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चम्पू की कविता CHAMPU KI KAVITA
एक ईमेल में यह कविता आई थी, अच्छी लगी आप भी देखिये –
Pareshaan thi Champu ki wife
Non-happening thi jo uski life
Champu ko na milta tha aaram
Office main karta kaam hi kaam
Champu ke boss bhi the bade cool
Promotion ko har baar jate the bhul
Par bhulte nahi the wo deadline
Kaam to karwate the roz till nine
Champu bhi banna chata tha best
Isliye to wo nahi karta tha rest
Din raat karta wo boss ki gulami
Onsite ke ummid main deta salami
Din guzre aur guzre fir saal
Bura hota gaya Champu ka haal
Champu ko ab kuch yaad na rehta tha
Galti se Biwi ko Behenji kehta tha
Aakhir ek din Champu ko samjh aaya
Aur chod di usne Onsite ki moh maya
Boss se bola, "Tum kyon satate ho ?"
"Onsite ke laddu se buddu banate ho"
"Promotion do warna chala jaunga"
"Onsite dene par bhi wapis na aunga"
Boss haans ke bola "Nahi koi baat"
"Abhi aur bhi Champus hai mere paas"
"Yeh duniya Champuon se bhari hai"
"Sabko bas aage badhne ki padi hai"
"Tum na karoge to kisi aur se karunga"
"Tumhari tarah Ek aur Champu banaunga"
(WAKE UP CHAMPU)
उज्जैन यात्रा, महाकाल बाबा की शाही सवारी के दर्शन… भाग – २
१७ अगस्त बाबा महाकाल की शाही सवारी का दिन, इस बार सवारी का अगला सिरा और पिछला सिरा लगभग ७ किलोमीटर लंबा था, पहले शासकीय पूजा होती है फ़िर राजा महाकाल अपनी यात्रा मंदिर से लगभग शाम ४ बजे शुरु करते हैं, वहाँ से सवारी रामघाट पहुँचती है क्षिप्रा नदी के किनारे, वहाँ पूजन कर फ़िर सवारी अपने निर्धारित मार्ग से गोपाल मंदिर और फ़िर वापिस महाकाल लगभग शाम १०.४५ बजे पहुँच जाती है।
राजा महाकाल की शाही सवारी में उनके सारे मुखौटे साथ में चलते हैं जो कि वे अपनी पिछली सवारी में धारण कर चुके होते हैं, शाही सवारी में सबसे आगे पुलिस बैंड, घुड़सवार पुलिस, हाथी, अखाड़े, मलखम्ब, स्थानीय लोग, स्थानीय भक्त मंडल, गणमान्य नागरिक फ़िर राजा महाकाल की पालकी होती है। सवारी मार्ग के दोनों तरफ़ स्थानीय लोगों द्वारा स्वागत मंच भी बनाये गये थे, जहाँ से माईक से उदघोषणा भी की जा रही थी और राजा महाकाल की आगवानी भी की जा रही थी।
राजा महाकाल की शाही सवारी का वीडियो देखिये –
हमारे बेटेलाल को तो बड़ा मजा आया, उन्हें सवारी मार्ग में हमने अपना हाथ पकड़कर खड़ा कर दिया, इसके पहले उन्हें हम अपनी गोद और कंधे की सवारी करवा चुके थे। किसी मंडल ने अपनी झांकी बहुत अच्छे से सजायी थी तो किसी के समूह में भगवान के भेष धारण कर लोग चल रहे थे, बिल्कुल सजीव लग रहे थे, एक मंडल ने तो भगवान कृष्ण का इतना सुंदर भेषप्रबंधन किया था कि वो तो सजीव ही लग रहे थे। पूरा सवारी मार्ग फ़ूलों से पटा पड़ा था, सब सवारी में शामिल लोगों और राजा महाकाल का स्वागत फ़ूलों से कर रहे थे।
