मृत्युंजय मतलब होता है मृत्यु पर विजय। मैंने अपना स्नातक हिन्दी साहित्य में किया इसलिये हिन्दी साहित्य पढ़ने में बहुत ज्यादा रुचि है। चूँकि साहित्यिक किताबें बाजार में बहुत ही दुर्लभ हैं और उस समय हमारी किताबें खरीदने की इच्छाशक्ति भी नहीं थी। हमारे पिताजी को शुरु से ही साहित्यिक किताबें पढ़ने का शौक था तो हर जिला मुख्यालय में शासकीय वाचनालय एवं पुस्तकालय होता है, बस वो लाते थे और हम भी पढ़ते थे, एक बार पढ़ने का सफ़र शुरु किया तो वो आज तक रुका नहीं है, हिन्दी के लगभग सभी साहित्यकारों को पढ़ा जिनकी किताबें पुस्तकालय में उपलब्ध होती थीं। कुछ किताबें ऐसी होती थीं जिसके लिये रोज चक्कर लगाने पड़ते थे।
हमें ऐसी दो किताबों के नाम याद हैं पहली थी मृत्युंजय, दूसरी है लोकमान्य तिलक रचित “गीता”। जिसमें हमने मृत्युंजय को पढ़ लिया है और वाकई मृत्युंजय को पढ़़ना जीवन के सर्वोच्च आनंद की अनुभूति लगा। ऐसा लगा कि कुछ चीज जीवन में अपूर्ण थी और कहीं न कहीं मेरे अंदर कमी थी वह पूरी हो गई।
“मृत्युंजय” में हमने सीखा, देखा कर्ण की सहनशीलता, उदारता, कर्त्तव्यनिष्ठा, निश्चल प्रेम, दान के लिये तत्परता और भी बहुत कुछ जिसका शब्दों में उल्लेख करना मेरे लिये असंभव है। बहुत से ऐसे तथ्य उन पात्रों के बारे में जो महाभारत से जुड़े हुए हैं, सबसे ज्यादा कर्ण और दुर्योधन और पांडवों के बारे में। वाकई इसके लेखक शिवाजी सावन्त की कर्ण के रहस्यों को जानने की इच्छाशक्ति के कारण ही यह सर्व सुलभ है। उनको मेरा प्रणाम है।
मेरी अगली पोस्टों पर मृत्युंजय से मिले तथ्यों को पढ़ेंगे, जिसके बारे में आम दुनिया सर्वथा अनभिज्ञ है और आप लोगों को भी जानकर आश्चर्य होगा। हर जगह केवल कर्ण का जिक्र होता है कर्ण के परिवार से सर्वथा अनभिज्ञ हैं, इसमें कर्ण के परिवार का भी पूर्ण विवरण दिया गया है और बताया गया है कि किसी भी व्यक्ति के सफ़ल और असफ़ल जीवन के पीछे परिवार भी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हालांकि कर्ण को शुरु से ही इस दुविधा में दिखाया गया है कि एक आम आदमी के घर में रहते हुए भी मेरे पास इतना ओज और बल कैसे आया क्या मुझे जन्म देने वाले माँ बाप यहीं हैं, जिनके घर पर मैं रह रहा हूँ। और भी बहुत कुछ।
शिवाजी सावन्त ने मूलत: इस उपन्यास की रचना मराठी भाषा में किया है और इस कालजयी उपन्यास की रचना कई भाषाओं में हो चुकी है, हिन्दी अनुवाद ओम शिवराज ने किया है।
कर्ण के परिवार के बारे मे जानना दिलचस्प होगा.
कर्ण के बारे जितना सटीक और विशद तथ्यात्मक वर्णन "मृत्युंजय" में शिवाजी सावंत द्वारा किया गया है, वैसा अन्यत्र पढने मे नही आया. आपकी पूर्व की श्रंखला मेघदूतम की तरह यह श्रखला भी कर्ण के बारे कई अनछुये पहलूओं से पाठको को रुबरु करवायेगी.
रामराम.
वाकई मृत्युंजय एक बेमिसाल रचना है
karn ke bare mein janna wakai kafi sukhad hoga kyunki wo hi ek aisa patra hai jiske bare mein bahut kam kaha gaya hai………..aapki aur posts ka intzaar rahega.
बहुत सुंदर लगा आप को पढना, ओर आप ने कर्ण के बारे, मृत्युंजय के बारे भी अच्छा बताया, धन्यवाद
शिवाजी सावन्त को पढ़ना सुखद होता है!