मैं जब ब्लॉग लिखता हूँ तो ब्लॉग के लिये विषय कभी ढूँढ़ता नहीं, बल्कि उस समय जो भी मेरे मन मस्तिष्क में चल रहा होता है, उसी विचार पर ब्लॉग लिख देता हूँ। कई बार ऐसा भी होता है कि हम किसी विषय पर चिंतन कर रहे होते हैं और उससे निकलने के लिये हमें कई बार लिखना होता है तो वह खुद के विचार ब्लॉग के रूप में प्रकट होते हैं।
आज सुबह ऐसा हुआ कि मैं ध्यान में था, और विषय मेरे सामने से निकलने लगा, सोचा था कि उसी पर ब्लॉग लिखूँगा, परंतु हुआ यह कि जब ध्यान से उठा तब तक मैं उस विषय को ही भुला बैठा, तो ऐसा कई बार हो जाता है, कोई सामान्य सी बात भी याद नहीं आती है। मेरे साथ ऐसा कई बार हो चुका है, जैसे कि कुछ चीजें होती हैं जो हम कहीं लिखकर नहीं रखते, वह गोपनीय होती हैं, परंतु हमेशा ही हमारे जहन में रहती हैं, जैसे कि बैंक का लॉगिन आई डी, पासवर्ड, मेरे साथ कई बार ऐसा हुआ कि लॉगिन आईडी याद ही नहीं आता, फिर उस काम को मुझे टालना होता और थोड़ी देर बाद अपने आप ही याद आ जाता है, फिर उस काम को आगे कर पाता हूँ।
मुझे लगता है कि यह सामान्य प्रक्रिया है, और शायद सबके साथ होता है, जैसे कि कई बार मैं फोन या हैंड्सफ्री अपने आसपास ही कहीं रख देता हूँ, ढ़ूँढ़ता हूँ तो नहीं मिलते हैं, फिर परेशान होकर घर में भी सबसे पूछता हूँ, अंतत: पता चलता है कि मैं अपने पास रखा हुआ हूँ और बस वहीं न देखकर सारे घर में ढ़ूँढ़ रहा हूँ। यही जीवन में भी होता है, कई बार हममें ऐसे बहुत से अच्छे गुण होते हैं, या बातें होती हैं, जिन्हें हम जानते नहीं, परंतु हम उन्हें सीखने या पढ़ने के लिये बेताब होते हैं।
विषय की यात्रा की भी अपनी ही एक कहानी है, जैसे कि आप ब्लॉग के लिये विषय ही याद न रहना पर ही यह ब्लॉग लिख दिया। मन में कई बातें कई बार एक साथ, तो कई बार एक के बाद एक अपने आप चुपके से आने लगती हैं, और उन पर हमारा कोई वश नहीं होता। कई बार हमें सामान्य घटना में भी कोई अच्छा भाव मिल जाता है और कई बार हम उस पर गौर ही नहीं करते। इस मन की राह बहुत कठिन है।
बताईयेगा कि आपके साथ भी कभी ऐसा हुआ है, या होता है, या होता ही रहता है।
सार्थक आलेख।