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हेमामालिनी की अदाएँ
सीधे हाथ के अंगूठे का महत्व और होने वाली तकलीफ़ें |
सीधे हाथ के अंगूठे में लगने के कारण कुछ तकलीफ़ें –
१. जेट चलाने में उल्टे हाथ का प्रयोग करना पड़ा।
२. मोबाईल उपयोग करने के लिये उल्टे हाथ का प्रयोग करना पड़ा।
३. बटन लगाने के लिये उल्टे हाथ के अंगूठे पर निर्भर होना पड़ा।
४. जिप बंद करने में भी अंगूठे का बहुत योगदान है।
५. हेलमेट के लॉक को बंद करने के लिये अंगूठे को छोड़ दूसरी ऊँगलियों पर निर्भर होना पड़ा। जो कि वाकई बहुत कष्ट्दायक है।
६. बेल्ट का लॉक लगाने के लिये भी अंगूठा बहुत मददगार होता है।
७. की-बोर्ड पर स्पेस बटन दबाने के लिये उल्टे हाथ के अंगूठे का प्रयोग करना पड़ रहा है।
८. खाना खाने के लिये भी उल्टे हाथ का प्रयोग करना पड़ रहा है, क्योंकि रोटी का कौर तोड़ने में सीधे हाथ के अंगूठे का बहुत बड़ा योगदान है।
८. पानी की बोतल का ढक्कन खोलने में भी अंगूठे का बहुत बड़ा योगदान है।
९. सुबह टूथब्रश भी उल्टे हाथ से करना पड़ रहा है।
१०. टीवी का रिमोट भी उल्टे हाथ से उपयोग करना पड़ रहा है।
११. ताला लगाने के लिये उल्टे हाथ के अंगूठे का प्रयोग करना पड़ रहा है।
१२. इलेक्ट्रिक प्लग में प्लग करने के लिये भी उल्टे हाथ का सहारा लेना पड़ रहा है।
१३. हमारे लेपटॉप में यू.एस.बी. सीधे हाथ की तरफ़ है तो अब पेन ड्राईव लगाने के लिये पहले लेपटॉप को पूरा घुमाना पड़ता है फ़िर पेन ड्राईव लगाना पड़ती है।
१४. फ़ीता बांधने में परेशानी होने के कारण बिना फ़ीते का जूता पहना या फ़िर चप्पल।
१५. सारे क्रेडिट एवं डेबिट कार्ड पर्स में आगे जेब में होने से पर्स भी उल्टे हाथ से प्रयोग करना पड़ रहा है और कार्ड निकालने के लिये भी उल्टे हाथ का अंगूठा प्रयोग करना पड़ रहा है।
१६. जेब में भी सारी चीजों की जगह बदल गयी हैं, सारी दायीं तरफ़ की चीजें बायीं तरफ़ आ गई हैं।
१७. बाईक चलाने में एक्सलेटर के लिये केवल ऊँगलियों का इस्तेमाल करना पड़ रहा है, और थोड़ा अंगूठे के निचले हिस्से की मदद लेना पड़ रही है।
१८. घड़ी बांधने में भी अब मध़्यमा ऊँगली का सहारा लेना पड़ रहा है।
१९. दरवाजे के चिटकनी लगाने के लिये भी उल्टे हाथ का ही प्रयोग करना पड़ रहा है।
२०. कपड़े पर चिपकी लगाने के लिये भी उल्टे हाथ का प्रयोग करना पड़ रहा है।
अब हाथ में तकलीफ़ थोड़ी कम है, आगे के उपचार के लिये चिकित्सक महोदय के पास जाने के बाद कल पता चलेगा और कितने दिन लगेंगे ठीक होने में।
इस्कॉन बैंगलोर मंदिरों में अलग अनुभव जैसे धार्मिक बाजार (Different experience in Iskcon Bangalore like bazzar)
