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इंसान और अविष्कार

इंसान जबसे इस दुनिया में आया है तब से ही वह अपने अविष्कार का लोहा मनवाते आया है, पहले नग्न रहते थे, फूल पत्ती खाते थे, धीरे धीरे अपने को ढंकने के लिये फूल पत्तियों का उपयोग किया और जो जानवर उनको परेशान करते थे, इंसान ने जाना होगा कि जब जानवर जानवर को मारकर खा सकता है और इंसान को भी मारकर खा सकता है तो इंसान ने भी जानवर को मारा होगा और अपने आप को बचाया होगा। स्वाद के लिये जब मांस को पकाया होगा तो उसमें ज्यादा स्वाद आया होगा। उसी तरह से कंदमूल को भी जब आग पर पकाया तो उसका स्वाद बेहतर लगा होगा। तो ये सब पहले अविष्कार थे, धीरे धीरे इंसान ने अपनी जरूरत के लिये और भी चीजों को सोच समझकर बनाया, जैसे चाकू, चूल्हा, पहनावा और जानवरों को आवागमन का साधन बनाकर यात्रा करना।

इंसान और अविष्कार
इंसान और अविष्कार

यह बात हुई पुरातन काल की, तो उस समय इंसान के पास कुछ था ही नहीं तो इंसान ने सबसे पहले अपनी जरूरत की चीजों पर काम करना शुरू किया, जिससे उसे सुविधा हो और कम मेहनत में ज्यादा काम करे, जिन भी नई चीजों को बनाया गया उसे अविष्कार ही कहा जायेगा, क्योंकि वह दुनिया में पहले से उपलब्ध नहीं थी और उस अविष्कार के उपयोग से हर कोई लाभांवित हुआ।

जब अपनी जरूरत की चीजें पा ली गईं तब सबसे पहले बचने वाले समय के उपयोग के लिये खेलों, नाटक, गाने, नृत्य, चित्रकारी आदि का अविष्कार हुआ। इन सब विधाओं के आने से न केवल इंसान की क्षमताओं का पता चला बल्कि इंसान कितना कल्पनाशील हो सकता है, यह भी निखर कर सामने आया। कई चीजों में इंसान को बहादुरी दिखानी होती थी, इससे इंसान के साहस और बहादुरता को और निपुण किया गया।

हर अविष्कार के पीछे कोई न कोई तकलीफ हमेशा ही जुड़ी होती है, जब तक इंसान को तकलीफ नहीं होती है तब तक वह किसी अविष्कार के लिये उद्यत नहीं होता, इंसान में आलस्य की भावना शायद जरूरत के अविष्कारों के बाद से ही ज्यादा जोर देने लगी होगी। पहले शारीरिक श्रम होता था और इसके लिये शारीरिक क्षमताओं पर ध्यान दिया जाता था, शारीरिक क्षमताओं वाला श्रम और खेल दुनिया सामने देख सकती थी तो उससे किसी एक इंसान को बहादुर या साहसी मान लिया जाता था जो कार्य कोई अन्य नहीं कर सकता था या फिर दूसरों के लिये कठिन होता था। अब शारीरिक श्रम की मात्रा कम हो गई है ऐसा कह सकते हैं, क्योंकि अब तो बहुत सी मशीने इंसान ने बना ली हैं।

अब मानसिक श्रम ज्यादा है, जिसमें कोई आपके पास बैठा व्यक्ति भी आपकी क्षमताओं का आंकलन नहीं कर सकता है, क्योंकि इसमें कई बार तो किसी को पता ही नहीं होता है कि कौन ज्यादा मानसिक श्रम कर रहा होता है। अब तो खैर जैसे जैसे हम तकनीक जगत में उन्नत होते जा रहे हैं, वैसे वैसे मानसिक श्रम को भी विभिन्न श्रेणियों में बाँटा जा रहा है।

शारीरिक श्रम के कार्यों में अधिक लोगों का जुड़ाव नहीं होता था, मतलब कि पहले ही आंकलन कर लिया जाता था कि इस कार्य के लिये कितने लोगों को श्रम लगेगा, उसमें भी अगर कोई अपने श्रम को बचाने के लिये अविष्कार कर ले तो उसे बेहतर माना जाता होगा। वैसे ही मानसिक श्रम में अपना समय और अच्छे से कार्य करने के लिये थोड़ा साहस अपने भीतर भरना होता है और हम नित नये अविष्कार कर सकते हैं। किसी को उन अविष्कारों के बारे में बतायें या न बतायें यह हमारे ऊपर निर्भर करता है।

डेशबोर्ड पर भगवान God on Dashboard

आज ऑफिस आते समय अचानक ही एक कार जिस पर एल (L) का स्टीकर कार पर लगा था याने कि कोई नया बंदा गाड़ी चला रहा थी और उसकी कार में सीट पर भी पॉलीथीन चढ़ी हुई थी, उस कार में पीछे के काँच और डेशबोर्ड दोनों पर भगवान चिपका रखे थे और उन पर ताजे फूल भी चढ़ाये हुए थे। आश्चर्य तब और हुआ जब उसके डेशबोर्ड पर दो भगवान याने कि गणेश जी और बाला तिरूपति दोनों को विराजित देखा और ऊपर काँच पर हनुमान लटकते नजर आये।

Car Dashboard India
Car Dashboard India

अचानक ही मुझे ध्यान आया कि जब मैंने भी कार ली थी और मेरा ड्राईवर जिससे मैंने कार सीखी थी वो कार डेकोर के पास लेकर गया था और मुझे भगवान डेशबोर्ड पर लगाने के लिये कहा था, तो मैंने कहा कि मेरे भगवान इस दुकान पर नहीं मिलेंगे वो तो केवल उज्जैन में ही मिलते हैं और मेरे पास एक छोटी सी तस्वीर है मैं उस तस्वीर को ही कार को माईलोमीटर के पास रखकर काम चला लूँगा, और जब भी उज्जैन जाऊँगा तब वहाँ से महाकाल भगवान डेशबोर्ड पर लगाने वाले ले आऊँगा।

मैंने इसके बाद ध्यान से देखना शुरू किया तो पाया कि लगभग 90 प्रतिशत गाड़ियों में डेशबोर्ड पर भगवान विराजमान हैं, अगर डेशबोर्ड पर नहीं हैं तो वे किसी न किसी प्रकार से गाड़ी मैं मौजूदगी बनाये हुए हैं, या तो वे बैकमिरर पर लटके हुए हैं या फिर तस्वीर की शक्ल में विराजमान हैं। किसी ने डेशबोर्ड पर छोटे भगवान लगा रखे हैं तो किसी ने बड़ा मंदिर भी लगा रखा है, पर सभी धर्मों के चालकों ने अपने अपने भगवान गाड़ियों में लगा रखे हैं।

मुझे कभी गाड़ी में भगवान लगाने का सिद्धान्त ही समझ नहीं आया, पता नहीं कब क्यों और कहाँ से यह अवधारणा आई। अगर ऐसा ही होता तो कार खरीदते समय ही कार कंपनी डेशबोर्ड पर भगवान आपकी पसंद के अनुसार फिट करके दे देते। पहले के राजा लोग अपने रथ पर कोई ध्वज फहराते थे और शायद भगवान उनके ध्वज पर ही रहते थे। जैसे पुराने जमाने में लोग बैलगाड़ी वगैराह में जाते थे तब उनकी गाड़ी में या तो जगह नहीं होती थी या उनको पता नहीं था, परंतु मैंने कभी बैलगाड़ी में भगवान को नहीं देखा, शायद बैल को ही भगवान रूप मान लिया जाता होगा। चार पहिया कोई भी हो, मैंने अधिकतर गाड़ियों में भगवान को देखा है, बसों में तो अगरबत्ती भी जलाई जाती है।

शायद इसके पीछे की भावना यही होती होगी कि इतनी बड़ी मशीन एक इंसान ही चला रहा है तो भगवान आप कृपा रखना और कई लोग गाड़ी चलाने के पहले भगवान का नाम लेते हैं और उतरते समय भगवान का धन्यवाद भी करते हैं। मशीने कभी भी किसी भी कारण से खराब हो जाती हैं और ये मशीनें बहुत तेज चलती हैं तो वैसे ही दुर्घटना भी खतरनाक होती है। हो सकता है कि आने वाले समय में रॉकेट में भी भगवान विराजमान हों, विमान का हमें पता नहीं। आप भी अपने आस पास देखें और समझें कि भगवान आखिर डेशबोर्ड पर विराजमान क्यों होते हैं।

