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भाग ३ – वेदाध्ययन की उपयोगिता (Value of Veda Study)

वेदाध्ययन की उपयोगिता –
    भौतिक विज्ञान के इस प्रकर्ष युग में वेद सर्वथा प्रासंगिक हैं। इसका अध्ययन सर्वतोभावेन – सभी प्रकार से उपयोगी है, क्योंकि मानव का सम्पूर्ण जीवन वेदों से अनुप्राणित, ओतप्रोत है। मनुषय का मुख्य प्रयोजन है सुख की प्राप्ति और इसकी सिद्धि में वेद सर्वथा उपकारक हैं। वेदों के सुप्रसिद्ध व्याख्याकार आचार्य सायण का कथन है कि इष्ट की प्राप्ति तथा अनिष्ट के परिहार के उपाय को वेद ही बतलाते हैं। इस तरह लौकिक अभुदय तथा नि:श्रेयस दोनों प्रयोजनों की सिद्धि वेदों से होती है। वास्तव में वेद एक सुव्यवस्थित समन्वित जीवन प्रणाली प्रस्तुत करते हैं। एक – एक दिन का खण्ड-खण्ड करके नहीं, अपितु मानव जीवन की समग्रता सम्पूर्णता पर यहाँ विचार किया गया है। केवल वर्तमान जीवन को सुखी बनाना ही उद्देश्य नहीं है, अपितु भावी ज्कीवन को और अधिक सुखमय बनाना है, अमृतत्व की प्राप्ति करना है और वेद तो अमृतत्वसिद्धि के संविधान हैं। मृत्यु के भय से छुटकारा दिलाकर वेद ही हमें अमरता का बोध कराते हैं।
         अमृतपुत्रा वयम = हम सभी अमृतपुत्र हैं।
    इस तरह वेद परमसुखमयी आह्लादमयी जीवन दृष्टि प्रस्तुत करते हैं”:
 
        इहैव स्तं मा वियौष्टं विश्वमायुर्व्यश्नुतम।
        क्रीडन्तौ पुत्रैर्नप्तृभिर्मौदमानौ स्वे गृहे॥ ऋगवेद १०.८५.४२
    विवाह के पवित्र माड्गलिक अवसर पर नव दम्पती को प्रदान किया गया याह शुभाआशीर्वचन है। यह संसार सुखमय है। सुख प्राप्ति के लिए इसे छोड़ कर कहीं अन्यत्र जाने की आवश्यकता नहीं है। सभी प्रकार का वास्तविक सच्चा सुख यहीं पर है। हे यजमानदम्पति ! तुम दोनों (इह – यव) यहीं पर ( स्तम) रहो। (मा) मत (वियौष्टं) वियुक्त अलग होवो। (विश्वम आयु: ) सम्पूर्ण आयु १०० वर्ष ( वि अश्नुतम) प्राप्त करो। (पुत्रै: ) पुत्रों के साथ (नप्तृभि: ) पौत्रों के साथ (क्रीड़न्तौ) खेलते हुए (मोदमानौ) प्रमुदित होते हुए (स्वे गृहे) अपने घर में (स्तम) रहो। रुग्ण दु:खी-दीन होकर नहीं, अपितु बलवान बलिष्ठ अड्गों से बराबर कार्य करते हुए १०० वर्ष तक जीवित रहने की कामना की गई है।
         जीवेम शरद: शतम ( सौ वर्ष हम जीवित रहें)
भद्रं कर्णेभि:श्रृणुयाम देवा भद्रं
पश्येमाक्षभिर्यजत्रा:।
स्थिरैरड्गै:स्तुष्टुवांसस्तनूभिर्येशम देवहितं यदायु:॥ ऋगवेद १.८६.८
    (देवा: ) हे देवगण (कर्णेभि: ) कानों से (भद्रं) मड्गल-शुभ (श्रृणुयाम) हम सुने । (यजत्रा: ) हे यजनीय-पूजनीय देवगण ( अक्षिभि: ) आँखों से (भद्रं)  मड्गलशुभ (पश्येम) हम देखें। (स्थिरै: अड्गै: तनूभि: ) बलिष्ठ अंगों से युक्त शरीरों से (तुष्टुवांस: ) प्रार्थना करते हुए (देहहितं) देव-निर्धारित (यद आयु: ) जो (१०० वर्ष की) आयु है (वि-अशेम) हम अच्छी तरह प्राप्त करें अर्थात इस अवधि में रोगी ना होवें, बराबर निरोगी रहें और ऋषि कामना करता है कि कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छतं समा: (इह) इस लोक संसार में (कर्माणि) (निर्धारित) कार्यों
को (कुर्वन एव) करते हुए सम्पन्न करते हुए (शतं समा: ) सौ वर्ष तक (जिजीविषेत) जीवित रहने की इच्छा करनी चाहिए और केवल १०० वर्ष तक ही नहीं, अपितु इससे भी अधिक जीवित रहने की बात कही गई है –
भूयश्च शरद: शतात
(शतात शरद भूय: ) और सौ वर्ष से अधिक जीवित रहें ।
    हमारे वैदिक ऋषि ने तो विश्वायु विश्वधात्री विश्वकर्मा, जबतक चाहें तब तक जीवित रहने की, सब कुछ धारण करने की और सबकुछ करने की बात कही है। वास्तव में मानव-शरीर कर्मभूमि है और कर्म ही जीवन है तथा सिद्धि: कर्मजा-विजयश्री की प्राप्ति कर्म से होती है, इसलिए कर्म करने पर बल दिया गया है तथा कार्य को कभी भविष्य के लिए नहीं टालना चाहिए क्योंकि मनुष्य के कल की बात को कौन जानता है।
न श्व: श्वमुपासीत। को हि मनुष्यस्य श्वो वेद।
    ऋषि अथर्वन का बहुत ही प्रेरणास्पद कथन है कि हमारा यह शरीर ही देवपुरी अयोध्या है, इसमें सभी देवता निवास करते हैं, यह अपराजेय ज्योतिर्मय है। इस पुरी में स्थित आत्मा ही परमदेव, परमात्मा है। इस पुरी का राजा है –
अष्टचक्रा नवद्वारा देवानांपूरयोध्या

(अष्टचक्रा) आठ चक्रों (नवद्वार) नव द्वारों वाला हमारा यह शरीर ही (देवानां) देवताओं की (पू: ) पुरी (अयोध्या) अयोध्या-अपराजेय है। इसलिए यह शरीर सर्वतोभावेन रक्षणीय है,  इसको स्वस्थ एवं स्वच्छ बनाए रखना है।

