आज बैंक गया पैसे निकालने के लिये लगभग 2 बजे, जब बैंक पहुँचा तो उम्मीद के मुताबिक भीड़ नहीं थी, सोचा कि या तो समस्या खत्म हो गई है या फिर बैंक के पास पैसा खत्म हो गया है। खैर गार्ड से पूछा – भई, पैसा निकल रहा है न। उसने हमको ऐसे देखा कि जैसे हमने कोई एलियन सा सवाल पूछ लिया हो, हमें लगा कि उसे हमारा प्रश्न समझ नहीं आया, हमने इस बार अंग्रेजी में पूछा, कि शायद हिन्दी न आती हो। तो हमें कहा कि सारे टोकन बँट चुके हैं, अब पैसा कल मिलेगा। Continue reading पैसे सरकार नहीं बैंक दे रही है
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जबरदस्त किताब का नाम है “दिल्ली दरबार”
बहुत दिनों बाद कोई जबरदस्त किताब पढ़ने के मिली और उस जबरदस्त किताब का नाम है “दिल्ली दरबार” (Dilli Darbaar) लेखक हैं सत्य व्यास। जब कोई किताब अमूमन हम पढ़ते हैं तो हमारी घरवाली और बेटेलाल हमारे पास आकर बैठ जाते हैं और हमें उनको सुनानी पड़ती है। हमें पता नहीं कि ऐसा क्यों करते हैं ये लोग, लगता है कि पढ़ने में आलस करते हैं, जब हम कहते हैं कि तुम लोग पढ़ने लिखने के आसली, तो हमें कहते हैं मक्खन लगाते हुए कि नहीं वो आप पढ़ते अच्छा हो। खैर हम पहले दिन 60-61 पन्ने पढ़ के सुना दिये। Continue reading जबरदस्त किताब का नाम है “दिल्ली दरबार”
#BergerXP IndiBlogger Meet बर्जर पैंट्स की नयी इन्नोवेटिव तकनीक
बर्जर पैंट #BergerXP मैंने इसका नाम बरसों पहले सुना था, शायद 25 वर्ष पहले, और तब से ही हमारे घर में हम बर्जर पैंट का ही इस्तेमाल करते हैं। करीबन 15 वर्ष पहले घर की मरम्मत करवाई गई थी, उसके बाद हमने अपने पैंटर को कहा कि अब इतना अच्छा काम करवाया है, अब अच्छा सा पैंट कर दो कि घर अच्छा लगे। उन्होंने ही हमें सुझाया कि बर्जर पैंट्स का सिल्क पैंट का उपयोग करो, अभी अभी ही बाजार में आया है और बहुत ही अच्छा है। एक बार कर लो और फिर जब भी दीवाल गंदी लगे, धो लो। तबसे हमारे यहाँ घर में हमेशा ही जब भी पैंट होता है, हम बर्जर पैंट्स के सिल्क पैंट का ही उपयोग करते हैं।
इस बार की बर्जर पैंट्स इंडीब्लॉगर मीट #BergerXP IndiBlogger Meet में शामिल होने का मौका मिला। ब्लॉगर मीट का आयोजन ललित अशोक होटल में किया गया, और जब मीट में पहुँचे तो कई ब्लॉगर पहले से ही पहुँच चुके थे। कई ब्लॉगर्स से पहली बार ही मिलना हुआ और कई ब्लॉगर्स से पहले भी मिलना हो चुका था। कल फरीदा रिजवान से सबसे पहले मिला वे 21 वर्ष से स्तन कैंसर के स्टैज 3 कैंसर की सर्वाइवर हैं और उनका फोटो मैंने रेसीडेंसी रोड पर एक सिग्नल पर लगा हुआ देखा था, तो उन्हें बधाई भी दी।
