आज सुबह ही कहीं पढ़ रहा था कि न्यूजीलैंड के धुरंधर क्रिकेटर क्रिस कैनर्स जब से मैच फिक्सिंग के मामले में फँसे हैं तो उनकी आर्थिक हालात खराब है और उनका सामाजिक रूतबा भी अब सितारों वाला नहीं रहा, आजकल क्रिस ट्रक चलाकर और बस अड्डों को साफ करके अपनी आजीविका चला रहे हैं और वैसा ही मामला अगर भारत में देखा जाये तो दो सितारे खिलाड़ियों पर मैच फिक्सिंग के आरोप लगे थे, अब उनमें से एक सांसद हैं और दूसरे क्रिकेट मैचों की कमेंट्री करते हैं, उन्हें ना आर्थिक नुक्सान हुआ और न ही उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा मिट्टी में मिली, जबकि क्रिस और भारत के उन दो खिलाड़ियों का अपराध एक ही था ।
अभी हाल ही में कोर्ट ने संज्ञान लेते हुए सेना से कहा है कि आपने लगभग 50 अफसरों को आर्मी कोटे की पिस्तौल को बाजार में बेचने पर केवल रू. 500 का जुर्माना लगाया है, तो हम उस गरीब आदमी को क्या जबाब दें तो केवल रू. 10 चुराने के लिये जेल की हवा खाता है, और जुर्म साबित होने के बाद सजा भी भुगतता है, क्या सेना के अफसरों का जुर्म ज्यादा संगीन नहीं है, और सजा बहुत ही मामूली नहीं है ?
दो बड़े जुर्म मुझे यह याद दिलाते हैं कि जुर्म राजनीति के प्रश्रय में ही होता है और दोनों का आपस में भाईचारा है, दोनों एक दुसरे के बिना नहीं रह सकते हैं, अगर इन दोनों में से कोई एक परेशान होता है तो वे जनता के सामने ही आपस में सहयोग करते हैं, और हमारे भारत की बेचारी जनता केवल इसलिये देखती रहती है क्योंकि उनके पास देखने के अलावा और कोई चारा नहीं है, कानून व्यवस्था को पालन कराने वाले लोग भी इन लोगों के साथ काम करते हुए देखे जा सकते हैं, चारों और कानून टूट रहे हैं, और इसमें सभी की मिलीभगत है ।
पहला – उज्जैन के महाविद्यालय में म.प्र. पर शासन करने वाले राजनैतिक दल की छात्र इकाई के कुछ लोग एक प्रोफेसर की हत्या कर देते हैं, और बहुत हो हल्ला मचता है, वैसे तो प्रशासन कुछ करने में रूचि नहीं रख रहा था, पर जब राष्ट्रीय स्तर के मुख्य धारा के मीडिया हाऊसों ने चिल्लाना शुरू किया तो शासन ने कड़ाई बरतते हुए दिखावे का ढ़ोंग किया और सबको 2-3 वर्ष तक जेल के अंदर रखा और बाहर गवाहों ओर सबूतों को कमजोर किया जाता रहा और आखिरकार वे संदेह के लाभ में बरी हो गये, दीगर बात यह है कि इसी बीच तत्कालीन मुख्यमंत्री इन सबसे मिलने जेल गये, आज इनमें से कई सरकारी सहायता प्राप्त महकमों मे उच्च पदों पर आसीन हैं, जो कि उनकी छबि के अनुरूप तो कतई नहीं है।
दूसरा – कुछ लड़के मिलकर एक पहलवान टाईप दादा की हत्या कर देते हैं, और सब फरार हो जाते हैं, सारे लड़के अभिजात्य वर्ग के परिवारों से हैं और उन सबके परिवार में उनके पिता एक राजनैतिक दल से सारोकार रखते हैं, पास के एक गाँव से दो बस भरकर इन लड़कों को और इनको परिवार को सबक सिखाने के लिये आते हैं और ये गाँव वाले इतने सभ्य कि पड़ौसियों को कुछ भी नहीं कहा, बस उन हत्यारे लड़कों को पीटने और मारने के उद्देश्य से आये थे, और उनके घर में घुसकर घर का सामान बाहर फेंक देते हैं, और पड़ोसियों के पूछने पर कहते हैं कि अगर हमने ये आज नहीं किया तो फिर इनका कोई कुछ बिगाड़ नहीं पायेगा, क्योंकि शासन, पुलिस सब इनकी जेब में है, ये लड़के ही आगे चलकर हमारे नेता बन जायेंगे, तो उन सारे लड़कों मे जनता के डर के मारे खुद को पुलिस के हवाले कर दिया, और वे सब 1-2 साल में बरी हो गये, सारे लड़के आज राजनेता हैं, कोई भी प्रशासन संबंधित कार्य करवाना हो, ये लोग चुटकी में काम करवाने वाले सफेदपोश दलाल हो गये हैं।
यहाँ बस हारा तो केवल कानून, मैं जानता हूँ कि ऐसे कई किस्से हैं और मैं लिखना भी चाहता हूँ, पर लिखने का भी कोई फायदा नहीं, क्योंकि कानून अपने दायरे में रहकर काम करता है और ये लोग बिना दायरे के । कब ये कानून अमीरों और गरीबों के लिये एक होगा, इसके लिये राजनैतिक इच्छशक्ति की दरकार है, पर ये राजनेता ऐसा होने नहीं देंगे क्योंकि इनकी असली ताकत तो कानून तोड़ना और तोड़ने वालों से ही है।