Category Archives: कविता

मैं ठीक नहीं हूँ

मैं ठीक नहीं हूँ

ऐसा जीवन में कई बार, बार बार किसी न किसी दिन होता रहता है।

पर इस ठीक नहीं हूँ के पीछे क्या है, इसका कोई डॉक्टर नहीं होता।

हमें अकेले ही मैं ठीक नहीं हूँ, समस्या से उस समय को निकालना होता है।

इस ठीक नहीं हूँ का, हमारे पास कोई समाधान भी तो नहीं होता।

अगर ठीक नहीं हूँ का, समाधान पता होता तो मैं ठीक ही होता।

ठीक नहीं होने से ठीक होने के सफर में, खुद ही ठीक होना होता है।

जीवन एक अनंत यात्रा है – मेरी कविता

जीवन एक अनंत यात्रा है

जिसे हम खुद ही खोदकर

और कठिन करते जा रहे हैं

अपने अंदर खोदने की आदत

विलुप्त होती जी रही है

हर किसी नाकामी के लिये

आक्षेप लगाने के लिये

हम तत्पर होते हैं

यह गहनतम जंगल है

जिसमें आना तो आसान है

निकलना उतना ही कष्टकारी है

पीढ़ी दर पीढ़ी कठिनाईयों के दौर

खुद ही बढ़ाते जा रहे हैं

न सादगी रही

न संयम रहा

बस अतिरेक का दावानल है

गुस्से की ज्वाला है

जीवन अमूल्य है

जिसे हम बिसार चुके हैं।

मैं जीवन में बहुत चंचल और वाचाल रहना चाहता था… मेरी कविता

मैं जीवन में बहुत चंचल और वाचाल रहना चाहता था।
मैं मेरे जीवन को मेरे हिसाब से जीन चाहता था।
मैं जी भी रहा था…
पर फिर एक ऐसा मोड़ आया, जहाँ
सब कुछ बदल गया, मेरा जीवन बदल गया।
उस मोड़ के कारण मैं धीर गंभीर हो गया।
मैं जीवन को रफ्तार से हराना चाहता हूँ।
अब मैं कुछ पाना चाहता हूँ।

बस बड़ा हो जाऊँ

आज ऑफिस से आते आते कुछ ऐसे विचार मन में आये कि हमेशा ही हम बड़े होने की बात सोचते हैं, परंतु कभी भी कितने भी बड़े हो जायें पर हमें खुद पर यकीन ही नहीं होता है, कि अब भी हम कोई काम ठीक से कर पायेंगे, हमेशा ही असमंजस की स्थिती में रहते हैं। उसी से एक कविता लिखने का प्रयास किया है, मुझे लगता है कि और अच्छा लिखा जा सकता है, परंतु भविष्य में इसको कभी संपादित कर दिया जायेगा।

 

बस बड़ा हो जाऊँ

जब मैं दस का था

तब भी यही सोचता था

बारह का हुआ तो लगा

कि अभी भी छोटा हूँ

पंद्रह खत्म कर सोलह में लगा

तो सोचा अब बड़ा हो गया

पर मैं कोई काम

एक बार में ठीक से नहीं कर पाता

सोचा

अभी छोटा ही हूँ

खामखाँ में लग रहा है

कि बड़ा हो गया हूँ

इसी प्रक्रिया के तहत

जब इक्कीस का हुआ

तो भी चीजें ठीक नहीं हो पाती थीं

फिर लगा जैसे उमर बढ़ रही है

साथ ही कठिनाईयाँ भी बढ़ रही हैं

फिर तीस का हुआ

पैंतीस का भी हुआ

इकतालिस अभी गया है

तेजी से बयालिस भाग रहा है

बड़ा पता नहीं कब होऊँगा

जब छोटा था,

तब सोचा नहीं था

बड़ा भी होना पड़ेगा,

कैसी मजबूरी है हमारी

बिना किसी जतन के

हम बस बढ़ते ही जाते हैं

छोटा था तो बचपन था

बचपन में मैं खुद को

कितना जी लेता था

अब बड़ा हो गया हूँ

पर गलतियों में

नासमझी में, सबमें

अब भी खुद को

कठिनाई में ही पाता हूँ

अब न सोचूँगा

कि कब बढ़ा होऊँगा

अब सोचता हूँ

सारा जीवन गलतियों में ही निकाल दिया।

जख्म इतना भी गहरा न दिया करो

कुछ लाईनें जो ट्विटर पर लिख दी थीं, तो सोचा कि अपने ब्लॉग पर लिख दें ताकि सनद रहे कि हमने ही लिखी थीं –