इसके बाद बर्जर पैंट्स इंडीब्लॉगर मीट की वॉल पर फोटो भी खींचे गये और 251 लाईक वाली एक इन्सटॉग्राम की फ्रेम भी बहुत घूम रही थी। बर्जर पैंट्स इंडीब्लॉगर मीट की शुरूआत लजीज खाने से हुई, और फिर सैशन शुरू होने के पहले ही हॉल में एक गुब्बारा और एक धागा दे दिया गया। बैठने के बाद सबसे पहले कहा गया कि अब खड़े हो जाओ और फिर शुरू हुआ एक वार्मअप सैशन जिससे कि ब्लॉगर्स सो न जायें और फिर गुब्बारे को फुलाकर धागे से बाँधने को कहा गया। असली खेल तो अब बताया कि सब लोग अपने गुब्बारे के धागे को अपने पैरों में बाँध लें और फिर एक दूसरे के गुब्बारे को फोड़ें, अगर आपका गुब्बारा फूट गया है तो आप नहीं फोड़ सकते और जिसने अपना गुब्बारा सबसे आखिरी तक बचा लिया, वह विजेता। खैर हम गुब्बारे को ज्यादा देर तक नहीं बचा पाये।
बर्जर पैंट्स इंडीब्लॉगर मीट में सबसे अच्छी बात यह लगी कि बिना स्लाईड के ही कंपनी की एवं पैंटिंग इंडस्ट्री की सारी जानकारी बहुत ही आसान शब्दों में दे दी गई। बताया गया कि पैंट करने के पहले क्या क्या करना होता है और इसके लिये बर्जर पैंट्स ने बहुत सी मशीनों को हमारी सुविधा के लिये बाजार में उतारा है। हमें तो सबसे अच्छी मशीन लगी घिसाई करने वाली, इससे घिसाई के बाद जो कण उड़ते हैं और पूरे सामान को गंदा करते हैं और साथ ही हमारे शरीर के अंदर भी चले जाते हैं तथा इससे कई बार हमें खाँसी की समस्या भी हो जाती है, तो इस मशीन में एक पाईप लगा है, जिससे घिसाई की 80-90 प्रतिशत धूल मशीन में ही चली जाती है और प्रदूषण भी नहीं फैलता है।
बर्जर पैंट्स की लगभग सारी ही मशीनों के बारे में हमने समझा और जाना, साथ ही हमें समझ आया कि तेजी से बर्जर पैंट्स का व्यापार इन नयी इन्नोवेटिव तकनीक का उपयोग करने से और भी बड़ेगा। पिछले साल लगभग 1.5 लाख इन्क्वायरी आई थीं, जिसमें से लगभग 90 हजार घरों की विजिट की गई और 15 हजार घरों ने बर्जर पैंट्स की इस सुविधा का लाभ उठाया। इस वर्ष यह आँकड़ा 20 प्रतिशत से अधिक हो चुका है, जो कि पिछले वर्ष 10 प्रतिशत था। बर्जर पैंट्स कंपनी फोर्ब्स इंडिया की सूचि में सातवें स्थान पर है जो कि अपने आप ही एक सकारात्मक बात है। पैंटिंग के बारे में ज्यादा जानकारी जानना चाहते हैं तो बर्जर पैंट्स की वेबसाईट पर जाकर जानकारी ले सकते हैं।
इस #BergerXP IndiBlogger Meet में मुझे #BergerXP ने मुझे Social Media Kingpin of the Day! भी चुना।
छोटी और बड़ी सोच के अंतर
जो लोग छोटे पदों पर होते हैं उन्हें ज्यादा क्यों नहीं दिखाई देता और जो लोग बड़े पदों पर होते हैं वे ज्यादा लंबी दूरी का क्यों देख पाते हैं। वो कहते हैं न कि सोच ही इंसान के जीवन का नजरिया बदल देती है। पर यहाँ समस्या सोच की नहीं है समस्या है पहुँच की, आप जितनी ऊँचाई पर होंगे उतना ज्यादा देख पाओगे, और धरातल पर केवल धरातल की चीजें ही दिखाई देंगी। पता नहीं कब सोचते सोचते यह विचार मेरे जहन में कौंध आया और मन ही मन इस बात पर शोध चलता रहा। समझ जब आया जब रोज की तरह ऑफिस जा रहा था। उस समझ में एक और समझ आ गई कि क्यों और किस तरह लोगों से बचकर चलना चाहिये, कैसे लोग आपको जगह देते हैं और कैसे आपकी जगह लेकर आपसे आगे बढ़ जाते हैं और हम केवल देखते ही रह जाते हैं।
