आज एक मित्र 7 दिन की बनारस यात्रा से आये हैं, वे दक्षिण भारतीय हैं और लगभग हर सप्ताह ही कहीं न कहीं किसी न किसी धार्मिक यात्रा पर रहते हैं। काशी की बहुत तारीफ कर रहे थे। बता रहे थे कि उनके समाज के लोगों ने लगभग 200 वर्ष पूर्व काशी में ट्रस्ट बनाया था और धर्मशाला की स्थापना की थी। धर्मशाला में रहने के कारण उनको वहाँ के सारे धार्मिक रीति रिवाज पता चले। उन्होंने वहाँ सुबह, दोपहर एवं रात्रि याने कि शयन आरती के दर्शन किये। काशी विश्वनाथ की 108 परिक्रमा की।
उन्होंने बताया कि काशी विश्वनाथ के दरवाजे के पास ही एक और दरवाजा है, अगर ध्यान न दो तो आप सीधे एक मस्जिद में पहुँच जाते हैं। खैर हमें उनकी यह बात समझ नहीं आई। काशी विश्वनाथ में दो नंदी जी हैं, जिसमें से एक नये हैं। तो वे हमें बता रहे थे कि हमें यह देखकर बहुत ही आश्चर्य हुआ। काशी विश्वनाथ मंदिर बनारस की स्वच्छता के बारे में बता रहे थे, कि बहुत ही स्वच्छ है। लेटे हनुमान मंदिर के बारे में भी बात हुई।
हरिशचंद्र घाट क्या किसी भी घाट को देख लो, सारे घाट बहुत ही साफ हैं और बिल्कुल अच्छे बने हुए हैं, गंगा का पानी भी बिल्कुल साफ है, कह रहे थे कि लोग तो कहते हैं कि हरिशचंद्र घाट पर तो आधे जले मुर्दे फेंक दिये जाते हैं, पर उन्हें वह सब वहाँ नहीं दिखा। वे काशी की तारीफ किये जा रहे थे और हमें बहुत अच्छा लग रहा था। हमने उनसे पूछा कि इलाहाबाद में कहाँ कहाँ घूमने गये तो वो बोले कि हम केवल त्रिवेणी संगम पर गये और वापिस काशी आ गये।
उनको सबसे अच्छी बात लगी कि मंदिर किसी ट्रस्ट का नहीं है, वहाँ वह मंदिर एक परिवार के पास है जिसने मुगलों के समय उस मंदिर की रक्षा की थी। और वे गंगा आरती की भी बहुत तारीफ कर रहे थे, इतनी सारी तारीफ की, कि हमें वहाँ जाने की इच्छा होने लगी है।
आज से अगले तीन महीने वे नंगे पैर ही रहने वाले हैं, हमने पूछ ही लिया कि इसका क्या है, तो वे बोले कि मार्च में वे 7 दिन की मुरूगन की एक यात्रा पर जाने वाले है, नाम तो खैर हमें सही तरीके से याद नहीं परंतु वे कह रहे थे कि उन सात दिनों में 350 किमी की यात्रा नंगे पैर करनी होती है, मतलब कि लगभग रोज 50 किमी रोज नंगे पैर चलना होता है, तो इसके लिये वे 2-3 महीने नंगे पैर ही रहते हैं और ज्यादा से ज्यादा चलने की कोशिश करते हैं, जिससे के नंगे पैर चलने में अभ्यस्त हो जायें।
वे कह रहे थे कि तमिलनाडू में एक से एक मंदिर हैं जिनकी सृजन शैली देखते ही बनती है, बस उनका अच्छे से रखरखाव और उनकी मार्केटिंग नहीं की गई है, लेकिन अब लगभग सभी मंदिरों में रखरखाव अच्छा हो रहा है और लोगों को उनके शिल्प के बारे में भी बताया जा रहा है। केवल एक ही समस्या है कि वे मंदिर शहरी क्षैत्र में नहीं हैं, तो आपको एक तमिल जानने वाला एक गाईड करना ही पड़ेगा।
उम्मीद है कि हमारे मंदिर के शिल्प और वैभव को हम देख पायेंगे, हमने उनसे कहा है कि वे हमें उनके अनुभव और जगह के नाम बताया करें तो हम उनके बारे में लिख दिया करेंगे। तो कम से कम कुछ लोगों तक तो जानकारी पहुँच ही जायेगी।
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन जन्मदिवस ~ कवि गोपालदास ‘नीरज’ और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर …. आभार।।
सुंदर पोस्ट
वो सबरी मलई की बात कर रहे थे क्या? जहाँ पैदल जाते हैं?
Kashi Vishwanath के ऊपर बहुत ही बढ़िया article लिखा है आपने। … Thanks for sharing this!! 🙂 this!! 🙂 🙂
सुबह हो तो बनारस की वाह सुबहे बनारस …… अद्यितीय मेरी काशी
padh kar achha laga ,hum banaras k hi ass pass rehne wale hai hume utna pta nhi jitna aap jante ho ,hats off ,kafi achha article hai ,