Category Archives: विश्लेषण

प्रेम केवल जिस्मानी हो सकता है क्या दिल से नहीं ?

प्रेम में अद्भुत कशिश होती है, प्रेम क्या होता है, प्रेम को क्या कभी किसी ने देखा है, प्रेम को केवल और केवल महसूस किया जा सकता है.. ये शब्द थे राज की डायरी में, जब वह आज की डायरी लिखने बैठा तो अनायास ही दिन में हुई बहस को संक्षेप में लिखने की इच्छा को रोक न सका। राज और विनय दोनों का ही सोचना था कि प्रेम केवल जिस्मानी हो सकता है, प्रेम कभी दिल से बिना किसी आकर्षण के नहीं हो सकता है।
 
राज को पता न था कि नियती में उसके लिये क्या लिखा है और एक दिन सामने वाले घर में रहने वाली गुँजन से आँखें चार हुईं, ऐसे तो गुँजन बचपन से ही घर के सामने रहती है, पर आज जिस गुँजन को वह देख रहा था, उसकी आँखों में एक अलग ही बात थी, जैसे गुँजन की आँखें भँवरे की तरह राज के चारों और घूम रही हों और राज को गुँजन ही गुँजन अपने चारों और नजर आ रही थी, गुँजन का यूँ देखना, मुस्कराना उसे बहुत ही अजीब लग रहा था। गुँजन के जिस्म की तो छोड़ो कभी राज ने गुँजन की कदकाठी पर भी इतना ध्यान नहीं दिया था। 
और आज केवल राज को गुँजन की आँखों में वह राज दिख रहा था। बस पता नहीं कुछ होते हुए भी राज बैचेन हो गया था। उसके जिस्म का एक एक रोंया पुलकित हो उठा था। बस बात इतनी ही नहीं थी, अगर वह हिम्मत जुटाकर आगे बड़कर गुँजन को कुछ कहता तो  उसे पता था कि उसके बुलडॉग जैसे 2 भाई उसकी अच्छी मरम्मत कर देंगे।

पतंगों का मौसम चल रहा था, आसमान में जहाँ देखो वहाँ रंगबिरंगी पतंगें आसमान में उड़ती हुई दिखतीं, राज
को ऐसा लगता कि उसका भी एक अलग आसमान है उसके दिल में गुँजन ने रंगबिरंगे तारों से उसका आसमान अचानक ही रंगीन कर दिया है। राज और गुँजन दोनों अच्छे पतंगबाज हैं, वैसे तो प्रेम सब सिखा देता है, गुँजन का समय अब राज के इंतजार में छत पर कुछ ज्यादा ही कटने लगा था, और वह उतनी देर हवा के रुख का बदलने का इंतजार करती जब तक कि राज के घर की और पुरवाई न बहने लगे, जैसे ही पुरवाई राज के घर का रुख करती झट से गुँजन अपनी पतंग को हवा के रुख में बहा देती और राज के घर के ऊपर लगे डिश एँटीना में अपनी पतंग फँसाकर राज की खिड़की में ज्यादा से ज्यादा देर तक झांकने का प्रयत्न करती, ऐसी ही कुछ हालत राज की थी और उसे लगता कि गुँजन की पतंग बस उसकी डिश में ही उलझी रहे और गुँजन ऐसे ही मेरी तरफ देखती रहे। पता नहीं कबमें राज और गुँजन की उलझन डिश और पतंग जैसी होने लगी, दोनों ही आपस में यह उलझन महसूस कर रहे थे।

अब राज को गुँजन के बिना रहा न जाता और वैसा ही कुछ हाल गुँजन का था, आखिरकार राज ने गुँजन को वेलन्टाइन डे पर अपने दिल की बात इजहार करने की ठानी, एक कागज पर बड़े बड़े शब्दों में लिखा
मैं तुमसे प्यार करने लगा हूँ”, और यह कागज राज ने गुँजन की पतंग के साथ बाँध दिया और पतंग को डिश एँटीना से निकालकर छुट्टी दे दी। गुँजन ने फौरन ही पतंग को उतार कर वह संदेश पड़ा, पर फिर से उसने पतंग उड़ाई और राज ने अपनी छत पर वह पतंग पकड़ ली और उसमें गुँजन का संदेश था, मैं भी तुम्हें पसंद करने लगी हूँ, राज ने पतंग के डोर में एक पतंग और बाँधकर छुट्टी दे दी । और प्रेम के खुले आसमान में स्वतंत्र होकर वह दोनों पतंग एक डोरी से बँधी उड़ने लगीं।
इसी तरह की अजब गजब कहानियाँ आप यहाँ पर भी पढ़ सकते हैं http://cupidgames.closeup.in/.

