में भी रखा जा सकता था। माइक्रोवेव में सब्जी बनाने में कम तेल मसालों में भी सब्जी का बेहतरीन स्वाद निखर आया था, सभी को यह स्वाद पसंद आया क्योंकि सब्जी का मौलिक स्वाद अद्भुत था, माँ को अब चौके में खङे रहने की जरूरत खत्म हो चकी थी, अब माँ डाइनिंग टेबल के सामने कुर्सी पर बैठकर आराम से सब्जी बनाती है। बोरोसिल के बर्तनों के बारे में http://www.myborosil.com/ से ज्यादा जाना जा सकता है ।
सबसे बेहतरीन स्वादिष्ट व्यंजन है वेज बिरयानी – बोरोसिल का 1.5 ली. वाला गोल काँच का कैसरोल (Round Casserole) , गहरा वाला गोल काँच (Deep Round Casserole) का 2.5 ली. वाला कैसरोल और 1.5 ली. वाला इजी ग्रिप वाला गोल कैसरोल (Easy Grip Round Casserole) की मदद से बिरयानी बनाई जाती है।
पहले प्याज और लहसुन को बारीक लंबा काटकर गोल काँच के कैसरोल बिना तेल के 5-7 मिनट के लिये माइक्रो करें, प्याज और लहसुन क्रिस्प और सुनहरे रंग के हो जायेंगे। गहरा वाले गोल काँच के कैसरोल में बासमती चावल और पानी 1:2 के अनुपात में कर लें, और लगभग 15 मिनट माइक्रो करें, चावल को अधपका ही रखें, अब इजी ग्रिप वाले गोल कैसरोल में कटी हुई बीन्स, मटर, पनीर, गाजर, शिमला मिर्च थोङे तेल के साथ नमक और मनपसंदीदा बिरयानी मसाला मिला लें, अब लगभग 100 ग्राम पानी डाल लें और लगभग 10 मिनट के लिये माइक्रो करें । गहरे वाले गोल काँच के कैसरोल में से चावल किसी और बर्तन में निकाल लें और अब इसमें क्रिस्प प्याज और लहसुन की परत बिछा लें और चावल का एक तिहाई हिस्सा दूसरी परत के रूप में डाल दें, तीसरी परत के लिये आधी सब्जी की परत बनायें और अब चावल का एक तिहाई हिस्सा चौथी परत के रूप में डाल दें, बची हुई आधी सब्जी की पाँचवी परत बना लें और आखिरी परत के रूप में बचा हुआ एक तिहाई चावल बिछा लें, ऊपर थोङे कच्चे काजू से सजा दें । अब गहरे वाले गोल काँच के कैसरोल को लगभग 10 मिनट के लिये माइक्रो करें । लगभग 40 मिनट में चार लोगों के लिये बिरयानी तैयार है ।
वक़्त के साथ चलना ही पड़ता है।
बहुत बढ़िया प्रस्तुति
आपकी इस पोस्ट को ब्लॉग बुलेटिन की आज कि बुलेटिन वास्तविकता और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर …. आभार।।
रसोई के इंधन इतिहास के साथ स्वदिष्ट बिरयानी भी।
maa sae puchh kar kuchh sabjiyon ki rasipi bhi daal dae , badhiyaa post haen
jab bhi dalaae mujhe link avshay email kar dae
समय की बदलाव को बाखूबी लिखा है …
परिवर्तन ही जीवन है. इसको आपने बहुत सुंदर तरीके से प्रस्तूत किया है .