बहुत दिनों बाद बैंगलोर में ही कहीं घूमने निकले थे, आजकल तपता हुआ मौसम और झुलसाती हुई गर्मी है, बैंगलोर की तपन ऐसी है जैसे कि निमाड़ की होती है अगर धूप की तपन में निकल गये तो त्वचा जल जायेगी और अलग से पता चल जायेगा त्वचा ध्यान न देने की वजह से जली है। मालवा में दिन में तपन तो बहुत होती है परंतु मालवा में रातें ठंडी होती है, रात में पता नहीं कहाँ से ठंडक आ जाती है।
घर से लगभग ३० कि.मी. दूर बैंगलोर इस्कॉन जाना तय किया, सोचा कि एक वर्ष से ज्यादा बैंगलोर में हो गया है परंतु अब तक कृष्ण जी के दर्शन नहीं हो पाये, चलिये आज कृष्ण जी के दर्शन कर लिये जायें। इस देरी का एक मुख्य कारण था हमारा मन, जब मुंबई से बैंगलोर आये थे तब हम श्री श्री राधा गोपीनाथ मंदिर जो कि गिरगाँव चौपाटी पर स्थित है और ग्रांट रोड इसका नजदीकी रेल्वे स्टॆशन है, जाते थे और आते समय बताया गया कि इस्कॉन का कोर्ट केस चल रहा है और इस्कॉन बैंगलोर मंदिर इस्कॉन सोसायटी ने बहिष्कृत कर रखा है। अगर आप वहाँ जायेंगे तो कृष्ण भक्ति नहीं आयेगी मन में, बल्कि आपका मन, भावना और भक्ति दूषित होगी। इस्कॉन बैंगलोर में अगर आप सदस्य हैं तो उस सदस्यता का लाभ दुनिया के किसी भी मंदिर में इसी कारण से नहीं मिलेगा, किंतु इस मंदिर को छोड़ आप किसी और मंदिर के सदस्य हैं तो आपको सदस्यता का लाभ मिलेगा।
हम तो ह्र्दय में कृष्ण भावना रखकर गये थे कि हमें तो भगवान कृष्ण के दर्शन करने है और जीवन में प्रसन्नता लानी है। मन से ऊपर लिखी हुई बात हम अपने ह्र्दय से से निकाल कर गये थे, नहीं तो ह्र्दय कृष्ण में लगाना असंभव था।
बिना किसी पूर्वाग्रह के महाकालेश्वर की असीम कृपा से हम सुरक्षित इस्कॉन मंदिर लगभग १ घंटे में पहुँच गये। वहाँ पहुँचकर पहले जूते ठीक स्थान पर रखे गये और फ़िर कृष्ण जी के दर्शन करने चल दिये। जैसे ही थोड़ी दूर चले वहाँ एक लाईन लगी थी, जहाँ लगभग १०८ पत्थर लगे हुए थे और महामंत्र “हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम हरे राम राम, राम राम हरे हरे” का उच्चारण हर पत्थर पर करना था, इसका एक फ़ायदा भीड़ नियंत्रण करना था और दूसरा फ़ायदा दर्शनार्थियों को था उन्हें १०८ बार महामंत्र बोलना ही था या सुनना ही था, रोजमर्रा जीवन में इतना समय भी व्यक्ति के पास नहीं होता कि १०८ बार महामंत्र बोल ले। महामंत्र ऐसे बोलना चाहिये कि कम से कम आपके कानों तक आपकी आवाज पहुँचे तभी महामंत्र बोलने का फ़ायदा है। पत्थर सीढ़ीयों पर भी लगे हुए थे, पहला मंदिर प्रह्लाद नरसिंह अवतार का है उसके बाद दूसरा मंदिर श्रीनिवासा गोविंदा का आता है।
अब आता है मुख्य मंदिर जहाँ महामंत्र से वातावरण अच्छा बन पड़ा था, और यहाँ पहली प्रतिमा श्रीश्री निताई गौरांग की दूसरी याने कि मध्य प्रतिमा श्री श्री कृष्ण बलराम की और तीसरी प्रतिमा श्री श्री राधा कृष्ण चंद्र की है। मंदिर का मंडप देखते ही बनता है, बहुत सुन्दर चित्रकारी से उकेरा गया है।
