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मल्टीबैगर स्टॉक की कहानी: ₹1 लाख से सिर्फ ₹5,340 बचे

मल्टीबैगर स्टॉक की कहानी: ₹1 लाख से सिर्फ ₹5,340 बचे! क्या आपने कभी सोचा कि एक स्टॉक जो आसमान छू रहा था, कैसे एक साल में ज़मीन पर आ गिरा?

Gensol Engineering की हैरान करने वाली यात्रा –

2019 में Gensol Engineering का स्टॉक मात्र ₹21 पर था। फिर शुरू हुआ इसका शानदार सफर! नवंबर 2019 से फरवरी 2024 तक इसने 6,457% का रिटर्न दिया और स्टॉक की कीमत ₹1,377 के ऑल-टाइम हाई पर पहुंच गई। अगर किसी ने 2019 में इसमें ₹1 लाख लगाए होते, तो 2024 तक वो ₹65.57 लाख बन चुके होते! ये था एक सच्चा मल्टीबैगर स्टॉक, जिसने निवेशकों को मालामाल कर दिया।

लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती। फरवरी 2024 के बाद शुरू हुआ इसका पतन। हाल की कुछ खबरों और मार्केट सेंटीमेंट्स के चलते ये स्टॉक सिर्फ 4 महीनों में 94.66% गिरकर ₹73.42 पर आ गया। यानी, अगर किसी ने अपने ₹1 लाख इसके पीक पर लगाए होते, तो आज उनके पास सिर्फ ₹5,340 बचे होते! ये एक ऐसी रियलिटी है, जो हर निवेशक को स्टॉक मार्केट की रिस्की नेचर के बारे में सोचने पर मजबूर करती है।

Gensol Engineering एक रिन्यूएबल एनर्जी कंपनी है, जो सोलर इंजीनियरिंग, प्रोक्योरमेंट, और कंस्ट्रक्शन (EPC) सर्विसेज में काम करती है। इसका मार्केट कैप आज ₹282 करोड़ है, और पिछले 5 सालों में इसने 250% रिटर्न दिया है, भले ही हाल की गिरावट ने निवेशकों को निराश किया हो। लेकिन सवाल ये है—क्या ये स्टॉक फिर से उठ सकता है, या ये अब और नीचे जाएगा?

सीख क्या है? स्टॉक मार्केट में हाई रिटर्न्स के साथ हाई रिस्क भी आता है। मल्टीबैगर स्टॉक्स का लालच आकर्षक होता है, लेकिन बिना रिसर्च और सही टाइमिंग के निवेश करना आपके पैसे को डुबो सकता है। हमेशा कंपनी के फंडामेंटल्स, मार्केट ट्रेंड्स, और न्यूज़ को ट्रैक करें। डायवर्सिफिकेशन और रिस्क मैनेजमेंट आपके पोर्टफोलियो को ऐसे क्रैश से बचा सकते हैं।

क्या आपने कभी ऐसा स्टॉक देखा, जो आसमान से ज़मीन पर आ गिरा? या क्या आप Gensol Engineering के फ्यूचर को लेकर ऑप्टिमिस्टिक हैं?

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डिजिटल दुनिया की सबसे रहस्यमयी और ताकतवर ताकत “एनोनिमस”

डिजिटल दुनिया की सबसे रहस्यमयी और ताकतवर ताकतों में से एक है – “एनोनिमस”। ये नाम सुनते ही एक छवि दिमाग में उभरती है – गाय फॉक्स मास्क, काला हुडी, और एक ऐसी आवाज जो सत्ता को चुनौती देती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये एनोनिमस है कौन? और क्यों दुनिया की सबसे बड़ी सरकारें और कंपनियाँ इनसे डरती हैं?

“एनोनिमस” की शुरुआत 2000 के दशक में एक ऑनलाइन फोरम “4chan” से हुई थी। यहाँ लोग बिना नाम के पोस्ट करते थे, और हर पोस्ट के आगे बस “एनोनिमस” लिखा होता था। ये सिर्फ एक मंच था, लेकिन धीरे-धीरे ये एक आंदोलन बन गया। 2008 में, जब चर्च ऑफ साइंटोलॉजी ने टॉम क्रूज का एक इंटरव्यू इंटरनेट से हटवा दिया, तो एनोनिमस ने इसे सेंसरशिप के खिलाफ एक जंग की शुरुआत माना। उन्होंने चर्च को एक डरावना संदेश भेजा: “हम एनोनिमस हैं। हम माफ नहीं करते। हम भूलते नहीं हैं। हमसे उम्मीद रखें।”

इसके बाद जो हुआ, वो इतिहास बन गया। एनोनिमस ने “गूगल बॉम्बिंग” की, जिससे साइंटोलॉजी की सर्च में सिर्फ उनकी बुराइयाँ सामने आने लगीं। उन्होंने चर्च की वेबसाइट क्रैश कर दी और 127 अलग-अलग जगहों पर हजारों लोग गाय फॉक्स मास्क पहनकर प्रदर्शन करने पहुँच गए। ये मास्क सिर्फ उनकी पहचान छुपाने के लिए नहीं था, बल्कि ये एक वैश्विक प्रतीक बन गया – स्वतंत्रता और विद्रोह का प्रतीक।

एनोनिमस की ताकत उनकी संरचना में है – कोई सदस्यता नहीं, कोई नेता नहीं, कोई ढांचा नहीं। कोई भी उनके बैनर तले काम कर सकता है। 2011 में, उन्होंने सोनी पर हमला किया, जिसके चलते 77 मिलियन अकाउंट्स हैक हुए और सोनी को 171 मिलियन डॉलर का नुकसान हुआ। उसी साल, उन्होंने नाटो और कई सरकारों के गोपनीय दस्तावेज लीक किए। 2022 में, रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान, उन्होंने रूस की 2,500 से ज्यादा वेबसाइट्स को ठप कर दिया, राज्य टीवी को हैक किया और आंतरिक संदेश लीक कर दिए। ये डिजिटल युद्ध की एक मिसाल थी।

लेकिन एनोनिमस को इतना खतरनाक क्या बनाता है? पहला, उनका प्रतीक – गाय फॉक्स मास्क, जो हर भाषा और सीमा को पार करता है। दूसरा, उनकी आवाज – जो सीधे, डरावनी और स्वतंत्रता की बात करती है। और तीसरा, उनकी सच्चाई – वे सिर्फ बातें नहीं करते, बल्कि जो कहते हैं, वो करते हैं।

जापान की क्रांतिकारी हाइड्रोजन रणनीति

क्या आपने कभी सोचा कि हमारा भविष्य कैसा होगा, जब हम स्वच्छ और sustainable energy पर निर्भर होंगे? आज मैं आपको जापान की उस क्रांतिकारी हाइड्रोजन रणनीति के बारे में बताने जा रहा हूँ, जो ऊर्जा क्षेत्र में गेम-चेंजर है और पूरी दुनिया के लिए एक मिसाल है!

जापान, एक ऐसा देश जो प्राकृतिक संसाधनों की कमी से जूझता है, उन्होंने 2017 में दुनिया की पहली राष्ट्रीय हाइड्रोजन रणनीति बनाई। इसका लक्ष्य था एक ऐसी “हाइड्रोजन सोसाइटी” का निर्माण, जहाँ हाइड्रोजन का इस्तेमाल ट्रांसपोर्ट, बिजली उत्पादन, स्टील उद्योग और यहाँ तक कि घरेलू गैस में हो। लेकिन क्या ये इतना आसान था? बिल्कुल नहीं! जापान ने अपनी रणनीति को और व्यावहारिक बनाया है, जिसे ‘Safety + 3E’ framework कहा जाता है—safety, energy security, economic efficiency और environmental sustainability।

जापान की ऊर्जा असुरक्षा उसे इस दिशा में प्रेरित करती है। 2023 में, जापान ने अपनी 87% ऊर्जा आयात की, क्योंकि 2011 के फुकुशिमा परमाणु हादसे के बाद न्यूक्लियर पावर पर भरोसा कम हुआ। Renewable energy की सीमाएँ और भौगोलिक चुनौतियाँ भी हैं। लेकिन जापान ने हार नहीं मानी! उसने हाइड्रोजन को अपनी ऊर्जा रणनीति का आधार बनाया। टोयोटा की फ्यूल-सेल तकनीक और दुनिया का पहला लिक्विफाइड हाइड्रोजन कैरियर, सुइसो फ्रंटियर, इसके उदाहरण हैं।

2023 में जापान ने अपनी रणनीति को अपडेट किया और 15 ट्रिलियन येन (लगभग 100 बिलियन डॉलर) का सार्वजनिक-निजी निवेश योजना बनाई। इसमें ग्रीन हाइड्रोजन पर जोर है, जो 2050 तक कार्बन न्यूट्रैलिटी के लक्ष्य को पहुँचने में मदद करता है। इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी के अनुसार, 2050 तक वैश्विक हाइड्रोजन माँग 430 मिलियन टन तक पहुँच सकती है, जिसमें 98% low-emission hydrogen होगा।

लेकिन चुनौतियाँ भी हैं। ग्रीन हाइड्रोजन अभी महँगा है, और इसके storage व transportation की cost भी high है। अगर जापान हाइड्रोजन आयात पर निर्भर हुआ, तो ये उसकी energy insecurity को पूरी तरह खत्म नहीं करेगा। फिर भी, जापान का दृष्टिकोण हमें सिखाता है कि मुश्किल हालात में भी innovation और international partnerships के जरिए बदलाव संभव है।

हम भारत में भी इस प्रेरणा को अपना सकते हैं। हमारे पास सूरज और हवा जैसे नवीकरणीय संसाधन प्रचुर हैं। अगर हम हाइड्रोजन तकनीक पर निवेश करें, तो न केवल हमारा पर्यावरण स्वच्छ होगा, बल्कि ऊर्जा सुरक्षा भी बढ़ेगी। आइए, जापान की तरह हम भी अपने भविष्य को स्वच्छ और सुरक्षित बनाने के लिए कदम उठाएँ।
क्या आप हाइड्रोजन ऊर्जा को भारत का भविष्य मानते हैं?