इस बार तो रिकार्डतोड़ भीड़ थी, सवारी मार्ग में तो प्रशासन का भीड़ प्रबंधन लगभग नहीं के बराबर था जबकि उज्जैन प्रशासन को सिंहस्थ के कारण भीड़ प्रबंधन का बहुत अच्छा अनुभव है, फ़िर भी आम आदमी को धक्के खाने के लिये छोड़ दिया गया था।सवारी मार्ग में पैर रखने की जगह नहीं थी, मार्ग के दोनों ओर के भवनों के छज्जे पर भी लोग टकटकी लगाये खड़े थे, कोई जगह ऐसी नहीं थी कि जहाँ जगह खाली छूट गयी हो, हर जगह मानव ही मानव। गाँव वाले केवल राजा महाकाल की शाही सवारी के दर्शन के लिये आये थे तो उनके पास उनकी गठरी या नया प्रचलन बैग था, और वे उसे लेकर ही राजा महाकाल के दर्शन की आस लिये थे।
हमने भी अपने बेटेलाल को अपने घर का पता याद करवाया और आपात स्थिती से निपटने के लिये उनकी जेब में अपने घर का पता और फ़ोन नं रख दिया और समझा दिया कि अगर हमसे अलग हो भी जाओ तो घबराना मत किसी भी पुलिस अंकल को पकड़ लेना और अपना पता बता देना नहीं तो उनको बोल देना कि मेरी जेब में मेरा पता है, मुझे घर पहुँचवा दीजिये। हमारे बेटेलाल भी खुश कि आज उनकी इतनी चिंता हो रही है। सवारी में पहुँचने के बाद भी बेटेलाल पता याद कर रहे थे अगर कहीं कोई कन्फ़यूजन होता तो झट हमसे वापिस पता पूछ लेते।
राजा महाकाल की सवारी के दर्शन करने के बाद हम वापिस अपने घर को लौट चले तो भी अद्भुत जनसैलाब था। शाही सवारी में आज से कुछ सालों पहले मतलब सिंहस्थ के पहले इतनी भीड़ नहीं आती थी। बहुत आराम से राजा महाकाल के दर्शन होते थे और हम भी अपनी मित्र मंडली के साथ राजा महाकाल की यात्रा में शामिल हुआ करते थे, पर धीरे धीरे आस्था का सैलाब उमड़ने लगा और अब यह यहाँ उज्जैन के लिये लोकोत्सव हो गया है। जिसमें शामिल होकर हरेक जन अपने को धन्य मानता है।
“राजाधिराज महाकाल महाराज की जय”
संबंधित पोस्ट –
भाग – १ के लिये यहाँ चटका लगाईये।
राजा महाकाल की सवारी के ज्यादा जानकारी के लिये यहाँ चटका लगाईये।
उज्जैन यात्रा, महाकाल बाबा की शाही सवारी के दर्शन… भाग – १
हम उज्जैन गये थे 5 दिन की छुट्टियों पर, और खासकर गये थे महाकाल बाबा की शाही सवारी के दर्शन करने के लिये। पहले ही दिन १४ अगस्त को जन्माष्टमी थी, हम अपनी धर्मपत्नी के साथ निकले भ्रमण पर, दर्शन किये गये गोपाल मंदिर के जहां गिरधर गोपाल की बहुत ही सुन्दर, मनभावन रुप के दर्शन हुए, और पूरा गोपाल मंदिर जगमगा रहा था, भव्य लाईटिंग की गई थी। गोपाल मंदिर सिंधिया परिवार ने बनवाया था और आज भी यह ट्रस्ट उन्हीं के पास है, शाही सवारी वाले दिन और बैकुण्ठ चतुर्दशी “हरिहर मिलन” वाले दिन आज भी सिंधिया परिवार से आकर महाकाल बाबा की आगवानी और पूजन करते हैं। इस बार शाही सवारी पर ज्योतिरादित्य सिंधिया आगवानी के लिये आये थे।
