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म्यूचयल फ़ंड में घाटा हुआ है.. क्यों.. कैसे निवेश करें..
आज की जटिल वित्तीय दुनिया में, निवेश के लिये निर्णय लेना भी बहुत बड़ी चुनौती बन चुकी है। दुर्भाग्यवश से एक अच्छा निवेश का विकल्प म्युचयल फ़ंड भी व्यक्तिगत निवेश के जगत में स्थाई जगह नहीं बना पाया है। वस्तुत: म्यूचयल फ़ंड स्कीमों में निवेश के विभिन्न विकल्प विभिन्न आवश्यकताओं के अनुसार उपलब्ध होते हैं । इसलिये यह सही समय है निवेशक के लिये, म्यूचयल फ़ंड के बारे में सोच बदलने का और म्यूचयल फ़ंड को अपने निवेश का अविभाज्य अंग बनाना चाहिये।
अधिकतर जिससे भी बात करो वह यही कहता है कि हमने पहले म्यूचयल फ़ंड में निवेश किया था और उसमें हमें घाटा हुआ, फ़िर से म्यूचयल फ़ंड में निवेश करना चाहिये ?
अगर वाकई आप भी उन निवेशकों में से एक हैं जिन्होंने पूर्व में म्यूचयल फ़ंड में घाटा खाया है और अब म्यूचयल फ़ंड से दूर रहते हैं, तो आपको वापिस से सोचने की जरूरत है। नि:सन्देह बहुत सारे निवेशक पिछले कुछ वर्षों में बाजार से उम्मीद के मुताबिक नतीजे नहीं मिले हैं, म्यूचयल फ़ंड के खराब प्रदर्शन से, मिस सैलिंग से, एवं निवेश को बढ़ने के लिये उचित समय नहीं दिये जाने से बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं । फ़िर भी वास्तविकता में म्यूचयल फ़ंड के जरिये निवेश करना एक बेहतरीन तरीका है, और खासकर उन निवेशकों के लिये जो सीधे शेयर बाजार / डेब्ट बाजार को नहीं समझते हैं । मुद्दे की बात यह है कि सही म्यूचयल फ़ंडों का चयन किया जाये और अनुशासित तरीके से निवेश किया जाये।
इसके अतिरिक्त भी सभी निवेशित परिसंपत्तियों से अच्छा रिटर्न पाने के लिये विविध तरीके अपनाये जाने चाहिये। उदाहरणार्थ – इक्विटी में निवेश लंबे समय के लिये होता है, और इसके लिये बाजार के अशांत समय में धीरज रखने की आवश्यकता होती है । इक्विटी बाजार को टाईम करना व्यर्थ है। अधिकतर निवेशक जिन्होंने प्रयास भी किया उन्होंने पारम्परिक भूल दोहराई है महँगा खरीदा और सस्ता बेचा। ध्यान रखिये निवेश को लंबे समय अवधि रखने का दृष्टिकोण अपनायें इससे आपकी जिंदगी भी आसान होगी।
तो आगे बढ़िये और आज से ही एस.आई.पी. SIP में निवेश करें और अपना भविष्य सुरक्षित करें।
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राजीव गांधी इक्विटी सेविंग स्कीम (RGESS) में निवेश
RGESS राजीव गांधी इक्विटी सेविंग स्कीम में आप टैक्स बचत का फ़ायदा ले सकते हैं अगर आपने अभी तक शेयर बाजार में निवेश नहीं किया है। इस स्कीम में आप म्यूचयल फ़ंड में भी निवेश कर सकते हैं इसमें ओपन एन्डेड और क्लोज एन्डेड दोनों स्कीम पिछले वर्ष आयी थीं ।
RGESS राजीव गांधी इक्विटी सेविंग स्कीम में आप जिस वर्ष में निवेश करते हैं केवल उसी वर्ष के लिये टैक्स का फ़ायदा होगा, हालांकि आपका निवेश आप अगले तीन वर्ष तक नहीं निकाल सकते हैं, और ना ही आपको टैक्स पर अगले तीन वर्ष तक छूट मिलेगी । केवल पहली बार ही टैक्स का फ़ायदा होगा ।
पहले एक वर्ष तक कोई ट्रांजेक्शन नहीं किया जा सकता है, पहले एक वर्ष में ट्रांजेक्शन लॉक इन होता है, परंतु अगले दो वर्षों में आप उसी पोर्टफ़ोलियो में किसी और स्कीम में ट्रांसफ़र कर सकते हैं, ट्रेडिंग कर सकते हैं, परंतु बेच नहीं सकते। तीन वर्ष के लॉक इन के बाद ही आप RGESS राजीव गांधी इक्विटी सेविंग स्कीम में किये गये निवेश को बेच सकते हैं।
RGSS राजीव गांधी इक्विटी सेविंग स्कीम स्कीम नये निवेशक के लिये भारत सरकार द्वारा लायी गई है।
डीमैट के जरिये म्यूचयल फ़ंड में निवेश करने के फ़ायदे..