 

ये भी मत सोचकर मतवाला होना कि,

हवा तुम्हारे कहने से ही चलेगी,

कभी हमारे बारे में भी सोचना,

कि तुम्हें पता न हो हम तूफानों में ही खेलते हैं।

 

जब से मैं जंगली जैसा रहने लगा हूँ,

मेरे नाखून ही मेरे हथियार हैं,

अब मुझपे झपट्टा मारने के पहले,

सौ बार सोच जरूर लेना।

 

तेरे हर सवाल का जबाब हम देंगे,

तेरे हर दर्द का जबाब हम देंगे,

जब हम तुझे दर्द देंगे तो निशां रह जायेंगे,

दर्द से सारी जिंदगी तड़पते रहोगे।

 

जख्म इतना भी गहरा न दिया करो कि,

हम खुद ही कुरेद के नासूर बना लें,

ताकि याद रख सकें कि,

एक दिन तुमसे बदला लेना है।

 

वक्त का क्या है,

वक्त की अपनी चाल है,

हमारा क्या है,

हमारी चाल वक्त बिगाड़ता है।

 

अभी मैं भले तुम्हें कोयला लगता हूँ पर,

ध्यान रखना हीरा कोयला ही बनता है।

विराम – मेरी कविता – विवेक रस्तोगी

भले मैं बोल रहा हूँ

हँस रहा हूँ

पर अंदर तो खाली खाली सा हूँ

कुछ तो है जो खल रहा है

कुछ तो है

मन और दिल कहीं और है

तन तम में कहीं और है

याद तो बहुत कुछ है

पर वो यादें

कहीं कोने में सिमटी सी

अपने आप को सँभाले हुए

मैं जीवन के इस रण में

सांकेतिक लहू बहाता हुआ

बस आगे बढ़ता हूँ

जीवन का उधार चुकाने का लिये

वो उधार जो मैंने कभी चाहा ही नहीं

कुछ लोग हैं

जो उधार को उधार नहीं मानते

और सामाजिकता को खण्डित कर

कर्तव्यों का निर्वाहन नहीं करते

मैं इन कर्तव्यों के बोझ में

खुद को दबा हुआ महसूस करने लगा हूँ

तभी तो मेरी खुशी मेरे अहसास

सबमें अब विराम आने लगा है।

जीवन का पेड़ धड़धड़ाती बेपरवाह बहती सी नदी के बीच कहीं बियाबान जंगल में

अपने ही बनाये हुए सपनों के महल में ऐसा घबराया सा घूम रहा हूँ, कब कौन से दरवाजे से मेरे सपनों का जनाजा निकल रहा होगा, भाग भाग कर चाँद तक सीढ़ीयों से चढ़ने की कोशिश भी की, पर मेरे सपनों की छत कांक्रीट की बनी है किसी विस्फोट से टूटती ही नहीं। दम भी घुटता है पर कहीं से निरंतर ही ठंडी बयार आने से हमेशा ही सपनों के सच होने का भरोसा दिला देते हैं। इस जंजाल से निकलने के लिये कई बार छुप्पा में, कभी अक्षरों तो कभी शब्दों के पीछे, पर इन्होंने भी मेरा साथ न दिया, जब कोई और बुलाये तो झट से ये उधर चले गये, कभी मैंने तुम पर इसीलिये ऐतबार न किया।
ढ़ूँढ़ता ही रह जाऊँगा जीवन की कुछ सीढ़ियाँ, कभी सीढ़ियाँ ही टूटी मिलीं तो कभी रास्ते टूटे मिले, कभी छत नहीं मिली और अगर मिली भी तो आसमां में चाँद तारे न मिले, जिसने जैसा आसमां दिखाया बस हमेशा वैसा ही आसमां हमने देखा, हम अपना आसमां कब बनायेंगे, कब हम अपनी छत पर अपनी ही सीढ़ियों से जायेंगे, और कब हम शब्दों को अपना बना पायेंगे, सदियों तक इंतजार करेंगे, पर यह भी सत्य है कि इंतजार से कुछ नहीं मिलता, केवल और केवल हमें यही लगता है कि अपने लिये अपनी दुनिया खुद ही गढ़नी होगी।
जब दुनिया गढ़ने भी बैठे और जिसको हमने उस दुनिया का खुदा बनाने की ठानी, उसने हमारी दुनिया का खुदा बनने के लिये पहले तो राजीनामा कर लिया पर अब वह खुद ही अनिश्चितता के दौर से निकल रहा दिखाई देता, किसी दूसरी दुनिया से आने पर भी वहीं की टीस उसे इस दुनिया को मिटाने पर मजबूर कर रही है। जब खुदा खुद ही खुदी के राह पर निकल पड़े तो जीवन के पेड़ धड़धड़ाती बेपरवाह बहती सी नदी के बीच कहीं बियाबान जंगल में खड़ा दिखाई देता है, जहाँ दूर उसे दुनिया तो दिखती है, दुनिया को वह भी दिखता है, पर नदी नहीं, दुनिया तो इधर से उधर जाने के लिये पुलिया का इस्तेमाल करती है, पेड़ के पास खड़े होकर अपनी शक्ल के साथ कई जगह वाहवाही भी लूटते हैं, पर पेड़ के संघर्ष का कोई भी कहीं भी जिक्र नहीं करता, न उसकी भावनाओं को समझता।
बस खुश हूँ तो यूँ कि कुछ पक्षियों ने मेरी शाख पर घोंसले बना रखे हैं, केवल उनके लिये मैं इस प्रकृति से संघर्षरत हूँ, उनके शाख पर खेलने से जीवन की कुछ चीजों पर पड़े जालों को कभी झाड़ने की जरूरत ही नहीं आन पड़ी, जाले तो तब ही झाड़े जाते हैं जब वस्तु को या तो उपयोग करना हो या वह उपयोगहीन हो गई हो। जीवन में आगे बढ़ने की सीढ़ियाँ अब भी ढ़ूँढ़ रहा हूँ, जब कोई मेरी सीढ़ी को सहारा दे तो शायद मैं ज्यादा जज्बे से बेपरवाह होकर मंजिल पर चढ़ाई कर पाऊँगा, नहीं तो सपनों के महल को भरभराते देर ही कितनी लगती है।