अवचेतन मस्तिष्क subconscious mind

शुक्रवार को सुबह मन अनमना था, कुछ न कुछ उधेड़बुन मन में लगी हुई थी। उठने के बाद से ही लग रहा था कि आज कुछ गड़बड़ होने वाली है, ऐसा मेरे साथ पहली बार नहीं हो रहा था, पहले भी कई बार हो चुका है। मुझे कई बार पूर्वाभास हो जाता है, मेरे अवचेतन मस्तिष्क में यह बात चौंकी भी थी कि आज बाईक फिसल सकती है और कुछ चोट लग सकती है। ऑफिस जाने से पहले मैंने कई बार सोचा कि आज कार से जाया जाये, परंतु बैंगलोर का यातायात ऐसा है कि जितना देर होते जाता है, उतना ही कठिन गाड़ी चलाना होता जाता है। हमें तैयार होते होते थोड़ी देर हो ही गई, बाईक से ही जाने का निश्चय किया। बारिश का भी मौसम था, सोचा था कि बारिश से भी थोड़ा बच लेंगे, परंतु भाग्य से पूरे रास्ते बारिश नहीं मिली। Continue reading अवचेतन मस्तिष्क subconscious mind

TATA Hexa टाटा हैक्सा भविष्य की एसयूवी

हमने बैंगलोर में टाटा हैक्सा Tata Hexa कार के एक्सपीरियंस सेंटर  #hexaexperience  पर जाकर कार का अनुभव लिया। कार पहली नजर में देखने पर ही भा गई। टाटा की यह कार एसयूवी कारों में बहुत ही जल्दी अपनी पैठ बना लेगी। कार के प्रारूप को देखकर ही हम कार की परिकल्पना करने वाले लोगों की दाद देने लगे। हमने सबसे पहले स्वागत के काऊँटर पर जाकर अपने को और अपने परिवार को पंजीकृत किया, उन्होंने सभी के हाथ में बैंड पहना दिये। हमसे फॉर्म भरवाया गया और ड्राईविंग लाईसेंस की कॉपी भी ली गई, क्योंकि हमने कार चलाने की इच्छा प्रकट की थी। Continue reading TATA Hexa टाटा हैक्सा भविष्य की एसयूवी

जब हाईवे पर एक सफेद वर्दी वाले ने हमें हाथ दिया

कल बैंगलोर में यातायात के सफेद वर्दीधारी कुछ ज्यादा ही मुस्तैद नजर आ रहे थे, पहले लगा कि कोई बड़ा अफसर या मंत्री आ रहा होगा। परंतु हर जगह दोपहिया वाहनों और टैक्सी वालों को रोककर उगाही करते देख समझ आ गया कि इनको दिसंबर का टार्गेट पूरा करना होगा, नोटबंदी के चलते इनको नवंबर में भारी नुक्सान हुआ है। भले ही चालान क्रेडिट कार्ड या ऑनलाईन भरने की सुविधा हो, परंतु हर चालान तो एक नंबर में न ये काटेंगे और न ही पकड़ाये जाने वाला कटवायेगा। जब 500 या 1000 की जगह 100 या 200 में ही काम चल जायेगा तो कौन इतनी माथापच्ची करेगा। आजकल तो हालत यह है कि इनके पास भी जो क्रेडिट कार्ड मशीन होती है, उसकी भी टांय टांय फिस्स हुई होती है, या तो नेटवर्क फैलियर का मैसेज आता है या फिर सर्वर लोड का मैसेज या टाईम आऊट। Continue reading जब हाईवे पर एक सफेद वर्दी वाले ने हमें हाथ दिया

हानिकारक बापू

हानिकारक बापू – यह गाना है आमिर खान की फिल्म दंगल का, जबसे हमारे बेटेलाल ने यह गाना सुना है, तब से वे इसे कई बार सुन चुके हैं और लगभग याद ही कर लिया है। अब आलम यह है कि जब भी हम या घरवाली कुछ कहने को होते हैं तो बस इस गाने को गाना शुरू कर देते हैं। हमें भी उत्सुकता हुई कि आखिर यह गाना बना ही क्यों ?

