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आत्मसंकल्प या बलपूर्वक

किसी भी कार्य को करने के लिये संकल्प चाहिये होता है, अगर संकल्प नहीं होगा तो कार्य का पूर्ण होना तय नहीं माना जा सकता है। जब भी किसी कार्य की शुरूआत करनी होती है तो सभी लोग आत्मसंकल्पित होते हैं, कि कार्य को पूर्ण करने तक हम इसी उत्साह के साथ जुटे रहेंगे।

परंतु असल में यह बहुत ही कम हो पाता है, आत्मसंकल्प की कमी के कारण ही दुनिया के ५०% से ज्यादा काम नहीं हो पाते, फ़िर भले ही वह निजी कार्य हो या फ़िर व्यापारिक कार्य । कार्य की प्रकृति कैसी भी हो, परंतु कार्य के परिणाम पर संकल्प का बहुत बड़ प्रभाव होता है।

कुछ कार्य संकल्प लेने के बावजूद पूरे नहीं कर पाने में असमर्थ होते हैं, तब उन्हें या तो मन द्वारा हृदय पर बलपूर्वक या हृदय द्वारा मन पर बलपूर्वक रोपित किया जाता है। बलपूर्वक कोई भी कार्य करने से कार्य जरूर पूर्ण होने की दिशा में बढ़ता है, परंतु कार्य की जो मूल आत्मा होती है, वह क्षीण हो जाती है।

उदाहरण के तौर पर देखा जाये कि अगर किसी को सुबह घूमना जरूरी है तो उसके लिये आत्मसंकल्प बहुत जरूरी है और व्यक्ति को अपने आप ही सुबह उठकर बाग-बगीचे में जाना होगा और संकल्पपूर्वक अपने इस निजी कार्य को पूर्ण करना होगा। परंतु बलपूर्वक भी इसी कार्य को किया जा सकता है, जिम जाकर, जहाँ ट्रेडमिल पर वह चढ़ जाये और केवल पैर चलाता जाये तो उसका घूमना जरूर हो जायेगा, परंतु मन द्वारा दिल पर बलपूर्वक करवाया गया कार्य है। किंतु वहीं बाग-बगीचे में घूमने के लिये आत्मसंकल्प के बिना घूमना असंभव है, क्योंकि तभी व्यक्ति के हाथ पैर चलेंगे। जब हाथ पैर चलेंगे, उत्साह और उमंग होगी तभी कार्य पूर्ण हो पायेगा।

कार्य पूर्ण होना जरूरी है, फ़िर वह संकल्प से हो या बलपूर्वक क्या फ़र्क पढ़ता है, संकल्प से कार्य करने पर आत्मा प्रसन्न रहती है, परंतु बलपूर्वक कार्य करने से आत्मा हमेशा आत्म से बाहर निकलने की कोशिश करती है।

जो स्कूल जाते हैं वे नौकरी करते हैं और जो कतराते हैं वे उन्हें नौकरी पर रखते हैं.. बेटेलाल से कुछ बातें..