समाज में आवारा हवाओं के रुख

(स्टेज पर हल्की रोशनी और, एक कोने में फोकस लाईट जली होती हैं और खड़ी हुई लड़की बोलती है)
    मैं एक लड़की जिसे इस समाज में कमजोर समझा जाता है, और वहीं पाश्चात्य समाज में लड़की को बराबर का समझ के उसकी सारी इच्छाओं का सम्मान किया जाता है। जब से घर से बाहर निकलना शुरू किया है तब से ही मैंने नजरों में फर्क समझना शुरू कर दिया है, पता नहीं कैसे, शायद भगवान ने लड़कियों को छठी इंन्द्रीय की समझ देकर हमें अच्छी और बुरी नजरों
में फर्क करना सिखाया है। कुछ लोग हमारा दुपट्टा थोड़ा से खिसकने पर भी अपनी बहिन या बेटी मानकर हमें आँखों से ही आगाह कर देते हैं, पर ऐसे लोग समाज ने कम ही बनाये हैं। अधिकतर लोग दुर्दांत भेड़िये होते हैं जिन्हें तो बस अपनी आँखों में लड़की गरम माँस का लोथड़ा लगती है, कब मौका मिले और कब वे उसे उठायें और कच्चा ही खा जायें। लड़की जितनी असुरक्षित बाहर है उतनी ही घर में, जितने भी वहशीपन के किस्से सामने आते हैं, वे जान पहचान वालों के ज्यादा होते हैं।
    कुछ ऐसी ही मेरी कहानी है, जब मैंने घर से निकलना शुरू किया तो एक मजनूँ बाँके लाल ने मेरा पीछा करना शुरू किया, जल्दी ही पता चला कि वह मजनूँ मेरे घर के पास ही दो घर छोड़ कर रहता है। पता नहीं कहाँ से एक पुरानी कहावत याद आ गई, डायन भी सात घर छोड़ती है, पर यह मजनूँ तो तीसरे घर में ही..
    मेरी त्योरियाँ हमेशा चढ़ी ही रहती थीं, जिससे कभी उसकी बात करने की हिम्मत तो नहीं हुई पर मैं अंदर ही अंदर दिल में इतनी घबराती हुई आगे बढ़ती थी जिसे मैं बता नहीं सकती।
    एक दिन वह मजनूँ घर के चौराहे पर ही खड़ा था और मैं अपनी साईकिल से घर की और बड़ी जा रही थी,  मुझे वह पढ़ा लिखा लगता था, सलीके से पहने हुए कपड़ों में जँचता भी था। पर किसी का अच्छा लगना ही तो सबकुछ नहीं होता, मेरा ध्यान तो केवल और केवल पढ़ाई की ओर लगा हुआ था, आखिर किसी और तरफ ध्यान लगाने की न मेरी उम्र थी और न ही कोई वजह।
    मेरी साईकिल को किसी अज्ञात सी शक्ति ने रोका, पता नहीं एकदम क्या हुआ कि मेरी साईकिल रुक गई, जबकि मैंने न ब्रेक लगाया और न ही साईकिल की चैन उतरी थी।
सीन
    आवाज आई – मैं आपको पसंद करने लगा हूँ। तब मेरे ध्यान मेरी साईकिल के हैंडल को पकड़े हुए उसी मजनूँ की तरफ गई। वह मजबूती से मेरी साईकिल का हैंडल पकड़े हुए खड़ा था और मैं उसकी इस हिमाकत से अंदर तक हिल गई, समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूँ । मैं चुपचाप थी और साईकिल को पैडल मारकर आगे जाने की कोशिश करने लगी, पर मेरी साईकिल मेरा साथ नहीं दे रही थी, मैंने अपनी पूरी ताकत बटोरकर उससे कहा मेरी साईकिल छोड़िये और मुझे घर जाने दीजिये, ऐसी बदतमीजी करते हुए क्या आपको शर्म नहीं आती है ?”
