अनजान

मैं पता नहीं कितनी बातों से अपनी जिंदगी में अनजान हूँ, यही सोचता रहता हूँ। अपनी कल्पनाओं में पता नहीं क्या क्या अनजाना से बुनता रहता हूँ, मैं हर घटना और हर वस्तु के बारे में अनजान हूँ और अनजान हूँ तभी तो मैं उनके प्रति जानने के लिये जिज्ञासु हूँ। मैं हर नकारात्मक और सकारात्मक पहलू से अनजान हूँ, मैं पक्षियों की बोली से भी अनजान हूँ, मुझे तो केवल कोयल की कूक और कौवे की कर्कश आवाज ही पता है, बाकी के पक्षियों की आवाजों को मैं नहीं पहचान पाता।

अनजान होना मतलब यह नहीं कि मैं जानना नहीं चाहता, पर मेरे दायरे ही उतने हैं, और मैं हमेशा अपने दायरे की चीजों को ही जान पाया। दायरा शायद सबके इर्द गिर्द होता है, जो किसी को दिखता है किसी को महसूस होता है और किसी को पता ही नहीं चलता। जैसा शायद मेरे साथ, पहले दायरा पता नहीं चलता था, पर अब मैं अपने दायरों को मूर्त रूप से देख पाता हूँ, इसलिये चुपचाप उन चीजों को ही जान लेना बेहतर समझता हूँ, जो उन दायरों को लिये फायदेमंद हों।

बाहर का बातों से अनजान बना रहना अब सुकून भी देता है, न बाहरी चीजों से अपना साक्षात्कार होगा और न ही मुझे ज्यादा अपना दिमाग लगाना पड़ेगा, तभी शायद रक्त संचार भी ठीक रहेगा, तनाव के बोझ को हल्का कर पाऊँगा। अब मैं केवल अपने आसपास के बारे में ही जानना चाहता हूँ, जिससे उनके बारे में सब कुछ पता लगा सकूँ, शायद वह भी जीवन में मुमकिन नहीं दिखाई देता, मैं जिस दरी पर बैठकर लिखता हूँ उस के आदि से अनंत के बारे में जानना चाहता हूँ। जब भी मैं ऐसा सोचने लगता हूँ तो कहीं कोई नदी का बाँध टूटकर पानी बहने की आवाजें आने लगती हैं और थोड़ी देर में ही मैं उस पानी में बहने लगता हूँ, आसपास सहारा ढ़ूँढ़ने लगता हूँ, सामने रखे रेडियो के बारे में सोचने लगता हूँ।

सोचने की पुनरावृत्ति चलती रहती है, परंतु अपने दायरे की किसी एक चीज को पूर्ण रूप से जान पाना संभव नहीं लगता, एक पत्ती मेरे पास बालकनी में थोड़ी मुड़ी हुई सी मेरे टॉवेल के नीचे पड़ी हुई है, जानने की उत्कंठा है कि यह बालकनि के पास वाले पेड़ की है या किसी और पेड़ की। मैं पास वाले पेड़ की और देखता हूँ कि शायद यह पेड़ ही अपने से विलग हुई इस पत्ती को पहचान कर थोड़े आँसू बहा ले, पर वह पेड़ तो अनजान सा ही खड़ा हुआ है, मैं उत्सुकता में जानने के लिये वह पत्ती उठाता हूँ तो उँगलियों को थोड़ा जोर भी वह सूखी पत्ती सहन नहीं कर पाती है और मेरे हाथ से टूटकर पत्ती चूरचूर होकर अपना बलिदान दे देती है। मैं महसूस कर रहा हूँ कि पेड़ ने भी बिलकुल मेरे जैसा ही एक दायरा अपने इर्द गिर्द बना रखा है।

3 thoughts on “अनजान

  1. हर कोई अपनी ही जंजीरों के बंधन में जकड़ा हुआ है, किसी की जंजीर लंबी है किसी की छोटी, किसी की पतली तो किसी की मोटी, पतली जंजीर कभी टूट कर अलग होती भी है तो पत्ती की तरह अलग-थलग पड़ जाती है ,हम दायरे को अगर बढ़ाना भी चाहते हैं तो बंधी जंजीर सीमा से बाहर नहीं जाने देती ….😢

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