हम कचरा फैलाने में एक नंबर हैं (We indians are great and known for litter)

    कचरा फैलाने के मामले में हम भारतीय महान हैं । और कचरा भी हम इतनी बेशर्मी और बेहयाई से फैलाते हैं जबकि हमें पता है कि यही कचरा हम सबको परेशान कर रहा है इसलिये हम सबको बड़े से बड़े पुरस्कार से सम्मानित किया जाना चाहिये, कम से कम इसकी शुरूआत गली से करनी चाहिये या घर कहना ही बेहतर होगा, जब हमारा घर साफ सुथरा होगा, तभी गली, मोहल्ले, सड़कें और उनके किनारे साफ होंगे।
    हमारे यहाँ घर में कई लोगों की आदत होती है कि रात में या सुबह कचरा घर में कहीं भी डाल दिया कि अब झाड़ू तो लगेगी ही तो साफ हो जायेगा, जबकि दो कदम पर ही कचरापेटी रखी है, वहाँ तक जाने की जहमत नहीं उठायेंगे। वैसे ही हम भारतीयों को नाक बहुत आती है और कुछ लोग तो उसका सेमड़ा भी उदरस्थ करने में माहिर होते हैं, जो उदरस्थ नहीं कर पाते वे सबसे पहले अपने बैठने के स्थान पर नीचे हाथ डालकर वह नाक का सेमड़ा चिपका देंगे या फिर उँगलियों के बीच सेमड़े को इतना घुमायेंगे कि वह कड़क हो जाये और फिर वे आसानी से उसे सम्मान के साथ बिना किसी को बोध हुए कहीं भी फेंक देंगे। इसलिये भी मैं कभी भी सार्वजनिक स्थानों जैसे कि थियेटर, फिल्म हॉल, बस, ट्रेन और हवाईजहाज में अपने हाथ सीट के नीचे ले जाने से कतराता हूँ।
    हमारे घर में कचरापेटी के अलावा भी बहुत सी जगहें कचरा डालने के लिये माकूल महसूस होती हैं, जैसे कि पलंग पर बैठे हैं और टॉफी खा रहे हैं, तो उसका रैपर फेंकने कौन कचरापेटी तक जायेगा, तो टॉफी का रैपर मोड़कर गोली बनाकर वहीं गद्दे के नीचे फँसा दिया, अगर गद्दा उठ पाने की स्थिती में नहीं है तो फिर पलंग के पीछे ही रैपर को सरका दिया, अगर वह जगह भी नहीं है और पास में ही कहीं कोई अलमारी रखी है तो उसके पीछे सरका दिया, वहाँ पर भी जगह नहीं मिली तो आखिरकार सबकी आँख बचाकर कचरा जमीन पर अपनी चप्प्ल या पैर के पास फेंका और धीरे से पलंग के नीचे सरका दिया। यह व्यवहार अपने सार्वजनिक जीवन में लगभग हर जगह देख सकते हैं।
    गुड़गाँव से दिल्ली धौलाकुआँ होते हुए हाईवे से जाते हैं, तो लगता है कि शायद यह सड़क विश्वस्तर की तो होगी ही, पर जब उस पर चलते हुए पुराने ट्रक और बस दिखते हैं जो कि प्रदूषण फैलाते हुए अपनी बहुत ही धीमी रफ्तार से बड़े जाते हैं, इनमें से कई बस ट्रक में से तेल निकल रहा होता है, और कई सभ्य लोग अपनी बड़ी बड़ी गाड़ियों में सफर कर रहे होते हैं, पर अधिकतर ये कार वाले लोग इतने असभ्य हो जाते हैं कि कहीं भी किधर से भी पानी की खाली बोतल फेंक देंगे या फिर कोई चिप्स का पैकेट, इच्छा होती है कि अगर इनके घर का पता मेरे पास होता तो मैं उनको यही कचरा उनके घर पर वापस से सम्मान के रूप में देने जाता, कि भाईसाहब आप अपना यह कचरा कल हाईवे पर छोड़ गये थे।
    यह पोस्ट इंड़ीब्लॉगर के हैप्पी अवर के लिये लिखी गई है, जो कि टाईम्स ऑफ इंडिया के लिये है, ज्यादा कचरा कैसे फैलायें, इसके लिये आप यहाँ भी क्लिक करके देख सकते हैं http://greatindian.timesofindia.com/

कोहरा, डिफॉगर और कोहरे का अहसास

घर की छत से लिया कोहरे का फोटो
    आजकल अपनी सुबह थोड़ी देर से ही हो पाती है, उसके दो कारण हैं एक तो देर रात घर पहुँचना और दूसरा ठंड। जब बारिश होती है तो उस दिन कोहरा थोड़ा कम होता है, पर जबरदस्त कोहरे का आमंत्रण होता है, जब धूप आ जाती है, तो कोहरा कम होने की उम्मीद जग जाती है। कोहरा अकसर नदी नाले और खुली जगह जैसे कि जंगल में ज्यादा होता है, कोहरे में ही सड़क पर बीच में पोती गई सफेद लाईनों का महत्व पता चलता है, अभी तक कम से कम 2-3 बार इन सफेद लाईनों के सहारे ही गाड़ी चलाई है। कोहरा जब जबरदस्त होता है तो हम अपने मोबाईल पर जीपीएस चालू करके कार में लगा लेते हैं, तो कम से कम मोड़ और कहाँ तक पहुँच गये हैं पता चल जाता है। कई बार कोहरे में गाड़ी चलाने पर यह पता ही नहीं चलता कि आप किधर तक पहुँच गये हो।
घर की छत से लिया कोहरे का फोटो
    कोहरे के कारण कई बार हमने ट्विटर और फेसबुक पर डिफॉगर के बारे में जानना चाहा, तो अलग अलग राय मिलीं, पर सबसे अच्छी राय मिली ब्लॉगर मित्र काजल कुमार जी की, कि गाड़ी में हीटर चालू करके रखिये, तो काँच पर कोहरा नहीं जमेगा और आगे पीछे दोनों काँचों को साफ भी रखेगा। थोड़े दिनों पहले करोलबाग गये थे तो वहाँ केवल गाड़ी के काँच की एक दुकान है, वहाँ पूछा तो हमें बताया गया कि डिफॉगर वाला शीशा मिल तो जायेगा पर गाड़ी की वारंटी खत्म हो जायेगी, हमने सोचा कि छोड़ो जो होगा देखेंगे।
     खैर उस काँच वाले ने जाते जाते हमें एक नेक सलाह भी दी कि कोहरे में आप अपनी गाड़ी की डिफॉगर लाईट चालू रखें जिससे कम से कम आपको पाँच मीटर तो साफ दिखेगा, गाड़ी धीमे चलाईयेगा, दोनों तरफ के काँचों को थोड़ा सा खुला रखें और हीटर चालू रखें तो आपको पीछे काँच के डिफॉगर की कमी ही महसूस ही नहीं होगी।
    अब तो कोहरे में गाड़ी चलाने आदत सी हो गई है, तो अब कोहरे के होने और न होने का ज्यादा अंतर नहीं पड़ता है, कोहरे के अपने गणित होते हैं, पहली बार मैंने बिल्कुल बच्चों जैसे गाड़ी का पूरा काँच खोलकर हाथ बाहर निकालकर कोहरे का अहसास किया था, जब हाथ पूरा भीग गया तभी पता चला कि कोहरा क्या होता है, पता नहीं क्यों हर चीज को अनुभव करने की मानव-मन की इच्छा कब पूर्ण होगी।

कील मुँहासे और जवानी का फूटना

    हम अपनी त्वचा के लिये बहुत सजग होते हैं, त्वचा सुँदर दिखे, निखार आये, इसके लिये पता नहीं क्या क्या जतन करते रहते हैं। कोई मुल्तानी मिट्टी लगाता है तो कोई खीरा, और कोई संतरे के छिलके अपने गालों पर ज्यादा चमक के लिये रगड़ता है। हम सर्दियों में चेहरे पर बादाम का तेल लगाते हैं, जो कि किसी भी कोल्ड क्रीम या विंटर क्रीम से कहीं ज्यादा अच्छा होता है। सर्दियों में चेहरा फटता भी नहीं और चमक बरकरार रहती है।
 