भाग २ – वेदों का महत्व, वेदों का स्वरूप

आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वत:

   (भद्रा:क्रतव:) कल्याण करने वाली बुद्धियाँ (विश्वत:) सभी तरफ़ से (न:) हमारे पास (आ यन्तु) आवें अर्थात ज्ञान की उत्तम धाराएँ हमको प्राप्त होवें।

वेदों का महत्व –

       वेद भारतीय अथवा विश्व साहित्य के उपलब्ध सबसे प्राचीन ग्रन्थ हैं। इनसे पहले का कोई भी अन्य ग्रन्थ अब तक प्राप्त नहीं हुआ है। इसलिये कहाज आता है कि वे सम्पूर्ण संसार के पुस्तकालयों की पहली पोथी है और भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति के तो वेद प्राचीनतम एवं सर्वाधिक मूल्यवान धरोहर हैं, हमारे स्वर्णिम अतीत को अच्छी तरह प्रकाशित करने वाले विमल दर्पण हैं।

     वेद शब्द का अर्थ ही है ज्ञान और इस तरह वेद दकल ज्ञान-विज्ञान की निधि हैं। परा था अपरा दोनों विद्याओं का निरूपण करते हैं। भगवान मनु का उद्घोष है कि ‘सर्वज्ञानमयो हि स:’ (स: ) वह वेद (सर्वज्ञानमय: ) सभी प्रकार के ज्ञान से युक्त हैं। महर्षि दयानन्द ने वेदों को समस्त सत्य विद्याओं का आकार कहा है। हमारा सम्पूर्ण जीवन, सकल क्रियाकलाप वेदों से ओतप्रोत है, कुछ भी वेद से बाहर नहीं है। इनकी उपयोगिता सार्वकालिक सार्वदेशिक सार्वजनीन है। इसलिए इन वेदों के अध्ययन पर बल दिया गया है और भौतिक विज्ञान के इस अत्यन्त समुन्नत युग में भी वेदों का ज्ञान उपयोगी, अत एवं प्रासंगिक है और इन्हीं वेदों के कारण आज भी हमारी भारतीय संस्कृति संसार में पूजनीया है और भारत देश विश्वगुरू के महनीय पद पर प्रतिष्ठित है।

वेदों का स्वरूप –

    वेद अपौरूषेय, अत एवं नित्य हैं। भारतीय परम्परा के अनुसार इन वेदों की रचना नहीं हुई है, अपितु ऋषियों ने अपनी सतत साधना तपश्चर्या से ज्ञान राशि का साक्षात्कार किया है और प्रत्यक्ष दर्शन करने के के कारण इनकी संज्ञा ‘ऋषि’ है –

     ऋषिर्दर्शनात (दर्शनात) दर्शन, करने के कारण (ऋषि: ) ऋषि कहते हैं।

      ऋषयो मन्त्रद्रष्टार: (मन्त्रद्रष्टार: ) मन्त्रों को देखने वाले (ऋषय: ) ऋषिलोग (युग के प्रारम्भ में हुए) ।

      साक्षात्कृतधर्माण: ऋषयो बभूवु: (साक्षात्कृतधर्माण: ) धर्म-धारक्रतत्व-सत्य का साक्षात्कार करने वाले (ऋषय: ) ऋषिलोग (बभूवु: ) युग के प्रारम्भ में हुए। प्रत्यक्ष किए जाने के कारण वेद प्रतिपादित ज्ञान सर्वथा संदेहरहित निर्दोष, अत एवं प्रामाणिक है। इनमें किसी भी प्रकार की मिथ्यात्व की सम्भावना नहीं है। इसलिये वेदों कास्वत: प्रामाण्य है, अपनी पुष्टि प्रामाणिकता के लिये वेद किसी के आश्रित नहीं हैं। वेदों का सर्वाधिक महत्व इसी बात में है कि इनके द्वारा स्थूल-सूक्ष्म निकटस्थ दूरस्थ, अन्तर्हित व्यवहित, साथ ही भूत, वर्तमान, भविष्यत, त्रैकालिक समस्त विषयों का नि:संदिग्ध निश्चयात्मक ज्ञान होता है और इसीलिए भगवान मनु ने वेदों को सनातन चक्षु कहा है। यह अनुपम ज्ञाननिधि सुदूर प्रचीन काल से आज तक अपने उसी रूप में सुरक्षित चली आ रही है। इसमें एक भी अक्षर यहाँ तक कि एक मात्रा का भी जोड़ना-घटाना सम्भव नहीं है। आठ प्रकार के पाठों से यह वेद पूर्णत: सुरक्षित है।

क्रेडिट कार्ड हो या डेबिट कार्ड पिन जरूरी (Credit Card or Debit Card pin is mandatory now)

    भारतीय रिजर्व बैंक  ने क्रेडिट कार्ड(Credit Card) / डेबिट कार्ड (Debit Card) से खरीदारी करने पर पिन नंबर जरूरी कर दिया है।
    हम अधिकतर प्लास्टिक मनी याने कि क्रेडिट कार्ड / डेबिट कार्ड का उपयोग खरीदारी के लिये करते हैं, जब भी आपका कार्ड पोस (POS – Point of sale) मशीन पर स्वाईप होगा, तब आपको अपने डेबिट कार्ड का एटीएम पिन वहाँ डालना होगा और अगर क्रेडिट कार्ड का उपयोग कर रहे हैं तो आपको क्रेडिट कार्ड का पिन डालना होगा, अगर कार्ड का पिन आपके पास नहीं है तो अपने बैंक को आज ही पिन के लिये फ़ोन करें। नहीं तो आप अपने कार्ड से खरीदारी नहीं कर पायेंगे। अभी कुछ ही मशीनों पर बिना पिन के खरीदारी हो रही है जल्दी ही उन मशीनों को भी इस नियम के अंतर्गत कार्य करना होगा।
    फ़ायदा – अगर आपका कार्ड कहीं गुम हो जाता है तो कोई भी आपके कार्ड से खरीदारी नहीं कर सकेगा, भारतीय रिजर्व बैंक ने यह नियम ग्राहक की सुरक्षा के लिये बनाया है ।
    ध्यान रखने वाली बात – जब भी आप पोस मशीन पर अपना पिन डालते हैं तो हाथों से की पैड को छिपाकर पिन डालें, जिससे कोई आपके पिन को देख ना पाये।
   महत्वपूर्ण जानने वाली बात – जिन मशीनों पर बिना पिन के कार्ड से भुगतान स्वीकारे जा रहे हैं और ग्राहक अगर किसी भी भुगतान के विरूद्ध बैंक को शिकायत करता है तो बैंक को ७ दिनों के अंदर ग्राहक को रकम वापस करना होगी, इस तरीके से बैंक के ऊपर यह बहुत बड़ी जिम्मेदारी का कार्य है कि वह अपनी तकनीक जल्दी से जल्दी तय किये गये मानकों पर लाये।

