मरने के पहले और मरने के बाद क्या करना चाहते हो ?
मरने के पहले –
है न अजीब सवाल, एक ऐसा सवाल जिसका उत्तर शायद किसी के पास भी तैयार नहीं, मृत्यु हमारे जीवन में कोई बीमारी नहीं है, यह भी जीवन की एक विशेषता है। अंग्रेजी में इसे ऐसे कहना ठीक होगा Death is not a Bug its feature of Life.
मरने के बहुत से तरीके होते हैं परंतु हर व्यक्ति को केवल एक ही तरह का अनुभव मिलता है और सबसे खराब बात कि उस अनुभव को कोई बता नहीं सकता। कोई बहुत दर्द में मरता है तो कोई अचानक ही सुख में, मृत्यु कब आयेगी कोई नहीं बता सकता। कोई मृत्यु को बहुत करीब से देखकर आने का दावा करता है परंतु वह बिल्कुल ऐसा होता है कि आपके साथ कोई घटना होने वाली है परंतु वह हो नहीं पाती है और आप बिना उस घटना को अनुभव किये ही, दावा करते हैं कि बहुत करीब से मृत्यु देखी है। वह मृत्यु का अनुभव नहीं था, वह आपके खुद का डर का अनुभव था। हालांकि बहुत ही कम लोग इस डर के बारे में भी जानते हैं।
मरने के पहले के सवाल पर भी बहुत सी तरह की प्रतिक्रियाएँ सुनने को मिलती है, कि मैं अपने पोते के साथ खेलना चाहता हूँ या मैं अपने परिवार को बहुत सा सुख देना चाहता हूँ या मैं विश्वभ्रमण पर जाना चाहता हूँ। सब अपनी अंतिम इच्छा पूरी करना चाहते हैं परंतु सबकी अलग अलग इच्छाएँ होती हैं, जिनको हमारे खुद के अलावा कोई नहीं जान सकता है।
मरने के बाद –
मृत्यु के बाद हर धर्म में शरीर की अंतिम क्रिया के अलग अलग विधान हैं, जिससे कि पाँचों तत्व जिनसे शरीर मिला है वे पंचभूत में विलीन हो जायें। कौन सा तरीका सबसे अच्छा है, शवदहन का या दफनाने का, इनका वाकई कोई वैज्ञानिक तथ्य किसी ग्रन्थ में उपलब्ध है क्या ?
कोई कहता है कि शवदहन से शरीर की बीमारियाँ इस जगत में ही रह जाती हैं, परंतु दफनाने से शरीर मिट्टी में मिलकर व्याधियों को खत्म कर देती है। तभी इस जहान में कैंसर या अन्य तरह की भयानक बीमारियाँ अभी तक हैं, परंतु मैं यही सोचता हूँ कि जिन मुल्कों में दफनाने की प्रक्रिया अपनाई जाती है, फिर उनके यहाँ क्यों भयानक बीमारियाँ होता हैं। मैं यहाँ किसी धर्म विशेष के आखिरी क्रिया के बारे में बहस नहीं कर रहा, केवल सोच रहा हूँ कि अंतिम क्रिया में कौन सी क्रिया अच्छी होगी। अगर शरीर को मशरूम के साथ दफनाया जाये तो कितने अच्छे से एन्जाईम की प्रक्रिया होगी और शरीर अच्छे से मिट्टी में मिल जायेगा। किसी की अपने शवदहन की इच्छा चंदन की लकड़ी में करने की होती है तो किसी की जल में बहाव करने की, इच्छा को कोई अंत नहीं है।
यह एक ऐसी बहस है जो कभी खत्म नहीं हो सकती है, बस हमेशा ही सब अपने आप को सही साबित करने की सोचते रहेंगे। हम जीवन और मृत्यु के बीच में हमेशा ही धर्म को लेकर आते हैं, कोई पाप की सोचता है कोई पुण्य की, बस अपने बारे में नहीं सोचता कि जन्म हमारे जीवन का पहला पन्ना है और मृत्यु आखिरी, इन दोनों पन्नों के बीच कई पन्ने होते हैं जो हर मनुष्य के जीवन में अलग अलग अनुभव लिये होते हैं, हमें इन बीच के पन्नों के बारे में अच्छे से सोचना चाहिये, यही हमारे जीवन और मृत्यु के बीच की नियती है।
सबकी अपनी-अपनी मति है, सबके अपने-अपने तर्क हैं…!!!
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ….. very nice … Thanks for sharing this!! 🙂 🙂