     कील मुँहासे अक्सर 15-16 वर्ष की उम्र से होना शुरू होते हैं, हमारे यहाँ स्कूल और कॉलेज में दूसरे लोग कील मुँहासे वाले चेहरों को देखकर कहते थे कि ताजी जवानी फूटी है, अक्सर
कील मुँहासे को हमारे समाज में जवानी से जोड़कर लिया जाता है। जब कील मुँहासे चेहरे पर होते हैं तो कहीं न कहीं ये आत्मविश्वास भी कम करते हैं ।
    मुझे अच्छे से याद है कि मुझे कील मुँहासे 16 वर्ष की उम्र में चेहरे पर आ गये थे, और अचानक ही मुझे किसी भी समूह में न जाने की इच्छा होती है, और न ही किसी से मिलने की इच्छा होती थी, ऐसे लगता था कि मेरे चेहरे पर कुछ ऐसा लग रहा है, जो न मुझे पसंद है और न ही किसी दूसरे को पसंद है, कोई कहता कि यह खून साफ नहीं होने के कारण होते हैं, कोई कहता कि ये चेहरा बराबर न धोने के कारण हुआ है, कुछ तो यहाँ तक कहते थे कि ये लौंडे लौंडियों में जवानी अंकुरित होने के लक्षण होते हैं।
हमें जो कारण समझ में आये थे वे हैं –
1)   चेहरे की सफाई बराबर न रखना – जब भी कोई मुँहासा कसमसाते हुए फोड़ते तो उसके अंदर की गंदगी और कील चेहरे पर ही दूसरी जगह लगने से बचना चाहिये, हाथों के अपनी पेंट शर्ट से न पोंछकर हाथ साबुन से धोने चाहिये, वैसे ही चेहरा भी धोना चाहिये।
2)    प्रदूषण के कारण – प्रदूषण के कारण हमारे चेहरे के रोमछिद्र बंद हो जाते हैं, और शरीर की गंदगी पसीने के रूप में नहीं निकल पाती है तो यह कील मुँहासों का रूप धारण कर लेती है।
3)   तैलीय त्वचा – मेरी त्वचा तैलीय है, जब भी ज्यादा तेल चेहरे पर लगे, उसे रूमाल से साफ कर लेना चाहिये, और नहीं तो प्योर एक्टिव नीम फेश वॉश से चेहरा अच्छे से धो लेना चाहिये, इसमें नीम होने के कारण यह चेहरे के सारे कीटाणुओं को तो मार ही देता है, साथ ही नीम की विशेषता है कि वह गंदगी को अच्छे से काट देता है।
    कील मुँहासों को फोड़ने के लिये हम हमेशा अपने साथ रुई रखते थे, जिससे इनसे निकलने वाली गंदगी चेहरे पर कहीं और न लगे और जल्दी मुँह न धोना पड़े, और वह रुई कचरे के डिब्बे के हवाले कर देते थे और हमेशा घर हो या बाहर स्वच्छता का ध्यान रखते थे।
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नफरत है वेबसाईट्स फोरमों से जो पासवर्ड भेजते हैं

    आजकल इंटरनेट का युग है, जहाँ पर आप कई जगह सूचना ढ़ूँढ़ने या पाने के लिये कई वेबसाईट्स पर जाते हैं। लगभग 60 प्रतिशत वेबसाईट्स आपकी पहचान अपने साथ रखना चाहती हैं, फिर भले ही वह वेबसाईट फोरम हो या कोई अन्य सूचना देने वाली वेबसाईट। और फिर इनमें से कई वेबसाईट्स आपके ईमेल बॉक्स में अनाप शनाप स्पॉम ईमेल भेजते रहते हैं, और हमारे कई मिनिट इस तरह के ईमेल को पढ़ने के बाद हटाने में बर्बाद हो जाते हैं।
    अधिकतर वेबसाईट्स पहचान के नाम पर इकठ्ठे की गई सूचना के आधार पर आपको ईमेल सत्यापित करने के लिये ईमेल पर लिंक या कोई कोड भेजते हैं, और फिर से आपको एक ईमेल मिलता है, जिसमें कि धन्यवाद का संदेश होता है, यूजर नेम और साथ में होती है वह सूचना जिसके दिये जाने का मुझे सबसे ज्यादा ऐतराज होता है वह है पासवर्ड और मेरी सारी निजी जानकारी, जैसे कि मेरा पूरा नाम, आई.डी.कार्ड नंबर, जन्मदिनाँक, राष्ट्रीयता, पोस्टल कोड, फोन नंबर, वर्तमान पता, ईमेल पता और कहते हैं कि इस ईमेल को सँभाल कर रखिये जो कि बिल्कुल भी सुरक्षित नहीं है। इस तरह की ईमेलों में अक्सर This message was sent from a notification-only email address that does not accept incoming email. Please do not reply to this message  या फिर ** This is an auto-generated email. Please do not reply to this email.**  ऐसे कुछ लिखा होता है । पासवर्ड लिखने की जगह वे वहाँ पासवर्ड वापस से जनरेट करने की लिंक साथ में लगा दें, तो वह बेहतर होगा।
    अगर मेरी यह सारी जानकारी किसी को जाने अनजाने मिल जाये तो वह मेरे लिये कई मुश्किलें खड़ी कर सकता है, कई बार किसी परिचित को अपनी निजी कम्प्यूटिंग डिवाईस देना होती है, और अधिकतर इस तरह की हरकतें भी उन्हीं के द्वारा की जाती हैं, पता नहीं परिचितों को क्या जानने की इच्छा होती है, कि वे इस तरह की हरकतें करते हैं। हालांकि मेरे साथ अभी तक ऐसा नहीं हुआ है, क्योंकि मैं इस बारे में बहुत ज्यादा सावधानी रखता हूँ।
    मैं मोजिला फॉयरफॉक्स ब्राउजर का उपयोग करता हूँ, जिसमें कि वे वेबसाईट जो मेरे वित्तीय जीवन को प्रभावित करती हैं, मैं उन्हें हमेशा ही प्राईवेट ब्राऊजिंग (Private Browsing) enable by Ctrl+Shift+P में खोलता हूँ, और अगर किसी को अपनी पर्सनल डिवाईस देनी भी पड़े तो मैंने उसके लिये लेपटॉप पर एक अलग लॉगिन बना रखा है, जिससे मेरा सारा डाटा सुरक्षित भी रहता है, और मेरे किसी भी ईमेल की एक्सेस भी उसमें नहीं होती है।