ब्लॉगिंग की शुरूआत के अनुभव (भाग ३)

हमने २००५ में कृतिदेव फ़ोंट(kruti dev Font)  से विन्डोज ९५ (Windows 95) में ब्लॉग लेखन (blog writing)  की शुरूआत की थी, उस समय और भी प्रसिद्ध फ़ोंट (Famous font) थे, पर हमें क्या लगभग सभी को कृतिदेव (Kruti Dev Font) ही पसंद आता था। इधर कृतिदेव (Kruti Dev Font) में लिखते थे और इंटरनेट पर प्रकाशित करने की कोशिश भी करते थे, परंतु कई बार इंटरनेट की रफ़्तार बहुत धीमी होने के कारण, पोस्टें अपने कंप्यूटर में ही रह जाती थीं।
कृतिदेव (Kruti Dev Font) में लिखा पहले हमने ईमेल में कॉपी पेस्ट करके अपने दोस्त को भेजा, तो उन्हें पढ़ने में नहीं आया, तब पता चला कि उनके कंप्यूटर में कृतिदेव फ़ोंट (Kruti Dev Font) ही नहीं है, जब उन्होंने कृतिदेव फ़ोंट (Kruti Dev Font) को संस्थापित किया और फ़िर से ईमेल को खोला और उसकी कुछ सैटिंग इनटरनेट एक्स्प्लोरर ब्राऊजर में की, तब जाकर वे ईमेल को पढ़ने में सफ़ल रहे, हमारे लिये तो यह भी एक बहुत बड़ी उपलब्धि था, आखिर हमने अपनी मातृभाषा हिन्दी में पहली बार ईमेल लिखा था, और जो पढ़ा भी गया।
इधर साथ ही ब्लॉगर पर अपना ब्लॉग बनाने की कोशिश भी जारी थी, एक तो इन्टरनेट की दुनिया के लिये हम नये नवेले थे और दूसरी तरफ़ कोई बताने वाला नहीं था, क्योंकि ब्लॉगिंग में किसी का ध्यान ही नहीं था, कुछ भी करने के लिये रूचि का होना बहुत जरूरी है, उस समय लोग अधिकतर सायबर कैफ़े (Cyber cafe) में याहू के पब्लिक चैट करने के लिये जाते थे, जो कि उस समय काफ़ी प्रसिद्ध था। Your asl please !!! यह उनका पहला वाक्य होता था।
ब्लॉगर प्लेटफ़ॉर्म का पता भी हमें किसी ब्लॉग के एक्स्टेंशन से मिला था, जो कि हमने लायकोस और नेटस्केप सर्च इंजिन में जाकर ढूँढ़ा था, जब ब्लॉग बनाने पहुँचे तो ब्लॉगर ने हमारे पते के लिये ब्लॉग का पता पूछा, उस समय हम अपना उपनाम कल्पतरू लगाना बेहद पसंद करते थे, और इसी नाम से कई कविताएँ अखबारों में प्रकाशित भी हो चुकी थीं, सो हमने अपने ब्लॉग का नाम कल्पतरू ही रखने का निश्चय किया।
पहली पोस्ट को हमने कई प्रकार से लिखा, कई स्टाईल में लिखा, पेजमेकर में डिजाईन बनाकर लिखा, कोरल फ़ोटोशाप में अलगर तरीके से लिखा, पर पेजमेकर और कोरल की फ़ाईल्स ब्लॉगर अपलोड ही नहीं करता था, और ना ही कॉपी पेस्ट का कार्यक्रम सफ़ल हो रहा था, आखिरकार हमने वर्ड में लिखा हुआ पहला ब्लॉग लेख कॉपी करके ब्लॉगर के कंपोज / नये पोस्ट के बक्से में पेस्ट किया, जिसमें भी हम उसकी फ़ॉर्मेटिंग वगैराह नहीं कर पाये। पर आखिरकार २८ जून २००५ को हमने अपना पहला ब्लॉग लेख प्रकाशित कर ही दिया, हालांकि उस समय हमें ब्लॉग पर केवल हिन्दी लिखने के लिये आये थे, क्योंकि हमारे सामने यह एक बहुत बड़ी बाधा थी, और अपने आप से वादा भी था, कि आखिर इन्टरनेट पर हिन्दी कैसे लिखी जा रही है, और हम इसे लिखकर बतायेंगे भी, तो पहली पोस्ट किसी अखबार में छपी एक छोटी सी कहानी थी जो हमने टाईप करके प्रकाशित की थी।
उस समय पहली पोस्ट पर कोई टिप्पणी नहीं आई थी, पर अगली पोस्ट जो कि हमने १२ जुलाई २००५ को लिखी थी, जिसे अगस्त में पढ़ा गया, और पहली टिप्पणी थी देबाशीष की, जिसमें उन्होंने हमें बताया था कि फ़ीड में कुछ समस्या है, तो वापिस से सारी पोस्टें सुधारनी होंगी। फ़िर नितिन बागला और अनूप शुक्ल जी की टिप्पणी आई। अनूप जी की टिप्पणी से हमें बहुत साहस बँधा कि चलो कोई तो है जो अपने को झेलने को तैयार है, उनकी पहली टिप्पणी हमारे ब्लॉग पर थी “स्वागत है आपका हिंदी ब्लागजगत में । पत्थर पर लिखी जा सकने योग्य रचनाओं की प्रतीक्षा रहेगी।”
जारी…

ब्लॉगिंग की शुरूआत के अनुभव (भाग १)