डीमैट के जरिये म्यूचयल फ़ंड में निवेश करने का सबसे बड़ा फ़ायदा होता है कि आपको किसी भी पेपर पर हस्ताक्षर नहीं करने होते हैं, जब आप ऑफ़लाईन याने कि किसी ब्रोकर या सीधे कंपनी से म्यूचयल फ़ंड लेते हैं तो उसमॆं आपको बहुत सारे पेपर पर हस्ताक्षर करना पड़ते हैं, और नये निवेश के लिये, स्थानांतरण और निवेश निकालने के लिये भी पेपर का ही उपयोग करना पड़ता है।
डीमैट के जरिये निवेश करने से आपको किसी भी पेपर का सहारा नहीं लेना पड़ेगा, निवेश संबंधित सारे लेने देन बिना किसी पेपर के कर सकते हैं । डीमैट में निवेश लेने से ऐसा कोई फ़ायदा नहीं है कि आपको रिटर्न ज्यादा मिल सके, क्योंकि इसका आपके निवेश पर कोई असर नहीं होने वाला है। डीमैट के जरिये निवेश करने से केवल आपको निवेश करने की सुविधा अच्छी हो जाती है, आप आराम से निवेश कर सकते हैं।
बस यहाँ पर आपको डीमैट के शुल्क जो भरने पड़ते हैं वे तो लगेंगे ही उसके अलावा आपको म्यूचयल फ़ंड खरीदने और बेचने का ब्रोकरेज भी देना पड़ेगा जो कि अलग अलग ब्रोकरेज कंपनियों के अलग अलग होते हैं। बस इससे निवेश की सुविधा अच्छी हो जाती है, आप ऑनलाईन खरीद सकते हैं, ब्रोकरेज हाऊस की ब्रांच में डीलर को फ़ोन करके भी खरीद सकते हैं ।
पैसे पेड़ पर उगते हैं पता बता रहे हमारे बेटे लाल…
जब हम घर पर रहते हैं तो बेटेलाल को हम ही सुबह उठाते हैं, और कुछ संवाद भी हो जाते हैं, कुछ दिनों पहले महाराज अपनी एक किताब गुमा आये और अब बोल रहे हैं कि पैसे दे दीजिये हम नई किताब खरीद लायेंगे। अपनी आदत के अनुसार हमने कह दिया “पैसे पेड़ पर नहीं उगते हैं” और अब तो यह हमारे प्रधानमंत्री जी ने भी पुष्ट कर दिया है।
हमने कहा बेटेलाल पहले जाकर अपनी किताब ढूँढ़ो जैसे डायरी गुमी थी और बाद में मिल गई वैसे ही वह भी मिल जायेगी, चिंता मत करो। पर ये महाराज आश्वस्त हैं नहीं मिलेगी। तभी हमने फ़िर से बोला बेटा पैसे पेड़ पर नहीं उगते हैं, तो हम तो इसके लिये पैसे नहीं देने वाले हैं।
हमें तभी बेटेलाल का जबाब मिला “हमें कुछ नहीं पता, हमें तो किताब लेनी है, और पैसे चाहिये!!!”, हमने फ़िर से कहा बेटा पैसे पेड़ पर नहीं उगते हैं, कहते हैं – “पैसे पेड़ पर उगते हैं”, हमने कहा फ़िर पता बताओ हम अभी वहीं से पैसे तोड़ लाते हैं और प्रधानमंत्री जी को भी बता देते हैं, बेटेलाल पूछते हैं कि ये प्रधानमंत्री जी कहाँ रहते हैं, हमने कहा दिल्ली में रहते हैं, बेटेलाल कहते हैं “उईई मैं तो इतनी दूर नहीं जा रहा उनको बताने कि पैसे का पेड़ कहाँ है”, हमने कहा अच्छा हमें तो बता दो।
