हर वर्ष अप्रैल या मई में ही घर जाने का कार्यक्रम होता है, हम हमेशा ही कोशिश करते हैं कि लगभग सभी से मिल लें, समय हमेशा ही कम होता है, परंतु फिर भी उसी समय में सब जगह जाना, सबसे मिलना और साथ ही थोड़ा बहुत घूमना भी करना होता है। इस वर्ष भी हम दिल्ली, धौलपुर, उज्जैन और इंदौर गये थे, साथ ही धौलपुर के पास मुरैना में ही चौंसठ योगिनी का मंदिर और बहुत पुराने मंदिरों की श्रंखला पढ़ावली और बटेश्वर भी गये थे। इन मंदिरों के बारे में और यात्रा के बारे में विस्तार से लिखने का सोचा था, बहुत सारे फोटो खींचे थे, जो कि हमने इंस्टाग्राम पर शेयर भी किये थे। अब थोड़ा थोड़ा समय निकाल कर लिखेंगे।
जब इस बार हम उज्जैन पहुँचे तो मम्मी जी और पापा जी अच्छे से चल फिर रहे थे और अपने लगभग सारे कार्य सामान्य रूप से ही कर रहे थे, अपने आप में पूरे आत्मविश्वास से लबरेज थे। जब आप अपने आधारस्तंभों को आत्मविश्वास से लबरेज देखते हैं तो अपने आप ही हमारे अंदर बेहद आश्चर्यजनक रूप से बहुत सी शक्ति, ऊर्जा के संचार होने लगता है। मम्मी जी की तबियत कई दिनों से खराब चल ही रही थी, कभी कहीं दर्द तो कभी बुखार, और डॉक्टर की निगरानी में इलाज चल ही रहा था, परिणाम भी अच्छे थे। अपने शरीर में हो रहीं कुछ समस्याओं (Unusual Health Problems) को हम असामान्य नहीं मानते हैं, और उन्हें अपने जीवन का एक अंग मानते हुए, समस्याओं को भी अपने जीवन का अंग बना लेते हैं। यह हर किसी के साथ होता है, और हमें जिस चीज से आराम मिलता है, हम वही चीज करने लगते हैं। कई लोगों से सुनते हैं कि फलां फलां को भी यही समस्या थी और उन्होंने उनके पास इलाज करवाया तो उनकी समस्या में आराम रहा। तो हम भी उन लोगों के पास दौड़ने लगते हैं, हम कोई वैज्ञानिक समाधान नहीं खोजते, हम अपने मानसिक स्तर पर अपने समाधान अपने आसपास होने वाली घटनाओं और उनके रोकथाम वाली बातों को खोजते रहते हैं।
मैं हमेशा से ही देख रहा था कि मम्मी जी हमेशा ही पखाने के लिये परेशान रहती हैं, उनका पेट खराब रहता है, परंतु वे कहती थीं कि यह समस्या कोई आज की है, यह बहुत पुरानी समस्या है। इस बात को न हमने असामान्य माना और न हमारे घर में किसी और ने असामान्य माना। जब 2-3 महीने पहले याने कि जुलाई अगस्त 2017 में थोड़ा थोड़ा रक्त भी स्त्राव होने लगा, तो तुरंत डॉक्टर को बताया गया, जाँचें हुईं, परंतु सारी जाँचों के परिणाम सामान्य थे और समस्या थी कि बढ़ती ही जा रही थी। यहाँ तक कि हीमोग्लोबीन बहुत कम हो गया था और रक्त की एक यूनिट भी चढ़ानी पड़ी। हमारी चिंता बढ़ती जा रही थी। आजकल एक समस्या और है कि हम फोन पर तो रोज ही बात कर लेते हैं, तकनीकी युग में रोज ही वीडियो कॉल भी कर लेते हैं, परंतु हम सामने वाले की समस्या को प्रत्यक्ष देखकर ही जान समझ सकते हैं। अप्रैल और अगस्त के बीच में ही स्वास्थ्य में बेहद गिरावट चिंता का प्रश्न बनता जा रहा था।
पारिवारिक, मित्रों और पड़ौसियों का सपोर्ट सिस्टम बीमारी में भलिभांति अनुभव किया जा सकता है, हमने कई बार कोशिश करी कि हमारे मम्मी जी और पापा जी हमारे साथ ही रह लें, परंतु उनकी अपनी दिनचर्या हमारे गृहनगर में निश्चित है। वे अपने गृहनगर और घर को नहीं छोड़ना चाहते। जितना सपोर्ट हमें परिवार, मित्रों और पड़ौसियों से मिला उसको बताना ठीक नहीं, क्योंकि उसे किसी भी बात से तौला नहीं जा सकता है व आभार प्रकट कर, भावनाओं को ठेस भी नहीं पहुँचाई जा सकती है।
इसी बीच मम्मी जी और पापा जी का 1-2 बार इंदौर भी जाकर डॉक्टरों से मिलना हुआ, और वहाँ के डॉक्टरों ने कुछ और नई जाँचें करने को लिखीं, परंतु उन बातों को उस समय के लिये टाल दिया गया कि इससे भी कुछ नहीं होने वाला है। समस्या जस की तस ही रही, परंतु समस्या धीरे धीरे विकराल रूप धारण कर रही थी। हमने कहा कि एक काम करो सारी रिपोर्ट हमें व्हाट्सएप पर भेजो, हम देखने की कोशिश करते हैं। अगर समझ न आया तो पता करने की कोशिश करते हैं, क्योंकि हमेशा ही एक से ज्यादा अभिमत लेना ठीक होता है। हमने वे सारी रिपोर्टस अपने एक डॉक्टर मित्र कौ व्हाट्सएप की, तो 2-4 लाईनों में हमें समझाने की कोशिश की, परंतु हम समझने में कामायब नहीं रहे। फिर उन्होंने कहा कि हम फोन पर बात करके समझाते हैं, वे हमें चिकित्सक की भाषा में समझा रहे थे और हमारा दिमाग उस भाषा के लिये तैयार ही नहीं था, हमने उनसे साधारण भाषा में समझाने को कहा, उन्होंने हमें पूरी तसल्ली से जब तक हमें समझ न आया, तब तक समझाया। हमें समस्या अभी भी पता नहीं थी, परंतु उन जाँचों को आधार मानकर यह समझ आ गया था कि अब आगे किस दिशा में इलाज करवाया जाये।
– निरंतर –
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (24-10-2017) को
“दो आँखों की रीत” (चर्चा अंक 2767)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर…!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’