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मुंबई से उज्जैन यात्रा बाबा महाकाल की चौथी सवारी और श्रावण मास की आखिरी सवारी 3 (Travel from Mumbai to Ujjain 3, Mahakal Savari)

    जब हमने उज्जैन जाने का कार्यक्रम बनाया था तभी यह सोच लिया गया था कि बाबा महाकालेश्वर की चौथी सवारी और जो कि श्रावण मास की आखिरी सवारी भी होगी, के दर्शन अवश्य किये जायेंगे।
    सायं ४ बजे महाकाल की सवारी महाकाल मंदिर से निकलती है जो कि गुदरी चौराहा, पानदरीबा होते हुए रामघाट पहुँचती है, फ़िर रामानुज पीठ, कार्तिक चौक, गोपाल मंदिर, पटनी बाजार होते हुए वापिस महाकाल मंदिर शाम ७ बजे पहुँचती है।
    बाबा महाकाल अपनी प्रजा के हाल जानने के लिये नगर में निकलते हैं, और प्रजा तो उनकी भक्ति में ओतप्रोत पलकें बिछाये इंतजार करती रहती है। पूरा उज्जैन शहर बाबा महाकाल में रमा रहता है। आसपास से गाँववाले पूरी श्रद्धा के साथ उज्जैन शहर में डेरा डाले रहते हैं। उज्जैन में महाकाल की भक्ति की बयार बहती है, हवा से भी केवल महाकाल का ही उच्चारण सुनाई देता है।
    इस बार मैंने अपने मोबाईल से कुछ फ़ोटो और वीडियो लिये हैं, आप भी बाबा महाकाल की सवारी के दर्शन कीजिये और जय महाकाल बोलिये ।
फ़ोटो –
Mahakal Savari Gopal Mandir
गोपाल मंदिर पर श्रद्धालुओं का जत्था
at Mahakal Savari Ujjain Vivek Rastogi and Harsh Rastogiगोपाल मंदिर पर हम अपने बेटेलाल के साथ
वीडियो –

 

 

गोपाल मंदिर का एक दृश्य

 

 

 

 

इन वीडियो मॆं पूरी महाकाल की सवारी का आनंद लिया जा सकता है।
जय बाबा महाकाल
ऊँ नम: शिवाय !

मुंबई से उज्जैन यात्रा सीट पर पहुँचते ही १५ वर्ष पुरानी यादें ताजा हुईं 2 (Travel from Mumbai to Ujjain 2)

पिछला विवरण निम्न पोस्ट की लिंक पर चटका लगाकर पढ़ सकते हैं।

मुंबई से उज्जैन रक्षाबंधन पर यात्रा का माहौल और मुंबई की बारिश १ (Travel from Mumbai to Ujjain 1)

    बोरिवली से हमारी ट्रेन का सही समय वैसे तो ७.४२ का है परंतु हमने कभी भी इसे समय पर आते नहीं देखा है, जयपुर वाली ट्रेन का समय ठीक १५ मिनिट पहले का है, वह अवन्तिका के समय पर आती है, और फ़िर एक लोकल विरार की और फ़िर लगभग ८.०० बजे अवन्तिका आती है।

    इतनी भीड़ रहती है कि प्लेटफ़ार्म पर समझ ही नहीं आता कि कैसे थोड़ा समय बिताया जाये। अपने समान पर ध्यान रखने में और अगर बच्चा साथ में हो तो उसके साथ तो वक्त कैसे बीतता है समझ सकते हैं।

पुरानी एक पोस्ट की भी याद आ गई – “ऐ टकल्या”, विरार भाईंदर की लोकल की खासियत और २५,००० वोल्ट

    हमारे मित्र साथ में जा रहे थे, तो उन्होंने बेटेलाल को आम के रस वाली एक बोतल दिला दी, और एक कोल्डड्रिंक ले आये, बस पहले हमारे बेटेलाल ने सबके साथ पहले कोल्डड्रिंक साफ़ किया वह भी भरपूर ड्रामेबाजी के साथ, और फ़िर अपनी आम के रस वाली बोतल, बेटेलाल ने आसपास के इंतजार कर रहे यात्रियों का जमकर मनोरंजन किया।