    बरसों बीत गये इस बात को पर आज भी ऐसा लगता है कि सारे परिदृश्य बस अभी बीते हैं, किसी चलचित्र की भांति आँखों के सामने चल रहे हैं, जब मुझे घर पर 486 DX2 जेनिथ कंपनी का कम्प्यूटर घर पर दिला दिया गया था, जिसका मुख्य उद्देश्य था, अपनी क्षमताओं को अच्छी तरह से परखना और निखारना।
    साथ ही उस समय कम्प्यूटर घर पर होना बहुत ही विलासिता की बात मानी जाती थी, तो खाली समय का सदुपयोग हमने प्रोजेक्ट वर्क के जरिये कमाने के लिये भी करना फ़ैसला किया था, जिसमें जन्म कुँडली, हिन्दी एवं अंग्रेजी में थिसिस और भी बहुत सारे कार्य जो उस समय विन्डोज ३.११ पर कर सकते थे। विन्डोज ९५ उस समय बस बाजार में आया ही था, पर हमारे पास केवल ५१२ एम.बी. रेम थी, जिस पर विन्डोज ९५ रो धोकर चल जाता था, पर हाँ रेड हैट लाईनिक्स जबरदस्त चलता था। इसी काल में हमने अक्षर हिन्दी का वर्डस्टार जैसा टूल था, इस्तेमाल करना शुरू किया और हिन्दी की टायपिंग का जबरदस्त किया, फ़िर कृतिदेव वगैराह फ़ोन्ट में विन्डोज में टायपिंग भी करी।
    घर पर इन्टरनेट नहीं था, तो मित्रों का सहारा था, जिन मित्रों के पास इन्टरनेट होता था, उनके पास जाकर याहू, लायकोस और ईमेल.कॉम खोलकर कुछ सीखने की कोशिश करते थे, हालांकि उस दौर में क्या सीखना है, कैसे सीखना है, यह बताने वाला भी कोई नहीं था, बस इतना पता था कि अपना ईमेल अकाऊँट होना बहुत जरूरी है। तो लगभग सारे ईमेल प्रदाताओं पर हमारे ईमेल अकाऊँट हैं। और वही सारे अकाऊँट अधिकतर हमारे पास हैं, पर अब जो अधिकतर उपयोग करते हैं वह है जीमेल, जो कि काफ़ी बाद में आया और हॉटमेल, याहू, यूएसए.नेट, इंडियाटाईम्स, इन्डिया.कॉम जैसे प्रदाताओं को पानी पिला दिया।
    इस समय तक हमें ब्लॉगिंग की ए बी सी डी भी पता नहीं थी, और यह बात है १९९५-१९९७ के बीच की । तब हम कम्प्य़ूटर का अधिकतम उपयोग प्रोग्रामिंग, अकाऊँटिंग, खेलने या टायपिंग के लिये ही किया करते थे, उस समय पता ही नहीं था कि किसी वेबसाईट पर लिखा भी जा सकता है, अपने विचार छापे भी जा सकते हैं।
    कुछ वर्ष बाद हमें पता चला कि हिन्दी का इन्टरनेट पर बहुत उपयोग हो रहा है, एक बैंक के अधिकारी थे, जो रोज अपनी शाम सायबर कैफ़े में रंगीन करने जाते थे, हम इसी कारण उनसे थोड़ा दूर ही रहते थे। और वो हमें रोज ही पकड़ने की कोशिश करते थे, कि कुछ अच्छी सी वेबसाईट दिखा दो, कुछ सिखा दो, हम कुछ ना कुछ बहाना बनाकर खिसक लेते थे, एक दिन उनसे बातें हो रही थीं, तो बैंक के मैनेजर बोले अरे यार तुम बंदे की पूरी बात तो सुन लो, कुछ नई चीज सीखना चाहता है, समझना चाहता है, तो हम उनके साथ सायबर कैफ़े में जाने को राजी हुए, क्योंकि सायबर कैफ़े भी हमारे दोस्त का ही था, तो थोड़ा अजीब लगता था । तब उन्होंने हमें बताया कि इन्टरनेट पर हिन्दी कैसे लिखी जाती है, हमें लगा यह बंदा क्या मजाक कर रहा है । बोला कि चलो हम तुमको हिन्दी में लिखा हुआ दिखाते हैं, हमने देखा तो मुँह खुला रह गया, जैसे हमने दुनिया का आठवां आश्चर्य देख लिया हो। अब उनकी जिज्ञासा यह थी कि हिन्दी में लिखते कैसे हैं और वेबसाईट पर कैसे डालते हैं, इस समय तक हमारे घर पर इन्टरनेट आ चुका था। पर इन्टरनेट बहुत मंद गति से चलता था।
जारी..

मित्र के लिये बैंक से ऋण (Bank loan for friend)