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रिलायंस इंडस्ट्री का analysis

रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (RIL) के शेयर में पिछले एक हफ्ते से मजबूत वॉल्यूम्स देखने को मिल रहे हैं, जो निवेशकों के बीच बढ़ती दिलचस्पी को दर्शाता है।

1. पिछले हफ्ते के मजबूत वॉल्यूम्स और निवेशक गतिविधि

पिछले एक हफ्ते में रिलायंस के शेयर में ट्रेडिंग वॉल्यूम्स में उल्लेखनीय बढ़ोतरी देखी गई है। यह आमतौर पर बड़े संस्थागत निवेशकों (इंस्टीट्यूशनल इनवेस्टर्स) जैसे FIIs (Foreign Institutional Investors), DIIs (Domestic Institutional Investors), म्यूचुअल फंड्स, या बड़े रिटेल निवेशकों की भागीदारी का संकेत देता है।

  • FIIs की भागीदारी: हाल के डेटा के अनुसार, FIIs भारतीय मार्केट में चुनिंदा ब्लू-चिप स्टॉक्स में अपनी पोजीशन बढ़ा रहे हैं। रिलायंस, जो मार्केट कैप के हिसाब से भारत की सबसे बड़ी कंपनी है, FIIs के लिए आकर्षक विकल्प हो सकती है। इसका कारण कंपनी का डायवर्सिफाइड बिजनेस मॉडल (O2C, रिटेल, टेलीकॉम, और न्यू एनर्जी) और स्थिर फाइनेंशियल परफॉर्मेंस है।
  • DIIs और म्यूचुअल फंड्स: DIIs, खासकर म्यूचुअल फंड्स, रिलायंस में अपनी होल्डिंग्स को मजबूत कर रहे हैं, क्योंकि यह लॉन्ग-टर्म ग्रोथ के लिए एक सेफ बेट माना जाता है। हाल की तिमाही में रिलायंस का EBITDA मार्जिन 18% तक बढ़ा है, जो निवेशकों का भरोसा बढ़ाता है।
  • रिटेल निवेशक: रिलायंस के शेयर की कीमत में हाल की गिरावट (52-सप्ताह के हाई 1608.95 रुपये से करीब 21% नीचे) ने रिटेल निवेशकों को आकर्षित किया है। RSI (Relative Strength Index) के 30 से नीचे होने का संकेत देना कि स्टॉक ओवरसोल्ड जोन में है, ने भी रिटेल निवेशकों को खरीदारी के लिए प्रेरित किया होगा।

कुल मिलाकर, वॉल्यूम्स में बढ़ोतरी से लगता है कि बड़े और छोटे दोनों तरह के निवेशक इस स्टॉक में एक्टिव हैं, खासकर कीमत में हाल की करेक्शन के बाद।

2. MACD परफॉर्मेंस

MACD (Moving Average Convergence Divergence) एक मोमेंटम इंडिकेटर है, जो शेयर की कीमत के ट्रेंड और संभावित रिवर्सल को दर्शाता है। रिलायंस के डेली चार्ट पर MACD का विश्लेषण निम्नलिखित है:

  • वर्तमान स्थिति: रिलायंस का MACD हाल ही में नेगेटिव जोन में रहा है, जो शेयर की कीमत में पिछले कुछ महीनों की गिरावट (जुलाई 2024 के हाई से 21% नीचे) को दर्शाता है। हालांकि, पिछले हफ्ते के मजबूत वॉल्यूम्स के साथ MACD लाइन सिग्नल लाइन के करीब आ रही है, जो एक संभावित बुलिश क्रॉसओवर का संकेत दे सकता है।
  • संभावित बुलिश सिग्नल: अगर MACD लाइन सिग्नल लाइन को क्रॉस करती है और पॉजिटिव जोन में जाती है, तो यह शेयर में शॉर्ट-टर्म बुलिश मोमेंटम का संकेत होगा। यह खासकर तब हो सकता है, अगर वॉल्यूम्स इसी तरह मजबूत रहते हैं।
  • सावधानी: MACD अभी भी पूरी तरह से बुलिश नहीं है, इसलिए निवेशकों को चार्ट पर कन्फर्मेशन (जैसे कि बुलिश क्रॉसओवर) का इंतजार करना चाहिए।

3. चार्ट पैटर्न विश्लेषण

रिलायंस के डेली और वीकली चार्ट पर कुछ दिलचस्प पैटर्न्स उभर रहे हैं, जो शेयर के भविष्य के मूवमेंट के बारे में संकेत देते हैं:

  • हैमर कैंडल और ट्वीजर बॉटम: हाल ही में डेली चार्ट पर एक हैमर कैंडल बना है, जो बुलिश रिवर्सल का संकेत देता है। यह पैटर्न बेयरिश सेंटीमेंट्स के कमजोर पड़ने और बुलिश मोमेंटम की शुरुआत का संकेत देता है।
  • सपोर्ट और रेजिस्टेंस लेवल्स:
    • सपोर्ट: 1220-1250 रुपये के बीच मजबूत सपोर्ट जोन है। यह लेवल हाल ही में री-टेस्ट हुआ है, और शेयर इस जोन से ऊपर ट्रेड कर रहा है।
    • रेजिस्टेंस: पहला रेजिस्टेंस 1350 रुपये के आसपास है। अगर शेयर यह लेवल तोड़ता है, तो अगला टारगेट 1650 रुपये तक हो सकता है, जैसा कि कुछ ब्रोकरेज फर्म्स ने सुझाया है।
  • 200-डे EMA: रिलायंस का शेयर वर्तमान में अपने 200-डे एक्सपोनेंशियल मूविंग एवरेज (EMA) से नीचे ट्रेड कर रहा है, जो लॉन्ग-टर्म बेयरिश सेंटीमेंट को दर्शाता है। हालांकि, मजबूत वॉल्यूम्स और बुलिश पैटर्न्स इसे जल्द ही इस लेवल के ऊपर ले जा सकते हैं।