मंदिर में आप अपने हाथ से प्रसाद पंडित जी को नहीं दे सकते हैं, प्रसाद आपको काऊँटर पर जमा करना है और पर्ची दिखाकर दर्शन करने के पश्चात आप प्रसाद की थैली ले सकते हैं। विशेष दर्शन की व्यवस्था है जिसका लाभ कोई भी २०० रुपये में उठा सकता है, विशेष दर्शन में भगवान के थोड़ा और पास जाकर दर्शनों का लाभ लिया जा सकता है। जैसे ही दर्शन करके आप सामने देखते हैं तो मंदिर में ही किताबें और सीडी के विज्ञापन दिखते हैं, जो शायद ही किसी ओर मंदिर में आपको दिखें। जैसे ही दर्शन करने के बाद बाहर के रास्ते जाने लगते हैं तो कतारबद्ध दुकानों के दर्शन होते हैं, पहले बिस्किट, केक और मिठाई फ़िर अगरबत्ती, किताब, कैलेडर, मूर्तियाँ, सीनरी, सॉफ़्ट टॉयज, कुर्ता पजामा, टीशर्ट और वह सब, मंदिर में जो जो बिक सकता है वह सब वहाँ कतारबद्ध दुकानों पर उपलब्ध है। उसके बाद खाने पीने के लिये एक बड़ा हाल आता है जहाँ कि कचोरी, समोसे, जलेबी, खमन, तरह तरह के चावल, भजिये, केक, कुल्फ़ी, लेमन सोडा, बिस्किट्स इत्यादि उपलब्ध है। हमें तो स्वाद अच्छा नहीं लगा। और ऐसा पहली बार हुआ है कि इस्कॉन में खाने का स्वाद अच्छा नहीं लगा।
यहाँ हर किसी को पार्किंग से लेकर जूता स्टैंड तक पैसे खर्च करने पड़ते हैं, जबकि किसी भी इस्कॉन मंदिर में ऐसा नहीं होता।
मंदिर गये थे परंतु ऐसा लगा ही नहीं कि मंदिर में आये हैं ऐसा लगा कि किसी धार्मिक बाजार में हम आ खड़े हुए हैं। हाँ बेटे के लिये जरूर अच्छा रहा वहाँ एक मिनि थियेटर भी बना हुआ है जिसमें कि आप एनिमेशन फ़िल्म सशुल्क देख सकते हैं, जो कि एक छोटे से कमरे में एक बड़ा टीवी लगाकर और थियेटर साऊँड सिस्टम लगाकर बनाया गया है।
जब हम मंदिर से निकले तो हमारे मन और ह्र्दय में महामंत्र नहीं चल रहा था, न ही मंदिर में स्थित भगवान के चेहरे आँखों के सामने थे, बस जो भी नजर आ रहा था वह था, वहाँ स्थित भव्य बाजार।
वैसे एक बात फ़िर भी आश्चर्यजनक लगी कि दर्शन के लिये कोई टिकट नहीं था, जबकि दक्षिण में अधिकतर सभी मंदिरों में दर्शन के लिये टिकट है और अर्चना एवं प्रसाद चढ़ाने के लिये भी टिकट की व्यवस्था होती है, इसलिये यहाँ बैंगलोर में आकर मंदिर जाने का मन बहुत ही कम होता है, मंदिर जाकर अगर मन को ऐसा लगे कि आप मंदिर में नहीं किसी व्यावसायिक स्थान पर खड़े हैं, तो अच्छा नहीं लगता।
लूट तो हरेक जगह है, हर मंदिर में है फ़िर वो क्या उत्तर और क्या दक्षिण, और लूट भी रहे हैं वो पुजारी और पंडे जो कि भगवान की सेवा में लगे हैं, और भगवान भी उन पंडों और पुजारियों पर खुश है और उन पर अपनी सेवा करने की असीम कृपा बनाये हुए है।
हे कृष्ण! हे गिरधारी! कब इस कलियुग में तुम्हारे पंडे और पुजारी की इस लूट से आम जनता बच पायेगी।
सावधान ! कहीं बैंक खाते से पैसा गायब ना हो जाये (Be Alert ! for your money in Bank..)
