चिरविलसनात्खिन्न्विद्युत्कलत्र: – विलसन का सामान्य अर्थ चमकना है, परन्तु यहाँ विद्युत को मेघ की पत़्नी कहा है। इसलिए इसका अर्थ रतिक्रीड़ा करना, इठलाना, आदि भी किया जा सकता है अर्थात जिस प्रकार पत़्नी अपने पति की गोद में लेटकर, इठलाती रहती है और काम क्रीड़ा को बढ़ाकर, उसमें सहयोग कर, फ़िर थक कर सो जाती है, उसी प्रकार विद्युत भी इठलाकर तुम्हारी काम-क्रीड़ा बढ़ाक
र, रतिक्रीड़ा कर थक कर सो जायेगी। उस दशा में तुम उसे विश्राम देना।
कोई भी सज्जन यदि अपने मित्र के किसी भी कार्य को अपने हाथ में ले लेता है तो वह उस कार्य की सिद्धी होने तक प्रयत्न करता है, वह उस कार्य को करने में मन्द नहीं पड़ता। यक्ष मेघ से कहता है, इसी प्रकार तुमने भी अपने मित्र का जो कार्य अपने हाथ में लिया है, उसे पूरा करने के लिये जो मार्ग शेष बचा है, उसे प्रात: सूर्योदय होते ही पूरा करने के लिये पड़ना।
ज्ञातेऽन्यास्ड़्गविवृते खण्डितेर्ष्याकषायिता – अन्य स्त्री के सहवास से विकृत (चिह्नित) देखकर जो ईर्ष्या से क्रुद्ध हो उठती हो, उसे खण्डिता नायिका कहते हैं, कहने का अभिप्राय यह है कि पति के लिये पत़्नी श्रंगार करके बैठी थी, परन्तु वह किसी अन्य स्त्री के साथ रात्रि में सहवास करके प्रात: घर आया है, उसके होठों पर लाली तथा कपोलों पर सिंदूर लगा है, उसे देख कर पत़्नी जल-भुन जाती है, ऐसी स्त्री को पति चाटुवचनों से पैरों में गिरकर प्रसन्न करता है।
कररुधि स्यादनल्पाभ्यसूय: – कमलिनी सूर्य के पत़्नी के रुप में प्रसिद्ध है। यहाँ उसे खण्डिता नायिका के रुप में प्रस्तुत किया गया है। कामुक क्रीड़ाओं में विघ्न डालने वाले को कोई भी नहीं चाहता है। सूर्य ने रात्रि कहीं अन्यत्र व्यतीत की है, प्रात: जब आया तो उसका कपोल सिन्दूर से लाल था; अत: उसे देखकर कमलिनी तो पड़ी, उस पर पड़ी हुई ओस की बूँदे ही उसके आँसू हैं। सूर्य को उसके आँसू पोंछने हैं, अत: आँसू पोंछने के लिये कर (किरण) बढ़ाया है; अत: यदि मेघ उसके कार्य में विघ्न डालकर उसके कर को रोक देता है, तो वह अत्यन्त क्रुद्ध हो जायेगा। सूर्य से द्वेष करना शास्त्र-विरोधी है, उससे कल्याण का नाश तठा रौरव नरक की प्राप्ति होती है।