बस बहुत हुआ, जीवन का उत्सव
अब जीवन जीने की इच्छा
क्षीण होने लगी है
जीवंत जीवन की गहराइयाँ
कम होने लगी हैं
अबल प्रबल मन की धाराएँ
प्रवाहित होने लगी हैं
कृतघ्नता प्रेम के साथ
दोषित होने लगी है
बस बहुत हुआ, जीवन का उत्सव
अब जीवन जीने की इच्छा
क्षीण होने लगी है
जीवंत जीवन की गहराइयाँ
कम होने लगी हैं
अबल प्रबल मन की धाराएँ
प्रवाहित होने लगी हैं
कृतघ्नता प्रेम के साथ
दोषित होने लगी है
ओह मुंबई, मेरे अधूरे प्यार
ऐसी प्रेमिका जिसे प्यार किया
पर मजबूरी में वह साथ न रही
दरिया के लहरों में उमड़ती
तुम्हारी चंचल अंगड़ाइयाँ
बलखाती,
इठलाती अदाएँ
वो मरीन ड्राईव
जहाँ सड़क इठलाती है
कितने ही रंग के चेहरे रहते हैं
घूमते हैं,
चूमते हुए रंग बदलते हैं
मुंबई रात में अपनी जवानी में खोई रहती है
दरिया अपनी गहराई में सब राज रखता है
जूहु में रेत की गहराईयों को देखते ही बनता है
दीवारों के किनारे,
कहीं पेड़ और झुरमुट के पीछे
प्यार के दीवाने अपनी दीवानगियों में खोये हुए
रेत को अपना पनाहगार बनाकर
जालिम हसरतें पूरी करते हुए,
शैया बनाकर
कहीं भेलपुरी,
कहीं बड़ापाव का शोर
कहीं टैक्सी, ऑटो और बसों का शोर
सभी में जवानी अंगड़ाईयाँ लेती हैं
पर फ़िर भी मैं तुमसे दूर हूँ
मजबूरी में,
मेरी प्रेमिका
जिंदगी की रेलमपेल है,
भागादौड़ी है
वो भीड़ भरी चीखती हुई लोकल
एकाएक मुझे अच्छी लगने लगी है
वे टकराते,
भागते लोग मुझे अपने से लगने लगे हैं
फ़ुटपाथों पर चिल्लाते हुए वो भाजीवाले
वो फ़ुटपाथ जो मैंने मुंबई की हर सड़क
हर गली में देखे हैं
वो चीखती हुई आवाजें,
जो हर आँखों के पीछे से आती हैं
वो हाइवे के बाजू में टहलना,
आते जाते वाहनों के शोर से मिलने वाली अज्ञात शांति
महालक्ष्मी के पास वो रुकती हुई लहरें
वो सिद्धी विनायक के दर्शन
हाजी अली तक जाती वो सड़क
जहाँ लहरें टकराकर लौट जाती हैं अपने में
वो क्वीन नेकलेस मालाबार हिल्स तक
वो गिरगाँव चौपाटी का छोटा सा किनारा
एलीफ़ेन्टा गुफ़ाओं का गहन सौंदर्य
मोटरबोट में ठंडी हवा का आनंद
गेटवे ऑफ़ इंडिया पर फ़ोटो खिंचाना
सामने गर्व से खड़े ताज को देखना
और भी बहुत कुछ
बस तुम्हें बहुत बहुत याद करता हूँ
मेरी मुंबई … मेरी मुंबई
ओहो सावन का इंतजार नहीं करना पड़ता है
आजकल बरसात को,
जब चाहे बरस जाती हो बरसात
और किसी अपने की सर्द यादें दिला जाती हो,
भीगी बरसातों में तुम
कहीं खोयी खोयी सी अपने ही अंदाज में,
भिगाती हुई खुद को
बरसात भी तुमको भिगोने का आनंद लेती है,
सिसकियाँ आँहें भरते हुए लोग
और तुम बेपरवाह बरसात को लूटती रहती हो,
हर मौसम सावन है तुम्हारे लिये
क्योंकि तुमसे मिलने के लिये बरसात भी तरसती है।
[कल औचक बरसात के मूड में सुबह लिखी गई, एक रचना]
ख्वाईशें प्रेम दिवस की