फ़िर चले हम महाकाल बाबा के दर्शन करने के लिये थोड़ी सी भीड़ थी, फ़िर भी बहुत जल्दी दर्शन हो लिये, और फ़िर वही क्रम साक्षी गोपाल, बाल विजय मस्त हनुमान के दर्शन और फ़िर क्षिप्रा नदी का किनारा। परम आनंद की अनुभूति होती है।
फ़िर १६ अगस्त को हम गये क्षिप्राजी की आरती में । क्षिप्रा नदी बहुत प्राचीन नदी है, महाकवि कालिदास के मेघदूतम में भी इसका वर्णन मिलता है, क्षिप्रा का मतलब होता है “ब्रह्मांड में सबसे तेज बहने वाली नदी”। फ़िर वहाँ से सम्राट विक्रमादित्य की आराध्य देवी और शक्तिपीठ माँ हरसिद्धी की आरती में, माँ हरसिद्धी की सवारी सिंह मंदिर के बाहर शोभायमान था और माँ हरसिद्धी के दर्शन करके आत्मा तृप्त हो गई, हम आरती के समय गये थे और भव्य आरती में शामिल होकर आनंद में भक्तिभाव से सारोबार हो गये। कहते हैं कि ये जागृत शक्तिपीठ है और आप इसका अहसास यहाँ संध्याकालीन आरती में शामिल होकर कर सकते हैं। फ़िर चल दिये घर की ओर महाकाल बाबा के शिखर दर्शन करके। कहते हैं कि महाकाल बाबा के दर्शन से जितना पुण्य मिलता है, शिखर दर्शन से उसका आधा पुण्य मिलता है।
घर जाते समय सवारी मार्ग की रौनक तो देखते ही बनती थी, पूरा सवारी मार्ग दुल्हन की तरह से सजाया गया था, भव्य लाईटिंग थी और भव्य मंच स्वागत के लिये। वहीं बीच में छत्री चौक पर फ़ेमस कुल्फ़ी खाई जो कि बहुत फ़ेमस है, और हमारे बेटेलाल को बहुत पसंद है।
महाकाल की शाही सवारी का वर्णन अगले भाग में –
महाकाल की शाही सवारी के बारे में ज्यादा जानकारी के लिये चटका लगायें।
15 अगस्त पर हम छुट्टी पर थे, इतने बाजू इतने सर गिन ले दुश्मन ध्यान से हारेगा तू हर बाज़ी जब खेलें हम जी जन से
टर्म इंश्योरेंस (Term Insurance) में परिपक्वता पर बीमा किश्तों की वापसी, क्या बहुत जरुरी है और उसकी क्या कीमत है !!
टर्म इंश्योरेंस बीमे का सर्वोत्तम रुप है, लेकिन क्यों “टर्म इंश्योरेंस की बीमा किश्त वापसी” वाली पॉलिसी न लें, लेकिन अगर आप नहीं मरे तो जमा की गई किश्तें वापिस नहीं मिलेंगी, एक आम सवाल है, कौन सी पॉलिसी बेहतर है, अब हम एक सरल उदाहरण लेते हैं और उसका खुद ही विश्लेषण करते हैं। अगर आपको थोड़ा बहुत गणित आता है तो आप औरों से बेहतर खुद ही बहुत अच्छे से आत्मविश्लेषण कर सकते हैं। तो अब हमें देखना है कि बेहतर क्या है “साधारण टर्म इंश्योरेंस” या “बीमा किश्त वापसी वाला टर्म इंश्योरेंस” ?? यह पता करना बहुत सरल है। बस कोशिश करें एक बेहतर प्लान पता करने की जो “बीमा किश्त वापसी वाला टर्म इंश्योरेंस” से अच्छा हो, अगर आप ढूँढ पाये तो, नहीं तो इससे बेहतर प्लान केवल “साधारण टर्म इंश्योरेंस” है। अब हम एक उदाहरण लेते हैं – आईएनजी वैश्य में “बीमा किश्त वापसी वाला टर्म इंश्योरेंस” का एक प्लान है जो कि “ING