बेटेलाल कहते हैं “वो पेड़ यहाँ बैंगलोर में थोड़े ही है, वह तो जयपुर में है, जयपुर में कांदिवली गाँव है, हमने कहा ओय्ये कांदिवली तो मुँबई में है, तो बेटेलाल कहते हैं अच्छा जयपुर की जगहों के नाम बताओ, हमने कहा हमें भी पता नहीं तो कहते हैं कि पुर्रपुर्रपुरम में है।
खैर यह संवाद तो इतना ही रहा, पर इतने संवाद में यह बात समझ में आ गई कि बेटेलाल को भी पता है कि पैसे का पेड़ नहीं है और कहीं उगते भी नहीं है, उनके लिये तो डैडी ही पैसे का पेड़ हैं, बस डैडी को हिलाओ और पैसे गिरने लगेंगे । मैं भी बेटे की मासूमियत भरी बातों को कहीं और से जोड़कर देखने लगा और अब सोच रहा हूँ कि काश मैं भी बच्चों जैसा पावन पवित्र मन वाला होता और इन बातों को यहीं खत्म कर कहीं किसी और काम में व्यस्त हो जाता ।
बैंक ने क्रेडिट रेटिंग के कारण गृहऋण देने से मना किया (Bank rejected Home loan due to Credit rating..)
भारत में सिगरेट का धंधा Cigarette in my hand
कंपनी, जनरल इंश्योरेन्स ऑफ़ इंडिया, ओरियेंटल इंश्योरेन्स कंपनी, नेशनल इंश्योरेन्स कंपनी इत्यादि ।
तंबाखू से होने वाले कैंसर से होने वाली मौत के आंकड़े भी चौंकाने वाले हैं, हर वर्ष कैंसर से मरने वाले लोगों की तादाद हमारे पड़ोसी मुल्क के द्वारा आतंकवाद में होने वाली मौतों से कहीं ज्यादा हैं। इसका मतलब ? और दूसरी तरफ़ सरकार का ही स्वास्थ्य विभाग जनजागृति के नाम पर विज्ञापन और इलाज पर करोड़ों रूपया फ़ूँक रही है।
गैरी लॉयर का एक प्रसिद्ध गाना था – Cigarette in my hand यह देखिये –
The very famous antismoking campaign from ‘Bombay hospital’
I remember the time, I had my first hook
Try it just once, friends gently provoked
Friends told me yes, light a ciggy for a start
you would like the fire in a pretty girls laugh
With a cigarette in my hand I felt like a man
cigarette in my hand I felt like a man
My hero look so right
with a cigarette on his lips
Could I go wrong if I follow his tips
On the job I learnt a thing or two
cigarette had a place in every work day too
cigarette started every hour of my day
couldn’t get out of the habit, no way
With a cigarette in my hand I felt like a man
cigarette in my hand I felt like a man.
In moments that were a little a lonesome,
cigarette and I were happy twosome
cigarette slowly became my crunch
energy and stamina are lost very much
until one day I couldn’t on my feet
smoke made me feel real dead meat
then I realized I have paid a price.
With a cigarette in my hand, I was a dead man.
सावधान ! कहीं बैंक खाते से पैसा गायब ना हो जाये (Be Alert ! for your money in Bank..)