टाटा बोल्ट के संग टाटा बोल्ट के एरिना में (Get Set Bolt)

    रविवार की सुबह सुहानी थी, ओस न के बराबर थी, बरबस ही वातावरण आनंदमयी होने लगा था, क्योंकि हम टाटा की नई कार बोल्ट देखने महसूस करने शिप्रा मॉल में प्रवेश कर चुके थे। पहले हमें कारों के बारे में ज्यादा कुछ समझ नहीं आता था, परंतु जब से कार चलाने लगे हैं तब से कारों में कुछ ज्यादा ही रुचि है। कार के गुणों को अच्छे से समझ पाते हैं। लाल रंग की टाटा बोल्ट कार देखकर मन तरंगित हो उठा।
    टाटा बोल्ट कार के रूप और बनावट को देखकर मन ललचा गया, इस कार के बारे में सुना बहुत था, और यह भारत में 20 जनवरी को लोकार्पण है। टाटा बोल्ट के मुख्यत: पाँच चीजें अच्छी लगीं –
शिप्रा मॉल गाजियाबाद में टाटा बोल्ट एरिना में हम टाटा बोल्ट के साथ
  1. टाटा बोल्ट के बनावट की उत्कृष्टता देखते ही बनती है, बाजार में अपने प्रतियोगियों से टक्कर लेने के लिये इसकी साज सज्जा जबरदस्त है। बोनट के आगे की काली ग्रिल कार को सुँदर बनाती हैं। इसके 15 इंच के 8 एलॉय व्हील वाले टायर देखते ही बनते हैं। पीछे ग्लास और दरवाजे के बीच एक विनायल स्टीकर काले रंग का सी पिलर इफेक्ट देता है। 
  2. आंतरिक साज सज्जा बहुत अच्छी है, अंदर बहुत जगह है, और यह एक ऐसी हैचबैक कार है जिसमें 5 लोग आराम से बैठ सकते हैं वह भी बिना फँसे।
  3. गियर देखकर तो मेरा मन लालायित हो उठा था, बिल्कुल स्टिक जैसा गियर और रेवोट्रोन 1.2 लीटर टर्बो इंजिन, रेवोट्रोन 1.2 लीटर इंजिन में 4 सिलेंडर और यह 89 बीएचपी अपने सर्वोत्तम पॉवर पर देता है और 140 एनएम का अधिकतम टॉर्क देता है, यह पाँच रफ्तार गियर वाला इंजिन अधिकतम 17.6 किमी. का माईलेज देता  है।
  4. जबरदस्त 8 स्पीकर वाला हरमन एन्टरटेनमेंट सिस्टम लगा हुआ है, जिसमें नेविगेशन और वीडियो भी देखा जा सकता है, सिस्टम टच स्क्रीन है, ब्लूटूथ इनबिल्ट है केवल अपने फोन को ब्लूटूथ पर पेयर करना है और टाटा बोल्ट मोबाईल में बदल जायेगी, स्टेयरिंग व्हील पर दिये गये आवाज के नियंत्रण से आप हरमन के सारे फंक्शन बोल कर भी पूरे कर सकते हैं, मसलन एफ.एम. रेडियो के स्टेशन बदलना, किसी को कॉल करना इत्यादि।
  5. टाटा बोल्ट को चलाने के तीन मोड हैं, और कार स्टार्ट होने पर अपने आप यह सिटी मोड में चलता है, डेश बोर्ड पर ही हरमन के नीचे इको और स्पोर्ट के बटन दे रखे हैं, इको बटन दबाने से टाटा बोल्ट का इंजिन इको मोड में चलने लगेगा और कम आर.पी.एम. के साथ चलने लगेगी और माईलेज बड़ जायेगा, जैसे ही इसको स्पोर्ट मोड में डालेंगे, टाटा बोल्ट का वही इंजिन शक्तिशाली हो जायेगा और कार चलाने का अनुभव ही बदल जायेगा। 

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विष्णु प्रभाकर की पंखहीन पढ़ते हुए कुछ भाव, मीरापुर, किताबों को शौक और डाकुओं के किस्से

