क्या आपने कभी सोचा है कि समाज में अधिकतर लोग गुस्सा, क्रोध व गालियों का शिकार क्यों होते हैं, कोई भी बचपन से गुस्सा, क्रोध या गालियों का आदतन नहीं होता है। यह हमारे आसपास की सामाजिक व्यवस्था के कारण हम सीख जाते हैं। गुस्सा, क्रोध व गालियों में बहुत आत्मनिर्भरता है, जब गुस्सा क्रोध आयेगा तभी आपके मुँह से गालियों की बरसात होगी। गुस्सा आना न आना केवल और केवल आपके ऊपर निर्भर करता है।
गुस्सा हम कब करते हैं, अगर ध्यान से देखा जाये, तो उसके अपने कुछ पहलू होते हैं, पर मुख्य पहलू होता है कि हम किसी काम से खुश न होने पर गुस्सा होते हैं, गुस्सा क्रोध कई लोगों का भयंकर रूप से फूट पड़ता है तो कई लोग उस गुस्से को बेहतरीन तरीके से सीख लेते हुए निगल लेते हैं, परंतु यहाँ मुख्यत: बात यही है कि हमारी कोई बात पूरी नहीं होती है या फिर कोई काम हमारे मनचाहे तरीके से नहीं होता है, हम जैसा चाहते हैं वैसा नहीं होता है, तो गुस्सा अभिव्यक्ति के रूप में निकल आता है।
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गालियों का अपना गणित है, जब गुस्सा क्रोध की अभिव्यक्ति में व्यक्ति गुस्सैल होता है तो उसे अभिव्यक्त करने के लिये कठोर शब्द चाहिये होते हैं जिससे सामने वाला याने कि जिस पर गुस्सा किया जा रहा है, वह आहत हो, इसलिये गालियों का सहारा लिया जाता है, कई बार साधारण सी गालियों से ही काम चल जाता है और कई बार गुस्से से उस व्यक्ति के परिवार की महिलाओं को भी लपेट लिया जाता है। और इस गाली गलौच के चक्कर में कई बार बात इतनी बढ़ जाती है कि वह घटना अपराध का रूप ले लेती है।
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मैंने ऐसे भी वाकये देखे हैं जहाँ बरसों बरस की मित्रता केवल गाली गलौच के कारण खत्म होती देखी है। कई बार हम खुशी में गाली गलौच कर लेते हैं, परंतु ऐसे वाकये कम ही होते हैं, और यह उस परिवार या समाज पर भी निर्भर करता है, जहाँ हमारा उठना बैठना है। गाली गलौच दोस्तों में होना आम बात है, कहा जाता है कि जब तक गाली गलौच न हो तब तक दोस्ती पक्की नहीं होती है।
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आप बताईये क्या आप भी गालियों का सहारा लेते हैं जब आपको गुस्सा क्रोध आता है?
उपयोगी आलेख।
जाते हुए साल को प्रणाम।