TERM LIVE PLUS” के नाम से है। कंपनी दो प्रकार से पेमेन्ट देती है – अ) मध्यावधि लाभ: जीवन को बीमित करने के बाद पॉलिसी अवधि के मध्य में, कंपनी नियमित प्रीमियम का 40% या फ़िर एकल/सीमित प्रीमियम का 20% वापिस करेगी, पर अगर बीमित व्यक्ति ज्यादा प्रीमियम का भुगतान कर चुका है तो उसे नहीं गिना जायेगा। ब) परिपक्वता लाभ: जीवन को बीमित करने के बाद उसकी परिपक्वता पर, जितनी भी प्रीमियम का भुगतान किया गया है उसे बिना ब्याज के वापिस कर देगी, वह उन प्रीमियम को हटा देगी जिसे बीमित व्यक्ति ने ज्यादा भर दिया है। तो अब हम आँकड़े देखते हैं – आयु: 35 वर्ष हम 10,653 प्रति वर्ष से इतनी या इससे ज्यादा राशि से और बेहतर क्या प्राप्त कर सकते हैं? हम एक उदाहरण लेते हैं टर्म इंश्योरेंस + पी.पी.एफ़. का 35 वर्ष के व्यक्ति के लिये 20 वर्ष की अवधि के लिये 12 लाख का प्रीमियम लगभग 3721 रुपये होती है, टैक्स के बाद। तो अगर हम 3721रुपये के भुगतान करते है 10653 रुपये की जगह तो हमारे पास बचते हैं 6932 रुपये (10,653 – 3721)| अब हम अगर यह 6932 रुपये हर वर्ष पी.पी.एफ़. में २० वर्षों तक 8% के हिसाब से निवेश करें तो इसका परिपक्वता मूल्य 3.40 लाख होता है। जो कि आईएनजी वैश्य के 2.1 लाख से बहुत अच्छा है, यह तो हो गया सबसे सुरक्षित तरीका, इसमें तो कोई प्रश्न ही नहीं उठता। SIP म्युचुअल फंड के साथ – अब प्रश्न यह है कि “टर्म इंश्योरेंस की बीमा किश्त वापसी” वाली पॉलिसी में क्या लाभ है ? उत्तर – कोई लाभ नहीं है, लेकिन आजकल बीमा कंपनियों को समझ में आ गया है कि लोगों को टर्म इंश्योरेंस का महत्व समझ में आ गया है, तो उनके विचार कुछ टर्म इंश्योरेंस प्लान में ही कम बढ़ कर देना था। ग्राहकों को महसूस करवायें कि “वे जो प्रीमियम भर रहे हैं वो उन्हें वापिस मिल जायेगी” इस तरह के नये उत्पाद बाजार में ला रहे हैं। लेकिन वो शायद भूल गये हैं कि इस दुनिया में “गणित” जैसे भी कुछ है। निष्कर्ष: तो अगर आप इंश्योरेंस लेने जा रहे हैं तो, टर्म इंश्योरेंस ही लीजिये, “टर्म इंश्योरेंस की बीमा किश्त वापसी” पॉलिसी पर बिल्कुल मत जाइये, उसकी प्रीमियम बहुत ज्याद है। हमेशा अतिरिक्त धन को किसी अन्य विकल्प में निवेश करें, जो कि सबसे बेहतर है। अब आप ऐसे बीमा एजेन्ट से कैसे निपटेंगे जो आपको इस तरह का उत्पाद बेचने की कोशिश करेगा ? या फ़िर आप अपने मित्रों को इन उत्पादों के जाल से कैसे बचायेंगे ? इस दुनिया में सबसे अच्छा उत्पाद अगर कोई है तो वो है "सरल", और मैं टर्म इंश्योरेंस को इस सदी का सबसे अच्छा उत्पाद मानता हूँ !! इससे अच्छा कोई उत्पाद ही नहीं है। इन बेबकूफ़ सोच वाले उत्पादों में अपना थोड़ा सा दिमाग उपयोग कर सोचें। तो आप खुद ही जान जायेंगे कि वह लेने लायक है या नहीं। संबंधित चिट्ठे पढ़ें – |