    अभी बस बेटे को बस पर स्कूल के लिए छोड़ कर आ रहा हूँ, लगभग १० मिनिट बस स्टॉप पर खड़ा था, तो बेटेलाल से बात हो रही थीं।
    कहने लगा कि मम्मी बोल रही थी कि कॉलेज में यूनिफ़ॉर्म नहीं होती, वहाँ तो कैसे भी रंग बिरंगे कपड़े पहन कर जा सकते हैं, मैंने कहा हाँ पर आजकल बहुत सारे कॉलेजों में भी यूनिफ़ॉर्म पहन कर जाना पड़ता है तो मैं तो ऐसे ही कॉलेज में एडमिशन लूँगा जिसमें अपने मनमर्जी के कपड़े पहन कर जा सकते हों।
    फ़िर कॉलेज के बाद की बात हुई कि आईबीएम में भी तो आप अपने मनमर्जी के कपड़े पहन कर जा सकते हो, मैंने कहा हाँ पर केवल फ़ोर्मल्स और शुक्रवार को जीन्स और टीशर्ट पहन सकते हैं, टीशर्ट कैसी पहन सकते हैं, कॉलर वाली या गोल गले वाली, मैंने कहा “कॉलर वाली, गोल गले वाली अलाऊ नहीं है”, ऊँह्ह फ़िर मैं आईबीएम में नहीं जाऊँगा, मुझे तो ऐसी जगह जाना है जहाँ गोल गले वाली टीशर्ट में जा सकते हों, फ़िर मैं माईसिस में जाऊँगा तो मैंने कहा कि हाँ वहाँ पर तो पूरे वीक कुछ भी पहन कर जा सकते हो, बस तुम स्मार्ट लगने चाहिये।
    तो ठीक है मैं आईबीएम को मोबाईल बनाऊँगा और यहीं पर एक इतनी ऊँची बिल्डिंग बनाऊँगा जो कि चाँद को छुएगी जिससे यहाँ पास में रहने वाले लोगों को ऑफ़िस आने में आसानी होगी, और मोबाईल ऑफ़िस को उनके घर के पास खड़ा कर दूँगा, तो प्राब्लम सॉल्व हो जायेगी।
    मैंने कहा कि तुम नौकरी क्यों करोगे, तुम खुद एक कंपनी बनाओ, तो जबाब मिला कि मेरे पास इतने पैसे थोड़े ही हैं जो इतनी बड़ी कंपनी खोल लूँगा, हमने कहा कि हरेक कंपनी की शुरूआत छोटे से ही होती है बाद में बाजार में जाने के बाद अच्छा कार्य करने पर बड़ी हो जाती है। तो नौकरी का मत सोचो और कंपनी खोलने का सोचो, उसके लिये पैसे की नहीं अक्ल की जरूरत होती है, उसके लिये स्कूल भी जाने की जरूरत नहीं होती, जो स्कूल जाते हैं वे नौकरी करते हैं और जो स्कूल जाने से कतराते हैं दिमाग कहीं और लगाते हैं वे स्कूल जाने वालों को नौकरी पर रखते हैं।
    तो बेटेलाल बोलते हैं फ़िर मैं पार्टनर बन जाऊँगा और आगे चलाऊँगा, इतने में बस आ चुकी थी, हम सोच रहे थे कि काश कुछ सालों पहले इतनी समझ हम में होती तो ऐसा ही कुछ कर रहे होते।
    जिन्होंने भी अभी तक अच्छे कॉलेज से शिक्षा ली है, साधारणतया वे अभी तक बड़ी कंपनी नहीं बना पाये हैं, परंतु औसत शिक्षा वाले लोगों ने असाधारण प्रतिभा का प्रदर्शन करते हुए बड़ी बड़ी कंपनियाँ बनाई हैं।

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मैंने दोनों जगह बात भी की, कहते हैं कि दो प्लान हैं

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हमने पूछा काम क्या करना है तो बताया गया कि आपको केवल ४० ऐड क्लिक करने हैं जिसमें २ मिनिट लगेंगे।
क्या उज्जैन की जनता को कुछ समझ में नहीं आता या समझना नहीं चाहती, कि ये बिल्कुल शुद्ध पूँजी स्कीम है, लूट स्कीम, हो सकता है कि यह स्कीमें और भी शहरों में चल रही हों, परंतु यह तो तय है कि इससे कमाई तो नहीं होगी, आम जनता की जेब ही कटेगी।

अभी भी पता नहीं ऐसी कितनी ही स्कीमें उज्जैन में चल रही हैं, और जनता केवल इसी में लगी हुई है, कुछ स्कीमें तो पिछले ५-६ वर्षों से चल रही हैं।

क्या इस तरह के लुभावने और लालच वाले विज्ञापन हमारी आज की पीढ़ी को गुमराह नहीं कर रहे हैं।

पहले की चेताई गई दो पोस्टें जो सही साबित हुईं ।
 

 

