आज बारहवीं कक्षा का परीक्षाफल आया और उसमें एक प्रतिभावान छात्र ने 500 में से 499 नंबर लाकर दिखाये। समाज को, परिवार को, दोस्तों को उस छात्र पर नाज होगा और होना ही चाहिये। यहाँ आज इस ब्लॉग में मेरा इस विषय पर लिखने का मकसद कुछ और है। हर वर्ष ऐसे कई प्रतिभावन छात्र होते हैं, जिनके पास बेहतरीन दिमाग होता है और वे अपने क्षैत्रों में अव्वल आते हैं। परंतु फिर भी भारत में से ये लोग जाते कहाँ है, जब बारहवीं में 499 नंबर आये हैं तो आगे भी परीक्षाओं में वे लोग बेहतर ही करेंगे, यह तो तय है। फिर ये सब लोग न वैज्ञानिक बने दिखाई देते हैं, न ही उद्यमी, जिससे भारत का नाम रोशन हो।
ऐसे प्रतिभावन चिरागों की मंजिल भी कोई न कोई सरकारी नौकरी या निजी नौकरी ही होती है। क्योंकि ये सभी मध्यमवर्गीय तबके से होते हैं, जिनका सपना ही केवल और केवल अच्छी जिंदगी गुजारना होता है, जो उनकी पिछली पीढ़ी नहीं पा पाई, वे बस वही सब पाना चाहते हैं। और जाने आनजाने अपनी प्रतिभा को दोहन किसी न किसी सरकारी या निजी उपक्रम में होने देते हैं। नंबर लाना अपने आप में बहुत गर्व की बात है, परंतु जीवन के अन्य पहलुओं पर भी ध्यान दिया जाना चाहिये, जैसे कि नेतृत्वकौशल, अच्छा वक्ता, अच्छा लेखन, अच्छा विश्लेषी दिमाग या बहुत कुछ ओर। परंतु हम लोग याने कि समाज और परिवार इन सब चीजों की और ध्यान ही नहीं देते हैं। पढ़ाई में अच्छा होना और जीवन में कुछ कर दिखाना, दोनों में बहुत अंतर है।
जीवन में जो भी कोई ऊँचाईयों तक पहुँचता है, वह केवल और केवल इसलिये कि उसे वह मौका न मिला, जो वह करना चाहता था, बल्कि वह मौका न मिलने की वजह से, इस क्षैत्र में आया, जहाँ वह प्रसिद्ध हुआ। इसका बहुत ही साधाराण सा उदाहरण महान वैज्ञानिक, अभियंता और भारत के पूर्व राष्ट्रपति श्री अब्दुल कलाम आजाद हैं, वे फाईटर पायलट बनना चाहते थे, परंतु केवल आठ ही पद थे, और वे नवें नंबर पर थे। अगर वे फाईटर पायलट के लिये चयनित होकर भर्ती हो जाते, तो हम उनकी इस प्रतिभा से वंचित ही रह जाते।
जीवन में ऐसे कई उदाहरण हैं, तो बच्चों पर नंबरों का बोझ न डालें, क्योंकि बच्चा किस चीज में अच्छा है, वह तो कोई बता ही नहीं सकता है, वह तो बच्चे के ऊपर है कि कब उसका दिमाग किस चीज में सही तरीके से लग जाये। जीवन में कुछ ऐसा कर गुजरने पर जोर देना चाहिये जिससे कि पूरी मानव जाति का भला हो, न कि केवल परिवार का या खुद का। और न ही कोई चीज उन पर थोपनी चाहिये।
हाँ यह बात सत्य है कि हर कोई प्रतिभवान होता है, बस उसे अपने क्षैत्र में सही तरीके से मौका नहीं मिला होता है, या वह अपनी प्रतिभा के अनुरूप क्षैत्र को खोज नहीं पाता है। जीवन में संघर्ष तो सभी को करना होता है, केवल सबके संघर्ष के स्तर अलग अलग होते हैं, मेहनत के रूप अलग अलग होते हैं। बात ठीक लगे तो अपने विचार अवश्य रखें।
यह गणित विज्ञान जैसे विषय में सम्भवतः हो सकता है। कही अध्यापक अफसर का दुलारा पुत्र सम्बन्धी space? विगत वर्षों के जाच अध्ययन ने लोजो के दिलो-दिमाग को खोल दिया । विश्वास पर वादल की छाया दिखी ।खैर उस वालक पर हमें ही क्या भारत को गर्व होना स्वाभाविक है।