आज जब दोपहर को खाने के लिये निकले तो बीच में सत्यम सिनेमा रोज ही
बीच में पड़ता है वहाँ १० से ज्यादा स्क्रीन्स हैं, वहाँ तमिल फ़िल्म का
एक बड़ा पोस्टर लगा हुआ था, इतना बड़ा पोस्टर मैंने पहली बार इधर ही देखा
है, भले ही हम मुंबई मायानगरी के रहने वाले हैं, परंतु वहाँ हमने इतना
बड़ा पोस्टर नहीं देखा।
फ़िर एक उत्तर भारतीय एक ढ़ाबा मिल गया जहाँ हमने आलू के परांठे सूते
और साथ में नमकीन लस्सी, मजा आ गया।
फ़िर शाम को सरवाना भवन में खाने को गये वहाँ खाया दही पूरी, छोले
भटूरे और यहाँ का प्रसिद्ध मसाला दूध फ़िर सादा पान वाह !!!
लगता है
ललचा रहे हो
आना पड़ेगा
फिर से चैन्नै में
चित्रों की चमक
चकमक चकमक
कर रही है।
चैन्नई मे भी मज़े उड रहे है भाई के.
सनीमा क्या देखो ( समझ ही नही आयेगा तमिल मे ) पोस्टर देखू विशाल
मै 1996 से लेकर 2003 तक आठ बार चेन्नई गया हूँ और यह सारी जनी पहचानी जगहें जिनका ज़िक्र आपने किया है मेरी देखी हुई है .. वह सब याद आ रहा है बल्कि अब मै भी इस से प्रेरित होकर एक पोस्ट लिखने वाला हूँ .. वही जो मेरी उन दिनो की डायरी मे दर्ज़ है
सुनकर दो किलो वजन बढ़ गया….ध्यान रखना जरा!!
वाह…
मसाला दूध को तो देखकर ही स्वाद आ रहा है।
vivek ji,
isko saadhar bol-chaal ki bhashaa mein chidhaana kaaha jaata hai..
aur ham to jal bhun ke raakh ho gaye hain…haan nahi to :):)
hamri kismat mein kahan masaala doodh ???
saadhar = saadhaaran
Kya baat hai sir ji….doodh ko pikar ke apne bhagat ji doodhwale ka garma garm rabadi wala doodh yaad aagya..hmmm…
अरे हम तो भूले गए जब चेन्नईवा गए थे
अरे ओ PD बताया क्यों नहीं