गंभीर चिंतन और मंथन देश को क्या नई दिशा देता है ? यह देखना है ।

कल ऑफ़िस से आने के बाद ऑनलाईन खबरें सुन रहे थे जो कि देश के औद्योगिक घरानों को लेकर था, कि भारत सरकार चला रही है या देश के औद्योगिक घराने चला रहे हैं। हमारे औद्योगिक घराने सरकार की मदद से आम आदमी को लूटने में लगा हुआ है। जिन लोगों ने इस चीज को सार्वजनिक मंच से उठाया, पहले उनकी मंशा पर शक होता था, पर कल जो भी हुआ उससे अब उनकी मंशा साफ़ होती जा रही है।

पहले ऐसा लगता था कि ये सब राजनैतिक लालच में किया जा रहा है और “मैं आम आदमी हूँ” की टोपी पहनने वाले लोग भारत की जनता को गुमराह कर रहे हैं, मासूमों को बरगला रहे हैं। पर कल यह बात साफ़ हो गई कि इस देश में ना पक्ष है मतलब कि सरकार और ना ही विपक्ष, सब मिले हुए हैं, इस बात को और बल मिला कि देश को औद्योगिक घराने ही चला रहे हैं।

कल बहस में एक बात सुनने को मिली जो कि सरकारी पक्ष वाली पार्टी और विपक्ष वाली पार्टी दोनों ही एक सुर में कह रही थीं, ये हर सप्ताह नये खुलासे करने वाली पार्टी केवल खुलासे करती है और अंजाम तक नहीं पहुँचाती है, ये केवल चिंगारी दिखाकर भाग जाते हैं। सही बात तो यह है कि नये खुलासे करने वाली पार्टी के पास भी समय बहुत कम है, २०१४ के चुनाव सर पर खड़े हैं, और उनका मकसद किसी भी चीज को अंजाम तक पहुँचाना हो भी नहीं सकता क्योंकि आजादी के बाद से सभी राजनौतिक घरानों की और से इतने घोटाले हुए, उनका बयां करना ज्यादा जरूरी है।

जनता नासमझ तो है नहीं, सारी बातें पहले ही सार्वजनिक हैं परंतु हमें तो यह बात समझ में नहीं आती कि अगर ये लोग इतने ही सही हैं और कोई घोटाले नहीं किये तो इतने तिलमिलाये हुए क्यों हैं। इन्हें जो करना है करने दो, आपको अपना वोटबैंक पता है फ़िर आपकी समस्या क्या है। कहीं ऐसा तो नहीं कि इन लोगों को वाकई में डर लगने लगा है कि अब आम आदमी तक ये आदमी चिल्ला चिल्लाकर हमारी सारी गलत बातें पहुँचा रहा है और इससे हमें नुक्सान हो सकता है।

खैर यह तो क्रांति की शुरूआत भर है, जब तक राजनैतिक ताकतों को जनता की असली ताकत का अहसास होगा तब तक इन लोगों के लिये बहुत देर हो चुकी होगी, और इनका अस्तित्व मिट चुका होगा। खुशी इस बात की है कि जनता में गंभीर चिंतन पहुँच रहा है और जनता के बीच गंभीर मंथन प्रक्रिया शुरू हो चुकी है और राजनैतिक दलों के नेताओं के पास कुछ बोलने के लिये ज्यादा बचा नहीं है, सब नंगे हो चुके हैं। अब यह गंभीर चिंतन और मंथन देश को क्या नई दिशा देता है, और इतिहास में क्या लिखा जायेगा, भविष्य के गर्भ में क्या है यह तो जनता को तय करना है।

एटीएम का उपयोग करते समय सतर्क रहें (Cash retraction facility withdrawn by RBI in India)

    काम में व्यस्तता के कारण यह पोस्ट लिखने में थोड़ी देर हो गई। कुछ दिनों पहले एटीएम की टेस्टिंग के दौरान ऐसे ही cash retraction facility पर चर्चा हो रही थी, तभी भारत के एटीएम की कार्यप्रणाली पर भी चर्चा हो रही थी।