    वह बोला – शर्म तो आती है, पर क्या करें ये कमबख्त दिल है कि मानता नहीं, और यह बदतमीजी नहीं, हम तो आपसे मोहब्बत का इजहार कर रहे हैं, जब तक आपको हम बतायेंगे
नहीं आपको पता कैसे चलेगा
    हम घबराते हुए बोले – देखिये हमें ये बकवास नहीं सुननी है, और हमसे फालतू की बातों में हमारा वक्त बरबाद मत कीजिये, हम पढ़ाई करते हैं और हमें आप परेशान कर रहे हैं
(स्टेज पर हल्की रोशनी और एक कोने में फोकस लाईट में लड़की बोलती हुई)
    इस तरह से उस दिन तो हम किसी तरह से अपने आप को बचाकर घर आ गया, घर पर इस घटना का हमने कोई जिक्र नहीं किया, अगर हम घर पर इस घटना का जिक्र करते तो शायद पापा और मम्मी घबरा जाते और उनको हमारी कुछ ज्यादा ही फिक्र हो जाती।
सीन
    शाम को वही लड़का फिर से हमारे घर पर आया हुआ देखकर हमें परेशानी महसूस हुई, वह अपनी बहिन के साथ मम्मी के पास आया हुआ था, उसकी बहिन मम्मी से स्वेटर बुनने की कुछ तरकीबें सीख रही थी। हमने वहीं पर रखे हुए अपने कंप्यूटर को चालू किया और फेसबुक चालू कर अपने स्टेटस देखने लगे।
    वह लड़का हमारे पास आकर बोला अरे वाह आप तो फेसबुक और ट्विटर दोनों का उपयोग करती हैं, आप तो तकनीक के साथ कदम ताल मिलाकर चलती हैं, वैसे हम भी तकनीकी का काफी उपयोग करते हैं, अब जब आप सामाजिक ताने बाने में खुद को व्यस्त रखती हैं तो हमें भी अपने आप को रखना होगा, क्यों नहीं आप हमें फेसबुक पर दोस्त बना लेती हैं, तो आपके विचार हमें पता चलते रहेंगे और हमारे आपको ?”
    हमने कहा जी बहुत बहुत धन्यवाद, हमें अपने विचार केवल अपने दोस्तों तक ही पहुँचाने होते हैं, किसी भी अजनबी को हम अपने विचार बताना पसंद नहीं करते हैं, और खासकर उनको तो बिल्कुल भी नहीं जिन्हें सड़क पर साईकिल का हैंडल पकड़कर लड़कियों को रोकने की आदत हो, अच्छा ये बताओ कि तुमने यह बदतमीजी आज तक कितनी लड़कियों के साथ की है ?”
    वह लड़का बोला आप उसे बदतमीजी का नाम मत दीजिये, वह तो हम केवल आपको अपने दिल का हाल बता रहे थे, कि कैसे हम आपके पीछे पागल हैं और हममें इतनी हिम्मत भी है कि आपको बाजार में रोककर अपने दिल के हाल से रूबरू भी करवा सकते हैं, काश कि आप हमारे दिल के हाल के सुनकर हमारी हालत पर रहम खायें” हमने कहा अपने दिल का हाल उसे सुनाईये जो सुनना चाहता है, हमें न सुनवाईये, अगर हमें ज्यादा परेशान किया तो आपको चप्पलों और लप्पड़ों के साथ अपना भविष्य गुजारना होगा, कहीं ऐसा न हो कि हमारी मोहब्बत में आपका जनाजा निकल जाये, आपकी बेहतरी इसी में है कि आप हमें परेशान न करें और हमारे रास्ते से हमेशा जुदा ही रहें