4. निवेशकों के लिए सुझाव

  • शॉर्ट-टर्म ट्रेडर्स: अगर MACD बुलिश क्रॉसओवर दिखाता है और शेयर 1350 रुपये के रेजिस्टेंस को तोड़ता है, तो शॉर्ट-टर्म में 1450-1500 रुपये का टारगेट देखा जा सकता है। स्टॉप लॉस 1220 रुपये के नीचे रखें।
  • लॉन्ग-टर्म निवेशक: रिलायंस का डायवर्सिफाइड बिजनेस मॉडल और न्यू एनर्जी, रिटेल, और जियो जैसे सेगमेंट्स में ग्रोथ की संभावनाएं इसे लॉन्ग-टर्म के लिए आकर्षक बनाती हैं। मौजूदा कीमत को एक अच्छा एंट्री पॉइंट माना जा सकता है, खासकर अगर आप SIP मोड में निवेश करना चाहते हैं।
  • सावधानी: शेयर मार्केट में निवेश जोखिमों के अधीन है। कोई भी निवेश निर्णय लेने से पहले सर्टिफाइड फाइनेंशियल एडवाइजर से सलाह लें।

रिलायंस के शेयर में पिछले हफ्ते के मजबूत वॉल्यूम्स FIIs, DIIs, और रिटेल निवेशकों की बढ़ती भागीदारी को दर्शाते हैं। MACD अभी नेगेटिव जोन में है, लेकिन बुलिश क्रॉसओवर के संकेत दिख रहे हैं। चार्ट पर हैमर केंडल रिवर्सल की संभावना को मजबूत करते हैं। अगर शेयर 1350 रुपये का रेजिस्टेंस तोड़ता है, तो यह शॉर्ट-टर्म में तेजी दिखा सकता है। हालांकि, निवेशकों को MACD और चार्ट पैटर्न्स में कन्फर्मेशन का इंतजार करना चाहिए।

डिस्क्लेमर: यह विश्लेषण केवल जानकारी के उद्देश्य से है और निवेश सलाह नहीं है। शेयर मार्केट में निवेश से पहले अपने फाइनेंशियल एडवाइजर से सलाह लें।

सिंधु जल संधि: क्यों है यह महत्वपूर्ण और भारत के निलंबन से क्या होगा असर?

सिंधु जल संधि: क्यों है यह महत्वपूर्ण और भारत के निलंबन से क्या होगा असर?

सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty) भारत और पाकिस्तान के बीच 1960 में हुआ एक ऐतिहासिक समझौता है, जिसने दोनों देशों के बीच सिंधु नदी और इसकी सहायक नदियों—झेलम, चिनाब, रावी, ब्यास और सतलज—के पानी के बंटवारे का रास्ता बनाया। विश्व बैंक की मध्यस्थता में बनी यह संधि दोनों देशों के लिए पानी के इस्तेमाल को व्यवस्थित करती है। लेकिन हाल ही में, 23 अप्रैल 2025 को बैसारन घाटी में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने इस संधि को निलंबित करने का ऐलान किया। अब सवाल यह है कि यह संधि इतनी महत्वपूर्ण क्यों है? इसका निलंबन क्या असर डालेगा? अगर भारत पानी रोक देता है, तो वह कहां जाएगा? और क्या भारत के पास इसे संभालने का बुनियादी ढांचा है? आइए, इन सवालों का जवाब तलाशते हैं।

सिंधु जल संधि क्यों है खास?

  1. पानी का बंटवारा: इस संधि ने छह नदियों को दो हिस्सों में बांटा। पूर्वी नदियां—रावी, ब्यास, सतलज—भारत को मिलीं, जबकि पश्चिमी नदियां—सिंधु, झेलम, चिनाब—पाकिस्तान के हिस्से आईं। कुल पानी का करीब 20% (लगभग 40.7 अरब घन मीटर) भारत को और 80% (207.2 अरब घन मीटर) पाकिस्तान को मिलता है। यह बंटवारा दोनों देशों की जरूरतों को ध्यान में रखकर किया गया।
  2. पाकिस्तान की जीवनरेखा: पाकिस्तान की खेती और अर्थव्यवस्था इन नदियों पर टिकी है। वहां की 90% से ज्यादा खेती और 25% जीडीपी इन नदियों से आती है। सिंधु को वहां “जीवनरेखा” कहा जाता है, क्योंकि इसके बिना खेती, बिजली और रोजमर्रा की जरूरतें पूरी नहीं हो सकतीं।
  3. भारत के लिए फायदा: भारत, जहां से ये नदियां निकलती हैं, उसे पश्चिमी नदियों का सीमित इस्तेमाल करने का हक है, जैसे बिजली बनाने या खेती के लिए। यह संधि भारत को अपनी ऊर्जा और खेती की जरूरतें पूरी करने में मदद करती है।
  4. शांति का प्रतीक: भारत-पाकिस्तान के बीच तीन युद्ध और तमाम तनाव के बावजूद यह संधि दोनों देशों के बीच सहमति का एक दुर्लभ उदाहरण रही है। स्थायी सिंधु आयोग के जरिए दोनों देश छोटे-मोटे विवाद सुलझाते रहे हैं।
  5. जलवायु परिवर्तन का संदर्भ: ग्लेशियर पिघलने और जलवायु परिवर्तन के कारण पानी की उपलब्धता पर असर पड़ रहा है। ऐसे में इस संधि को समय-समय पर अपडेट करने की बात उठती रही है।

संधि निलंबन से क्या होगा?