टर्म इंश्योरेंस (Term Insurance) बहुत जरुरी है पर ये लोगों को पसंद नहीं है, क्योंकि वो इसे पैसे की बर्बादी मानते हैं, वो सब लोग गलत हैं क्यों ? आइये देखते हैं |
टर्म इंश्योरेंस में जमा किये हुए धन से वापिस कुछ नहीं मिलता है इस कारण से ज्यादातर लोग इसे पसंद नहीं करते हैं| मेरा मानना है की यह एक मनोवैज्ञानिक कारण है क्योंकि "टर्म इंश्योरेंस की अवधि पूरा होने पर वापिस कुछ नहीं मिलता है"| और तो और अगर अवधि पूर्ण होने के बाद अगर पैसा मिल भी जाए तो कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ता| टर्म इंश्योरेंस न लेना एक बहुत बड़ी बेबकूफी है|
लोगों की समस्या क्या है की वे टर्म इंश्योरेंस लेना ही नहीं चाहते हैं ?
लोगों को टर्म इंश्योरेंस इसलिए पसंद नहीं है क्योंकि अगर टर्म इंश्योरेंस की पूरी अवधि मे उन्हें कुछ नहीं होता है तो जितना भी बीमे की किश्त उन लोगों ने भरी है वह फालतू ही गई और उसका उन्हें कोई फायदा भी नहीं हुआ| वास्तविकता मे ये लोग टर्म इंश्योरेंस के महत्त्व को नहीं समझते हैं | अब हम इसे दूसरे तरीके से देखते हैं, मान लीजिये की टर्म इंश्योरेंस की जमा किश्तें अवधि समाप्त होने के बाद मिल जाती हैं। हम एक सामान्य परिवार के मामले का अध्ययन करते हैं।
तुषार 28 साल का नौजवान है और उसकी बस अभी शादी हुई है। वह लगभग 40,000 रुपये प्रति माह कमाता है। उसके महीने के सारे खर्च लगभग 25,000 रुपयों में हो जाते हैं और वह लगभग 15,000 रुपये प्रतिमाह बचाता है। उसका परिवार भी आर्थिक रुप से उसके ऊपर निर्भर है जिसमें उसके माता व पिता हैं । अभी उसकी सेवानिवृत्ति में ३० वर्ष बाकी हैं। उसने अपनी बीमा की आवश्यकताओं की गणना की जो कि कम से कम लगभग 50-60 लाख होती है। अभी हम 50 लाख गणना के लिये लेकर चलते हैं।
विश्लेषण
अब मजे की बात, उसके वर्तमान खर्चे लगभग 25 हजार हैं, लेकिन जब वो 30 साल बाद सेवानिवृत्त होगा तब उसके महीने का खर्चा क्या होगा ? जैसे पिछले 30 वर्षों का मुद्रास्फ़ीति दर 6.5 % रहा है (पिछले आंकड़ों पर आधारित), अब मान लें कि अगले 30 वर्षों में भी मुद्रास्फ़ीति की दर औसतन 6.5 % ही रहती है। 30 वर्ष बाद उसका मासिक खर्च लगभग 25,000 x (1.065)^30 = 1,65,359 (1.65 लाख) होगा। यदि वह शुरु से ही टर्म इंश्योरेंस लेता है 50 लाख का, तो उसकी सालाना बीमा किश्त लगभग 12,293 रुपये होती है 30 साल की अवधि के लिये HDFC Standard Life Insurance में।
बीमा किश्त की गणना व तुलना आप यहाँ कर सकते हैं।
इसका मतलब कि वह कुल 3.68 लाख रुपये की किश्तें बीमा के रुप में देगा, और अगर यह किश्तों में जमा की गई रकम उसे मिल भी जाती है तो उसे कितना फ़ायदा होगा, वह कितने महीने का खर्चा उससे चला सकता है 2 महीने या ज्यादा से ज्यादा 3 महीने, क्योंकि उस समय उसका मासिक खर्च लगभग 1.65 लाख होगा। बस इतना ही !!