    जयपुर वाली ट्रेन आ गई, और राखी की छुट्टी के कारण यात्रियों की भीड़ का रेला ट्रेन पर टूट पड़ा, २-३ मिनिट बाद चली ही थी कि एकदम किसी ने चैन खींच दी, तो जैसी आवाज आ रही थी उससे हमें साफ़ पता चल रहा था कि वातानुकुलित डिब्बे में से चैन खींची गई है। दो सिपाही दौड़कर देखने गये, तभी हम देखते हैं कि एक दंपत्ति अपने दो बच्चों के साथ दौड़ा हुआ आ रहा है और कुली उनका सूटकेस लेकर दौड़ा हुआ आ रहा है, इतनी देर में वे सामने ही वातानुकुलित डिब्बे में चढ़ गये, तभी ट्रेन चल पड़ी, हमें संतोष हुआ कि चलो कम से कम ट्रेन नहीं छूटी।

    फ़िर एक विरार लोकल आयी, धीमी बारिश जारी थी पर विरार वाले हैं कि मानते ही नहीं, मोटर कैबिन के बंद दरवाजे पर भी दो लोग लटके हुए जाते हैं, दो डब्बे के बीच में ऊपर चढ़ने के लिये एंगल होते हैं, उस पर भी चढ़ कर जायेंगे, और एक दो लोग तो छत पर भी चढ़ जायेंगे अपनी श्यानपत्ती दिखाने के चक्कर में, जबकि सबको पता है कि छत पर यात्रा करना मतलब सीधे २५ हजार वोल्ट के तार की चपेट में आना है।

बेटेलाल

बेटेलाल का ट्रेन में खींचा गया फ़ोटो

    अब हमारा इंतजार खत्म हुआ, अवन्तिका एक्सप्रेस हमारे सामने आ पहुँची, ऐसा लगा कि हमारे डब्बे में सब बोरिवली से ही चढ़ रहे हैं, कुछ लोग मुंबई सेंट्रल से भी आये थे पर बोरिवली से कुछ ज्यादा ही लोग थे। जैसे तैसे चढ़ लिये और अपने कूपे में पहुँचकर समान जमाने लगे।

    हमारी चार सीट थीं, और दो लोग पहले से ही मौजूद थे, एक भाईसाहब और एक लड़की, भाईसाहब हमसे ऊपर वाली सीट लेकर सोने निकल लिये, हम लोग बैठकर बात कर रहे थे, तो हमने ऐसे ही एक नजर लड़की की तरफ़ देखा तो लगा कि इसे कहीं देखा है, पर फ़िर लगा कि शायद नजरों का धोखा हो, पर वह लड़की भी हमें पहचानने की कोशिश कर रही थी, ऐसा हमें लगा।

    फ़िर अपनी भूली बिसरी स्मृतियों के अध्याय को टटोलने लगे और साथ में बात भी कर रहे थे, फ़िर थोड़ी देर बाद याद आ गया कि अरे ये तो १५ वर्ष पुरानी बात है, पर ऐसा लग रहा था कि कल की ही बात हो, वह शायद हमारे परिवार को देखकर बात करने में संकोच कर रही थी, हमने अपनी पत्नी और मित्र को बताया कि यह लड़की १५ वर्ष पहले हमारे साथ पढ़ती थी, पर हमें नाम याद नहीं आ रहा है, और इसकी बड़ी बहन बड़ौदा में रहती है, जो कि मिलने भी आयेगी। ये दोनों हमें बोले कि जाओ फ़िर बात करो हमने सोचा छोड़ो कहाँ अपने परिवार और मित्र के सामने पुरानी बातों को उजागर किया जाये, वो भी सोचेगी कि पता नहीं क्या क्या बात होगी, तो इसलिये हमने बात ही नहीं की।