    वह लड़का बोला चलो हम आपके घर तक तो आ ही गये हैं, धीरे धीरे आपके फेसबुक ट्विटर और दिल तक भी पहुँच ही जायेंगे, देखते हैं कि आप कब हमें अपनाते हैं
(लाईट कम होती है और लड़की पर फोकस होता है, लड़की संवाद कहती है –)
    जी तो मेरा ऐसे कर रहा था कि उसका मुँह वहीं तोड़कर उसे उसकी नानी याद दिला दूँ पर पता नहीं मेरे अंदर की हिम्मत इतनी भी नहीं रही थी कि मैं वहीं बैठी अपनी मम्मी और उसकी बहिन को उस लड़के की बदतमीजी के बारे में बता पाऊँ, पता नहीं ऐसी हिम्मत के लिये लड़कियों को क्या खाना चाहिये, जिससे वक्त रहते कम से कम ऐसे मजनुओं को जबाव तो दे
पायें और अपनी कमजोरी को उनका हथियार न बनने दें।
मैं कमजोर
नहीं हूँ, बहुत हिम्मती हूँ
बस समाज से,
परिवार से, उनके लिये ही डरती हूँ
सारा डर केवल
हमारे हिस्से में क्यों लिखा है
क्यों इन
आवारा हवाओं पर समाज का काबू नहीं है
कब ये आवारा
हवाएँ हमें छूने से परहेज करेंगी
आखिर कब इन
हवाओं का रुख बदलेगा
आखिर कब समाज
की दीवारें इन्हें रोकेंगी
कब ये हवाएँ
साफ होंगी
और कब इन
हवाओं से घुटन खत्म होगी
कब ये हवाएँ
बदलेंगी,
और कब हम
साँस ले पायेंगे ।
    और उसी शाम जब मैं फेसबुक स्टेटस देख रही थी कि एक नये दोस्त का नोटिफिकेशन दिखा, मैं हमेशा दोस्त बनाने के पहले प्रोफाईल की जाँच पड़ताल जरूर कर लेती हूँ, और उस दिन भी की तो देखा, पाया कि वही लड़का है जो मुझे परेशान कर रहा है, मैंने उसे दोस्त नहीं बनाया और तभी मैंने अपने ट्विटर पर एक नया फॉलोअर देखा यह भी वही था, मैंने झट से उस प्रोफाईल को भी ब्लॉक किया। जिंदगी अपनी रफ्तार से चल ही रही थी, कुछ दिन गुजरे ही थे कि मेरी जिंदगी के ठहरे हुए पानी में फिर से किसी ने कंकर मारकर मेरी जिंदगी को उलट पुलट कर दिया। मेरी सहेली ने बताया कि उसी लड़के ने मेरे कुछ फोटो किसी ने फेसबुक पर डाल दिये हैं, बात अब बिगड़ने लगी थी, मैंने निश्चय किया कि मैं अपने मम्मी और पापा को आज सब कुछ बता दूँगी, और फिर बेहतर है कि हम इस समस्या से मिलजुलकर लड़ें।
सीन
    पापा ने उस लड़के को बुलाकर बहुत समझाया बेटा हम और आप बहुत ही सभ्य घरों से ताल्लुक रखते हैं, और क्यों तुम मेरी बेटी को इस तरह से परेशान कर रहे हो, इससे नाहक ही सब परेशान हो रहे हैं और मेरी बेटी भी अपनी पढ़ाई में ध्यान नहीं लगा पा रही है, बहुत ही ज्यादा मानसिक आघात तुमने दे दिया है, हमारी बेटी को हमने बहुत नाजों से पाला है, उसके पढ़लिख कर कुछ बनने के अरमान हैं, और तुम अब उन सपनों को पाने में बाधा बन रहे हो
    उस लड़के ने कहा अंकल जी, मैं तो केवल दोस्ती करना चाह रहा था, कि कोई अच्छा दोस्त हमारा भी हो, हमने तो कभी नहीं चाहा कि हमारे दोस्त के अरमान पूरे न हों, हम भी चाहते
हैं कि उसके सपने पूरे हों, हम कभी भी परेशान नहीं करेंगे