    “पंखहीन” कल से शुरू की, विष्णु प्रभाकर के लिखे गये बचपन के किस्से खत्म ही नहीं होते कभी ये बाबा के किस्से कभी चाचा के तो कभी दादी के किस्से, बीच में डाकुओं के किस्से, और फिर ये सब किस्से बड़े परिवार के मध्य रहने के अनुभव हैं, उनकी लिखी गई भाषा और लिखा गया देशकाल से मैं बहुत अच्छी तरह से सुपरिचित हूँ, इसलिये भी मैं अपने आप को इन सभी किस्से कहानियों के मध्य ही पा रहा हूँ,    और फिर ये किस्से कहानी मीरापुर के हैं, जहाँ मेरी बुआजी ब्याही थीं और अब भी वहीं रहती हैं, क्योंकि विष्णु प्रभाकर जी का पूरा खानदान मीरापुर में ही रहता था, मीरापुर के बारे में बहुत सी बातों को जाना, वहाँ की प्रसिद्ध रामलीला के बारे में पहली बार जाना, रामराज्य, जानसठ के बारे में अधिक जाना, उनकी उत्पत्ति के बारे में जाना।

वहीं मीरापुर को महाभारतकाल से जोड़कर बताया गया है, और यह कौरव राज्य का भाग बताया गया है, मीरापुर के चारों और चार मंदिर और तालाब हैं, उनकी उत्पत्ति के बारे में बताया गया है, कैसे नाम बिगड़ जाते हैं, फिर भले ही वह जगह हो, मंदिर हो या इंसान हो।

उनके खानदान को “हकलों के खानदान” के नाम से जाना जाता था, वे बताते हैं कि उनके खानदान में उनकी पीढ़ी तक पिछली सात पुश्तों से कोई न कोई हकलाता था, तो उनके खानदान का नाम हकलों का खानदान हो गया। प्रभाकरजी ने अपने किताबों से प्रेम होने के बारे में बताया है कि उन्हें यह शौक घर से ही लगा, उनके पिताजी की चावल की दुकान थी और वे अपने ग्राहक से इतने प्रेम से बात करते थे कि ग्राहक कपड़ा, बर्तन सभी चीजें उनकी दुकान से ही खरीदना चाहते, तो वे खुद तो नहीं बेचते थे पर सब चीजों के दुकान पर ही बुलवा देते थे। चावल, तंबाकू के टोकरे के साथ ही एक टोकरा और होता था, वह था किताबों का टोकरा, जिसमें “चंद्रकान्ता”, “चंद्रकान्ता संतति”, “भूतनाथ” और “राधेश्याम की रामायण” जैसी अद्भुत किताबें होती थीं।

प्रभाकर जी कहते हैं कि इन किताबों से ही उन्होंने कल्पना के पंखों पर बैठ कर उड़ना सीखा। वे अपने पिताजी के पढ़ने के शौक के बारे में बताते हैं वह भी रोमांचक है, जब उनकी शादी हुई तो उन्हें पता लगा कि उनकी पत्नी पढ़ी-लिखी हैं, वे तब तक बहीखाते की भाषा ही जानते थे, तुरत पण्डित जी के पास पहुँचकर बोले मुझे सात दिनों में हिन्दी पढ़ानी होगी और उन्होंने हिन्दी सीख ली। फिर उनका निरंतर अध्ययन जारी रहा।

पढ़ने के बाद अपने पिताजी के स्वभाव को विश्लेषण कर प्रभाकरजी लिखते हैं कि इस अध्ययन और पूजापाठ ने उन्हें जहाँ कुछ मूल्य दिये, वहाँ उनके अन्तर के सहज स्नेह-स्रोत को सोख लिया । वे अवहेलना की सीमा तक तटस्थ हो गये।

आज इतना ही, सोचा था कि एक छोटा सा फेसबुक स्टेटस लिखूँगा, पर लिखने बैठा तो पूरी एक पोस्ट ही बन गई, इसी लिखने को ही तो शायद ब्लॉगिंग कहते होंगे ।

