आज बैंक गया पैसे निकालने के लिये लगभग 2 बजे, जब बैंक पहुँचा तो उम्मीद के मुताबिक भीड़ नहीं थी, सोचा कि या तो समस्या खत्म हो गई है या फिर बैंक के पास पैसा खत्म हो गया है। खैर गार्ड से पूछा – भई, पैसा निकल रहा है न। उसने हमको ऐसे देखा कि जैसे हमने कोई एलियन सा सवाल पूछ लिया हो, हमें लगा कि उसे हमारा प्रश्न समझ नहीं आया, हमने इस बार अंग्रेजी में पूछा, कि शायद हिन्दी न आती हो। तो हमें कहा कि सारे टोकन बँट चुके हैं, अब पैसा कल मिलेगा।
हमने उससे पूछा भई अभी तो 2 ही बजे हैं तो टोकन कैसे खत्म हो गये, बैंक का समय तो 4 बजे तक का है। हमें कहा गया कि नगद आजकल बहुत कम आ रहा है, सुबह 9.30 से 10.30 बजे के बीच टोकन बँटते हैं और फिर आप दिन में कभी भी आकर पैसे निकाल सकते हैं, और नगद की समय सीमा भी दस हजार है। हमने कहा भई पर सरकार ने तो कहा है कि हम 24 हजार तक निकाल सकते हैं, वो बोला पैसे सरकार नहीं बैंक दे रही है और बैंक के पास जितना पैसा होगा उतना ही देगी।
हम मन ही मन सोचे कि बताओ, गार्ड को इतना सब पता है और एक हमें देखो कुछ पता ही नहीं है। बहुत शर्म आ रही थी अपने आप पर कि हम उस दुनिया से कितने पीछे हुए जा रहे हैं, हम टीवी और अखबार का ज्ञान पेले जा रहे हैं, माननीय प्र.मं. जी का भाषण सुनकर जोश में आ रहे हैं और यहाँ तो दुनिया में कहानी ही कुछ और चल रही है।
खैर हम बैंक के अंदर घुसे तो देखा कि सारी कुर्सियाँ खचाखच भरी हैं और नगदी काऊँटर पर लोग होन ऐसे जमा हैं जैसे कि सुरक्षा कर रहे हों। 15-20 कुर्सियाँ बीच में लगी थीं, जिसके दोनों और 2 रस्सियाँ लगी थीं, जैसे एयरपोर्ट पर इंतजार में लोग ऊँघते हैं वैसे ही वहाँ ऊँघ रहे थे। सोच रहे थे बताओ अपन प्रीमियम एकाऊँट होने पर इतरा रहे थे, और उस इतराने की फुस्स तो वहाँ दरवाजे पर गार्ड ने ही निकाल दी।
तब सोचा कि कल ऑफिस से आते समय एक एटीएम पर लाईन कम थी और हम भी 8 वें या 9 वें नंबर पर लगे थे, पर 15 मिनिट में केवल 2 लोगों को निपटता देख संयम खो दिये थे,
और गार्ड को पूछे भई क्या भसड़ है, लोगों की मदद करो अगर उनको पैसा निकालना नहीं आ रहा है, तो गार्ड महाशय बोले भैयाजी हरेक के पास कम से कम 2 कार्ड है और फिर एटीएम का नेटवर्क भी बहुत धीमा है। हमने आखिरी सवाल पूछा कि 100 रूपये के नोट निकल रहे हैं क्या, तो वो बोला नहीं सरजी केवल 2000 रूपये के ही नोट निकल रहे हैं। हम चुपचाप कान में 95 एफ.एम. मिर्ची मुर्गा लगाये और चल दिये। अपन मन ही मन में सोच रहे थे कि वहाँ तो वो एक फोन करके केवल एक को ही मुर्गा बनाता है, यहाँ तो केवल एक बार में ही सारे देश को मुर्गा बना दिया है।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (18-12-2016) को “जीने का नजरिया” (चर्चा अंक-2559) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर…!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’