    यह सुविधा भारत में हरेक एटीएम में थी परंतु रिजर्व बैंक ने सितंबर में सभी बैंकों को अपने परिपत्र में सूचित किया कि यह सुविधा तत्काल प्रभाव से सभी बैंक बंद कर दें।

Message on HDFC Bank website

HDFC Bank Cash Retraction facility

Message on Axis Bank Website

Axis Bank Cash Retraction Facility

    Cash retraction facility क्या होती है – उपभोक्ता एटीएम पर ट्रांजेक्शन (Transaction) कर रहा होता है, और किसी कारणवश उपभोक्ता अपना नकद कैश ट्रे में से नहीं ले पाता है तो एटीएम उस नकद राशि को १०-१५ सेकंड (हरेक बैंक का अपना अपना समय निर्धारित होता है) बाद वापिस अपने अंदर ले लेता है और उपभोक्ता के अकाऊँट में निकाली गई राशि उसी समय एक रिवर्स ट्रांजेक्शन (Reverse Transaction) से लौटा दी जाती है।

ATM Cash Retraction Facility

    परंतु रिजर्व बैंक को कई जगह से cash retraction facility के जरिये फ़्रॉड (Fraud) होने की सूचना मिल रही थी, आखिरकार रिजर्व बैंक की तकनीकी कमेटी ने निश्चय किया कि जब तक इन फ़्रॉड के तरीकों से निपटने का तरीका नहीं खोज लिया जाता तब तक cash retraction facility को तत्काल प्रभाव से बंद कर दिया जाये।

    फ़्रॉड कैसे होता था – उपभोक्ता अपने एटीएम कार्ड से ट्रांजेक्शन करने जाता और जब कैश ट्रे में पैसे आ जाते तो चालाकी से उसमें से आधे से ज्यादा पैसे इस तरीके से खींच लिये जाते कि २-४ नोट कैश ट्रे में फ़ँसे रहें और बाकी के बाहर आ जायें, इस तरह से ये चालाक लोग पैसा भी ले लेते और एटीएम में cash retraction facility के जरिये पैसा वापिस अंदर भी चला जाता, cash retraction facility में जब कैश वापिस एटीएम खींचता है तो एटीएम में उसे वापिस से गिनने की सुविधा नहीं होती है, इसका फ़ायदा उठाकर कई चालाक लोगों ने फ़्रॉड किये और चूँकि एटीएम cash retraction facility के जरिये पैसे वापिस ले लेता तो उपभोक्ता के अकाऊँट में Reverse Transaction हो जाता और उसके अकाऊँट में पूरे पैसे जमा हो जाते। इस तरीके से पिछले एक वर्ष में कई फ़्रॉड होने की सूचना रिजर्व बैंक को मिल रही थीं।

    अब कई बैंकों ने cash retraction facility को अपने एटीएम पर बंद कर दिया है, अब उपभोक्ता को चौकन्ना रहना होगा कि अगर वह एटीएम पर ट्रांजेक्शन करने जा रहा है तो जब तक कैश एटीएम से बाहर ना आ जाये तब तक एटीएम नहीं छोड़ें और अगर कैश बाहर नहीं आता है तो तत्काल बैंक को सूचित करें, क्योंकि कई बार तकनीकी कारणों से भी कैश बाहर नहीं आ पाता या फ़िर कैश आने में देरी हो जाती है और उपभोक्ता अपना ट्रांजेक्शन अधूरा छोड़कर चला जाता है, कैश की जिम्मेदारी अब पूरी तरह से उपभोक्ता की है, बैंक की जिम्मेदारी रिजर्व बैंक ने २४ सितंबर के परिपत्र में खत्म कर दी गई है।

    तो अगली बार से एटीएम का उपयोग करते समय सतर्क रहें और चौकन्ने रहकर अपने ट्रांजेक्शन को पूरा करें।

