मुझे मच्छर बचपन से ही पसंद थे, क्योंकि मेरे लिये तो ये छोटे से हैलीकॉप्टर थे जो मेरे इर्द गिर्द घूमते रहते थे। हैलीकॉप्टर तो केवल कभी कभी आसमान में दिखते थे, मुझे याद है जब होश सँभाला था और पहली बार हैलीकॉप्टर देखा था तो वो किचन और बाथरूम के बीच एक जाल डला हुआ मेरा छोटा आसमान था, वहाँ से देखा था, मैं उसके बाद हमेशा ही उस आसमान में ताकता रहता था, क्योंकि मुझे हमेशा से ही उम्मीद रहती कि मेरे छोटे से आसमान में फिर से कोई हैलीकॉप्टर उड़ता हुआ आयेगा। मुझे तो उस समय यह भी कभी कभी ध्यान नहीं रहता कि मेरा छोटा सा आसमान उस बड़े से आसमान का ही एक हिस्सा है। मैंने अपना एक छोटा सा आसमान बना लिया था। घर के पीछे एक मंदिर था, जहाँ से आरती की आवाजें अपने नियमित समय पर आती थीं और मैं उस आरती के बहाने अपने छोटे से आसमान में फिर से हैलीकॉप्टर का इंतजार करता था। पर केवल एक बार दिखने के बाद हैलीकॉप्टर ने मुझे वापिस से न दिखने की ही ठान ली हो और मैं भी ढ़ीठ बनकर अपने छोटे से आसमान में ही हैलीकॉप्टर देखना चाहता था।
मैं मच्छर को जब भी देखता तो मैं हमेशा अपने छोटे से आसमान में अपना हैलीकॉप्टर देखने का सपना पूरा करने लगता, पर अब मैं हैलीकॉप्टर का गुस्सा मच्छर पर निकालने लगा था, पहले मैं मच्छर को पकड़ता नहीं था, उन्हें सताता नहीं था, जब वो मुझे काटते, मेरे सामने मेरे हाथों, पैरो पर बैठकर काटते तो मैं उन्हे प्यार से देखता रहता था, कैसे कितने अच्छे से वे एक दम से बैठ जाते हैं और फिर कैसे एकदम से उनके अपने आसमान में उड़ जाते हैं, मुझे उनका उड़ना और कहीं भी उड़ने के बाद बैठ जाना पसंद था। पर जब वे ज्यादा देर के लिये बैठ जाते तो मुझे गुस्सा आने लगता कि तुम्हारे पास तो पंख हैं फिर तुम बैठ कैसे सकते हो, तुम्हें तो केवल उड़ना ही चाहिये, कितने आलसी हो तुम कि तुम बैठ जाते हो, और जब तक तुम्हारे पास कोई आये नहीं या कोई मारने का उपक्रम नहीं करे तो तुम लोग उड़ते भी नहीं हो।
मैं अब जब भी मच्छर को बैठा देखता तो मैं उन्हें जिंदा ही पकड़ने की कोशिश करता, वो भी केवल अपनी दो ऊँगलियों से, जिससे कहीं मेरे पंजे के वार से कहीं एक प्राकृतिक हैलीकॉप्टर नष्ट न हो जाये और मैं उसे कहीं गलती से जान से न मार दूँ, अगर वो मेरी उँगलियों की पकड़ में नहीं आ पाये तो कोई बात नहीं, पर मैं नुक्सान तो कतई नहीं पहुँचाना चाहता था, और वैसे भी साफ सफाई के कारण मच्छर भी कम ही आते थे। पहले मैं केवल पकड़कर उनकी संरचना देखता रहता था, फिर मैंने धीरे धीरे शोध करना शुरू किये और पूरा घर मेरे इस शोध से बेखबर ही रहता था, क्योंकि मैं शोध हमेशा बेहद एकांत में करता, जिससे कोई मेरे शोधकार्य में बाधा न डाले। मैं पूरे मनोयोग से शोध कर रहा था, परंतु धीरे धीरे मैं शोध में आगे बढ़ता गया और मेरे शोध में क्रूरता आने लगी। मैं अब देखता कि मैं बहुत बलवान हूँ, भले ही उनके पास मुझे काटने के दो पैने डंक हैं, जिससे वे मेरा खून चूसते हैं, पर वो केवल मेरे हाथ लहराने की हवा से ही विचलित हो जाते हैं और वे अपना संतुलन गँवाने लगते हैं।
मैं अब मच्छरों को केवल पकड़ता नहीं था, मैं अब शोध कार्य में व्यस्त जो था, मैं उन्हें अपनी दो उँगलियों की कैद में रखकर पहले उनकी एक टाँग तोड़ता और देखता कि उनकी उड़ने की रफ्तार पर कोई फर्क पड़ा क्या या फिर जब वे कहीं भी उड़कर उतरते, बैठते तो उन्हे कोई परेशानी होती है क्या, पर जल्दी ही समझ में आ गया कि मच्छरों को टाँग टूटने का दर्द नहीं होता, हाँ बस पंख अगर तोड़ दो तो वे उड़ नहीं पाते औऱ जैसे ही ये हमें काटें हम अगर उनको ताली बजाकर मार दें, वो खून पीने के बाद बहुत आसान है, उनका पेट भरा हुआ रहता है और मुझे पता है कि जिनका पेट भरा हुआ होता है वे हमेशा ही नशे में रहते हैं, जो भूखे रहते हैं वे ही केवल भरे पेट के नशे को समझ सकते हैं। उन्हें प्रकृति ने बहुत ही मजबूत बनाया है कि वे सभी लोगों का खून चूस सकें, फिर भले ही खून किसी गरीब का हो या अमीर का हो, किसी बीमार आदमी का हो या किसी ठीक आदमी का, प्रकृति ने उन्हें इन सब बातों की समझ नहीं दी है।
अब धीरे धीरे मुझे समझ में आ गया कि मेरा छोटा सा आसमान इस बड़े आसमान का ही हिस्सा है और हैलीकॉप्टर हमेश ही मच्छरों की तरह बेमतलब नहीं उड़ा करते, तो मैं इन बेमतलब मच्छरों को साफ करने के अभियान में लग गया हूँ, अब मेरा शोध पूरा हो चुका है, जिसका किसी को भी पता नहीं है, मुझे इसके लिये कोई डिग्री नहीं मिली है, पर मुझे पता है कि मैं शोधार्थी था और मेरे शोध पूर्ण हो चुका है।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (26-03-2016) को “होली तो अब होली” (चर्चा अंक – 2293) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर…!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’
धन्यवाद हमारी पोस्ट शामिल करने के लिये
मच्छर के दो डंक….?
शोध गलत दिशा में तो नहीं हो गया कहीं
पता नहीं, हमें तो वही लगता था
Bahut badhiya likha hai aapne, maza aa gaya 🙂
Thanks
Sir aapki writing style achchhi h.