थोड़ा बीमार था, और बहुत कुछ आलस भी था, आखिर रोज रोज शेव बनाना कौन चाहता है, उसकी दाढ़ी के बालों के मध्य कहीं कहीं सफेदी उसकी उम्र की चुगली कर रही थी, वह बहुत सारी बातों से अपने आप को कहीं अंधकार में विषाद से घिरा पाता। कहीं भी उसे न प्यार मिलता और न ही कहीं उसके मन की कोई बात होती था, उसे समझ ही नहीं आता कि क्या यह कमी केवल और केवल उसमें ही है या उससे मिलने वाले लोग उसे जानबूझकर विषाद के सागर में ढकेल रहे हैं। वह दिल से बहुत ही मजबूत पर भावनात्मक रूप से उतना ही कमजोर था। उसने जीवन के बहुत उतार चढ़ाव देखे थे और जीवन की कठिन से कठिन चुनौतियों का सामना बड़ी ही जीवटता से किया और सारी कठिनाईयों का बहुत ही अच्छी तरह से सामना किया था।
आज उसके अंदर एक भावनात्मक आंदोलन चल रहा था, जिसके कारण वह अपना बिल्कुल भी ध्यान नहीं रख पा रहा था, न उसकी बातों में आत्मविश्वास था और न ही उसमें चुनौतियों से निपटने वाली जीवटता देखी जा सकती थी, उसमें जीवन के प्रति नकारात्मक रुख साफ नजर उसकी खिचड़ी दाढ़ी से ही नजर आ जाता था, शायद वह बड़ी हुई दाढ़ी से अपने चेहरे के नकारात्मक भाव छिपाना चाहता था, जिससे उसके पीछे छिपी नकारात्मकता को कोई पढ़ न सके, और उसे अपनी इस परिस्थिती में रहने का भरपूर मौका मिल सके।
इसी बीच वह नौकरी भी ढ़ूढ़ रहा था जिसमें वह टेलीफोनिक के लगभग 3 राऊँड बहुत ही अच्छे से निपटा चुका था, और साक्षात्कार लेने वाली कंपनी उसकी तकनीकी ज्ञान की कायल हो चुकी थी। अब बारी थी आमने सामने यानि कि फेस टू फेस साक्षात्कार की, जिसके लिये वह बिल्कुल भी तैयार नहीं था, और उसका आत्मविश्वास डिग रहा था। खैर वह दिन भी आ गया और इंटरव्यू पैनल के सामने वह पहुँच गया, जितना कायल वे लोग उसके टेलीफोनिक साक्षात्कार के थे, उसे बढ़ी हुई दाढ़ी में देखकर कंपनी को लगा कि यह कैसे संभव है कि जो इतना अच्छा साक्षात्कार दे वह खिचड़ी दाढ़ी में खुद को अपने भावी नियोक्ता के सामने प्रस्तुत करे, तो शेविंग के न करने के कारण उसका हो चुका चयन कंपनी को रद्द करना पड़ा।