    १५ वर्ष पुराने पहचान वाले आसपास बिल्कुल अंजान बनकर बैठे रहे, बड़ौदा आया और उनकी बहन मिलने भी आयीं, शायद वे भी उज्जैन आ रही थीं परंतु पूना वाली ट्रेन से, जो कि इसके १५ मिनिट पीछे चलती है। बिना बात किये हम उज्जैन में उतर गये। परंतु एकदम १५ वर्ष पुराने दिन ऐसे हमारी नजरों के सामने घूम गये थे जैसे कि कल की ही बात हो।

मुंबई से उज्जैन रक्षाबंधन पर यात्रा का माहौल और मुंबई की बारिश १ (Travel from Mumbai to Ujjain 1)

    सुबह से मौसम कुछ ठीक था, मतलब की बारिश दिनभर रुकी हुई थी पर बादल सिर पर मँडरा ही रहे थे और बादल सामान्यत: बहुत ही नीचे थे। शाम के समय हमें उज्जैन जाने के लिये ट्रेन पकड़ना थी, और छ: बजे से ही वापिस से मुंबई श्टाईल में जोरदार बारिश शुरु हो गई। बोरिवली जाने के लिये हम ऑटो अपनी ईमारत के अंदर ही बुलवा लाये। जिससे कम से कम यहाँ तो न भीगना पड़े।

    बोरिवली स्टेशन जाते समय पश्चिम द्रुतगति मार्ग (Western Express Highway)  से होते हुए जाना होता है और हमने द्रुतगति मार्ग की जो दुर्गति देखी हमें ऐसा लगा कि हमारा हिन्दुस्तान और यहाँ के इंफ़्रास्ट्रक्चर बनाने वाले कभी सुधर ही नहीं सकते। इतने गड्ढ़े देखकर हमें फ़िल्म “खट्टा मीठा” याद हो आई। जिसमें भ्रष्टाचार का खुला रुप दिखाया गया है। यह संतोष है कि जहाँ पर भी कांक्रीट की सड़कें बनी हुई हैं, कम से कम वे तो ठीक हैं, क्योंकि वो देखने पर लगता है कि १२-१४ इंच की बनती हैं, पर डामर की सड़कें तो सुभानअल्लाह, जहाँ थोड़ा पानी बरसा और सड़कें गड्ढ़े से सारोबार। गाड़ी चलाते समय खुद को बचा सको तो बचा लो नहीं तो बस अपनी जान पर आफ़त ही समझो, इसको ऐसा कह सकते हैं कि जान हथेली पर लेकर चलना।

    बोरिवली पहुँचते पहुँचते ऐसे बहुत से गड्ढों से गुजरना पड़ा, और कई जगह तो सड़कों पर १-२ इंच तक पानी जमा था । हम सोच रहे थे कि अगर इतनी बरसात अपने शहर में हो जाये तो वहाँ पर तो छूट्टी का माहौल बन जाता, पर ये मुंबई है यहाँ कुछ भी हो जाये पर मुंबई रुकती नहीं है। यहाँ मुंबई में जिंदगी की रफ़्तार इतनी तेज है कि और कोई भी चीज उसके आगे मायने ही नहीं रखती।

    घर से जरा जल्दी निकल चले थे कि कहीं बारिश के कारण ट्राफ़िक में ही न फ़ँस जायें। प्लेटफ़ार्म पर पहुँचे तो पता चला कि १ घंटा जल्दी पहुँच गये, और अपने कोच के लोकेशन पर जाकर इंतजार करने लगे। भीड़ तो इतनी थी कि बस देखते ही बन रहा था, क्योंकि हमारी ट्रेन के पहले मुंबई-जयपुर एक्सप्रेस का भी समय रहता है। और रक्षाबंधन पर सब लोग अपने घर की ओर अग्रसर थे और जल्दी से जल्दी पहुँचने के चक्कर में थे।

क्रमश:-

महाकाल बाबा की शाही सवारी १७ अगस्त को और महाकवि कालिदास का मेघदूतम में महाकाल वर्णन..