हमारा जीवन और जीवन में होने वाली घटनाएँ बिल्कुल सामान्य यातायात की तरह हैं, जहाँ सड़क पर दूर दूर तक अवरोध हैं और हमें उन अवरोधों को एक एक करके पार करना है।
अगर हम पैदल होंगे तो हमें दिखाई देने वाले अवरोध और रास्ते पूर्णत धरातल पर होंगे, पर पैदल चलने वाले के लिये फुटपाथ बना है, और पैदल चलने वाला सड़क पर भी चल सकता है। जब पैदल चलने वाला फुटपाथ पर चलता है तो उसका अनुभव धरातल से जुड़ा होता है, वह आसपास की हर घटना या चीजों को बहुत ही करीब से देख रहा होता है या महसूस कर रहा होता है और यही जमीनी अनुभव कहलाता है, यही हम अगर व्यावसायिक भाषा में कहें तो जो लोग बुनियादी कार्य कर रहे हैं उन्हें पर तरह का अनुभव होता है।
अगर हम साईकिल या मोटर साईकिल पर होंगे तो हम फुटपाथ पर नहीं चल सकते हमें सड़क पर ही चलना होगा, अनावृत होने से कार, जीप, बस और ट्रक का भी सामना करना होगा। यहाँ भी बाईक सवार को उतना ही दिखाई देगा जितना कि वह बाईक से देख सकता है, अब ये निर्भर करता है कि किस रफ्तार की मशीन उसकी बाईक में लगी है, वह कितनी तेजी से दूरी तय कर सकती है, उसे कितने अच्छे से अपना वाहन चलाना आता है और कैसे अपने से बड़े वाहनों के बीच जगह बनाते हुए अपने गंतव्य तक पहुँचता है। बाईक वाले पैदल चलने का दर्द समझ सकते हैं क्योंकि वे भी कभी कभी पैदल चलते हैं या फिर वे अभी अभी बाईक सवार बने हों या फिर भूल भी सकते हैं अगर वे लंबे समय से बाईक सवार हैं।
कार जीप वाले लोग अपने आसपास के वाहनों का ध्यान जरूरी रखेंगे नहीं तो उनके साथ साथ ही दूसरे का भी ज्यादा नुक्सान हो सकता है, उन्हें दूसरे से ज्यादा अपने वाहन की ज्यादा चिंता होती है। जैसे कि लोग खुद के सम्मान की ज्यादा चिंता करते हैं, और दूसरे से थोड़ी दूरी हमेशा बनाये रखते हैं, क्योंकि टकराव हमेशा ही बुरा होता है, टकराव से हमेशा ही बुरा प्रभाव पड़ता है। कार सवार को जमीनी अनुभव से गुजरे हुए समय हो गया होता है और बाईक का अनुभव उसके लिये हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता है।
तो कहने का मतलब इतना ही है कि जब तक जमीनी तौर पर जुड़कर काम करते हैं तो आप उन सब चीजों को बहुत अच्छे से समझ सकते हैं और हमेशा ही अपने से बड़े वाहनों या पदों पर बैठे हुए व्यक्ति से या तो डरेंगे या उनकी स्थिति को समझने की कोशिश करेंगे, परंतु जैसे ही जमीनी स्तर से ऊपर उठते हैं वैसे ही इंसान बदल जाता है और वैसे ही उसके देखने की दिशा बदल जाती है।
उम्मीद है बात जो कहना चाह रहा था, पहुँच गई होगी, नहीं तो हम टिप्पणियों में भी बात आगे बढ़ा सकते हैं।
दौड़ना क्यों (अपने लिये) ?
दौड़ना क्यों (अपने लिये) ?