तो शायद अब इन प्रश्नों को करने की आवश्यकता है –
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आप अपने परिवार को वित्तीय जोखिम में डाल रहे हैं क्योंकि आपको 2 महीने के बराबर के खर्च की रकम वापिस नहीं मिल रहा है ?
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एक छोटी सी रकम जो कि आपको अवधि पूर्ण होने के बाद नहीं मिलेगी, उसके लिये अपने परिवार को जोखिम में डालने का बचपना कर रहे हैं।
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क्या आप यह नहीं सोचते हैं कि आप टर्म इंश्योरेंस को गलत नजरिये से देख रहे हैं ?
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आप इस पर ध्यान नहीं दे रहे हैं कि “आपको क्या मिल रहा है” बजाय इसके कि “आपको क्या नहीं मिल रहा है”।
हमारे पास बीमा किश्त वापसी वाले बीमा पहले से ही हैं, पर वे किसी बेबकूफ़ी से कम नहीं, क्योंकि ये बीमा आम आदमी की कमजोरी का फ़ायदा उठाते हुए बनाये गये हैं और उनके लिये जो लोग टर्म इंश्योरेंस को पैसे की बर्बादी मानते हैं क्योंकि उसमें अवधि पूर्ण होने के बाद रकम वापिस नहीं मिलती है।
भारत के लोगों द्वारा टर्म इंश्योरेंस न पसंद करने के कारण
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अधिकतर लोग केवल स्पष्ट रुप से आँकड़ों पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जैसे कि उन्हें बीमा किश्त में जमा रकम वापिस नहीं मिलेगी या अगर उन्हें कुछ नहीं हुआ तो ये पैसे की बर्बादी होगी, लेकिन वे लोग टर्म इंश्योरेंस के आंतरिक फ़ायदों के बारे में सोच ही नहीं पाते हैं।
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हम धन के साथ बहुत भावुक होते हैं, हम इस बात पर अपना ध्यान लगाते हैं कि हमारा धन बढ़ता रहे और फ़िर बाद में वह वापिस भी मिल जाये जबकि हम यह नहीं सोचते कि वह धन हमारी जिंदगी को कितनी सुरक्षा प्रदान करता है।
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अधिकांश लोग सोचते हैं कि मरने की संभावनाएँ बहुत कम होती हैं, औसतन लोगों की उम्र लंबी होती है पर यह फ़िर से एक बेबकूफ़ाना सोच है। हम बुरी स्थिति की कल्पना करना ही नहीं चाहते हैं इसलिये हम इस ओर ध्यान ही नहीं देते हैं।
निष्कर्ष
जिंदगी में हम बहुत सारी बातों पर ध्यान ही नहीं देते हैं जैसे कि स्वास्थ्य, खुशी के पल, प्रकृति, अपनों के साथ बिताया गया समय जो कि सबसे सुन्दर है और जिंदगी की सच्चाई भी है। टर्म इंश्योरेंस व्यक्तिगत वित्त क्षेत्र के समान ही है, बस जरुरत है तो अपना ध्यान “आप क्या खो रहे हैं” से “आप क्या पा रहे हैं” पर केन्द्रित करने की, आप एक बार टर्म इंश्योरेंस ले लेंगे तो आपकी जिंदगी और भी सुन्दर हो जायेगी।
आप इस बारे में क्या सोचते हैं क्या आप मेरी बातों से सहमत हैं, कृपया टिप्पणी देकर बताये क्या ऐसी मानसिकता के शिकार हैं आप भी ? क्या आपको मेरी ये श्रंखला पसंद आ रही है, आप और भी इस विषय पर पढ़ना चाहते हैं तो टिप्पणी करके बताईये।
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क्या प्राईवेट बीमा कंपनियों में निवेश करना सुरक्षित है ?