भारत का यह फैसला दोनों देशों के लिए बड़े बदलाव ला सकता है। आइए, इसका असर देखें:

पाकिस्तान पर असर

  1. खेती का संकट: पाकिस्तान की खेती इन नदियों पर निर्भर है। अगर भारत पानी रोक देता है, तो गेहूं, चावल, गन्ना और कपास की फसलें बुरी तरह प्रभावित होंगी। इससे खाने की किल्लत और महंगाई बढ़ सकती है।
  2. अर्थव्यवस्था को झटका: खेती से होने वाली कमाई और निर्यात घटेगा, जिससे पाकिस्तान की पहले से कमजोर अर्थव्यवस्था और दबाव में आएगी। नहरों और सिंचाई के लिए किया गया निवेश भी बेकार हो सकता है।
  3. बिजली की कमी: तारबेला और मंगला जैसे बांधों से पाकिस्तान को बिजली मिलती है। पानी कम होने से बिजली उत्पादन घटेगा, जिससे ऊर्जा संकट गहराएगा।
  4. तनाव और अशांति: पानी की कमी से लोग सड़कों पर उतर सकते हैं। भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ सकता है, और यह सैन्य टकराव तक ले जा सकता है।

भारत पर असर

  1. अंतरराष्ट्रीय दबाव: संधि को तोड़ना अंतरराष्ट्रीय कानून के खिलाफ हो सकता है। पाकिस्तान विश्व बैंक या किसी अंतरराष्ट्रीय कोर्ट में जा सकता है, जिससे भारत को कूटनीतिक नुकसान हो सकता है।
  2. रणनीतिक फायदा: पानी रोककर भारत पाकिस्तान पर दबाव बना सकता है, खासकर आतंकवाद जैसे मुद्दों पर। लेकिन यह कदम लंबे समय तक शांति के लिए ठीक नहीं होगा।
  3. क्षेत्रीय अस्थिरता: पानी का यह विवाद सिर्फ भारत-पाकिस्तान तक सीमित नहीं रहेगा। अफगानिस्तान और चीन जैसे देश भी प्रभावित हो सकते हैं, जिससे क्षेत्र में तनाव बढ़ेगा।

पानी कहां जाएगा?

अगर भारत पश्चिमी नदियों का पानी रोकता है, तो उसे कहीं और मोड़ना होगा। इसके कुछ संभावित रास्ते हैं:

  1. जम्मू-कश्मीर और पंजाब में खेती: भारत इस पानी को जम्मू-कश्मीर और पंजाब की खेती के लिए इस्तेमाल कर सकता है। 2019 में पुलवामा हमले के बाद भी भारत ने ऐसा करने की बात कही थी।
  2. बिजली उत्पादन: भारत झेलम और चिनाब पर “रन ऑफ द रिवर” प्रोजेक्ट्स बना सकता है, जो पानी रोके बिना बिजली बनाएंगे। किशनगंगा और रतले प्रोजेक्ट्स इसके उदाहरण हैं।
  3. नए बांध और जलाशय: भारत बड़े बांध बनाकर पानी स्टोर कर सकता है। सतलज पर भाखड़ा, ब्यास पर पोंग और रावी पर रंजीत सागर जैसे बांध पहले से हैं, लेकिन और बांध बनाने पड़ सकते हैं।

क्या भारत के पास जरूरी ढांचा है?

भारत के पास कुछ हद तक पानी को संभालने का ढांचा है, लेकिन बड़े पैमाने पर ऐसा करने के लिए अभी काम बाकी है:

  1. मौजूदा बांध: भाखड़ा, पोंग और रंजीत सागर जैसे बांध भारत को पानी स्टोर करने और खेती में मदद करते हैं। लेकिन पश्चिमी नदियों के लिए बड़े बांध बनाने की जरूरत होगी।
  2. नए प्रोजेक्ट्स की चुनौतियां: बड़े बांध बनाने में 5-10 साल लग सकते हैं। इसके लिए जमीन, पैसा और पर्यावरणीय मंजूरी चाहिए। साथ ही, स्थानीय लोगों का विस्थापन भी एक बड़ी समस्या हो सकता है।
  3. नहरों का जाल: पंजाब और जम्मू-कश्मीर में भारत का नहर नेटवर्क अच्छा है, लेकिन इसे और बढ़ाना होगा ताकि पानी दूर-दूर तक पहुंचे।
  4. जलवायु परिवर्तन का असर: ग्लेशियर पिघलने से पानी की उपलब्धता पर असर पड़ सकता है। भारत को स्मार्ट जल प्रबंधन तकनीकों में पैसा लगाना होगा।

आखिरी बात

सिंधु जल संधि भारत और पाकिस्तान के लिए बेहद अहम है। यह दोनों देशों की खेती, बिजली और अर्थव्यवस्था को सपोर्ट करती है। इसका निलंबन पाकिस्तान के लिए बड़ा झटका होगा, क्योंकि वह इन नदियों पर पूरी तरह निर्भर है। भारत को पानी रोकने से रणनीतिक फायदा मिल सकता है, लेकिन इसके लिए उसे अपने बुनियादी ढांचे को और मजबूत करना होगा। साथ ही, यह कदम क्षेत्र में तनाव बढ़ा सकता है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विवाद खड़ा कर सकता है। भारत को इस फैसले के हर पहलू पर गहराई से सोचना होगा, ताकि शांति और सहयोग का रास्ता बना रहे।

क्या ट्रम्प 1829 वाला दौर दुबारा ला रहे हैं?