बहुत अहम सवाल है, आखिर दौड़ना क्यों, सवाल का ऊपर ही जबाब दिया है जी हाँ अपने लिये, और किसी के लिये नहीं केवल अपने लिये। कल रात को हाथ की कलाई और पैर के घुटनों में थोड़ा दर्द था, ये हड्डी वाला दर्द भी हो सकता है, परंतु हमने रात को हाथ पैरों की तेल से मालिश की और सुबह सब ठीक हो गया। रात को ही मन था कि सुबह दौड़ना है भले 4,5,6,7,8,9 या 10 किमी, पर दौड़ना है, लक्ष्य कम से कम 4 किमी का और अधिकतम 10 किमी दौड़ने का निर्धारित किया था ।
सुबह उठा तो दौड़ने की बिल्कुल इच्छा नहीं थी परंतु फेसबुक पर एक रनर के द्वारा शेयर किया गया फोटो ध्यान आ गया और उसको ध्यान में रखकर दौड़ने के लिये तैयार हो गया। उस फोटो में संदेश था कि क्यों घर में बैठकर बोर हो रहे हो, चलो थोड़ा प्रकृति में और दौड़कर आयें, जिससे शरीर भी ठीक रहे। दौड़ने के लिये बहुत सारे फेक्टर कार्य करते हैं, अगर आप सोशल मीडिया का उपयोग करते हैं तो ट्विटर, फेसबुक, स्त्रावा पर रनर्स को अपना दोस्त बनायें, वे सभी अपने अनुभव साझा करते रहते हैं, जिससे आपको दौड़ने के बारे में बहुत कुछ पता चलता रहेगा और दौड़ने के लिये हमेशा ही तैयार रहेंगे।
अकेले दौड़ना वाकई बहुत मुश्किल कार्य होता है, इसके लिये या तो आप अपने साथ किसी और को भी दौड़ायें, परंतु थोड़े दिनों बाद ही ये युक्ति भी काम नहीं आयेगी, क्योंकि दोनों के दौड़ने की रफ्तार कम ज्यादा होगी तो साथ रहेगा जरूर, परंतु दौड़ नहीं पायेंगे। अपने स्मार्ट फोन का उपयोग करें और साथ में कुछ सुनते जायें, गाने सुनने का शौक है तो गाने सुनते जायें, पॉडकॉस्ट भी डाउनलोड करके सुन सकते हैं। मेरी आदत दौड़ते हुए पॉडकॉस्ट सुनने की है, मुझे लगता ही नहीं कि मैं दौड़ भी रहा हूँ, ऐसा लगता है कि कोई मुझसे बात कर रहा है, या मैं किसी और ही चीज में व्यस्त हूँ, और दौड़ना केवल एक प्रक्रियाभर है। गाने सुनते हुए दौड़ना मेरे लिये बहुत मुश्किल होता है, क्योंकि गाने बदलते रहते हैं और उनके स्वर दौड़ने की प्रक्रिया को बाधित करते हैं। पॉडकॉस्ट अपनी पसंद के डाउनलोड कर सकते हैं, मुझे फाईनेंस, लाईफ स्टाईल, फैक्ट्स, पर्सनलिटी इम्प्रूवमेंट इत्यादि के चैनल बहुत पसंद हैं। मेरा सबसे पसंदीदा चैनल है टैड रेडियो ऑवर।
अपने लिये दौड़ने से आप दिनभर खुश रहते हैं, आपको अपना वजन कम लगने लगता है। भूख खुलकर लगती है, अपने खुद के ऊपर गर्व होने लगता है कि जो अधिकतर जनता नहीं कर सकती वो आप कर सकते हैं। जब किसी कठिन चढ़ाई या घूमने के लिये जाते हैं तो आपका यह स्टेमिना आपके बहुत काम आता है। इस बार मैं घूमने गया तो 4-5 घंटों तक चलने और खड़े होने पर मुझे किसी भी प्रकार से थकान का अनुभव ही नहीं हुआ। रोज कम से कम 35 मिनिट तेज वॉक या दौड़ना चाहिये। चलने की जगह दौड़िये, दौड़ना बहुत आसान है, मेरी पिछली पोस्ट दौड़ना कैसे शुरू करें को पढ़कर समझ सकते हैं कि कैसे दौड़ा जाये। 35 मिनिट इसलिये कि रोज हमें हमारे दिल को जो कि धड़कता है उसकी रफ्तार 140 पल्स तक ले जानी चाहिये, हमारे दिल याने ह्रदय की धड़कने की सामान्य गति 60-100 पल्स प्रति मिनिट होती है। दौड़कर हम कॉर्डियो व्यायाम करते हैं, जिससे दिल अपने भरपूर रफ्तार से धड़कने को परख लेता है, और यह व्यायाम हमें रोज ही करना चाहिये।
दौड़ना शुरू करें, दौड़ना आपके जीवन में खुशियाँ भर देगा।
मरने के पहले और मरने के बाद क्या करना चाहते हो ?