जितना खूबसूरत है प्यार, उतना ही गमगीन भी

    जीवन के तेड़े मेड़े रास्ते रतन को हमेशा से ही पसंद थे, हमेशा ही अपने जीवन में कुछ न कुछ रोमांचक करने की इच्छा इसके जीवन में नये रंग भर देती थी, एक बार कुछ ऐसा करते हुए ही रतन एक खूबसूरत आँखों के बीच फँस गया और जीवन के उस खूबसूरत मोड़ पर पहुँच गया, जिसे दुनिया प्यार के नाम से जानती है।
    तमन्ना नाम था इस नाजनीन का जिसे रतन टूट कर प्यार करने लगा था, और यह हाल केवल रतन का ही नहीं था, यही हाल तमन्ना का भी था, आजकल के युग में जहाँ प्यार के नाम पर
मर्यादाओं को लांघना एक आम बात हो गई है, वहीं इन दोनों के बीच कुछ ऐसा था, जहाँ वे मर्यादाओं की सीमा में रहते और हाथों में हाथ लेकर घंटों तक सुनहरी दुनिया में खोये रहते ।
    दोनों ने अपना जीवन एक दूसरे को समर्पण करने का मन बना लिया, दोनों ने अपने अपने घर पर अपनी पसंद के बारे में बता दिया, रतन के घर पर तो मान गये पर तमन्ना के घरवाले रूढ़िवादी विचारों के थे और लड़की खुद अपने लिये लड़का ढ़ूढ़ना बिल्कुल भी पसंद नहीं आया और सबकुछ ठीक होते हुए भी तमन्ना को रतन की जिंदगी से दूर करने की पुरजोर कोशिश जारी हो गई और तमन्ना अपने परिवार के प्यार के आगे झुककर रतन को भुलाने की कोशिश करने लगी।
    रतन तमन्ना को अपनी न बना पाने के गम से बेहद गमगीन था, और अब न उसे दिन का पता रहता न रात का पता रहता, पता नहीं कब क्या करता, वह स्मार्ट सा दिखने वाला लड़का आज बेतरतीब बालों और बिना शेविंग के इधर इधर घूमता रहता।
    तमन्ना के प्यार पर तरस खाकर उसके घरवालों ने रतन को बुलाकर बात करने का निश्चय किया और रतन को बुलाया गया, तो रतन की हालत देखकर तमन्ना के घरवालों को बहुत ही बुरा लगा, तमन्ना के पापा ने कहा कि अगर तुम केवल इतनी सी कठिनाई से हारकर अपना ये हाल करोगे, अपना ध्यान नहीं रख पाओगे तो जीवन में आने वाली कठिन परिस्थितियों से कैसे सामना करोगे, तो रतन ने तमन्ना के घरवालों को आश्वस्त किया कि अब ऐसा नहीं होगा और अब वह कैसी भी परिस्थिती हो वह उसका सामना करेगा और अपने चेहरे से कुछ भी जाहिर नहीं होने देगा, रोज ही शेविंग करके अपने आप को स्मार्ट रखेगा। इस तरह आखिरकार रतन को तमन्ना का प्यार जीवनभर के लिये मिल ही गया।
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जीवन के प्रति नकारात्मक रुख

    थोड़ा बीमार था, और बहुत कुछ आलस भी था, आखिर रोज रोज शेव बनाना कौन चाहता है, उसकी दाढ़ी के बालों के मध्य कहीं कहीं सफेदी उसकी उम्र की चुगली कर रही थी, वह बहुत सारी बातों से अपने आप को कहीं अंधकार में विषाद से घिरा पाता। कहीं भी उसे न प्यार मिलता और न ही कहीं उसके मन की कोई बात होती था, उसे समझ ही नहीं आता कि क्या यह कमी केवल और केवल उसमें ही है या उससे मिलने वाले लोग उसे जानबूझकर विषाद के सागर में ढकेल रहे हैं। वह दिल से बहुत ही मजबूत पर भावनात्मक रूप से उतना ही कमजोर था। उसने जीवन के बहुत उतार चढ़ाव देखे थे और जीवन की कठिन से कठिन चुनौतियों का सामना बड़ी ही जीवटता से किया और सारी कठिनाईयों का बहुत ही अच्छी तरह से सामना किया था।
    आज उसके अंदर एक भावनात्मक आंदोलन चल रहा था, जिसके कारण वह अपना बिल्कुल भी ध्यान नहीं रख पा रहा था, न उसकी बातों में आत्मविश्वास था और न ही उसमें चुनौतियों से निपटने वाली जीवटता देखी जा सकती थी, उसमें जीवन के प्रति नकारात्मक रुख साफ नजर उसकी खिचड़ी दाढ़ी से ही नजर आ जाता था, शायद वह बड़ी हुई दाढ़ी से अपने चेहरे के नकारात्मक भाव छिपाना चाहता था, जिससे उसके पीछे छिपी नकारात्मकता को कोई पढ़ न सके, और उसे अपनी इस परिस्थिती में रहने का भरपूर मौका मिल सके।
    इसी बीच वह नौकरी भी ढ़ूढ़ रहा था जिसमें वह टेलीफोनिक के लगभग 3 राऊँड बहुत ही अच्छे से निपटा चुका था, और साक्षात्कार लेने वाली कंपनी उसकी तकनीकी ज्ञान की कायल हो चुकी थी। अब बारी थी आमने सामने यानि कि फेस टू फेस साक्षात्कार की, जिसके लिये वह बिल्कुल भी तैयार नहीं था, और उसका आत्मविश्वास डिग रहा था। खैर वह दिन भी आ गया और इंटरव्यू पैनल के सामने वह पहुँच गया, जितना कायल वे लोग उसके टेलीफोनिक साक्षात्कार के थे, उसे बढ़ी हुई दाढ़ी में देखकर कंपनी को लगा कि यह कैसे संभव है कि जो इतना अच्छा साक्षात्कार दे वह खिचड़ी दाढ़ी में खुद को अपने भावी नियोक्ता के सामने प्रस्तुत करे, तो शेविंग के न करने के कारण उसका हो चुका चयन कंपनी को रद्द करना पड़ा।
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मेरे नये वर्ष का नया निश्चय मैक्रोमेक्स कैनवास टैब पी-666 के साथ