अमेरिकी राजनीति में यह दौर असाधारण लग सकता है। विशेष रूप से डोनाल्ड ट्रम्प के आलोचक उन्हें अभूतपूर्व रूप से चित्रित कर रहे हैं। नवंबर का चुनाव युगों के बाद वापसी का था- एक ऐसे व्यक्ति की सत्ता में वापसी होती है, जो यह मानता है कि उसके प्रतिद्वंद्वी ने चार साल पहले उससे राष्ट्रपति पद छीन लिया था। उद्घाटन के लिए उमड़ी भीड़ से वाशिंगटन की सांस्कृतिक और राजनीतिक व्यवस्था स्तब्ध थी।

ट्रम्प ने अपने राष्ट्रपति पद के अधिकार का प्रयोग करने में बिल्कुल समय बर्बाद नहीं किया। उन्होंने राजनीति, मीडिया, व्यवसाय और संस्कृति में देश के अभिजात वर्ग पर तुरंत हमला किया। सत्ता-विरोधी लोगों को जो कि संघीय सेवा में कर्मचारी थे, उनको धड़ाधड़ निकालना शुरू कर दिया। ट्रम्प ने कामचोरी, धोखाधड़ी, दुरुपयोग और अक्षमता के आरोपों को उचित ठहराया।

राष्ट्रपति के इन कार्यों ने आलोचक मीडिया और राजनीतिक विरोधियों ने उन्हें एक राजा के रूप में चित्रित करने की कोशिश करी। उन्होंने डेनमार्क से शुरू करके विदेशी देशों के बहुत से नेताओं को नाराज़ किया – जहाँ उन्हें लगा कि कोई और देश अमेरिका में मिला लेना चाहिए। उन्होंने यह कहकर वैश्विक राय को और भड़का दिया कि पड़ोसी देश को राज्य बना दिया जाना चाहिए।

आर्थिक मोर्चे पर, उन्होंने उच्च टैरिफ का बचाव किया और ब्याज दरों को लेकर सेंट्रल बैंक को विरोध किया। लेकिन सच्चाई तो यह है कि जो कुछ भी ट्रम्प ने किया है, कुछ भी नया नहीं है। लगभग 200 साल पहले, एंड्रयू जैक्सन के रूप में अमेरिका ने यह सब पहले भी देखा है। 1828 में जैक्सन का चुनाव भी ऐसे ही हुआ था, जिन्होंने दावा किया था कि पिछले चुनाव में उन्हें “भ्रष्टाचार और सौदेबाज” के ग़लत संदेश हराया था।

1824 में, जैक्सन ने चार उम्मीदवारों की दौड़ में 40.5% जीत दर्ज करी, 24 राज्यों में से 11 पर कब्जा किया। लेकिन वे बहुमत से 32 इलेक्टर दूर थे। 47वें राष्ट्रपति कई मायनों में सातवें राष्ट्रपति की तरह हैं।

जब फरवरी 1825 में सदन में मत हुआ तो चार राज्य पलट गए जिन्होंने जैक्सन के विरोध में मतदान किया था। नवंबर में दूसरे स्थान पर रहे जॉन क्विंसी एडम्स ने 24 में से 13 राज्यों और व्हाइट हाउस पर कब्ज़ा कर लिया। जैक्सन ने कथित तौर पर कहा, “लोगों को” “धोखा दिया गया है”। “भ्रष्टाचार और षड्यंत्रों ने लोगों की इच्छा को हरा दिया।” उन्होंने चार साल बाद दक्षिण कैरोलिना के उप राष्ट्रपति जॉन कैलहॉन के साथ जीत दर्ज की।

जैक्सन के जीतने के समारोह के दौरान, जश्न मनाने वाले समर्थकों ने सड़कों को जाम कर दिया, कैपिटल को उनसे हाथ मिलाने के लिए भर दिया, फिर व्हाइट हाउस को घेर लिया। जैक्सन ने, श्री ट्रम्प की तरह, अपने समय की सरकार की निंदा की, 1824 में अपनी पत्नी से कहा कि वह “देश को लोकतंत्रवादियों के शासन से बचाएंगे।”

सत्ता संभालने के बाद, उन्होंने बहुत से सरकारी कर्मचारियों को तुरंत ही पद से हटा दिया, जैक्सन राष्ट्रपति पद की शक्ति बढ़ाना चाहते थे। उनके अत्याचारी कार्यों और कांग्रेस को नज़रअंदाज़ करने के कारण विरोधियों ने 1832 में उन्हें “राजा एंड्रयू प्रथम” कहकर प्रसिद्ध करने लगे, जो मुकुट और वस्त्र पहने हुए थे और राजदंड लिए हुए थे।