कभी कभी चैट से भी खुशियाँ दिल को बाग बाग कर देती हैं ।

    जिंदगी मुश्किल का दूसरा नाम है और जो मुश्किलों का सामना डटकर करते हैं, वे अपने आप में हरफ़नमौला होते हैं। सहनशीलता जिनमें होती है वे एक ना एक दिन अपने लक्ष्य पर जरूर पहुँचते हैं, सफ़लता उनके कदम चूमती है। मुश्किलों से घबराकर जो जीवन के सामने अपने हथियार डाल दे वे बुजदिल होते हैं। अगर मुश्किलें जीवन में नहीं होंगी तो जीवन बोझिल हो जायेगा और जीवन जीने का आनन्द नहीं आयेगा।

    हमारे एक बेहद करीबी मित्र पिछले कुछ वर्षों से इसी तरह की परिस्थितियों से गुजर रहे थे, दो दिन पहले फ़ेसबुक पर रात्रि को उनका मैसेज आया – “भाई परेशान करना है, कर लूँ क्या ?”, वैसे दोस्त जो कि कार्पोरेट दुनिया में होते हैं, यही उनकी एक खासियत होती है बोलकर परेशान करते हैं, और अगर अभी समय नहीं है तो समय बता दो तब परेशान करता हूँ। हमने झट से चैट पर कहा “अरे साब आपके लिये तो हम हमेशा फ़्री हैं”। जबाब मिला “एक गुड न्यूज दे रहे हैं आपको !!” आज हमने अपनी तत्काल कंपनी में पेपर डाल दिया है, पेपर को त्यागपत्र हिन्दी में कहा जाता है। हमने झट से कहा “वाह !! बधाई, तो आपको आखिरकार नई राह मिल ही गई”।

    हमारे मित्र का जबाब था “कोशिश की है”, हमने कहा “भगवान सबकी सुनता है बस आपको इंतजार करवाया “, उन्होंने कहा “घर की राह मिल गई है, अब बस बहुत हुआ अब वापिस जायेंगे”। जो अपने परिवार से नौकरी के लिये दूर रह रहे होते हैं, वे इस बात को शायद अच्छी तरह से समझ पायेंगे। हमने कहा “हृदय से हमारी बधाई स्वीकारें”। हमारे मित्र ने बताया कि हमें शाम से यह बात बताने की बहुत इच्छा थी, हमें बहुत अच्छा लगा। और हमने कहा “भाई वैसे भी कमीने बोलने वाले दोस्त बहुत कम हैं”।

    हमने पूछा कि फ़िर तो आपको कल जब नई राह मिली तो नींद सुकून से आई होगी, उन्होंने चैट पर जबाब दिया नहीं सब कुछ आज हुआ है तो पता नहीं आज की रात कैसे कटेगी, नींद आयेगी या नहीं। दिल खुशियों से लबालब हुआ जा रहा था, हमने चैट पर लिखा “आपकी जिंदगी में हर रोज ऐसे ही खुशियों की बौछार हो”, हमारे मित्र कहते हैं “सरकार इतनी खुशियों को बटोरने की आदत नहीं है, सँभाल नहीं पाते हैं, थोड़ी सी खुशी में ही खुश हैं”।  हमने कहा ऐसे भी खुशियाँ कभी कभी आती हैं इसलिये जब भी खुशी मिले बौरा लेना चाहिये”।

    ऐसे ही अपने करीबी को जब खुशी मिलती है तो हम भी उसकी खुशी में झूम उठते हैं और उसको भी बौरा लेने की सलाह देते हैं।

पैसे पेड़ पर उगते हैं पता बता रहे हमारे बेटे लाल…

जब हम घर पर रहते हैं तो बेटेलाल को हम ही सुबह उठाते हैं, और कुछ संवाद भी हो जाते हैं, कुछ दिनों पहले महाराज अपनी एक किताब गुमा आये और अब बोल रहे हैं कि पैसे दे दीजिये हम नई किताब खरीद लायेंगे। अपनी आदत के अनुसार हमने कह दिया “पैसे पेड़ पर नहीं उगते हैं” और अब तो यह हमारे प्रधानमंत्री जी ने भी पुष्ट कर दिया है।

