जब की रावण ने श्रीराम की नकल

रामायण से ही एक और प्रसंग है-

श्रीराम की नकल करने वालों की बुद्धि भी पवित्र हो जाती है। रावण के दल में लगभग संपूर्ण योद्धाओं का विनाश हो जाने पर, रावण ने कुम्भकर्ण को जगाया। जागने के बाद –

कुंभकरन बूझा कहु भाई। काहे तव मुख रहे सुखाई।।

तब

कथा कही सब तेहिं अभिमानी। जेहि प्रकार सीता हरि आनी।।
तात कपिन्ह सब निसिचर मारे। महा महा जोधा संघारे।।

रावण की बातों को सुनकर कुम्भकर्ण दो क्षण के लिये किंकर्तव्यविमूढ़ सा हो गया। फिर सोचकर बोला –

हे राक्षसराज! सीता का अपहरण करके तुमने बहुत बुरा काम किया है, किंतु यह तो बताओ कि सीता तुम्हारे वश में हुई भी या नहीं?

रावण ने कहा – मैंने सारे उपाय करके देख लिये, किंतु सीता को वश में न कर सका।

कुम्भकर्ण ने पूछा – क्या तुम राम बनकर भी कभी उनके सम्मुख नहीं गये?

रावण ने कहा –

रामः किं नु भवानभून्न तच्छृणु सखे तालीदलश्यामलम् ।
रामाङ्गं भजतो ममापि कलुषो भावो न संजायते॥

अर्थात जब मैं श्रीराम का रूप बनाने के लिये राघवेंद्र के अंगों का ध्यान करने लगा, तब एक एक करके मेरे ह्रदय के सारे कलुष समाप्त होने लगे। फिर तो सीता को वश में करने का प्रश्न ही समाप्त हो गया।

जो जरा जरा सी बात को लेकर परिवार में वैषम्य-भाव पैदा करके घर को नरक बना डालते हैं, उनको भगवान श्रीराम के पवित्र जीवन चरित्र से अवश्य ही प्रेरणा ग्रहण करनी चाहिये। ॐ शान्ति:

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *