बहुत दिनों बाद कोई जबरदस्त किताब पढ़ने के मिली और उस जबरदस्त किताब का नाम है “दिल्ली दरबार” (Dilli Darbaar) लेखक हैं सत्य व्यास। जब कोई किताब अमूमन हम पढ़ते हैं तो हमारी घरवाली और बेटेलाल हमारे पास आकर बैठ जाते हैं और हमें उनको सुनानी पड़ती है। हमें पता नहीं कि ऐसा क्यों करते हैं ये लोग, लगता है कि पढ़ने में आलस करते हैं, जब हम कहते हैं कि तुम लोग पढ़ने लिखने के आसली, तो हमें कहते हैं मक्खन लगाते हुए कि नहीं वो आप पढ़ते अच्छा हो। खैर हम पहले दिन 60-61 पन्ने पढ़ के सुना दिये।
किताब का खाका जबरदस्त खींचा है, और हमेशा ही बाँध कर रखा है। हाँ बहुत से संवादों पर हमसे पूछा जाता है कि इसका मतलब क्या है और मतलब बताने के बाद हमसे पूछा जाता है कि तुमको कैसे पता है इस संवाद का मतलब, भई सत्य व्यास बहुत मुश्किल में डाल दिये हो ! जब पहले दिन हमने कुछ एक दो पेज मुँह में ही पढ़ते हुए गायब कर दिये, तो कहानी से बेटेलाल को समझ तो सब आ रहा था, और वे चिल्ला भी रहे थे कि डैडी प्लीज रीड लाऊडली, हमने कहा बेटा अभी दो मिनिट और रुको, हमारा गला बस इस पन्ने के बाद अपने आप ठीक हो जायेगा। अब आलम यह है कि उसके अगले दिन सुबह से ही उन दो पन्नों की ढ़ुँढ़ाई मचाई हुई है कि आखिर डैडी ने वो पढ़ाकर सुनाये क्यों नहीं। कल रात को थकहारकर हमें कह दिया गया कि डैडी ये बहुत गलत बात है, एक तो आपने पूरी किताब पढ़ी नहीं और उसमें से भी दो पन्ने सुनाये नहीं। अगर किताब अंग्रेजी में होती तो मैं समझ कर पढ़ भी लेता, ये तो हिन्दी है, मेरे लिये बहुत ही मुश्किल काम है। तो उन्होंने अब वे पन्ने पढ़ने की जिद छोड़ दी है, परंतु फिर भी ये कुछ दिनों बाद ही पता चलेगा।
हमें तो यहाँ तक सुनने को मिला घर पर कि तुमको इतना मजा क्यों आ रहा है, इस किताब को पढ़ने को। अब हम क्या बतायें, और क्या न बतायें। खैर हमने सुनाने के पहले खुद ही पूरी किताब को पढ़ना वाजिब समझा और समझ आया कि बेटेलाल को न सुनाई जाये कहानी, जब बड़े होंगे और हिन्दी पढ़ पायेंगे तो खुद ही पढ़ लेंगे।
अब बात करें किताब की तो भई ऐसी फड़कती कहानी है कि कहीं भी लय नहीं टूटती है, और यकीन मानिये अगर आप कहीं भी ये किताब पढ़ रहे हैं तो आप कई बार हँस हँसकर लोटपोट होंगे, और कई बार चेहरे पर मुस्कान भी तैरती रहेगी। कई जगह कहानी में लय भी टूटी है पर जल्दी ही उसे सँभाल लिया गया है और अच्छी बात यही है कि कहीं से भी ये किताब पढ़ते हुए आप बोझिल महसूस नहीं करेंगे। हो सकता है कि अगर आप उन चीजों से जुड़े हुये हैं और उन संवादों को समझ पायें तो शायद आजतक आपके लिये इससे बेहतर कोई और किताब लिखी ही नहीं गई है। मेरा मानना यह है कि यह छोड़ने लायक किताब नहीं है और इसे आज ही पढ़ लेना चाहिये।