नेपोलोनिक युद्धों के दौरान जब्त किए गए अमेरिकी जहाजों के लिए लूट के दावों को लेकर उनका डेनमार्क और अन्य यूरोपीय शक्तियों के साथ विवाद हो गया। जैक्सन चाहते थे कि टेक्सास-जो 1836 में स्वतंत्रता की घोषणा करने से पहले मेक्सिको का हिस्सा था-एक राज्य बन जाए। उन्होंने “टैरिफ ऑफ़ एबोमिनेशन” की अध्यक्षता की, जो इतने अधिक थे कि 1832 में दक्षिण कैरोलिना ने उनसे अलग होने की धमकी दी। उन्होंने बैंक ऑफ़ अमेरिका की उच्च ब्याज दरों का कड़ा विरोध किया।

दोनों राष्ट्रपति आत्म-मुग्ध व्यक्तित्व वाले, कट्टर पक्षपाती और प्रतिशोध लेने वाले थे। लेकिन दोनों में उल्लेखनीय अंतर हैं। जैक्सन युद्ध नायक थे; ट्रम्प नहीं हैं। जैक्सन गरीबी में पैदा हुए थे, ट्रम्प अमीरी में। जैक्सन भ्रष्टाचार को रोकना चाहते थे; ट्रम्प को राष्ट्रपति-चुनाव के दौरान अपना स्वयं का क्रिप्टो जारी करने में कोई हिचक नहीं थी। जैक्सन ने राष्ट्रीय ऋणों का भुगतान किया; ट्रम्प ने अपने पहले कार्यकाल में इसमें भारी वृद्धि की।

जैक्सन ने लोकतंत्र का समर्थन किया और अधिक आर्थिक समानता के लिए काम किया। क्या ट्रम्प ऐसा करेंगे? समय बहुत अलग है और आज दांव पर भी बहुत कुछ लगा हुआ है। दुनिया आर्थिक रूप से बहुत अधिक परस्पर निर्भर और खतरनाक तरीके से चल रही है।

19वीं शताब्दी के मध्य में यूरोपीय शक्तियों के बीच युद्ध ने अमेरिका के लिए उतना खतरा पैदा नहीं किया था, जितना आज है। विशाल महासागर अब हमारी शांति और समृद्धि की गारंटी नहीं हैं। इन अतिरिक्त चुनौतियों के साथ, क्या राष्ट्रपति ट्रम्प अपने जैक्सनियन वादों को पूरा करेंगे? क्या सीमा की सुरक्षा पर उनकी प्रगति मुद्रास्फीति के अंत और सभी अमेरिकियों के लिए बढ़ती समृद्धि को आगे बढ़ा पायेंगे? क्या अमेरिका फिर से एक मजबूत, सम्मानित शक्ति के रूप में खड़ा होगा या कमजोर दिखाई देगा और अपना विश्वास बचा पायेगा? क्या संवैधानिक सुरक्षा व्यवस्था कायम रहेगी?

भारत में लेबर लॉ लचर हैं

हमारे भारत में लेबर लॉ को और कड़ा करने की व कड़ाई से पालन करवाने की जरूरत है।

एक महीने में 3 मौतें हो चुकी हैं।

  1. एना सेबस्टियन EY
  2. सदफ फातिमा Hdfc Bank
  3. तरुण Bajaj Finance

और भी ऐसे कई केस होंगे जो पता ही नहीं चले
आजकल काम की जगहों पर स्ट्रेस इतना है, कि जान की कीमत बहुत सस्ती हो गई है।

तरुण वर्क प्रेशर के चलते 45 दिन सो नहीं पाया और अंततः आत्महत्या कर ली।

जीवन कठिन है, पर अगर वर्क प्रेशर है तो काम छोड़ दीजिये, पर अपने जीवन की हत्या न करें, कोई न कोई रास्ता जरूर निकल आयेगा।

गूगल की मनमानी, सब्सक्रिप्शन फीस 50-60% बढ़ाई

Google अभी तक फैमिली प्लान के हर महीने ₹189 ले रहा था, अक्टूबर से ₹299 कर दिये, हमने गूगल की यह शर्त नहीं मानी और अपना सब्सक्रिप्शन कैंसल कर दिया।

क्यों मानें गूगल की शर्त, अब वीडियो के बीच में विज्ञापन आयेंगे, तो ठीक है भई देख लेंगे, अगर ज्यादा विज्ञापनों ने परेशान किया तो फिर रिन्यू करवाने की सोचेंगे।

पर ऐसी मनमानी भी गजब है कि भाव 50% से ज्यादा ही बढ़ा दिये, 10-20% समझ में भी आती है, लगता है कि गूगल भी खुद की भारत सरकार समझने लगा। कि कोई कुछ नहीं कहेगा।

ये कोई इनकम टैक्स थोड़े ही है कि गूगल जबरदस्ती हमसे ले लेगा, यह सेवा है जो हमारी मर्जी पर निर्भर करती है, नेटफ्लिक्स भारत में ज्यादा चल नहीं रहा था तो उसने अपने दाम कम कर दिये, पर गूगल के जलवे ही अलग हैं।