मरने के पहले और मरने के बाद क्या करना चाहते हो ?
मरने के पहले –
है न अजीब सवाल, एक ऐसा सवाल जिसका उत्तर शायद किसी के पास भी तैयार नहीं, मृत्यु हमारे जीवन में कोई बीमारी नहीं है, यह भी जीवन की एक विशेषता है। अंग्रेजी में इसे ऐसे कहना ठीक होगा Death is not a Bug its feature of Life. Continue reading मरने के पहले और मरने के बाद क्या करना चाहते हो ?
दौड़ना कैसे शुरू करें। (How to Start Running)
दौड़ना कैसे शुरू करें। (How to Start Running)
दौड़ना तो हर कोई चाहता है परन्तु सभी लोग लाज शर्म के कारण और कोई क्या कहेगा, इन सब बातों की परवाह करने के कारण दौड़ नहीं पाते हैं। दौड़ना चाहते भी हैं तो कुछ न कुछ बात उनको रोक ही देती है, और दौड़ने के पहले हम तेज चलने लगते हैं, कि ऐसे ही स्टेमिना बनेगा और दौड़ पायेंगे। कई बार हम दौड़ इसलिये नहीं पाते क्योंकि हमें झिझक होती है कि हमारे पास दौड़ने वाले जूते नहीं हैं, टीशर्ट और लोअर नहीं है, दौड़ने का समय नहीं है इत्यादि इत्यादि। यकीन मानिये ये सब बहाने हैं, और अगर आप दौड़ना चाहते हैं तो एक उत्साहवर्धन करने वाले व्यक्ति की और आपके अपने आत्मविश्वास, लगन और मेहनत की कमी है।
मैं लगभग पिछले 10 वर्षों से दौड़ने की कोशिश में लगा हुआ था, परन्तु बहुत सारी चीजों के कारण संभव नहीं हो पाता था, जैसे कि मैं थक जाता हूँ, मैं दौड़ नहीं सकता, मेरी साँस फूल जाती है, मेरे पैर दर्द करने लगते हैं, मेरे पैर सही नहीं पड़ते हैं।
दौड़ना बहुत आसान है, दौड़ने का मतलब यह नहीं है कि लगातार दौड़ना है, थक जायें तो थोड़ा पैदल चल लें या अपने दौड़ने की गति सुविधानुसार धीमी कर लें। लगभग सभी यही समझते हैं कि दौड़ना मतलब कि केवल दौड़ते ही रहना, तो यह गलत भ्रांति है। जो लोग 10,21 या 42 किमी भी दौड़ते हैं वे भी जब तक पूरी तरह से प्रेक्टिस न हो लगातार नहीं दौड़ सकते हैं।
दौड़ना कैसे शुरू करें –
सबसे पहले दौड़ने का मन बनायें और अपने आप को दौड़ने के लिये मानसिक तौर पर तैयार करें। सुबह का समय सबसे बेहतर है दौड़ने के लिये, इसलिये कोशिश करिये कि सुबह जल्दी उठिये और पाँच या साढ़े पाँच बजे तक घर से दौड़ने के लिये निकल जाये। सुबह पंछियों के कलरव को ध्यान से सुनें, जीवन का संगीत सुनाई देगा, सुबह की हवा आपको ताजगी का अहसास करवायेगी।
सौ कदम गिनकर चलें और फिर पचास कदम गिनकर ही दौड़ें, पचास कदम दौड़ने के बाद सौ कदम चलें, ऐसे करके सात दिनों तक यही दोहरायें। सात दिनों में आप पायेंगे कि आप पचास कदम आराम से दौड़ने लगे हैं। एक सप्ताह बाद से याने कि आठ से पंद्रह दिन तक सौ कदम पैदल चलें और सौ कदम दौड़ें याने कि केवल 50 कदम दौड़ने में बढ़ायें। और इसी तरह दौड़ने के कदम हर सप्ताह बढ़ाते जायें, बीच में जब भी आपको लगे कि आपको थकान लग रही हैं, आराम चाहिये, दौड़ते नहीं बन रहा है तो पैदल चलने लग जाइये।