    मित्र के साथ मिलकर बैंक से ऋण (Loan from bank with friend) लेना या मित्र के लिये बैंक से ऋण लेना (Loan from bank for friend), दोनों ही किसी मुसीबत के लिये निमंत्रण हो सकते हैं। थोड़े समय पहले हमारे एक सहकर्मी ने हमसे इस बाबत बात की, और कहा कि उन्होंने बैंक से १० वर्ष पहले प्रधानमंत्री रोजगार योजना (Pradhamantri Rojgar Yojna) में एक लाख रूपये का ऋण लिया था, ऋण पूरा मित्र “अजय” के नाम पर था, परंतु पीछे वास्तविकता में उनके मित्र “बिजय” उस व्यापार जिसके लिये ऋण लिया गया था, बराबर के हिस्सेदार थे, केवल बैंक में “अजय” के नाम से ऋण लिया गया, जबकि “बिजय” का नाम कहीं भी नहीं था। दोनों बहुत अच्छे दोस्त थे, दोनों को एक दूसरे पर बहुत यकीन था।
    दोनों अपना अपना काम करने लगे, व्यापार थोड़ा चल निकला,  फ़िर “अजय” को ठीकठाक सी नौकरी मिल गई, तो “अजय” ने “बिजय” को व्यापार की बागडोर थमाई और नौकरी में चले गये। जब तक “अजय” व्यापार में साथ था तब तक ऋण का मासिक भुगतान समय पर बैंक को होता रहा, परंतु जैसे ही “अजय” नौकरी के लिये गया, “बिजय” ने बैंक की ऋण अदायगी बंद कर दी। बैंक के रिकार्ड में उनका ऋण खाता निष्क्रिय की श्रेणी में आकर एन.पी.ए. (Non Performing Asset) घोषित कर दिया गया।
    पहले बैंक ने “अजय” से संपर्क किया और प्रधानमंत्री रोजगार योजना के अंतर्गत लिया गया ऋण चुकाने की बात कही, तो “अजय” ने बैंक को कहा कि मैंने तो कब से व्यापार से नाता तोड़ लिया है और अब मेरा मित्र “बिजय” उस व्यापार को चला रहा है, तो बैंक ने कहा “ऋण तो आपके नाम से है, “बिजय” के नाम से नहीं है, आप हमारा पैसा हमें लौटा दीजिये” ।
    “अजय” परेशान हो गया कि आखिर “बिजय” को यह क्या हो गया जो उसने हमारे अपने व्यापार को जमाने लिये गये ऋण को नहीं चुकाया, जबकि व्यापार अच्छा चल रहा है, जब उसने “बिजय” से बात करने की कोशिश की, पहले तो “बिजय” फ़ोन पर ही नहीं आया, चूँकि “अजय” की नौकरी घुमंतु वाली थी, कभी इस शहर कभी उस शहर। छुट्टियों में “अजय” घर गया और “बिजय” से मिला तो “बिजय” बड़ी ही रूखाई से पेशा आया और कहा ऐसा है कि ऋण तुमने लिया तो मैं क्यों भरूँ, ऋण तो तुमको ही भरना पड़ेगा, मेरे नाम पर ऋण थोड़े ही है, “अजय” यह सुनकर रूआंसा हो गया।
    “अजय” ने “बिजय” से बात करके समस्या का हल निकालने की पूरी कोशिश करता रहा, “बिजय” को लग रहा था कि ऋण चुकाना केवल “अजय” की जिम्मेदारी है, परंतु जब “अजय” ने समझाया कि हमने साझेदारी में व्यापार शुरू किया था, तो तुम भी तो ऋण के साझेदार हुए, “बिजय” को बात समझ आ गई और वह आधा ॠण भरने को तैयार हो गया, अब “अजय” फ़िर परेशान था, क्योंकि उसने तो व्यापार में से एक पैसा भी नहीं लिया था, फ़िर भी उसे आधा ऋण चुकाने के लिये बाध्य होना पड़ रहा है, “अजय” को पता था कि “बिजय” वह आधा ऋण के पैसे निकालने में ही उसके पसीने छुड़ा देगा। और बैंक “अजय” के पीछे पड़ी हुई थी।
    यही वह समय था, जब “अजय” मुझसे मिला और इस बाबत अपनी राय माँगी, हमने कहा “बिजय” को ऋण देने के लिये राजी तो तुमको ही करना पड़ेगा, नहीं तो आधा ऋण फ़ालतू में तुमको अपनी जेब से भरना पड़ेगा, अब “अजय” ने फ़िर से “बिजय” से बात की, व्यापार को छोड़कर मैं तो नौकरी में चला गया था, तो पूरा ऋण तुम्हें ही चुकाना होगा, अब इस बात पर “बिजय” उखड़ गया। “बिजय” बोला एक तो ऋण तुम्हारे नाम पर है, फ़िर भी मैं आधा ऋण चुकाने को तैयार हो गया हूँ और अब तुम पूरा का पूरा मेरे ऊपर डालना चाहते हो।
    खैर “अजय” ने हमसे कहा कि मैं बात को ज्यादा तूल नहीं देना चाहता हूँ, मैं आधी रकम जो कि लगभग पैंतीस हजार होती है मैं बैंक को चुका देता हूँ और बाकी की मेरा मित्र “बिजय” चुका देगा, “अजय” ने बैंक से सैटलमेंट किया कि हम केवल मूल ऋण चुका पायेंगे, ब्याज की राशि माफ़ की जाये, तो बैंक इस बात के लिये राजी हो गया और कुल सत्तर हजार के ऋण में से आधी रकम “अजय” ने बैंक को चुका दी और बाकी की रकम “बिजय” को चुकानी थी, बिजय ने अजय को पोस्ट डेटेड चेक देकर कहा कि इन तारीखों में मेरे भुगतान आने हैं, तुम बैंक में लगा देना। “बिजय” ने दस हजार के तीन चेक दिये थे, और तीनों के तीनों बाऊँस हो गये, और इसी बीच “अजय” को “बिजय” ने बाकी के पांच हजार रूपये नकद में दे दिये।
    बैंक वालों ने “अजय” का पीछा नहीं छोड़ा और कहा कि हमारा पूरा पैसा चाहिये तुम्हारी साझेदारी तुम्ही जानो, हमारे लिये तो कर्जदार तुम हो और तुम हमारा पूरा पूरा ऋण चुकाओ, नहीं तो हम तुम्हारा केस अब वसूली के लिये कलेक्टर कार्यालय को भेज रहे हैं। वहाँ से कुर्की के आदेश भी निकल सकते हैं। “अजय” घबरा गया, उसने फ़िर से “बिजय” से बात की और चेक बाऊँस होने के कारण नकद रूपये देने की बात कहीं, अब बिजय अजय को थोड़े थोड़े करके नकद रूपये देकर ऋण चुका रहा है।
    इस बात से एक अनुभव मिलता है कि कभी भी अगर साझे में कोई भी काम करो तो ऋण भी साझेदारी में ही होना चाहिये, फ़िर चाहे कोई कितना भी अच्छा दोस्त हो या रिश्तेदार हो, ऐसे कार्यों में सहानुभूति से कार्य नहीं लेना चाहिये और व्यवहारिकता से सोचना चाहिये, पैसा निकालने में जान निकल जाती है और कानून डंडा लेकर आपके पीछे पड़ा रहता है।
    बेहतर है कि या तो साझे में ॠण ना लें या लें तो उसके बराबर दस्तावेज हों, वैसे ही कभी मित्र या रिश्तेदार की मदद करने के लिये कोई ऋण ना लें, अन्यथा परेशानी का सामना आपको ही करना पड़ेगा। एक बार मना करके बुराई मिलती है तो इतनी सारी आने वाली परेशानियों से वह बुराई बेहतर है।

नामांकन आपके परिवार के लिये बहुत जरूरी है.. (Nomination is very important for your family)