हमने कहा बेटेलाल पहले जाकर अपनी किताब ढूँढ़ो जैसे डायरी गुमी थी और बाद में मिल गई वैसे ही वह भी मिल जायेगी, चिंता मत करो। पर ये महाराज आश्वस्त हैं नहीं मिलेगी। तभी हमने फ़िर से बोला बेटा पैसे पेड़ पर नहीं उगते हैं, तो हम तो इसके लिये पैसे नहीं देने वाले हैं।

पैसे का पेड़

हमें तभी बेटेलाल का जबाब मिला “हमें कुछ नहीं पता, हमें तो किताब लेनी है, और पैसे चाहिये!!!”, हमने फ़िर से कहा बेटा पैसे पेड़ पर नहीं उगते हैं, कहते हैं – “पैसे पेड़ पर उगते हैं”, हमने कहा फ़िर पता बताओ हम अभी वहीं से पैसे तोड़ लाते हैं और प्रधानमंत्री जी को भी बता देते हैं, बेटेलाल पूछते हैं कि ये प्रधानमंत्री जी कहाँ रहते हैं, हमने कहा दिल्ली में रहते हैं, बेटेलाल कहते हैं “उईई मैं तो इतनी दूर नहीं जा रहा उनको बताने कि पैसे का पेड़ कहाँ है”, हमने कहा अच्छा हमें तो बता दो।

बेटेलाल कहते हैं “वो पेड़ यहाँ बैंगलोर में थोड़े ही है, वह तो जयपुर में है, जयपुर में कांदिवली गाँव है, हमने कहा ओय्ये कांदिवली तो मुँबई में है, तो बेटेलाल कहते हैं अच्छा जयपुर की जगहों के नाम बताओ, हमने कहा हमें भी पता नहीं तो कहते हैं कि पुर्रपुर्रपुरम में है।

खैर यह संवाद तो इतना ही रहा, पर इतने संवाद में यह बात समझ में आ गई कि बेटेलाल को भी पता है कि पैसे का पेड़ नहीं है और कहीं उगते भी नहीं है, उनके लिये तो डैडी ही पैसे का पेड़ हैं, बस डैडी को हिलाओ और पैसे गिरने लगेंगे । मैं भी बेटे की मासूमियत भरी बातों को कहीं और से जोड़कर देखने लगा और अब सोच रहा हूँ कि काश मैं भी बच्चों जैसा पावन पवित्र मन वाला होता और इन बातों को यहीं खत्म कर कहीं किसी और काम में व्यस्त हो जाता ।

बनाना रिपब्लिक और मैंगो पीपल ( देखें वीडियो पहली बार )

देश की सबसे बड़ी राजनैतिक दल के दामाद याने कि देश के दामाद पर इन दिनों बहुत बड़े बड़े आरोपों की बौछार हो रही है।

हम भी सोचते हैं कि काश कि अपने भी कुछ लाख रूपये के इतने ही अनुपात में मात्र ३ वर्ष में करोड़ों रुपया हो जाता, जिस तरह से इन साब का बड़ा है।

जैसे हर वर्ष राजनैतिक दलों के नेता अपनी सम्पत्ति का ऐलान करते हैं और उनकी सम्पत्ति सीधे ५० प्रतिशत से २०० प्रतिशत के अनुपात में बड़ी होती है, यह तो वह सम्पत्ति होती है जो कि कानूनन वो ऐलान कर रहे हैं, जनता को दो नंबर वाली सम्पत्ति का तो पता ही नहीं चलता ।

इन नेताओं को आम जनता के लिये वित्तीय प्रबंधन के क्षैत्र में एक व्यापारिक संस्था खोलनी चाहिये और उसमें विज्ञापित भी किया जाना  चाहिये आज से १ वर्ष पहले मेरे पास ४.५ करोड़ की संपत्ति थी और वह इस वर्ष बढ़कर १० करोड़ की हो चुकी है, आप भी अपना पैसा ऐसे ही एक वर्ष में बड़ा सकते हैं। सारे बैंकों की वाट लग जायेगी और बैंकें भी अपना पैसा इन नेताओं को निवेश करने के लिये देंगी या फ़िर इन नेताओं को अपना वित्तीय प्रबंधक रख लेंगी।

