बैंगलोर में सबसे ज़्यादा रोड टैक्स किसी भी वाहन पर भारत में भरना होता है।मतलब कई बार तो ऐसा लगता है कि इतना टैक्स लेने के बाद शायद यहाँ बेहतर सड़कें मिलेंगी पर ऐसा कुछ है नहीं, हाईवे पर लूट अलग है।जब तक कोई दमदार व्यक्ति किसी सड़के के लिये न कहे, तब तक यहाँ सड़कें नहीं बनतीं। हमें समुद्र बहुत ही पसंद है, पर उसके लिये हमें समुद्र किनारे नहीं जाना पड़ता, जब भी थोड़ी सी बारिश हो, तो बैंगलोर की सारी सड़कें ही समुद्र बन जाती हैं, और बिना पैसे खर्च किये ही मज़ा आ जाता है।
अब रही बात ज़बरदस्ती विकास की, तो जब सब ठीक चल रहा है तो आपका खर्चा नहीं होगा, जब समुद्र बनेगा तो आपकी गाड़ी फँसेगी, आपको गाड़ी निकलवानी पड़ेगी, गाड़ी ख़राब होगी तो मैकेनिक के पास ले जानी पड़ेगी, इस प्रकार से देखिये कितने लोगों को अप्रत्यक्ष रूप से रोज़गार देने की महती योजना चल रही है।
अब बारिश ख़त्म हो गई तो बिल्कुल बारिश ख़त्म होने के पहले सड़कें दोनों तरफ़ से खोद दीं, चौराहों पर, मोड़ों पर भी सड़कें खोद दी गईं, अब सोचो मास्टर माईंड, लोग समझ ही न पाये, एक बारिश हुई और जो खोदने के बाद उसे दिखाने के लिये मिट्टी डाली थी, वह बड़ा गढ्ढा बन गया, कल कई दिनों बाद दीपावली पूजन सामग्री के लिये बाज़ार जाना हुआ, जैसे ही बाज़ार के लिये मुड़े, कार गढ्ढे में, फच्च की आवाज़ आई, एक्सीलरेटर मारने पर कार निकल गई, हमने मन में सोचा कि चलो बचे।
पर बात यहीं ख़त्म नहीं हुई, अब सड़क के दोनों और की खुदाई की परेशानी, बाज़ार है पर बाज़ार में पार्किंग नहीं, तो भई आप या तो सड़क पर गाड़ी खड़ी कर दो और शॉपिंग करो, या फिर चुपचाप गाड़ी घर ले जाओ, शॉपिंग अगले साल कर लेना। गाड़ी बीच सड़क पर खड़ी कर दो तो सफ़ेद वर्दीधारी आकर फट से स्लिप और चिपका के निकल जायेगा। और इसके बाद एक बात और कि सड़क पर ही बीचोंबीच नाले को साफ़ करने के लिये ढक्कन सड़के के ऊपर कम से कम एक फ़ीट ऊँचा करके लगा दिया है, अब अगर जगह न हो, और मजबूरी में गाड़ी उस पर से निकालनी पड़े, तो बस हो गया कार्यक्रम, याने कि ज़बरदस्ती दूसरों का विकास।
फिर गये पटाखे लेने, तो एक टंकी वाला मैदान है जहाँ तरह तरह के मेले लगते रहते हैं, वहाँ पर पटाखों की दुकानें लगी हैं। हमने सोचा चलो पटाखे ले लें, मैदान में जाने का रास्ता पहले समतल हुआ करता था, फिर लॉकडाऊन हुआ तो चढ्ढे वाले गिरोह के लोगों ने वहीं पर एक कमरा बनाकर, उस पर क़ब्ज़ा कर लिया और गेट भी लगा दिया, बीच में लगभग दो फ़ीट ऊँचा कर दिया, अब कल गये तो अंदाज़ा ही नहीं लगा, और बस गाड़ी चेसिस पर फँस ही गई थी, तो अंदर के लोगों ने कहा, मारो एक्सलेरेटर गाड़ी निकल जायेगी, आख़िर निकल गये। हमारी ही नहीं सबकी गाड़ियाँ फँस रही थीं।
जब डैमेज ही नहीं होगा तो आप क्यों ठीक करवाने जाओगे, इसलिये अब यह सब ज़बरदस्ती करवाया जा रहा है, आपको लगे कि गलती हमारी ही है, पर इसके पीछे की ज़बरदस्ती विकास की मंशा को समझना बेहद कठिन है। ऐसा ही कार्यक्रम कई अन्य क्षैत्रों में हो रही है।