एफ़डीआई का हल्ले के बहाने महँगाई और रूपये के अवमूल्यन पर भी चिंतन, हलकान है जनता.. [FDI, Inflation and Depreciation of Rupee… my views]
जहाँ देखो वहीं विदेशी खुदरा दुकानों का हल्ला मचा हुआ है और जनता महँगाई के मारे हलकान हुई जा रही है। महँगाई सर चढ़कर बोल रही है।
किसान को सब्जी का क्या भाव मिलता है और दुकानें किस भाव में बेचती हैं यह एक शोध का विषय है। और अगर शोध किया जाये तो शायद दुनिया चकित रह जायेगी कि किसान को टमाटर का ३ रू. किलो मिलता है और जनता दुकानदार को ४० रू. किलो दे रही है, तो बाकी का बीच का ३७ रू. ये बड़े खुदरा दुकानों के मालिक खा रहे हैं।
जब मुंबई में थे तो वहाँ कोई भी सब्जी कम से कम ४० रू. किलो मिलती थी और अधिकतर तो १६० रू. किलो तक भाव होते थे। पता नहीं कहाँ से महँगाई आई, और यही सब्जी चैन्नई या बैंगलोर में देखें तो अधिकतम ४० रू. किलो सब्जी मिल रही है। टमाटर मुंबई में आज भी ४० रू. किलो हैं और यहाँ बैंगलोर में १६ रू. किलो मिल रहे हैं।
खैर नेता लोग चिल्ला रहे हैं कि विदेशी खुदरा दुकानें आ गईं तो हम आग लगा देंगे, खुलने नहीं देंगे, परंतु क्यों नहीं खुलने देंगे ये नहीं बता रहे हैं, जब रिलायंस रिटेल खुल रहा था तब भी लोगों ने बहुत तोड़ फ़ोड़ की थी, अब हालत यह है कि वही तोड़ फ़ोड़ करने वाले लोग रिलायंस रिटेल से समान खरीद रहे हैं।
थोड़े दिनों बाद विरोधी स्वर विदेशी खुदरा दुकानों के फ़ीता काटते नजर आयेंगे। जनता को समझाइये कि विदेशी खुदरा दुकानों से क्या नुक्सान होगा। आज अखबार में पढ़ा कि जयपुर में कैनोफ़र ने जयपुर के सभी थोक अंडा व्यापारियों से करार कर लिया है, अब सभी खुदरा व्यापारियों को अंडे मिलना बंद हो जायेगा। पहली बात तो यह उन थोक व्यापारियों की गलती है जिन्होंने ये करार किये हैं और वैसे भी भारत है जहाँ हर चीज का जुगाड़ होता है, जब सरकार जुगाड़ से चल सकती है तो ये व्यापार क्या चीज है। खैर आगे क्या होगा यह तो ये करार कार्यांन्वयन होने के बाद ही पता चलेगा। हमारे खुदरा व्यापारी कोई ना कोई तोड़ निकाल ही लेंगे।
ऐसा नहीं है कि मैं विदेशी खुदरा दुकानों का समर्थक हूँ परंतु हाँ यह अर्थव्यवस्था के लिये ठीक होगा और रूपये के अवमूल्यन होने से कुछ हद तक रोकेगा। परंतु रूपये का अवमूल्यन रोकने के लिये क्या इस तरह के हथकंडे अपनाना उचित है ? कतई नहीं !
परंतु नेता जनता को कितना बेवकूफ़ बनायेंगे, अगर इन नेताओं ने घोटाले नहीं किये होते, भ्रष्टाचार पर लगाम कसी होती और भारत के विकास में उस रूपये का योगदान किया होता तो शायद रूपये के मूल्य का अवमूल्यन नहीं होता उल्टा डॉलर कमजोर होता, परंतु सरकार विदेशी लोगों को बाजार में भी तरह तरह के साधन उपलब्ध करवाती है कि ये लोग आसानी से भाग लेते हैं, और जनता ठगी से देखती रह जाती है।
जरूरत है सरकार में नेताओं में विकास की इच्छाशक्ति की कमी की, अगर इन नेताओं में यह इच्छाशक्ति आ जाये तो हम विकास के पथ पर अग्रसर होंगे। लोग कहते हैं कि दस वर्ष में हम नंबर वन बना देंगे, पिछले पाँच वर्ष में भारत को कौन से नंबर पर लाये हैं, ये तो सब जानते हैं।
बात रही [बेचारे] खुदरा दुकानदारों की तो वे बेचारे तो रोजमर्रा कि चीजों को बेचकर अपना घर चला लेंगे। जैसे अगर आपको ब्रेड लेने जाना हो तो आप विदेशी खुदरा दुकानों में तो नहीं जायेंगे ना, बस ऐसे ही बहुत सारी चीजें हैं जो कि आप बिना पार्किंग में अपनी गाड़ी लगाये लेना चाहेंगे या घर से गाड़ी नहीं निकालकर पास के दुकान से लेंगे। तो सरकार को यह समझ लेना चाहिये कि १० लाख से ज्यादा जनता वाले शहर बहुत समझदार हैं।
मुंबई में जहाँ हम रहते थे वहाँ भी आसपास बहुत मॉल थे, परंतु लगभग सभी लोग एक किराने वाले से ही समान लेते थे, वजह वह कीमत में सीधी छूट देता था और उसकी स्कीमें भी आकर्षक होती थीं। फ़िर घर पहुँच सेवा, आप जाकर बोल दीजिये और घर पर समान पहुँच जायेगा। अगर आपकी घर से निकलने की इच्छा नहीं है तो केवल फ़ोन लगा दीजिये और समान घर पर होगा। उस किराना व्यवसायी का स्वभाव बहुत अच्छा था और मृदु भाषी है। यह सब बातें कहाँ देशी और कहाँ विदेशी खुदरा दुकानों पर मिलेंगी।
म्यूचल फ़ंड क्या करें, क्या न करें ? (Mutual Funds DOS and DON’TS)
म्यूचयल फ़ंड क्या करें, क्या न करें ?