    पापा ने कहा तो फिर मेरी बेटी के जो फोटो तुमने फेसबुक और ट्विटर पर डाल रखे हैं, क्या वह भी परेशान करने के लिये नहीं हैं, मैं तुम्हारी इस हरकत को किस नजरिये से देखूँ
    उस लड़के ने कहा वह तो मैंने केवल इसलिये डाल रखे हैं कि ये नहीं दिखे तो कम से कम मैं फोटो ही देख लूँ और अपने मन को तसल्ली दे दूँ
    पापा ने कहा अब तुम बदतमीजी पर उतर आये हो, एक तो चोरी और ऊपर से सीनाजोरी, अगर तुमने फोटो आज को आज ही नहीं हटाये तो मुझे पुलिस के पास जाना पड़ेगा, जब चार डंडे पड़ेंगे तो अपने आप तुम्हारे नये दोस्त बनाने के अरमान ठंडे पड़ जायेंगे
    उस लड़के ने कहा अरे! अंकल जी आप ना ज्यादा टेन्शन न लिया करो, वैसे  तो अब आपने इतनी बात कर ही दी है तो अब देखिये हम क्या करते हैं, आपकी बेटी के सारे फोटो तो हटा ही देंगे पर साथ ही हम परेशान करना भी बंद कर देंगे, हमें पुलिस की वर्दी से बहुत डर लगता है (व्यंग्य से कहते हुए)
    पापा ने गुस्से में कहा अब अगर मुझे तुम्हारी किसी भी हरकत की खबर लगी तो मैं तुम्हारे साथ क्या करूँगा, तुम्हें पता भी न चलेगा, तो बेहतर है कि आज के बाद कभी भी न घर के पास फटकना और न ही मेरी बेटी के पास” लड़का चला जाता है ।
(सुबह का सीन है, चिड़ियाओं के चहचहाने की आवाज आ रही है – )
    अगले दिन सुबह लड़की साईकिल पर अपने स्कूल का बैग लटकाये हुए जा रही है, तभी अचानक पास जाते स्कूटर पर हेलमेट पहने किसी लड़के ने उसके मुँह पर एक शीशी से तेजाब फेंक दिया।
    मैं जोर से चिल्लाई ये क्या है मेरे मुँह पर, ये जल क्यों रहा है, मुझे मेरे चेहरे पर इतना गर्म झाग क्यों लग रहे हैं, क्या किसी ने मेरे चेहरे पर मिर्ची फेंक दी है या कुछ और.. मेरा पूरा चेहरा जल रहा है.. झुलस रहा है
(स्टेज पर पीछे बहुत सी आग की लहरें दिखाते हैं)
(पीछे से सामूहिक कोलाहल अरे किसी ने तेजाब फेंक दिया है, तभी कोई पहचान गया अरे बिटिया चलो मैं तुम्हें अस्पताल ले चलता हूँ और घर पर भी खबर कर देता हूँ)
    रास्ते भर में यही सोचती रही कि क्यों ये तेजाब मुझ पर फेंका गया और क्यों मेरे लिये ये जलन है किसी को मेरे प्रति, बस बहुत तेज चिल्लाने की इच्छा हो रही थी, फफक फफक कर रोने
की इच्छा हो रही थी, किसी ने मेरे सारे सपनों को क्षणभर में ही कुचल दिया था। कहीं कोई दूर काश मेरे लिये भी कोई सपनीली दुनिया होती जहाँ मैं अपने सारे अरमानों और सपनों को पूरा कर सकती। यह केवल मेरा चेहरा ही नहीं मेरी आत्मा जल रही थी, जल के छलनी छलनी हो रही थी, क्यों ये सब हमें भोगना पड़ता है, किसी ने तेजाब का इस तरह का उपयोग क्यों करना शुरू किया, इतनी जलन कि मेरे चेहरे के रोम रोम से मेरे माँस के पल पल बहने का अहसास और तेज हो रहा था, अंदर तक उस तेजाब की आग भभक रही थी, और चारों तरफ बेचारी लड़की के सांत्वना वाले शब्दों को मैं सुन पा रही थी। ऊफ्फ मेरे चारों तरफ एक अजीब तरह की घुटन हो रही थी, तभी पापा मेरे पास आये और मैं उनके स्पर्श को पाकर ही फफक फफक कर रो पड़ी।
