कुछ बातें जो हमें परेशान करती हैं, हमेशा ही दिमाग में घूमती ही रहती हैं। और हम उनके अपने दिमाग में घूमते रहने से ओर ज्यादा परेशान हो जाते हैं। दिन हो या रात हो, जाग रहे हों या सो रहे हों, बस वही बातें दिमाग में कहीं न कहीं घूमती रहती हैं। कई बार यह बड़ी मानसिक परेशानी की वजह हो जाती है। हम चाहे कुछ भी कर रहे हों, पर हमेशा ही वह परेशानी हमारे दिमाग में घूमती ही रहती है। दिमाग शांत नहीं रहता, हमेशा ही अशांत रहता है। दिमाग में जैसे कोई फितूर घुस गया हो।
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कई बार तो लगता है कि व्यक्ति साईको हो जाता है, हम कहीं भी कितना भी भाग लें, पर उन डर के विचारों से पीछा नहीं छुड़ा पाते हैं, और जब तक कि वह परेशानी सुलझ नहीं जाती, तब तक हम किसी भी बात को सही तरीके से कर ही नहीं पाते, अपना कोई भी मनपसंदीदा काम हो, कोई फिल्म ही क्यों न हो, या फिर आपका कोई प्रिय लेखक ही क्यों न हो। भले घर में मनसपंदीदा व्यंजन बना हो, पर जब इस प्रकार की परेशानी से जूझ रहे होते हैं तो वह भी अच्छा नहीं लगता।
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कहना आसान है कि अपना ध्यान भटकाओ, उसके बारे में मत सोचो, कुछ ओर कर लो, कहीं घूम आओ, पर दरअसल परेशानी हमें छोड़ती ही नहीं, इसका एक कारण मुझे समझ आता है कि हम अपना आत्मविश्वास कमजोर कर चुके होते हैं और उसे हम अपने दैनिक जीवन की बहुत सी आदतों में प्रत्यक्ष रूप से देख सकते हैं, कई बार अकेले में बैठकर रोने का मन करता है, कई बार कोने में घुटनों में छुपकर रहना चाहते हैं, तो कई बार हाथ पैर काँपने लगते हैं। यह सब बहुत ज्यादा नेगेटिव वातावरण ओर ज्यादा तकलीफदेह होता है।
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समस्या का समाधान बहुत सीधा नहीं है, क्योंकि किसी पर भी विश्वास नहीं किया जा सकता है, और न ही किसी को मन की पीड़ा बताई जा सकती है। कई बार छोटी परेशानी भी हम बड़ी समझ लेते हैं ओर परेशान होते रहते हैं। ऐसे समय जितना हो सके अपने आपको अच्छे लोगों के सान्निध्य में रखने की कोशिश करें, नेगेटिविटी कम करें। ध्यान करें, सुबह शाम टहलने जायें, प्रकृति के बीच रहें। छोटी छोटी चीजों में अपनी खुशियाँ ढूँढ़ें। आपने जो उपलब्धियाँ अभी तक पाई हैं, उन्हें याद करें और उनसे पॉजीटिव ऊर्जा लें।
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क्या और भी कोई तरीका है, इन परेशानियों से छुटकारा पाने का, तो बताईये?
उपयोगी आलेख।
“….क्या और भी कोई तरीका है, इन परेशानियों से छुटकारा पाने का, तो बताईये?…”
पुरानी कहावत है – खाली दिमाग शैतान का घर. तो, अपने आप को व्यस्त रखो. मैं ऐसे समय में अपने आप को व्यस्त कर लेता हूँ.
बाकी, और लोगों के विचार मैं भी जानना चाहूंगा.
आपकी बात रवि भाई बिल्कुल वाजिब है, परंतु होता यह है कि जब परेशानी होती है तो कोई काम भी करने का मन नहीं होता है।
हर मानसिक परेशानी एक सी नहीं होती, इसमें बेहतर यही है कि खुद प्रयास करने पर सफलता न मिले तो किसी प्रोफेशनल की मदद ली जाये। कुछ परेशानियों में थेरैपी की जरूरत होती है तो किसी में दवाइयों की।
अक्सर देखा है सब एक ही नुस्खा सुझा देते हैं, फिजिकली एक्टिव रहो, पॉजिटिव थिंकिंग रखो, घर परिवार/दोस्तों के साथ समय बिताओ।
ये वही बात है कि किसी को लिवर सिरोसिस के चलते बुखार आये और कहें पैरासिटामोल लेकर सो जाओ, सब सही हो जायेगा।
बिल्कुल सही बात कही नीरज भाई, समस्या यह है कि हमारे समाज में इसे कोई समझता ही नहीं, बहुत सी समस्याओं को अगर परिवार द्वारा प्राथमिक स्तर पर ही सुलझा लिया जाये तो बात आगे बढ़े ही न।