महेश सिन्हा जी ने पिछले चिट्ठे मै पूछा था कि क्या प्राईवेट बीमा क्ंपनियां सुरक्षित है निवेश करने के लिये जो कि तमाम तरह की स्कीमें बेच रहे हैं, रिटायरमेंट प्लान, पेन्शन प्लान, यूलिप इत्यादि । इस तरह की तमाम सवलों को अगर हम देखते हैं तो सबसे पहले हम यह समझते हैं कि कौन से तत्वों से इन कंपनियों में वित्तीय स्थिरता आती है और् ग्राहकों को धन वापस देने के क्षमता आती है।
सोल्वेन्सी मार्जिन बताता है कि कंपनी कितनी सक्षम है किसी भी अनदेखी परिस्थितियों से निपटने में । सामान्यता: यह मार्जिन कंपनियों को अपने नियोजक आई.आर.डी.ए. (IRDA) को देना होती है| इससे आई.आर.डी.ए. (IRDA) इन कंपनियों के ऊपर नजर रख पाते हैं अगर कोई गड़बड़ी पाई जाती है तो आई.आर.डी.ए. (IRDA) कार्यवाही करती है।
रिस्क तो फ़िर भी हरेक कंपनी के साथ निवेश करने पर रहती हो फ़िर भले ही वह प्राईवेट कंपनियां हों या एल.आई.सी. (LIC)। पर अगर बड़ी कंपनियों में निवेश करेंगें तो रिस्क कम ही रहती है जैसे AIG ने भारत में TATA के साथ गठजोड़ किया था और AIG वित्तीय समस्याओं का सामना करना पड़ा तो टाटा ने उसके शेयर खरीदकर निवेशकों की रिस्क कम कर दी।
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नारी के आभूषण
नारियाँ वस्तुत: आभूषणों से बहुत प्रेम करती हैं। हमारे शास्त्रों ने भी नारियों के लिये विविध प्रकार के रत़्नाभूषणों आदि की व्यवस्था की है, पर प्रत्येक आभूषण के अन्तर्गत एक गुण, सन्देश छिपा है। प्रत्येक भारतीय नारी को चाहिये कि आभूषण धारण करने के साथ – साथ आभूषण के अन्तर्गत निहित अर्थ संदेश को भी ह्र्दयंगम करे, ताकि उस आभूषण का नाम सार्थक हो सके –
मिस्सी – मिस अर्थात बहाना बनाना छोड़ दें। पान या मेंहदी – लाज की लाली बनायें रखें।
काजल – शील का जल नयनों में रखें।
नथ – मन को नाथे अर्थात नियन्त्रित रखें, जिससे नाक ऊँची रहे।
बेंदी – बदी (बुराई) छोड़ दें।
टीका – ध्यान रखें यश का टीका लगे – कलंक का नहीं।
वंदनी – पति एवं गुरुजनों की वन्दना करें।
पत्ती – अपनी तथा परिवार की पत (लाज) रखें।
कर्णफ़ूल – कानों से दूसरों की प्रशंसा सुनें।
हँसली – हमेशा हँसमुख रहें।
मोहनमाला – सद़्गुणों से सबका मन मोह लें।
कण्ठहार – पति के कण्ठ का हार बनें।
कड़े – किसी से कड़ी बात न बोलें।
छल्ले – किसी से छल न करें।
करघनी या कमरबंद – सत्कर्मों के लिये हमेशा कमर बाँध कर तैयार रहें।
पायल – सभी बड़ी बूढ़ी औरतों के पाँव (चरण) स्पर्श करें।
सन्तान के कर्तव्य जो सन्तान को निभाने चाहिये..
मातृ देवो भव: ! पितृ देवो भव: !