    पापा कह रहे थे बेटी मुझे तुम्हें इस तरह देखकर बहुत ही दुख हो रहा है, पता नहीं किसे हमारे से ऐसी दुश्मनी थी जिसने ये घिनौना काम किया है, ये केवल दिन दो दिन की जलन नहीं है, ये तो पूरे जीवन की पीड़ा है, अभी ये जख्म है, और हर जख्म धीरे धीरे ही सूखता है, मेरी प्यारी बेटी तुम इस जख्म से परेशान न होना, तुम्हें न ही किसी से लड़ने की जरूरत है और न ही किसी की सांत्वना की, मुझे पता है तुम बहुत बहादुर हो और कभी भी किसी से न हारने वाली हो, वीर वही होते हैं जो अपने आप में सिसक लें पर दुनिया को कानों कान खबर न होने दें, दुनिया वाले बस सोचते ही रहें कि आखिर इनके पास इतनी हिम्मत आती कहाँ से हैं, बेटी तुम्हें अपने सारे सपने सच करने हैं, ये तो हमारे लिये जिंदगी की परीक्षा है और हम इस परीक्षा को बहुत अच्छे से उत्तीर्ण करेंगे, बस तुम अपना साहस कम मत होने देना, तुम्हारा परिवार हमेशा ही तुम्हारे साथ है
(स्टेज पर गहन अंधकार है और मंच पर एक कोने में फोकस लाईट जलती है और अपने बारे में बताती है)
    मैं बस उस दिन को अपने जीवन का काला दिन मान कर भूलना चाहती हूँ, पर कभी कोई जख्म भी जीवन में भरा है। हाँ अगर समय की दवा न होती तो नासूर जरूर बन जाता है, पर मैंने अपने जख्मों पर समय का मल्हम कुछ इस तरह से लगाया कि मैं दीन दुनिया को भूल बैठी, हाँ मुझे ठीक होने में काफी समय लगा । काफी लोग सांत्वना भी देते थे, पर मुझे उन लोगों पर हँसी आती थी, कि सांत्वना की जरूरत मुझे नहीं उन्हें खुद को है, काश कि समाज को हम यह भी शिक्षा दे पाते, काश कि हम अपने घर के लड़कों को मानसिक रोगी बनाने से रोक सकते, काश कि ये दर्द और जला हुआ चेहरा जो किसी की शरारत या हिकारत को शिकार हुआ था, न होता ।
(पार्श्व में हल्की रोशनी होती है और ऑनलाईन बिजनेस करते हुए दिखाया जाता है, एक लेपटॉप और कुछ लोग ऑनलाईन ब्रांडिग की प्रेजेन्टेशन उस लड़की को दिखा रहे होते हैं, लड़की का चेहरा रूमाल से ढंका है)
    मैंने अपना पूरा समय और पूरी ऊर्जा अपने सपने अपने अरमानों को पूरा करने में लगा दी, और मैं बहुत ही अच्छे से अपने आप को फाईंनेशियली सैटल कर पाई हूँ, आज मुझे मेरे परिवार पर  गर्व है कि मैं उन्हीं लोगों के कारण अपना खुद का इतना बड़ा ऑनलाईन बिजनेस कर पाई हूँ। बस यहाँ दुख इतना ही है कि कोई मेरे चेहरे को नहीं जानता, मेरे बनाये हुए ब्रांड को जानते हैं। मेरी सफलता की कहानी पूरे समाज की सफलता की कहानी है।