भोरकालीन वातावरण और प्रकृति के अप्रितम रंग
सुबह जल्दी उठकर प्रकृति का आनंद लेना, मेरे जीवन का एक अहम हिस्सा है, प्रकृति के इस रम्य वातावरण को देख मन आह्लादित हो उठता है। जो प्रसन्नता मन को भोरकालीन वातावरण में मिलती है, वह अवर्णनीय है। सुबह पंक्षियों का कलरव, मंद गति से बहती शीतल हवा, बयार में शांत पेड़ पौधे अपने अप्रितम सौंदर्य का दर्शन देते हैं, दैनिक जीवन की शुरूआत से पहले बिल्कुल शांत और निर्वाण रूप होता है सुबह का।
पक्षी स्वच्छन्दता से अपने पंखों से उड़ रहे होते हैं और डैने फ़ैलाकर आकाश में क्रीड़ा कर रहे होते हैं। पक्षियों की इस क्रीड़ा को देखने से मन ऊर्जास्फ़ुरित हो उठता है। कुछ पक्षी उड़ान के अपने नियम बनाते हैं और कुछ पक्षी अनुशासन में एक के पीछे एक पंक्ति में उड़ान भरते नजर आते हैं। इन पक्षियों को देखकर ही विचार मुखरित हो उठते हैं और हृदय को मिलने वाली प्रसन्नता शब्दों में कह पाना कठिन होता है।
पौधे अपने निर्विकार रूप में खडे होते हैं, पेड़ पौधों में जान होती है परंतु वे स्व से अपने पत्तियों को खड़का नहीं सकते, वे तो प्रकृति प्रदत्त वातावरण पर आश्रित होते हैं। भोर में पेड़ पौधों पर पड़ी ओस, मोती सा आभास देती है, और जलप्लवित पत्तियों से ऊर्जा संचारित होती है, वह ऊर्जा लेकर हम अपने जीवन की शुरूआत करते हैं।
कुछ समय पूर्व रंगों के त्यौहार पर इस बागीचों के शहर में पंक्तिबद्ध रंगबिरंगे फ़ूलों के बड़े बड़े पेड़ों को देखते ही बनता था, प्रकृति प्रदत्त इन रंगीन फ़ूलों को देखकर ही लगता था कि रंगों का त्यौहार आ चुका है, सड़क किनारे कच्ची पगडंडियों पर गिरे इन फ़ूलों का अप्रितम सौंदर्य देखते ही बनता है। विभिन्न रंगों के फ़ूल जीवन के विभिन्न रंगों को प्रदर्शित करते हुए, गीत गाते हुए जीवन को नया राग देते हैं।
प्रकृति की इस मौन भाषा को देखकर और अहसास से ही समझा जा सकता है, भोर के इस थोड़े से समय बाद जीवन की भागदौड़ में ये भोरकालीन मंच अपने आप पर पर्दा गिराकर फ़िर से दिनभर के लिये लुप्त हो जाता है। यह भोरकालीन मंच का आनंद लें और अपने जीवन को खुशियों में प्रकृति संग बितायें।
भोरकालीन कुछ और चित्र जिन्हें देखकर मन आनंद की सीमाओं के परे दौड़ पड़ता है।
वोदाफ़ोन का गड़बड़ बिल (Wrong Mobile Bill of Vodafone, Data Usage Charges)
नियम का पालन और पहरेदार
नियम एक ऐसी चीज है जो हर व्यक्ति को पसंद होती है, बस उसकी परिभाषा सबकी अपनी अलग होती है। सब अपनी पसंद से नियम को अपने अनुकूल बना लेते हैं और दूसरों पर थोपने की कोशिश करते हैं। सरकार इन्हीं नियम को कानून का रूप देती है और नियम पालने के लिये पहरेदार भी बैठा देती है।
सरकार की देखा देखी हरेक जगह नियम बनाये गये और उन पर पहरेदार भी लगा दिये गये परंतु कभी आम आदमी से उन नियम के बारे में पूछने की जहमत नहीं उठाई गई, क्या वाकई आम आदमी उन नियमों का पालन करना चाहता है या नहीं ।
नियम तोड़कर भागने की प्रवृत्ति ज्यादा देखने में आती है, कोई भी आदमी नियम तोड़कर खुद पहरेदार के पास नहीं जायेगा, बल्कि पहरेदार को उस नियम तोड़कर भागने वाले व्यक्ति को ढूँढ़ना होगा, अगर सभी नियम का पालन करने लगे तो पहरेदार की आवश्यकता ही खत्म हो जायेगी।
