सिसकती खिड़्कियाँ
चिल्लाते दरवाजे
विलाप करते रोशनदान
चीखते हुए परदे
सब तुम्हारी याद दिलाते हैं
मेरे अतीत
तुम इतने भयानक क्यों थे !
सिसकती खिड़्कियाँ
चिल्लाते दरवाजे
विलाप करते रोशनदान
चीखते हुए परदे
सब तुम्हारी याद दिलाते हैं
मेरे अतीत
तुम इतने भयानक क्यों थे !
कुछ है क्या मेरे लिये ?
या सब पहले ही खर्च हो चुका है
मेरे आने से पहले,
कुछ है क्या करने के लिये ?
या सब पहले ही हो चुका है
मेरे आने से पहले,
कुछ है क्या कहने के लिये ?
या सब पहले ही कह चुके हैं
मेरे आने से पहले,
कुछ है क्या सुनने के लिये ?
या सब पहले ही सुन चुके हैं
मेरे आने से से पहले,
हमेशा जिंदगी में सब कुछ,
मेरे आने से पहले ही क्यों हो जाता है,
और जो मैं करता हूँ, वह
बाद मैं सोचता हूँ क्या मैं इसे ऐसा कर सकता था ?
बस सोचता हूँ कि सब पहले ही क्यों हो चुका होता है
मेरे आने से पहले ?