सबसे पहले अपने दिमाग से यह निकाल दें कि दौड़ना मतलब कि दौड़ते ही रहना, जब भी आपको लगे कि आपका शरीर अब दौड़ नहीं पा रहा है तो आप पैदल चलना शुरू कर दें। यह भी ध्यान रखें कि दौड़ने में थकान मतलब कि मानसिक थकान होती है, शारीरिक थकान भी होती है, पर मानसिक थकान आपको थका देती है और कहती है कि बस बहुत हुआ, अब नहीं दौड़ो, जबकि शारीरिक थकान में आपको मानस को मजा आता है, आपका शरीर कहेगा कि बस अब मत दौड़ो पर आपको दौड़ के बाद की थकान से आपको मानस को मजा आयेगा।
जब आप दौड़ना शुरू करेंगे तो यह भी सोचेंगे कि बहुत ही कम लोग दौड़ते हैं, पर यह ध्यान रखें कि जो भी कार्य आप करते हैं या करने की शुरूआत करते हैं, उससे संबंधित गतिविधियाँ दिखाई देने लगती हैं, या लोग दिखने लगते हैं। पहले जब मैंने दौड़ना शुरू किया था, तब केवल मैं अकेला ही दौड़ता हुआ दिखाई देता था, पर मैंने देखा धीरे धीरे बहुत से लोग दौड़ रहे हैं। यह हो सकता है कि पहले मुझे ये लोग दिखाई नहीं देते थे, परंतु अब दिखाई देते हैं। पर अब यह देखकर खुशी होती है कि जो लोग पैदल चलते थे, वे हमें देखकर दौड़ने लगे हैं, यह संख्या एकदम से नहीं बढ़ी, धीरे धीरे बढ़ी, अब कम से कम रोज ही 10 लोगों को दौड़ते हुए देखना सुखद लगता है जो कि पहले पैदल चलते थे।
दौड़ने के पहले क्या करें-
दौड़ने के पहले कुछ हल्का फुल्का व्यायाम कर लें, जिससे शरीर गर्म हो जाये। सुबह उठने के बाद एक या दो केला खा लें, पानी पी लें। बहुत ज्यादा पानी भी न पियें। दौड़ने जाने के पहले ही निवृत्त हो लें। थोड़ा सा एनर्जी ड्रिंक पी लें।
दौड़ते समय क्या करें –
दौड़ते हुए बहुत पसीना निकलता है जिससे शरीर में पानी की कमी हो जाती है, इसलिये दौड़ते समय पानी घूँट घूँट पीते रहें, जिससे शरीर में पानी की कमी न हो। अगर पाँच किमी से ज्यादा दौड़ रहे हैं तो एनर्जी ड्रिंक जरूर पी लें, पारले जी बिस्किट भी खा सकते हैं।
दौड़ने के बाद क्या करें –
दौड़ने के बाद एकदम से रूके नहीं, बैठे नहीं, थोड़ी दूर पैदल चलते रहें या फिर धीमी गति से दौड़कर शरीर को ठंडा होने दें। कूल डाऊन व्यायाम करें, जिससे आपके शरीर की माँसपेशियों को मजबूती मिलेगी और यह आपके शरीर के लिये बहुत अच्छा भी होगा क्योंकि दौड़ने के बाद आपका शरीर गरम होता है और शरीर का हर अंग अपने अधिकतम उपयोग की स्थिती में होता है। खूब पानी पियें और 10-15 मिनिट में ही नाश्ता कर लें। केला जरूर खा लें, इससे आपकी सोडियम की कमी पूरी हो जायेगी, जो कि दौड़ में पसीने के साथ आपके शरीर से निकल गया होता है। 35-40 मिनिट में ही नहा लें।