    अपने निवेश और संपत्ति के लिये उत्तराधिकारी की घोषणा आपके जीवन में महत्वपूर्ण कार्यों में से एक होता है। इसके बारे में कुछ ही लोगों, निवेशकों को पता है, नामांकन के ना होने (उत्तराधिकारी घोषित ना होने की दशा में) किन किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है यह भी बहुत कम लोगों को पता है। यहाँ पर कुछ अच्छी बातें उन निवेशकों के लिये जो अपने निवेशों के लिये उत्तराधिकारी घोषित कर अपनी और अपने प्यारों की जिंदगी को बेहतर बनाना चाहते हैं।
    जिंदगी अनिश्चितताओं पर चलती है और इसी कारण नामांकन आपके अपने परिवार के लिये आराम है, जिससे ऐसी किसी भी परिस्थिती के बाद परिवार आपके निवेशों को आराम से पा सके, जो निवेश आपने अपने प्यारों दुलारों के लिये किया है, वह निवेश आराम से उन तक पहुँच भी सके। नामांकन उनके लिये केवल अच्छा ही नहीं बहुत अच्छा होगा, जब उनको आपके निवेश की अधिक आवश्यकता होगी, या खर्चे के लिये पैसों की या फ़िर आपके प्यारों के लिये उस धन / रकम को अपने नाम पर करना होगा, तो नामांकन होने की दशा में उनको बहुत ही कम यानि कि ना के बराबर औपचारिकता निभाना होगी। नामांकन ना होने की दशा में आपके निवेशों तक पहुँचने के लिये आपके अपने परिवार को पूरी कानूनी कार्यवाहियों से गुजरना पड़ेगा। जो कि उनके लिये सिरदर्द तो होगा ही, साथ में उतना ही परेशानी वाला रास्ता भी होगा। और जब आपके परिवार को धन की आवश्यकता होगी तो वे धन होने की स्थिती में भी इसका उपयोग नहीं कर पायेंगे।
nomination    नामांकन बहुत आसान प्रक्रिया है, नामांकन प्रपत्र लगभग हर दस्तावेज के अंत में होता है, जिसमें निवेशक को अपने उत्तराधिकारी की जानकारी भरना होती है जैसे कि नाम, रिश्ता, पता, फ़ोन नंबर, कई जगह एक गवाह की जरूरत होती है, पर आजकल अधिकतर आप सीधे नामांकन कर सकते हैं, एक प्रतिलिपी आप अपने पास रख सकते हैं या फ़िर अपनी निवेश डायरी में नोट कर लें। जिन लोगों ने यह सुविधा नहीं ली है, वे लिखित में एक पत्र देकर नामांकन करवा सकते हैं। नामांकन करना बहुत ही सरल कार्य है।
    याद रखें, आपके लिये नामांकन करने का प्रावधान हमेशा खुला हुआ है, आप कभी भी नामांकन कर सकते हैं, आप विशेषकर इन निवेशों में जरूर नामांकन का उपयोग करें –
१. बैंक में बचत खाता / सावधि जमा खाता ( Saving Account/ Fixed Deposit)
२. बीमा  (Insurance Policy)
३. शेयर एवं म्यूचयल फ़ंड (Shares and Mutual Funds)
४. अन्य जमा जैसे कंपनी डिपोजिट, पीपीएफ़., पीएफ़ (Company Fixed Deposit, Public Provident Fund, Provident Fund)
    वैसे तो साधारणतया: खाता खोलते समय नामांकन की औपचारिकताunomination को पूरा करवा लिया जाता है, परंतु अगर खाता खोलते समय नामांकन नहीं कर पाये हों तो नामांकन बाद में कभी भी किया जा सकता है। आप बाद में नामांकन को बदल भी सकते हैं और हटा भी सकते हैं। और यह केवल वही निवेशक कर सकता है, जिसने नामांकन किया था ।
    अगर आप नामांकन में एक से ज्यादा उत्तराधिकारी बनाना चाहते हैं तो यह भी संभव है, केवल उन उत्तराधिकारियों के सामने उनके हिस्से के प्रतिशत को बता दीजिये।
नाबालिग, ट्रस्ट, सरकार, स्थानीय अधिकारी, गैर निवासियों को भी उत्तराधिकारी बनाया जा सकता है।
उत्तराधिकारियों को धन प्राप्त करने के लिये क्या करना होगा ?
१. सभी बैंकों एवं संस्थाओं में मृत्यु प्रमाण पत्र की एक मूल और एक जेरॉक्स दें ।
२. केवायसी के लिये सही उत्तराधिकारी के प्रमाण पत्र प्रस्तुत करें।
३. अगर निवेश की रकम एक लाख रूपये से ज्यादा है तो संस्था इन्डिमिनिटी बांड की मांग कर सकती हैं।
४. नामांकन ना होने की दशा में संस्थाओं द्वारा वसीयत मांगी जा सकती है, उत्तराधिकार प्रमाणपत्र, अन्य वारिसों से अनापत्ति प्रमाण पत्र की जरूरत होगी।

PMP, CBAP, ISTQB कौन सा सर्टिफ़िकेशन करना चाहिये ।

    आजकल बहुत सारे प्रोफ़ेशनल सर्टिफ़िकेशन बाजार में उपलब्ध हैं, जैसे कि प्रोजेक्ट मैनेजर के लिये PMP, बिजनेस अनालिस्ट के लिये CBAP, टेस्टिंग वालों के लिये ISTQB की बाजार में बहुत ज्यादा डिमांड है। सारे लोगों का प्रोफ़ाईल बिल्कुल यही नहीं होता है, कुछ ना कुछ अलग होता है और वे इसी सोच विचार में रहते हैं कि कौन सा सर्टिफ़िकेशन करें, और सही तरीके से बाजार में कोई बताने वाला भी नहीं होता है।

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    अब PMP को ही लें, यह सर्टिफ़िकेशन प्रोजेक्ट मैनेजर के लिये जरूर है, परंतु उतना ही मतलब का बिजनेस अनालिस्ट के लिये भी है, कई जगह बिजनेस अनालिस्ट प्रोजेक्ट मैनेजर का काम भी करता है और प्रोजेक्ट प्लॉनिंग करता है। PMP सर्टिफ़िकेशन केवल IT प्रोजेक्ट मैनेजर के लिये ही नहीं होता है, यह हरेक जगह, हर प्रोजेक्ट मैनेजर के लिये होता है, फ़िर भले ही वह मैन्यूफ़ेक्चरिंग इंडस्ट्री हो या रियल इस्टेट इंडस्ट्री या फ़िर ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री।