श्रावण मास के हर सोमवार और भाद्रपद की अमावस्या तक के सोमवार को महाकाल बाबा की सवारी उज्जैन में भ्रमण के लिये निकलती है, कहते हैं कि साक्षात महाकाल उज्जैन में अपनी जनता का हाल जानने के लिये निकलते हैं, क्योंकि महाकाल उज्जैन के राजा हैं। इस बार महाकाल बाबा की शाही सवारी १७ अगस्त को निकल रही है, राजा महाकाल उज्जैन में भ्रमण के लिये निकलेंगे। अभी विगत कुछ वर्षों से, पिछले सिंहस्थ के बाद से अटाटूट श्रद्धालु उज्जैन में आने लगे हैं। अब तो शाही सवारी पर उज्जैन में यह हाल होता है कि सवारी मार्ग में पैर रखने तक की जगह नहीं होती है।

महाकाल बाबा की सवारी पालकी में निकलती है, सवारी के आगे हाथी, घोड़े, पुलिस बैंण्ड, अखाड़े, गणमान्य व्यक्ति, झाँकियां होती हैं। महाकाल बाबा की सवारी लगभग शाम को चार बजे मंदिर से निकलती है, और रात को १२ बजे के पहले वापस मंदिर पहुँच जाती है। महाकाल बाबा के पालकी में दर्शन कर आँखें अनजाने सुख से भर जाती हैं।

हम इस बार ३ दिन की छुट्टियों पर उज्जैन जा रहे थे और १७ को वापिस आना था, फ़िर बाद में पता चला कि १७ अगस्त की महाकाल बाबा की शाही सवारी है तो सवारी के दौरान महाकाल बाबा के दर्शन करने का आनन्द का मोह हम त्याग नहीं पाये और २ दिन की छुट्टियाँ बड़ाकर उज्जैन जा रहे हैं।

महाकवि कालिदास ने “मेघदूतम” के खण्डकाव्य “पूर्वमेघ” में महाकाल के लिये लिखा है –

यक्ष मेघ से निवेदन करता है कि तुम वहाँ उज्जयिनी के महाकाल मन्दिर में सन्धयाकालीन पूजा में सम्मिलित होकर गर्जन करके पुण्यफ़ल प्राप्त करना

अप्यन्यस्मिञ्जलधर महाकालमासाद्य काले

स्थातव्यं ते नयनविषयं यावदत्येति भानु: ।

कुर्वन्सन्ध्याबलिपटहतां शूलिन: श्लाघनीया-

माम्न्द्राणां फ़लमविकलं लप्स्यसे गर्जितानाम ॥३७॥

अर्थात –

“हे मेघ ! महाकाल मन्दिर में अन्य समय में भी पहुँचकर जब तक सूर्य नेत्रों के विषय को पार करता है (अस्त होता है) तब तक ठहरना चाहिये। शुलधारी शिव की स्न्ध्याकालीन प्रशंसनीय पूजा में नगाड़े का काम करते हुए गम्भीर गर्जनों के पूर्ण फ़ल को प्राप्त करोगे।”

महाकाल बाबा की तस्वीरें देखने के लिये यहाँ चटका लगायें।

जय महाकाल बाबा, राजा महाकाल की जय हो।

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जय हो बांके बिहारी की

अभी मेरा अवकाश चल रहा है तो हम घूम फिर आए मथुरा, वृंदावन और भी बहुत सी जगह…. वृंदावन में कृष्णजी की ९ प्रगट मूर्तियाँ हैं और महत्वपूर्ण मंदिर है बांके बिहारीजी का जिस दिन मैं गया था उस दिन बहुत ही आकर्षक फूलों का बंगला बनाया गया था, वहाँ से तो वापस आने की इच्छा ही नहीं होती, क्योंकि ठाकुरजी की मूर्ति है ही इतनी प्यारी कहते हैं जो आये वृंदावनधाम उसके हो जाएं पूरे काम वृंदावन में हर मंदिर में ताली बजाकर हँसते हैं इससे हमेशा जीवन में खुशी रहती है वृंदावन में मन को शांति मिलती है तो आत्मा को संतुष्टि कहते हैं आज भी कृष्णजी वहाँ पर वास करते हैं बाकी है अभी ……