थकान कैसे दूर करें –
जब लंबी दूरी की दौड़ पूरी करते हैं तो अच्छी खासी थकान हो जाती है, उसके लिये शरीर को आराम की भी जरूरत होती है। आप पैरों की तेल से मालिश कर लें, पैरों को ठंडे पानी में डुबोकर रखें। पैरों को किसी से दबवा लें। जिस दिन सुबह दौड़कर आयें उस दिन दोपहर को 2-3 घंटों की नींद जरूर लें। जिससे पैरों के टूटे हुए टिश्यू को जुड़ने में मदद मिलेगी।
दौड़ने के लिये हमें कठिन व्यायाम भी करने चाहिये, जिससे हमारे हाथ, पैरों, कंधे और जाँघ की माँसपेशियाँ मजबूत हों और वे हमारे दौड़ने में सहायक हों। जब माँसपेशियाँ मजबूत होंगी तो आप तेजी से दौड़ पायेंगे या धीमे धीमे ज्यादा दूरी तक दौड़ पायेंगे।
अभी दौड़ने पर बहुत चर्चा बाकी है, तो आगे इसी विषय पर लिखने की कोशिश जारी रहेगी। अनुभवी लोग अपने सुझाव दें जिससे हम नये दौड़ने वालों के लिये कोई परेशानी न हो।
पेट पर मोटापे का टायर
रिलायंस जिओ का टेलीकॉम युद्ध
आज सुबह रिलायंस जिओ के प्लॉन समाचार पत्र में पढ़े तो देखकर ही दिमाग चकरघिन्नी हो गया। अब लगा कि रिलायंस जिओ, आईडिया एयरटेल की दुकानों पर भारी पड़ने वाला है, और रिलायंस जिओ का टेलीकॉम युद्ध शुरू हो गया है जो बाकी के सभी ऑपरेटर्स को बहुत भारी पड़ने वाला है, क्योंकि जिओ का सारा इन्फ्रास्ट्रक्चर नया है और उनकी कॉस्ट कम है, और बाकी के लोग हाथी हो चुके हैं। यहाँ तक कि इनके प्लॉन से अब ब्रॉडबैंड कंपनियों तक की बैंड बजने की उम्मीद है।
परसों ही ऑफिस के केन्टीन में लाईन से बैठे मोबाईल ऑपरेटर्स के डेस्कों पर गया और पूछने लगा कि अभी जो प्लॉन है, उससे मेरा काम नहीं चल रहा है। ज्यादा वाला प्लॉन बता दो, जिसमें लोकल और एस.टी.डी. दोनों ज्यादा हों, डाटा जितना है उतना ही चलेगा।
पहली डेस्क वोदाफोन जो अभी मेरा नेटवर्क ऑपरेटर है –
उनके प्लॉन देखे, तो कोई प्लॉन जमा ही नहीं, कहीं न कहीं कोई न कोई ट्रिक, ज्यादा कॉल्स तो डाटा प्लॉन में कमी, और डाटा ज्यादा तो कॉल में कमी। हमने कहा यार तुम लोग तो लूटने में ही लगे हो, और कितना निचोड़ोगे जनता को, Continue reading रिलायंस जिओ का टेलीकॉम युद्ध
बच्चों के शरीर के विकास के लिये न्यूट्रिशियन्स
लगभग सभी माता पिता चाहते हैं कि उनके बच्चे हरेक चीज में आगे हैं फिर चाहे वह पढ़ाई लिखाई हो या खेल हो। यह बात मुझे अच्छी तरह से तब समझ में आई जब मैं पिता बना। बच्चों को अपनी उम्र के मुताबिक, बच्चों के शरीर के विकास के लिये न्यूट्रिशियन्स सही मात्रा में मिलें, हमें इसका ध्यान रखना जरूरी है। बच्चों का शारीरिक विकास ठीक तरीके से हो रहा है उसके लिये कुछ चीजें बहुत महत्वपूर्ण हैं, जैसे कि शारीरिक विकास के पड़ाव, इन्फेक्शन से लड़ने के लिये इम्यूनिटी (शारीरिक प्रतिरोधक क्षमता) और उम्र के हिसाब से होने वाली सक्रियता। तो बच्चों को चाहिये एक सम्पूर्ण स्वस्थ आहार जो कि शारीरिक क्रियाकलापों की सक्रियता में मदद करे।