आचार्य देवो भव: ! अतिथि देवो भव: !
माता पिता, गुरु और अतिथि – संसार में ये चार प्रत्यक्ष देव हैं । इनकी सेवा करनी चाहिये। इनमें भी माता का स्थान पहला, पिता का दूसरा, गुरु का तीसरा और अतिथि का चौथा है। माता – पिता में परमात्मा प्रत्यक्ष स्वरुप है। माता साक्षात लक्ष्मी होती है तो पिता नारायण। जिनको माता पिता में भगवद्भाव नहीं होते उनको मन्दिर या मूर्ति में भी कभी भगवान के दर्श्न नहीं होते।
माता – पिता में भी माँ का दर्जा अधिक ऊँचा है। शास्त्रों में भी माँ का दर्जा पिता से सौ गुणा अधिक ऊँचा बताया गया है। पिता तो धन – सम्पत्ति आदि से पुत्र का पालन पोषण करता है, पर माँ अपना शरीर देकर पुत्र का पालन पोषण करती है। बच्चे को गर्भ में नौ माह तक धारण करती है, जन्म देते समय प्रसव पीड़ा सहती है, अपना दूध पिलाती है एवं अपनी ममता की छाँव में उसका पालन पोषण करती है। ऐसी ममतामयी जननी का ऋण पुत्र नहीं चुका सकता। ऐसे ही पिता बिना कहे ही पुत्र का भरण पोषण का पूरा प्रबन्ध करता है, विद्याध्ययन करवाकर योग्य बनाता है, उसकी जीविका का प्रबन्ध करता है एवं विवाह कराता है। ऐसे पिता से भी उऋण होना बहुत कठिन है। रामायण में कहा गया है – “बड़े भाग मानुष तन पावा”। इस शरीर के मिलने में प्रारब्ध (कर्म) और भगवत़्कृपा तो निमित्त कारण है और माता पिता उपादान कारण हैं। उनके कारण ही हम इस संसार में आते हैं। इसलिये जीते जी उनकी आज्ञा का पालन करना, उनकी सेवा करना, उनको प्रसन्न रखकर उनका आशीर्वाद लेना और मरने के बाद उनके मोक्ष हेतु पिण्ड दान, श्राद्ध – तर्पण करना आदि पुत्र का विशेष कर्तव्य है। माता पिता की दुआ में दवा से भी हजार गुणा ज्यादा शक्ति होती है।
पुराणों में उल्लेख मिलता है कि जब देवराओं में यह होड़ लगी कि सबसे बड़ा कौन ? जो सबसे बड़ा होगा वही प्रथम पूज्य होगा। तब सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया गया कि जो तीनों लोकों का तीन चक्कर लगा कर सबसे पहले आ जायेगा वही प्रथम पूज्य होगा। सभी देवता अपने अपने वाहनों पर चढ़ कर दौड़ पड़े तब गणेश जी बड़े चक्कर में पड़े कि मेरा वाहन चूहा सबसे छोटा है इस पर चढ़कर में कैसे सबसे पहले पहुंच सकता हूँ। अत: उन्होंने समाधिस्थ पिता शंकर के बगल में माँ पार्वती को बैठा दिया तथा स्वयं अपने वाहन पर चढ़ कर दोनों की तीन बार परिक्रमा की । माता पिता की परिक्रमा करते ही तीनों लोकों की परिक्रमा पूरी हो गई और वे प्रथम पूज्य घोषित हुए। आज भी बुद्धि के देवता के रुप में सर्वत्र प्रथम पूज्य हैं।
पहले की कुछ ओर कड़ियाँ परिवार के संदर्भ में –
- पत़्नी के कर्तव्य जो पत़्नी को निभाने चाहिये
- पति के कर्तव्य जो पति को निभाने चाहिये ..
- पति – पत्नि का संबंध
- संयुक्त परिवार कुछ महत्वपूर्ण बातें
- नई बहू का कुछ समय ससुराल में रहना जरुरी है !!