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    PMP के बारे मे सोचा जाता है कि यह IT प्रोजेक्ट मैनेजर्स के लिये सर्टिफ़िकेशन बनाया गया है, परंतु यह सर्टिफ़िकेशन दरअसल प्रोजेक्ट मैनेजर्स को प्रोसेस, बजट और रिसोर्स मैनेजमेंट इत्यादि सिखाता है, किस तरह से प्रोजेक्ट को सही दिशा में ले जाया जाये, क्या चीजें जरूरी हैं, अगर सही तरह से रिपोर्टिंग होगी तो रिस्क उतनी ही कम होगी।

    वैसे ही अन्य सर्टिफ़िकेशन हैं, CBAP बिजनेस अनालिस्ट के फ़ंक्शन को समझाता है, और ISTQB टेस्टिंग के बेसिक फ़ंक्शन से लेकर एडवांस लेवल तक के तौर तरीके सिखाता है। जिससे किसी भी प्रकार के प्रोजेक्ट के लिये सही तरह से प्लॉनिंग करने में मदद तो मिलती ही है, साथ ही सही तरीके से कैसे डॉक्यूमेन्टेशन किया जाये, यह भी पता चलता है। जिससे प्रोजेक्ट के डॉक्यूमेंट अच्छे बनते हैं और ट्रांजिशन में परेशानी नहीं आती है।

    इन सारे सर्टीफ़िकेशन में पहले का अनुभव जरूरी होता है, तो पहले जाँचें कि आप कौन से सर्टिफ़िकेशन के लिये फ़िट हैं। आपका अनुभव कौन से सर्टिफ़िकेशन के लिये उम्दा है और वह सर्टिफ़िकेशन आपमें वैल्यू एड कर रहा है। इन सर्टिफ़िकेशनों की फ़ीस ज्यादा नहीं होती, परंतु इन सर्टिफ़िकेशन्स से आप अपना काम अच्छे से कर पायेंगे, आपके काम की क्वालिटी अपने आप दिखेगी।

    naukriनई नौकरी के लिये बाजार में उतरेंगे तो ये सर्टिफ़िकेशन बेशक आपके लिये नई नौकरी की ग्यारंटी ना हों, पर नई नौकरी के लिये पासपोर्ट जरूर साबित होंगे, अगर किसी एक पद के लिये १०० लोग दौड़ में हैं और सर्टिफ़िकेशन केवल ५ लोगों के पास, तो उन ५ लोगों के चुने जाने की उम्मीदें बाकी के उम्मीदवारों से अधिक होगी, आपकी प्रतियोगिता उन ५ लोगों से होगी ना कि पूरे १०० लोगों से । अपनी अपनी फ़ील्ड और कार्य के अनुसार अपना सर्टिफ़िकेशन चुनिये और अपने भविष्य का निर्माण कीजिये।

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हमारे सारे पर्व और जयंतियाँ हैप्पी क्यों होने लगी हैं

आजकल हमारे सारे पर्व और जयंतियाँ हैप्पी क्यों होने लगी हैं, इसका कारण समझ नहीं आया । पर जब विश्लेषण करने बैठे तो समझ में यह आया कि अपने पास भारत में तो कोई वेलेन्टाईन डे, फ़्रेंडशिप डे, फ़ादर्स डे, मदर्स डे इत्यादि इत्याद ‘डे’ है ही नहीं, तो हमारे भारत में सारे पर्व और जयंतियों को हैप्पी बना दिया गया है।
 
२ अक्टूबर को तो वोदाफ़ोन ने हद ही कर दी, जब उनका एस.एम.एस. आया हैप्पी गाँधी जयंती, हमें समझ नहीं आया कि ये गाँधी जयंती हैप्पी कैसे हो गई, और हम इसे हैप्पी होकर कैसे मनायें, आखिर हरेक डे हैप्पी कैसे हो सकता है। गाँधी जयंती पर अमूमन खादी पर अच्छी छूट मिल जाती है और आजकल हमें खादी बहुत अच्छी लगती है, इसके रंग संयोजन भी अच्छे आते हैं, हम तो खादी की शर्ट खरीदकर ही हैप्पी हो जाते हैं।
 
हैप्पी पितृपक्ष, हमें समझ नहीं आया अब इसमें क्या हैप्पी है, हमारे पितृ तो इस संदेश को पढ़ नहीं सकते, वे और कन्फ़्यूज हो जायेंगे कि ये हैप्पी कैसे हो गया।
 
हैप्पी नवरात्रि, हमने यही समझा कि नवरात्रि की शुभकामनाएँ ।
 
उसके बाद दशहरा आया, फ़िर एस.एम.एस. और व्हाट्स एप पर संदेश आने लगे हैप्पी दशहरा, जबकि हम संदेश भेजते हैं, दशहरे के पावन पर्व पर आपको बहुत शुभकामनाएँ, अब हमें हैप्पी दशहरा समझ नहीं आया हैप्पी का यहाँ मतलब निकाल सकते हैं शुभकामनाएँ, पर गाँधी जयंती वाले हैप्पी में क्या मतलब निकालें, आजकल की संस्कृति बदलती जा रही है।
 
अब आज आ गया है करवा चौथ, सुबह सुबह एक संदेश आया हुआ है हैप्पी करवा चौथ, भई!! करवा चौथ तो हैप्पी है केवल पुरुषों के लिये, उनके लिये उनकी दुल्हन दिनभर व्रत जो रख रही है, दुल्हन के लिये थोड़े ही हैप्पी है, दुल्हनों की बैचेनी शाम को बड़ जाती है, जब चाँद निकलने का समय अगर साढ़े आठ का है और आठ पैंतीस भी हो जाये, तो बस जैसे ये पाँच मिनिट की देरी भी पति ने ही चाँद को कहकर करवा दी हो, अब हमारे यहाँ तो पिछले ३-४ दिन से बारिश हो रही है, तो चाँद का दिखना भी बादलों की मेहरबानी है।
 
हाँ हैप्पी करवा चौथ उनके लिये होता है जो खुद भी पत्नि के साथ व्रत रखता हो, हमारे बहुत सारे परिचित पत्नि का साथ देने के लिये व्रत रखते हैं, हम तो यह कहकर टाल देते हैं परंपरा में नहीं है, जबकि असल बात यह है कि अपने को व्रत / उपवास करना बहुत भारी पड़ता है।

अब कुछ दिनों बाद भाईदूज, धनतेरस, दीवाली और कार्तिक पूर्णिमा भी आने वाले हैं, इनका भी हैप्पी होने का संदेश आयेगा।