जंग .. मेरी कविता.. (विवेक रस्तोगी)

कठिनाईयाँ तो राह में बहुत हैं,
बस चलता चल,
राह के काँटों को देखकर हिम्मत हार दी,
तो आने वाली कौम से कोई तो
उस राह की कठिनाईयों पर चलेगा,
तो पहले हम ही क्यों नहीं,

आने वाली कौम के लिये
और बड़ी
उसी राह की
आगे वाली कठिनाईयाँ छोड़ें,
नहीं तो
वे इन कठिनाईयों को पार करते समय
सोचेंगे, कितने नकारा लोग थे
जो इन साधारण सी बाधाओं को पार
नहीं कर पाये

जो बाधाएँ आज कठिन लगती हैं
वे आने वाले समय में बहुत सरल हो जाती हैं
बेहतर है कि उनके सरल होने के पहले
उन कठिनाईयों से निपट लिया जाये

दिमाग और हौसलों में जंग न लगने देने का
इससे साधारण और कोई उपाय नहीं।

बस तुम्हें… अच्छा लगता है.. मेरी कविता

मुझे पता है तुम

खुद को गाँधीवादी बताते हो,

पूँजीवाद पर बहस करते हो,

समाजवाद को सहलाते हो,

तुम चाहते क्या हो,

यह तुम्हें भी नहीं पता है,

बस तुम्हें

बहस करना अच्छा लगता है ।

जब तक हृदय में प्रेम,

किंचित है तुम्हारे,

लेशमात्र संदेह नहीं है,

भावनाओं में तुम्हारे,

प्रेम खादी का कपड़ा नहीं,

प्रेम तो अगन है,

बस तुम्हें

प्रेम करना अच्छा लगता है ।

आध्यात्म के मीठे बोल,

संस्कारों से पगी सत्यता,

मंदिर के जैसी पवित्रता,

जीवन की मिठास,

जीवन में सरसता,

चरखे से काती हुई कपास,

बस तुम्हें

सत्य का रास्ता अच्छा लगता है।