एकदम कमाई की उम्मीद न करें। अपने निवेश को बढ़ने के लिये समय दीजिये। यह बिल्कुल ऐसा है जैसे कि एक पौधा लगाया फ़िर उसकी सिंचाई की और जब तक बड़ा ना हो जाये तब तक इंतजार किया, पौधे को भी पेड़ बनने में समय लगता है, वैसे ही निवेश से कमाई के लिये भी वक्त लगता है। रातों रात कहीं से भी निवेश में कमाई नहीं होती है। साथ ही आपको पर्याप्त अनुमान होना चाहिये कि आपके निवेश कैसा प्रदर्शन कर रहे हैं, लेकिन अपने फ़ंड स्कीम के एन.ए.वी. को रोज न देखिये, रोज एन.ए.वी. देखने से अच्छा है कि कुछ समय अंतराल में देखा जाये।
अपने निवेश की सारी जानकारी एक डायरी में लिखें जिसमें कि म्यूचयल फ़ंड स्कीम नाम, फ़ोलियो नंबर इत्यादि सब दर्ज करें।
यह भी सुनिश्चित कर लें कि फ़ंड हाऊस के पास आपके सारे संपर्कों की जानकारी होनी चाहिये, जैसे कि पत्राचार का पता, मोबाईल नंबर, ईमेल पता। अगर इनमें से कुछ भी बदलता है तो फ़ंड हाऊस को एकदम सूचना देनी चाहिये।
अपने सारे निवेशों में नामांकन जरूर करें, साथ ही यह पूरी तरह आप पर निर्भर करता है कि नामिनी को निवेश के बारे में बतायें या ना बतायें।
म्यूचयल फ़ंड में निवेशक होने से आप अपने निवेश का स्टेटमेंट प्रथम बार निवेश करने के बाद प्राप्त करने के पात्र हैं, और उसके बाद नियमित रूप से कम से कम छ: महीने की अवधि में मिलना चाहिये। अगर आपको कोई स्टेटमेंट नहीं मिला है तो फ़ंड हाऊस के ग्राहक संबंध केन्द्र से थोड़ी पूछताछ करने की चेष्टा करें । आपको स्टेटमेंट आराम से मिल जायेगा।
एक बार फ़ंड हाऊस से मिलने वाले सारे पत्राचार को जरूर देख लें। अगर आपको लगता है कि स्कीम अपने निवेश के मूल रूप से कुछ अलग कर रही है तो अपने वितरक या सलाहकार से विचार विमर्श करके देख लें कि यह बदलाव आपके निवेश के उद्देश्य के अनूकूल है या नहीं। अगर नहीं, तो तुरंत किसी और स्कीम में निवेश करें और जो कि आपके लक्ष्य को पूर्ण करती दिखे और स्कीम बदल लें।
अगर आपके निवेश अपने लक्ष्य प्राप्त कर लें, तो अपने निवेश को निकाल लें, यहाँ तक कि आपको लगे कि आगे आने वाले वर्षों में निवेश काफ़ी अच्छा हो जायेगा तब भी निकाल लें। हमेशा याद रखें कि आप अपने निवेश के प्रति भावुक रहें ना कि अपने स्टॉक और फ़ंड स्कीम के लिये।