कई बार हमारे जीवन में ऐसा भी दौर आता है जब हम उसे पसंद नहीं करते, परंतु यह हमारी मर्जी पर निर्भर नहीं करता कि हम उसे दौर से न गुजरें। यह एक प्रक्रिया है, जिससे निकलना जरूरी होता है, भले दिन में लाख बार चिंता में रहें, भले करोड़ों बार आशा की नई किरण के बारे में सोचें, जो होना होता है,उसके लिये शायद हम ही जिम्मेदार होते हैं।
जीवन जीने की प्रक्रिया में हम बहुत से दुख सुख से गुजरते हैं, और फिर एक ऐसे मोड़ पर पहुँच जाते हैं, जहाँ पर दुख सुख सब एक समान लगने लगते हैं, किसी के जीवन की यात्रा में यह मोड़ जल्दी आ जाता है, किसी के लिये देर से आता है, और किसी के लिये कभी आता ही नहीं है। सब जीवन के जीने, आसपास घटित हो रही घटनाओं व चिंतन करने की दुरूह प्रक्रिया से निकल कर आता है।
यह सोचना सही नहीं कि मैं बहुत मजे में हूँ, उस समय अपने से उच्च स्तर वाले को देख लीजिये, जब खुद पर घमंड हो जाये व दुखी हों तो अपने से निम्न स्तर वालों को देख लीजिये। यह एक ऐसा चक्र है, जिससे कोई नहीं निकल पाया, और इस चक्र में हम केवल भौतिक चीजों को ही देखते हैं, तौलते हैं, जो कभी भी हमारे कर्मों से नहीं जुड़ी होती हैं। जो चीजें हमें आत्मिक तौर पर संतुष्टि देती हैं, बस वही हमें नहीं चाहिये होती हैं, सांसारिक दृष्टि से इन चीजों को हेय समझा जाता है। परंतु जीवन का असली सारतत्व वहीं होता है।
हम पता नहीं बाहर क्या खोजते रहते हैं, और वहीं हम इन सब तकलीफों को सामना करते हैं। अगर हम बाहर की जगह अंदर खुद को खोजने लगें तो शायद उन तकलीफों को सामना करना ही न पड़े व हम संसार के सबसे खुश प्राणियों की गिनती में होंगे। खुशी का कोई मोल नहीं होता, हर किसी की खुशी अलग अलग होती है, उसके उत्पत्ति के साधन भी अलग अलग होते हैं।
बताईये आपकी खुशी कैसे अलग है व उसकी उत्पत्ति कहाँ है।
जीवन तो संतोष है तो जीवन सुखी नहीं तो दुखी
जब आयो संतोष धन सब धन धूरि समान
बहुत सुंदर।
जी बिल्कुल
सुंदर अभिव्यक्ति