फिल्म की कहानी और ट्रेलर से इतना पता चला कि मुख्य अभिनेता आमिर खान जो कि एक पहलवान की भूमिका में हैं और घर में बेटे होने का इंतजार कर रहे होते हैं, परंतु उनके घर में केवल लड़कियाँ ही पैदा हो रही होती हैं, और ये स्वर्ण पदक जीतने में नाकामयाब रहे तो अपना यह सपना अपने बेटे से पूरा करवाना चाहते हैं। पर एक दिन उनकी दो लड़कियों नें दो गाँव के छोरों को धो दिया तो पहलवान पिता ने सोचा कि पदक तो बेटी भी ला सके है और बस पहलवान पिता दोनों बेटियों के पीछे लग गया कि अब तो ये छोरियाँ ही स्वर्ण पदक लायेंगी। Continue reading हानिकारक बापू

पैसे सरकार नहीं बैंक दे रही है

आज बैंक गया पैसे निकालने के लिये लगभग 2 बजे, जब बैंक पहुँचा तो उम्मीद के मुताबिक भीड़ नहीं थी, सोचा कि या तो समस्या खत्म हो गई है या फिर बैंक के पास पैसा खत्म हो गया है। खैर गार्ड से पूछा – भई, पैसा निकल रहा है न। उसने हमको ऐसे देखा कि जैसे हमने कोई एलियन सा सवाल पूछ लिया हो, हमें लगा कि उसे हमारा प्रश्न समझ नहीं आया, हमने इस बार अंग्रेजी में पूछा, कि शायद हिन्दी न आती हो। तो हमें कहा कि सारे टोकन बँट चुके हैं, अब पैसा कल मिलेगा। Continue reading पैसे सरकार नहीं बैंक दे रही है

#BergerXP IndiBlogger Meet बर्जर पैंट्स की नयी इन्नोवेटिव तकनीक

बर्जर पैंट #BergerXP मैंने इसका नाम बरसों पहले सुना था, शायद 25 वर्ष पहले, और तब से ही हमारे घर में हम बर्जर पैंट का ही इस्तेमाल करते हैं। करीबन 15 वर्ष पहले घर की मरम्मत करवाई गई थी, उसके बाद हमने अपने पैंटर को कहा कि अब इतना अच्छा काम करवाया है, अब अच्छा सा पैंट कर दो कि घर अच्छा लगे। उन्होंने ही हमें सुझाया कि बर्जर पैंट्स का सिल्क पैंट का उपयोग करो, अभी अभी ही बाजार में आया है और बहुत ही अच्छा है। एक बार कर लो और फिर जब भी दीवाल गंदी लगे, धो लो। तबसे हमारे यहाँ घर में हमेशा ही जब भी पैंट होता है, हम बर्जर पैंट्स के सिल्क पैंट का ही उपयोग करते हैं।

bergerxp badge
bergerxp badge

इस बार की बर्जर पैंट्स इंडीब्लॉगर मीट #BergerXP IndiBlogger Meet में शामिल होने का मौका मिला। ब्लॉगर मीट का आयोजन ललित अशोक होटल में किया गया, और जब मीट में पहुँचे तो कई ब्लॉगर पहले से ही पहुँच चुके थे। कई ब्लॉगर्स से पहली बार ही मिलना हुआ और कई ब्लॉगर्स से पहले भी मिलना हो चुका था। कल फरीदा रिजवान से सबसे पहले मिला वे 21 वर्ष से स्तन कैंसर के स्टैज 3 कैंसर की सर्वाइवर हैं और उनका फोटो मैंने रेसीडेंसी रोड पर एक सिग्नल पर लगा हुआ देखा था, तो उन्हें बधाई भी दी।

इसके बाद बर्जर पैंट्स इंडीब्लॉगर मीट की वॉल पर फोटो भी खींचे गये और 251 लाईक वाली एक इन्सटॉग्राम की फ्रेम भी बहुत घूम रही थी। बर्जर पैंट्स इंडीब्लॉगर मीट की शुरूआत लजीज खाने से हुई, और फिर सैशन शुरू होने के पहले ही हॉल में एक गुब्बारा और एक धागा दे दिया गया। बैठने के बाद सबसे पहले कहा गया कि अब खड़े हो जाओ और फिर शुरू हुआ एक वार्मअप सैशन जिससे कि ब्लॉगर्स सो न जायें और फिर गुब्बारे को फुलाकर धागे से बाँधने को कहा गया। असली खेल तो अब बताया कि सब लोग अपने गुब्बारे के धागे को अपने पैरों में बाँध लें और फिर एक दूसरे के गुब्बारे को फोड़ें, अगर आपका गुब्बारा फूट गया है तो आप नहीं फोड़ सकते और जिसने अपना गुब्बारा सबसे आखिरी तक बचा लिया, वह विजेता। खैर हम गुब्बारे को ज्यादा देर तक नहीं बचा पाये।

