कल बैंगलोर में यातायात के सफेद वर्दीधारी कुछ ज्यादा ही मुस्तैद नजर आ रहे थे, पहले लगा कि कोई बड़ा अफसर या मंत्री आ रहा होगा। परंतु हर जगह दोपहिया वाहनों और टैक्सी वालों को रोककर उगाही करते देख समझ आ गया कि इनको दिसंबर का टार्गेट पूरा करना होगा, नोटबंदी के चलते इनको नवंबर में भारी नुक्सान हुआ है। भले ही चालान क्रेडिट कार्ड या ऑनलाईन भरने की सुविधा हो, परंतु हर चालान तो एक नंबर में न ये काटेंगे और न ही पकड़ाये जाने वाला कटवायेगा। जब 500 या 1000 की जगह 100 या 200 में ही काम चल जायेगा तो कौन इतनी माथापच्ची करेगा। आजकल तो हालत यह है कि इनके पास भी जो क्रेडिट कार्ड मशीन होती है, उसकी भी टांय टांय फिस्स हुई होती है, या तो नेटवर्क फैलियर का मैसेज आता है या फिर सर्वर लोड का मैसेज या टाईम आऊट।
बहुत मेहनत का काम करते हैं वो लठ्ठ लिये हुए सफेद वर्दीधारी सिपाही, हम वो शब्द न कहेंगे और न ही लिखेंगे जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने भी दिल्ली के मुख्यमंत्री से इसका मतलब क्या है, पूछ लिया था। जबकि भारत का बच्चा बच्चा उस शब्द का अर्थ जानता है। पता नहीं कैसे उन लोगों ने पढ़ाई की और फिर उस शब्द का अर्थ पूछ रहे हैं, जबकि उस शब्द को तो कई बार कितनी ही फिल्मों में बोला गये है। यहाँ तक कि कई उपन्यासों और कहानियों में स्वच्छंद रूप से प्रयोग किया गया है। बेचारे को तो वो स्टार वाला जो बाईक पर खड़ा होता है, उसकी ड्यूटी बजानी होती है और जी हजूरी करनी होती है।
एक बार गुड़गाँव से ऑफिस से आते समय हाईवे पर एक सफेद वर्दी वाले ने हमें हाथ दिया, जो कि उस समय बिना ट्रॉफिक लाईट की क्रॉसिंग को सँभाल रहा था, हमने गाड़ी रोकी और पूछा भई सेक्टर 56 तक छोड़ दोगे, हमने कहा – चलो भई वहीं से जाने वाले हैं। 15-20 मिनिट में जो बाद हुई उसमें हमें बताया कि इंसपेक्टर हमें 56 की रोड पर मिलेगा, और आज वीकेंड शुरू हुआ है, याने कि शुक्रवार की शाम है, तो रात के 10 बजने वाले हैं और फिर इंसपेक्टर अपनी कार से हमें एम.जी. रोड ले जायेगा, और रात को 1 बजे तक वहाँ ड्यूटी है। हमें समझ नहीं आया कि ये क्या बात हुई, पीछे हाईवे के क्रॉसिंग की तो ऐसी तैसी हो गई होगी अब तक तो। वो सिपाही हमें संशय में देखकर समझ गये और हमारी समस्या ताड़ते हुए बोले कि आज लोग ज्यादा पीने के बाद गाड़ी खुद घर चलाकर जाते हैं, तो हम उनकी गाड़ी रुकवा कर, उनका चालान वालान बना देते हैं, और बेमतल की हँसी हँसने लगा। हम समझ गये कि भाई लोगों का वीकेंड अच्छा जायेगा और जो इनके हत्थे चढ़ेगा उनका बुरा हो जायेगा।
कल ऑफिस से आते समय घर के पास ही सिग्नल के पास ही ट्रॉफिक दरोगा के साथ ही सिपाही खड़े थे, हमारे आगे जा रहे बाईक वाले को हाथ लहराने के साथ ही खुद भी लहरा कर उसको रोका क्योंकि बाईक वाला भागने के चक्कर में था। उसके पीछे जो लड़की बैठी थी उसने हैलमेट नहीं पहनी थी, तो सिपाही ने हँसते हुए उससे कहा, सरजी -मैडम का बिना हैलमेट का सर दिख रहा है, और भागने के चक्कर में कम से कम इंसान को तो देख लिया करो, अगर आपने हम पर गाड़ी चढ़ा दी होती तो बस आपकी तो कहानी ही हो जानी थी। हमें उसकी बात हिन्दी और अंग्रेजी मिक्स में सुनकर मजा आ गया। खैर उस बाईक वाले को कम से कम 500 का चालान तो हुआ ही होगा। अच्छी बात यह थी कि अपने को नहीं रोका, रोकता भी तो उसको कोई फायदा नहीं होता, अपने पास सारे कागजात थे । इन लोगों को शायद चेहरा देखकर ही समझ आ जाता होगा कि कौन भागने के चक्कर में और कौन नहीं।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (26-12-2016) को “निराशा को हावी न होने दें” (चर्चा अंक-2568) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
क्रिसमस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर…!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’
धन्यवाद