विकसित भारत कैसा होगा? कोई जबाब नहीं देता

इस बार स्वतंत्रता दिवस पर यह कितने ही लोगों से सुना कि जो संकल्प लिया है वह पूरा करेंगे – 2047 तक विकसित भारत।

मैंने पूछना चाहा पर ऐसा लगा कि जबाब कोई नहीं देना चाहता, बस लोग भी जुमला पसंद हो गये हैं।

विकसित भारत में क्या जनता भी आती है, या इस विकसित भारत का मतलब केवल अर्थव्यवस्था से कि हम नम्बर 1 बन जायेंगे, पर 80 क्या उस समय हम 100 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन देंगे।

कैसा होगा विकसित भारत, इसकी संकल्पना में जनता कहीं है या केवल जनता से टैक्स वसूल कर विकसित भारत बनना है।

जनता के लिये, विकसित भारत के लिये क्या क्या जतन किये जा रहे हैं, उसका कहीं उदाहरण नहीं मिला।

  • नये सरकारी स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय खोले जा रहे हैं।
  • नये सरकारी चिकित्सालय खोले जा रहे हैं।
  • नये सरकारी परिवहनों को उतारा जा रहा है, उनकी देखभाल ठीक से हो रही है।
  • नये एयरपोर्ट्स तक सार्वजनिक परिवहनों की बढ़िया पहुँच है।
  • सड़कों पर ट्रैफिक नियंत्रण के लिये, सार्वजनिक परिवहन को बढ़ाया जा रहा है।
  • नौकरियों के लिये युवाओं को भरपूर रोजगार के मौके मिल रहे हैं।
  • व्यापार को खोलने की जरूरी प्रक्रिया में क्या पारदर्शिता लाई जा रही है, कोई टाईम लिमिट सेट की गई है।
  • स्वच्छ हवा, स्वच्छ जल के लिये क्या किया जा रहा है।
  • बिजली 24 घण्टों मिले, इसके लिये क्या किया जा रहा है।

यह तो बहुत थोड़े से बिंदु हैं, इनकी सूची बहुत लंबी है, पर ऐसा कुछ हो रहा है जिससे लगे कि हम विकसित देश बन पायेंगे, अब केवल 22 साल ही बचे हैं 2047 आने में, 2024 तो गिन ही नहीं रहे क्योंकि लगभग निकल ही चुका है।

विकसितभारत

Limitless Review

Book – Limitless
Writer – Radhika Gupta

जब राधिका गुप्ता को मैंने पहली बार शार्क टैंक में देखा और आत्मविश्वास से भरपूर आवाज सुनी तो अच्छा लगा, फिर किसी पॉडकास्ट में सुन रहा था तो पता चला कि इन्होंने एक किताब भी लिखी है, पर इस पॉडकास्ट में राधिका नहीं थीं, किसी और ने इस किताब का नाम लिया था। सोचा चलो पढ़ते हैं, देखते हैं कि एक एंटरप्रेन्योर की यात्रा कैसी रही और उनके क्या अनुभव रहे।

हम किंडल पर पढ़ते हैं, किताब में अब वह फील नहीं आती, आदत की बात है।

किताब में बहुत ही अच्छे से कई महत्वपूर्ण चीजों को विस्तार में लिखा गया है, क्यों कुछ चीजें जीवन में बहुत महत्वपूर्ण होती हैं, डर सबको लगता है, पर जीत आपको ही पाना होगी। मुझे लगता था हो upenn से पढ़ा है, उसको कैसा डर, पर पता चला डर तो उसको भी था। जीवन में कभी कोई मौका न छोड़ना, आपको लग रहा है कि इतने सारे लोगों में मेरा ही क्यों होगा, पर हो सकता है कि वह मौका केवल आपके लिये ही हो।

रिजेक्शन, हर कोई रिजेक्ट होता है और उससे तकलीफ होती है, पर हार न मानकर बस आप गैंडे की खाल पहनकर परिस्थितियों का सामना करते जाओ, एक दिन सफलता जरूर मिलेगी। हाँ बचपन से अपने अंदर कोई न कोई एक शौक जरूर रखें और उस शौक को पैशन जैसा जीवन में रखें।

कितनी रिस्क कहाँ लेनी चाहिये, छोटी छोटी चीजें कैसे आपके लिये पावरफुल हो सकती हैं। हर बार दुनिया ही यही नहीं होती, आपको अपने लिये दुनिया को ठीक करना होता है।

नेटवर्किंग क्यों जरूरी है, इसके क्या फायदे होते हैं, इसके बारे में विस्तार से उदाहरणों के साथ लिखा है, जॉब क्यों बदलना चाहिये, पैसे के बारे में कैसे सोचना चाहिये, अगर आपको इंडस्ट्री स्टैंडर्ड के हिसाब से पैसे कम मिलते हैं, तो भी कोई बात नहीं, जब तक कि आपको लगता है कि अब ज्यादा ही फायदा उठाया जा रहा है।

कैसे कुछ लोग वर्क लाइफ बेलेंस की जगह अब इंटीग्रेशन की बात कर रहे हैं, जिससे वे परिवार और ऑफिस के बीच सामंजस्य बनाये रख सकें।

मुझे लगता है कि उन चंद क़िताबों में से है, जिसे सभी लोगों को पढ़ना चाहिये, खासकर जो बच्चे अपनी प्रोफेशनल लाईफ शुरू करने जा रहे हैं।