बर्जर पैंट्स इंडीब्लॉगर मीट में सबसे अच्छी बात यह लगी कि बिना स्लाईड के ही कंपनी की एवं पैंटिंग इंडस्ट्री की सारी जानकारी बहुत ही आसान शब्दों में दे दी गई। बताया गया कि पैंट करने के पहले क्या क्या करना होता है और इसके लिये बर्जर पैंट्स ने बहुत सी मशीनों को हमारी सुविधा के लिये बाजार में उतारा है। हमें तो सबसे अच्छी मशीन लगी घिसाई करने वाली, इससे घिसाई के बाद जो कण उड़ते हैं और पूरे सामान को गंदा करते हैं और साथ ही हमारे शरीर के अंदर भी चले जाते हैं तथा इससे कई बार हमें खाँसी की समस्या भी हो जाती है, तो इस मशीन में एक पाईप लगा है, जिससे घिसाई की 80-90 प्रतिशत धूल मशीन में ही चली जाती है और प्रदूषण भी नहीं फैलता है।

बर्जर पैंट्स की लगभग सारी ही मशीनों के बारे में हमने समझा और जाना, साथ ही हमें समझ आया कि तेजी से बर्जर पैंट्स का व्यापार इन नयी इन्नोवेटिव तकनीक का उपयोग करने से और भी बड़ेगा। पिछले साल लगभग 1.5 लाख इन्क्वायरी आई थीं, जिसमें से लगभग 90 हजार घरों की विजिट की गई और 15 हजार घरों ने बर्जर पैंट्स की इस सुविधा का लाभ उठाया। इस वर्ष यह आँकड़ा 20 प्रतिशत से अधिक हो चुका है, जो कि पिछले वर्ष 10 प्रतिशत था। बर्जर पैंट्स कंपनी फोर्ब्स इंडिया की सूचि में सातवें स्थान पर है जो कि अपने आप ही एक सकारात्मक बात है। पैंटिंग के बारे में ज्यादा जानकारी जानना चाहते हैं तो बर्जर पैंट्स की वेबसाईट पर जाकर जानकारी ले सकते हैं।

इस #BergerXP IndiBlogger Meet में मुझे #BergerXP ने मुझे Social Media Kingpin of the Day! भी चुना।

बर्जर पैंट्स इंडीब्लॉगर मीट
बर्जर पैंट्स इंडीब्लॉगर मीट

छोटी और बड़ी सोच के अंतर

जो लोग छोटे पदों पर होते हैं उन्हें ज्यादा क्यों नहीं दिखाई देता और जो लोग बड़े पदों पर होते हैं वे ज्यादा लंबी दूरी का क्यों देख पाते हैं। वो कहते हैं न कि सोच ही इंसान के जीवन का नजरिया बदल देती है। पर यहाँ समस्या सोच की नहीं है समस्या है पहुँच की, आप जितनी ऊँचाई पर होंगे उतना ज्यादा देख पाओगे, और धरातल पर केवल धरातल की चीजें ही दिखाई देंगी। पता नहीं कब सोचते सोचते यह विचार मेरे जहन में कौंध आया और मन ही मन इस बात पर शोध चलता रहा। समझ जब आया जब रोज की तरह ऑफिस जा रहा था। उस समझ में एक और समझ आ गई कि क्यों और किस तरह लोगों से बचकर चलना चाहिये, कैसे लोग आपको जगह देते हैं और कैसे आपकी जगह लेकर आपसे आगे बढ़ जाते हैं और हम केवल देखते ही रह जाते हैं।

हमारा जीवन और जीवन में होने वाली घटनाएँ बिल्कुल सामान्य यातायात की तरह हैं, जहाँ सड़क पर दूर दूर तक अवरोध हैं और हमें उन अवरोधों को एक एक करके पार करना है।