खैर बात कहाँ शुरू की थी और कहाँ आ गई, वैसे भी यह ऐसा मुद्दा है कि जितना लिखो उतना कम है। तो हम अपने असली मुद्दे पर आते हैं बनाना रिपब्लिक एवं मैंगो पीपल।

बनाना रिपब्लिक याने कि चूसा हुआ लोकतंत्र, और मैंगो पीपल याने कि उसी चूसे हुए लोकतंत्र की आम जनता । अब बनाना रिपब्लिक बनाने में दामाद जी से ही पूछा जाये कि उनके परिवार के दल की ही अहम भूमिका है, जो कि बेचारे मैंगो पीपल भी चिल्ला रहे हैं। ऐसा लगता है कि पब्लिक को पता ही नहीं है कि मैंगो पीपल क्या होता है और बनाना रिपब्लिक क्या होता है।

जब जेद्दाह में होते हैं तो वहाँ जियो टीवी का प्रसारण होता है और वहाँ BNN Network का Banana News आता है जो कि लगभग ३० मिनिट का होता है और पाकिस्तानी नेताओं पर तीखा कटाक्ष होता है। आप भी इस कार्यक्रम के प्रोमो को देखिये जिसमें बताया गया है कि नेता तो मैंगो पीपल को चूसकर बनाना रिपब्लिक बना चुके हैं, और मीडिया उनके पास आता है तो पहले कोई बहाना बनाकर टालने की कोशिश करते हैं और फ़िर बाद में बकायदा दायें बायें देखकर दौड़ लगा देते हैं, नेता भी क्या फ़िट बताया है कि मीडिया थक जाता है परंतु नेता को थकान नहीं होती।

बनाना रिपब्लिक और मैंगो पीपल

ओलम्पिक खेलों में भारत का स्थान एवं प्रदर्शन 2012(Performance of India in Olympics Games 2012)

    भारत ओलम्पिक खेलों की पदक तालिका में 55 वें स्थान पर रहा। 2012 के ओलम्पिक में हमें प्राप्त 6 पदक – दो रजत और चार कांस्य – अब तक के हमारे इतिहास में सर्वाधिक हैं। यदि कोई चाहे तो इस तथ्य से भी राहत महसूस कर सकता है कि 2008 में बीजिंग ओलम्पिक में प्राप्त पदकों से यह दुगुने हैं। इस उपलब्धि पर मैं भी अन्य भारतीयों की तरह प्रसन्नता महसूस कर रहा हूँ।
   अत: लंदन में इन सभी 6 पदकों – विजय कुमार को शूटिंग में रजत, फ्री स्टाइल कुश्ती में रजत जीतने वाले सुशील कुमार, शूटिंग में गगन नारंग द्वारा कांस्य, महिला बॉक्सिंग में कांस्य जीतने वाली एम सी मेरीकॉम (मणिपुरी मां जो राष्ट्र की प्रशंसा का पात्र इसलिए बनी कि उसने दिखा दिया कि वह स्वर्ण पदक जीतने की क्षमता रखती है), योगेश्वर दत्त द्वारा कुश्ती में कास्य, और महिला बैडमिंटन सिंग्लस में 22 वर्षीया हैदराबाद की साइना नेहवाल जिसने अपनी प्रतिभा, साहस और दृढ़ इरादे से करोड़ों भारतीयों का दिल जीता, द्वारा कांस्य पदक – जीतने वालों को मेरी हार्दिक बधाई। साइना ने प्रदर्शित किया कि वह बैडमिंटन में चीन के एकाधिकार को चुनौती देने की निश्चित रूप से क्षमता रखती है।
लंदन में दिए गए कुल 962 पदकों में से भारत केवल 0.06 प्रतिशत ही जीत पाया। वस्तुत: अब तक के हुए ओलम्पिक खेलों में भारत मात्र 26 पदक ही जीत पाया है।