    वर्षों पहले जब मैं महाविद्यालय में पढ़ता था, तब मेरा कविता, नाटक और कहानियाँ लिखने का शौक था और उस समय मैं कविताओं को तो अपने नोटबुक के बीच वाले पन्ने पर लिखकर उसे फाड़ लिया करता था, उस एक पन्ने को लिखकर मैं जेब में रख लेता था और अपने दोस्तों के बीच कविता प्रस्तुत करता था। नाटक और कहानियों को लिखने के लिये ज्यादा समय और ज्यादा पन्नों की जरूरत हमेशा से महसूस होती थी, और मित्रों को नाटक और कहानियों को सुनाने में समय भी ज्यादा लगता था। उस समय सोचता था कि जिस तेजी से मैं सोचता हूँ, काश कोई ऐसा यंत्र या तकनीकी हो जिससे वह लिखती जाये और मेरे बहते हुए विचार जो कि मेरे मन में किसी अदृश्य डोरी से खिंचकर आते हैं, उनका तनिक भी क्षरण न हो पाये, और सारे विचारों को मैं संग्रहित कर सकूँ।
    थोड़े समय बाद मैं टेपरिकारर्डर में रिकार्ड करने लगा, परंतु कभी बिजली साथ न देती तो कभी कैसेट उलझ जाती और अपना कहा, अपने प्रवाहशील विचारों को, मंथन को पाना दुश्कर कार्य होता था, उन रचनाओं और विचारों को वापस लाने के लिये तरह तरह के खटकर्म भी हमने किये, परंतु देखा इसमें तो पन्ने पर लिखने से ज्यादा ऊर्जा और श्रम लग रहा है, तो वापिस पन्ने पर आ गये। विचारों को प्रवाहमान होना जारी रहा, परंतु उन्हें लिख पाना मेरे लिये उतना ही दुश्कर कार्य होता।
    फिर आया कंप्यूटर का जमाना, जहाँ पर हमने हिन्दी की टायपिंग रफ्तार पर अपनी पकड़ बना ली और कंप्यूटर पर लिखने लगे, परंतु कुछ समस्याएँ यहाँ भी बनी रहतीं, कभी ऑपरेटिंग सिस्टम तो कभी वर्ड प्रोसेसर कर करप्ट हो जाता, फिर हम मोबाईल में अपनी बातों को रिकार्ड करने लगे, परंतु उसे सुनकर लिखने का समय मिलना बहुत मुश्किल होता, आज भी पता नहीं कितने ही विचार मेरे मोबाईल के मैमोरी कार्ड में संचित हैं, जिन्हें मैं आज तक पन्नों पर नहीं उतार पाया।
    इस वर्ष हमने अपने पुराने शौक याने कि अपने प्रवाहमान विचारों को कविता, नाटक और कहानियों में ढ़ालने का दृढ़ निश्चय किया है। अब एन्ड्रॉयड में हिन्दी में भी बोलकर लिखने वाली सुविधा आ गई है, तो हम अब अपने मैक्रोमेक्स कैनवास टैब पी-666 पर बोलेंगे और हमारा यह कैनवास टैब बिना हैंग हुए हमारे पुराने शौक को जीवंत कर देगा, इसमें 3जी सुविधा का फायदा उठाते हुए हम सीधे इन सारी फाईलों को गूगल ड्राईव पर सहेज पायेंगे। इसका तेज प्रोसेसर हमारी सारी बातों को समझकर सीधे हिन्दी में सामने वर्ड प्रोसेसर में लिख देगा, और हम फिर से कविता, नाटक और कहानियों में रम जायेंगे, टैब का फायदा यह है कि हमें अब पन्नों को जेब में नहीं रखना होगा और टैब पर ही बोलकर लिखने से हमारी सारी कृतियाँ सहेजी होंगी, तो इंटरनेट के होने की बाध्यता भी खत्म हो जायेगी, और हम अपनी कविता, नाटक और कहानियों को अपने मित्रों को सीधे टैब से पढ़कर ही सुना सकते हैं, और सीधे अपने ब्लॉग पर पब्लिश भी कर सकते हैं, जिससे कहीं न कहीं हम कार्बन उत्सर्जन को भी कम करने में मदद करेंगे।