अगर हम पैदल होंगे तो हमें दिखाई देने वाले अवरोध और रास्ते पूर्णत धरातल पर होंगे, पर पैदल चलने वाले के लिये फुटपाथ बना है, और पैदल चलने वाला सड़क पर भी चल सकता है। जब पैदल चलने वाला फुटपाथ पर चलता है तो उसका अनुभव धरातल से जुड़ा होता है, वह आसपास की हर घटना या चीजों को बहुत ही करीब से देख रहा होता है या महसूस कर रहा होता है और यही जमीनी अनुभव कहलाता है, यही हम अगर व्यावसायिक भाषा में कहें तो जो लोग बुनियादी कार्य कर रहे हैं उन्हें पर तरह का अनुभव होता है।

अगर हम साईकिल या मोटर साईकिल पर होंगे तो हम फुटपाथ पर नहीं चल सकते हमें सड़क पर ही चलना होगा, अनावृत होने से कार, जीप, बस और ट्रक का भी सामना करना होगा। यहाँ भी बाईक सवार को उतना ही दिखाई देगा जितना कि वह बाईक से देख सकता है, अब ये निर्भर करता है कि किस रफ्तार की मशीन उसकी बाईक में लगी है, वह कितनी तेजी से दूरी तय कर सकती है, उसे कितने अच्छे से अपना वाहन चलाना आता है और कैसे अपने से बड़े वाहनों के बीच जगह बनाते हुए अपने गंतव्य तक पहुँचता है। बाईक वाले पैदल चलने का दर्द समझ सकते हैं क्योंकि वे भी कभी कभी पैदल चलते हैं या फिर वे अभी अभी बाईक सवार बने हों या फिर भूल भी सकते हैं अगर वे लंबे समय से बाईक सवार हैं।

कार जीप वाले लोग अपने आसपास के वाहनों का ध्यान जरूरी रखेंगे नहीं तो उनके साथ साथ ही दूसरे का भी ज्यादा नुक्सान हो सकता है, उन्हें दूसरे से ज्यादा अपने वाहन की ज्यादा चिंता होती है। जैसे कि लोग खुद के सम्मान की ज्यादा चिंता करते हैं, और दूसरे से थोड़ी दूरी हमेशा बनाये रखते हैं, क्योंकि टकराव हमेशा ही बुरा होता है, टकराव से हमेशा ही बुरा प्रभाव पड़ता है। कार सवार को जमीनी अनुभव से गुजरे हुए समय हो गया होता है और बाईक का अनुभव उसके लिये हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता है।

तो कहने का मतलब इतना ही है कि जब तक जमीनी तौर पर जुड़कर काम करते हैं तो आप उन सब चीजों को बहुत अच्छे से समझ सकते हैं और हमेशा ही अपने से बड़े वाहनों या पदों पर बैठे हुए व्यक्ति से या तो डरेंगे या उनकी स्थिति को समझने की कोशिश करेंगे, परंतु जैसे ही जमीनी स्तर से ऊपर उठते हैं वैसे ही इंसान बदल जाता है और वैसे ही उसके देखने की दिशा बदल जाती है।

उम्मीद है बात जो कहना चाह रहा था, पहुँच गई होगी, नहीं तो हम टिप्पणियों में भी बात आगे बढ़ा सकते हैं।

दौड़ते रहें, स्वस्थ्य रहें, सुखी रहें

कल Neeraj Jat के फेसबुक स्टेटस पर आदरणीय Satish Saxena जी ने बताया था कि कैसे दौड़ना शुरू करना है, वॉक रन वॉक रन और कौन कौन से दिन करना है, शनिवार या रविवार को 8 किमी या उससे अधिक करना सुझाया था, कल बरसात भी थी, ठंड भी थी, और रजाई भी थी, तो हम आलस कर गये। आज सुबह मौसम बढ़िया था, सुबह उठकर निकल लिये कम से कम 8 किमी दौड़ने का इरादा था, परंतु स्वेटशर्ट पहनकर दौड़ने से 8 किमी पूरा नहीं कर पाये, स्वेटशर्ट पूरी गीली हो गई और इतनी भारी शर्ट पहनकर दौड़ना बहुत मुश्किल लग रहा था, तो जैसे तैसे 6.8 किमी दौड़ लगभग 48 मिनिट में पूरी की और घर आ गये। एवरेज फिर भी 7.10 मिनिट किमी का रहा, जो कि ठीक ही है। Continue reading दौड़ते रहें, स्वस्थ्य रहें, सुखी रहें