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भाग १ – पाठ्य – गायत्री मन्त्र अथर्ववेद के अनुसार

वेदमाता के पावन अनुग्रह से हमें वैदिक तत्वज्ञान का अमृत – प्राशन करने का सुअवसर प्राप्त हो, यही हम सबके हृदय की एक मात्र कामना है – क्योंकि अथर्ववेद के अनुसार इसी से हमारी अन्य सभी इच्छाओं की परिपूर्ति हो जायेगी –
स्तुता मया वरदा वेदमाता प्रचोदयन्तां पावमानी
द्विजानाम्‍।
आयु: प्राणं प्रजां पशुं कीर्तिं द्रविणं ब्रह्मवर्चसं
मह्यं दत्तवा व्रजत ब्रह्मलोकम् ॥
( – मैंने वरदायिनी वेदमाता की स्तुती की है। यह हम सबको पवित्र करने वाली है। हमारी प्रार्थना है कि यह उन सबको पवित्र जीवन जीने की प्रेरणा प्रदान करे, जो मानवीय संस्कारों से संपन्न हैं। यह हमें लम्बी आयु, प्राणशक्ति, श्रेष्ठ संतानें, पशु समृद्धि तथा ब्रह्मतेज प्रदान करे और अन्त में ब्रह्मलोक की प्राप्ति कराये ।
अथर्ववेद के अनुसार वास्तव में गायत्री ही वेदमाता है। इस गायत्री मंत्र से हम सभी सुपरिचित हैं, जो इस प्रकार है –
ओऽम् भूर्भुव: स्व:। तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि।
धियो यो न: प्रचोदयात्‍॥
मन्त्र का सामान्य अर्थ इस प्रकार है –
हम सभी (सवितु: देवस्य) सबको प्रेरित करने वाले देदीप्यमान सविता (सूर्य)  देवता के (तत्‍) उस सर्वव्यापक (वरेण्यम्‍) वरण करने योग्य अर्थात्‍ अत्यन्त श्रेष्ठ (भर्ग:) भजनीय तेज का (धीमहि) ध्यान करते हैं, (य:) जो (न:) हमारी (धिय:) बुद्धियों को (प्रचोदयात्‍) सन्मार्ग की दिशा में प्रेरित करता रहता है।
 
इस मन्त्र को गायत्री मन्त्र इसलिए कहा जाता है, क्योंकि यह गायत्री छन्द में निबद्ध है। ‘गायत्री’ का शाब्दिक अर्थ है गायक की रक्षा करने वाली – ‘गायन्तं त्रायते’ यह वेद का प्रथम छन्द है जिसमें २४ अक्षर और तीन पाद होते हैं। इसके प्रत्येक पाद में आठ-आठ अक्षर होते हैं। इस मन्त्र को देवता के आधार पर सावित्री मन्त्र भी कहा जाता है, क्योंकि इसके देवता सविता हैं। सामान्य रूप से सविता सूर्य का ही नामान्तर है, जो मानव जीवन को सार्वाधिक प्रभावित करने वाले देवता हैं। अधिक गहराई में जाने पर सविता को सूर्य-मण्डल के विभिन्न देवों में से एक माना जा सकता है।
गायत्री मन्त्र हमारी परम्परा में सर्वाधिक पवित्र और उत्प्रेरक मन्त्र है। इसका जप करते समय भगवान्‍ सूर्य के अरूण अथवा बालरूप का ध्यान करना चाहिये। जप करते समय मन्त्र के अर्थ का भलीभाँति मनन करना चाहिये, जैसा कि महर्षि पतंजलि ने अपने योगसूत्र में कहा है – ‘तज्जपस्तदर्थभावनम्‍।’ किसी भी मन्त्र के जप का अभिप्राय है बार – बार उसके अर्थ की भावना करना, उसे मन और मस्तिष्क में बैठाना । किसी न किसी सन्दर्भ में, यह मन्त्र चारों वेदों में प्राप्त हो जाता है। परम्परा के अनुसार इस मन्त्र का साक्षात्कार सर्वप्रथम महर्षि विश्वामित्र ने किया था। वही इस मन्त्र के द्र्ष्टा अथवा ऋषि हैं। वैदिक पारम्परिक मान्यता के अनुसार वेद-मन्त्रों का कोई रचियता नहीं है। सृष्टि के प्रारम्भ, समाधि अथवा गम्भीर ध्यान की अवस्था में ये ऋषियों के अन्त:करण में स्वयं प्रकट हुए थे। जिस ऋषि ने जिस मन्त्र का दर्शन किया, वही उसका द्रष्टा हो गया। इस मन्त्र का जप विश्व भर में व्याप्त किसी भी उपासना-सम्प्रदाय का कोई भी अनुयायी कर सकता है, क्योंकि बुद्धि की प्रेरणा की आवश्यकता तो सभी समान रूप से अनुभव करते हैं। हाँ, ध्यानजप करने से पूर्व शारीरिक शुद्धि कर लेना आवश्यक है।
किसी भी वेदमन्त्र का उच्चारण करने से पूर्व ‘ओऽम्‍’ का उच्चारण करना आवश्यक है। ‘ओऽम्‍’ परमात्मा का सर्वश्रेष्ठ नाम है – इसमें तीन वर्ण हैं – अकार, उकार और मकार। ‘ओऽम्‍’ के मध्य में लगी तीन (३) की संख्या इसके त्रिमात्रिक अथवा प्लुत उच्चारण की द्योतक है। स्वरों के हृस्व और दीर्घ उच्चारण से हम सभी परिचित हैं – लेकिन वेद में इसके आगे प्लुत उच्चारण की व्यवस्था भी है। हृस्वास्वर के उच्चारण में यदि एक मात्रा का काल लगता है, तो प्लुत में तीन मात्राओं का काल लगता है। ‘ओऽम्‍’ अथवा ओड्‍कार भी विश्व के प्राय: सभी धार्मिक मतों में किसी – न – किसी प्रकार से विद्यमान है ।
‘भू:’, ‘भुव:’ और ‘स्व:’ – ये तीन महाव्याहृतियाँ हैं। ये तीनों शब्द क्रमश: पृथिवी, अन्तरिक्ष और स्वर्ग अथवा द्युलोक के वाचक हैं।

जो पढ़ रहा हूँ वह लिख रहा हूँ, वेदों की शिक्षा