एक सम्पूर्ण स्वस्थ आहार जिससे बच्चे को सही मात्रा में कार्बोहाईड्रेट, प्रोटीन्स, फैट्स और विटामिन मिलते हैं। वैसे भी छोटे बच्चों के लिये घर में बना भोजन ही न्यूट्रीशियन्स का मुख्य स्रोत होता है। परंतु आजकल लगभग सभी माता पिता की यही शिकायत होती है कि बच्चा कुछ चुनी हुई चीजें ही खाता है, हमारी आधुनिक जीवन के जीने के तरीका भी बच्चों को चुनी हुई चीजों को खाना सिखलाता है जैसे कि आजकल की भागती दौड़ती जिंदगी में हम जंक फूट, रेडी टू ईट फूड खाते हैं, खाने की क्वालिटी के साथ समझौता करते हैं, मिलावटी खाना खाते हैं, वह सभी चीजें खाते हैं जो नहीं खाना चाहिये और इसी कारण बच्चों को सही मात्रा में न्यूट्रीशियन्स नहीं मिल पा रहे हैं।
बच्चों को सारी चीजें खाने की आदत डालनी चाहिये खासकर घर में बनी चीजों की चाहे जैसे कि रोटी दाल, दाल चावल, दाल खिचड़ी, हरी सब्जियाँ, बिरयानी, दाल बाटी, लिट्टी चोखा। साथ ही बच्चों को ज्यादा कैलोरी वाली चीजें भी खिलानी चाहिये जैसे कि पनीर, मिठाईयाँ, काजू करी, हरेक चीज में घी दीजिये, अंडा पीली बॉल के साथ खाना है। क्योंकि बच्चे ज्यादा खेलते हैं तो उनको ज्यादा कैलोरी की जरूरत भी होती है। आप देख सकते हैं अपने बच्चों को कि वो एक जगह तो बैठेंगे ही नहीं और हमेशा इधर से उधर घूमते ही रहेंगे।
अगर बच्चा खाने में मीनमेख निकालता है तो इसका मतलब भी यही है कि वह कुछ चीजें या तो खाना ही नहीं चाहता है या फिर उनको उस समय खाने से बचना चाहता है। इसके लिये बच्चों को अपने साथ बातों में लगाकर उनको खाना खिलायें, हो सके तो कभी कभार अपने हाथों से खिलायें, प्यार से बात करके खिलायें। हर बार डाँटने या मारने से काम नहीं चलेगा।
एक बात और ध्यान रखें कि केवल खाने से ही सब कुछ बच्चों को नहीं मिल जायेगा, उसके लिये उन्हें कुछ अतिरिक्त चीजें सीमित मात्रा में भी साथ में देनी होंगी, सप्लीमेंट जैसे कि हॉर्लिक्स ग्रोथ + जो कि बच्चों को शारीरिक विकास में न्यूट्रीशियन्स की कमी को पूरा कर भरपूर सहयोग करता है।
पर ध्यान रखें सप्लीमेंट केवल भोजन में न मिलने वाले न्यूट्रीशियन्स की कमियों को पूरा करता है। सप्लीमेंट को भोजन के रूप में नहीं खाया जा सकता है। हमें यह भी नहीं भूलना नहीं चाहिये कि सबसे ज्यादा न्यूट्रीशियन्स घर के खाने में ही मिलते हैं, बाजार के खाने में नहीं मिलते हैं। सप्लीमेंट को हमेंशा डॉक्टर की सलाह से ही लेना ठीक रहता है।