ओह ख्वाईशें प्रेम दिवस की तुम्हें कोई यादगार तोहफ़ा दूँ पहले तोहफ़ा देने के लिये बैचेन रहता था पर जेब खाली होती थी अब जेब भरी होती है तो तोहफ़ा समझ में नहीं आता इसलिये मैंने खुद को ही तुम्हें तोहफ़े में अपने आप को सौंप दिया है उम्मीद है कि अब तो.. तुम्हें तोहफ़े की कोई उम्मीद मुझसे न.. रहती होगी… और अगर हो तो… दफ़न कर लो उसे क्योंकि अब मैं तुम्हारा हूँ तोहफ़े तो गैर दिया करते हैं जिन्हें अपना बनाने की ख्वाईश होती है अब तो मैं तुम्हारा अपना हूँ ये सब बहाने और बातें केवल इसलिये हैं क्योंकि इस प्रेमदिवस पर फ़िर मुझे कोई तोहफ़ा नहीं मिला मुझे यकीन है कि अब तक तो तुम मुझे समझ गयी होगी आखिर हमारा प्रेम अब जवान होने लगा है शिकायत हो तो कह देना मैं कॉलेज की नई किताब की तरह तुमसे चिपक जाऊँगा। |
हमें भी चाहिये ऑफ़ एक दिन घरवाली बोली तुम करते हो ऐसा क्या काम सात में दो दिन तुमको मिलता है आराम, यहाँ हम ३६५ दिन लगे पड़े रहते हैं अब हम भी दो दिन का लेंगे ऑफ़, हमने कहा दो दिन का ऑफ़ मतलब हमारा मंथली बजट साफ़, मान जाओ तुम्हें हमारे प्रेम की कसम, रोज ऐसे ही ब्लैकमेल करके खाना खा रहे हैं जीना मुश्किल फ़िर भी जिये जा रहे हैं। |
अनुभूतियाँ कैसी होती हैं
विचार कैसे आते हैं
कभी दिमाग से तो कभी दिल से
विचार जो कि दिमाग को स्पंदित करते हैं
बुद्धि को प्रफ़ुल्लित करते हैं
गहनता से
अंतरतम में ओढ़े रहता है।विचार जो कभी मनोनुकूल होते हैं
कभी प्रतिकूल होते हैं
कभी जीवन बनाते हैं
कभी जीवन ध्वस्त करते हैं
कभी महल बनाते हैं
कभी खण्डहर बनाते हैं
कभी शोक होता है
कभी उत्सव होता है
बस सब विचार होते हैं
..
अशांत मन को शांत कैसे करुँ
क्या भावबोध दूँ मैं इस मन को
जिससे यह स्थिर हो जाये
अस्थिरता लिये हुए कब तक
ऐसे ही इन भावबोधों से
यह चित्रकारी करता रहूँगा
पुराने पड़ने लगे रंग भी कैनवास के
नये रंग चटकीले से भरने होंगे
कुछ उजास आये
कुछ समर्पण आये
प्रेम वात्सल्य करुणा रोद्र रस आयें
रसों के बिन कैसे जीवन तरे
सब अस्थिर है,
चंचलता को ताक रहा हूँ
मन के लिये…
हमारे एक मित्र ने एक मैसेज दिया वही हिन्दी में लिख रहा हूँ।
बेचारा मर्द..
अगर औरत पर हाथ उठाये तो जालिम
औरत से पिट जाये तो बुजदिल
औरत को किसी के साथ देखकर लड़ाई करे तो ईर्श्यालू (Jealous)
चुप रहे तो बैगैरत
घर से बाहर रहे तो आवारा
घर में रहे तो नकारा
बच्चों को डाटे तो जालिम
ना डांटे तो लापरवाह
औरत को नौकरी से रोके तो शक्की मिजाज
ना रोके तो बीबी की कमाई खानेवाला
माँ की माने तो माँ का चमचा
बीबी की सुने तो जोरू का गुलाम
ना जाने कब आयेगा ?
“HAPPY MEN’S DAY”
मुक्ति चाहता हूँ
इन सांसारिक बंधनों से
इन बेड़ियों को
तोड़ना चाहता हूँ
रोज की घुटन से
निकलना चाहता हूँ
अब..
जीना चाहता हूँ
केवल अपने लिये
कुछ करना चाहता हूँ
केवल अपने लिये …
इंतजार
तुम्हारे आने का
तुम आओगे मुझे पक्का यकीं है
तुमने वादा जो किया है
अब कब आते हो
ये देखना है
तुम आने के पहले इस इंतजार में
कितना सताते हो
ये देखना है
तुम्हारी टोह में बैठे हैं
हर पल
तुम्हारा इंतजार लगा रहता है
बस इतना पक्का यकीं है
कि तुम आओगे
पर ये इंतजार
बहुत मुश्किल होता है।
काश..
कि मेरे बुलाने पर
तुम आते
केवल मुझसे मिलने आते
मेरे लिये
मेरे पास आते
ओर मैं और तुम
कहीं बैठकर
गहराईयों
से बातें करते
काश !