हो सकता है जो आपका या मेरा मन नियम मानता हो परंतु कानून उस नियम को बुरा मानता हो तो अधिकतर कानून के नियम मानना चाहिये और जो नियम बुरे लगते हों, कोशिश करना चाहिये उन नियमों को मानने की नहीं तो उन कानूनों को तोड़कर पहरेदारों से बचना चाहिये।
बचना भी एक कला है, कुछ लोग इतने माहिर होते हैं कि नियम भी तोड़ते हैं और ऊपर से दादागिरी भी करते हैं, उल्टा चोर कोतवाल को डांटे, परंतु जब तक अनुभव ना हो, इन चीजों को आजमाना नहीं चाहिये।
खैर यह बात और है कि कुछ लोग नियम तोड़ने में ही अपनी हेकड़ी समझते हैं, और नियम तोड़ना अपनी शान याने कि कानून को अपने हाथ में लेना। तो ऐसे लोग मानसिक रूप से विकृत होते हैं, और कुछ लोग होते हैं जो समय और परिस्थितियों के अनुसार नियम का पालन करते हैं, अगर अन्य लोग हैं तो नियम का पालन किया जायेगा नहीं तो नियम उनके लिये कोई मायने नहीं रखता। तो ऐसे लोग अवसरवादी कहलाते हैं और कभी खुदा न खास्ता किसी पहरेदार ने पकड़ भी लिया तो इनकी घिग्गी बँध जाती है, मिल गई इज्जत मिट्टी में।
नियम बनते ही लोग नियम को तोड़ने के रास्ते ढूँढ़ लेते हैं और नियम को कानूनन तरीके से तोड़ते हैं। हमारे यहाँ कुछ लोग हैं जो कि खुद को नियम के ऊपर समझते हैं और पहरेदार उनके लिये नियम को शिथिल कर देते हैं, यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। नियम सबके लिये एक होना चाहिये और पहरेदारों को इसके प्रति सतर्क रहना चाहिये।
पहरेदार चाहे कितनी कोशिश कर लें, नियम तो तब तक टूटते रहेंगे जब तक कि नियम का पालन करने वाले नियम को ना मानें, तो पहरेदार और नियम पालने वालों को संस्कारित होना होगा। किसी एक के सुधरने से बात नहीं बनेगी।
नियम तोड़ने पर सजा का कड़ा प्रावधान होता है और नियम लागू करने वालों को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि वे बिना किसी दबाब के नियम को सख्ती से लागू करें, फ़िर वह राजा हो या रंक।
हड़ताल क्यों है ? (Strike..!)
रिलायंस डिजिटल – विज्ञापन में लुभावने ऑफ़र और दुकान में ऑफ़र में फ़ेरबदल, जनता के साथ धोखाधड़ी Reliance Digital – Differ offer then Ad in Newspaper in Store
शूक्रवार के टाइम्स ऑफ़ इंडिया का विज्ञापन में लुभावने ऑफ़र को रविवार को देखा, तो रविवार को ही तत्काल टीवी लेने का मन बनाया। ऑफ़र में लिखा था किसी भी सीटीवी के बदले इतनी छूट दी जायेगी, जिसमें कोई स्टार वगैरह नहीं था, और टीवी का ब्रांड भी नहीं लिखा था, तो हमने सोचा कि चलो पास वाले रिलायंस डिजिटल स्टोर पर जाकर पता लगा लिया जाये, पर उससे पहले हमने सोचा कि चलो पहले फ़ोन पर पता कर लेते हैं, तो शायद ज्यादा पता चल जाये और हमने पास वाले स्टोर पर फ़ोन लगाया तो पता लगा कि स्टोर तो १० बजे खुलता है परंतु सेक्शन के स्टॉफ़ ११ बजे तक आते हैं (तो ऐसा लगा कि रिलायंस भी अपने लोगों का कितना ध्यान रखती है, या फ़िर लोग रिलायंस की सुनते नहीं हैं, खैर जो भी है!)।
हमने कमनहल्ली के स्टोर पर फ़ोन लगाया तो किसी ने फ़ोन ही नहीं उठाया तब तो पक्का यकीन हो गया कि रिलायंस अपने लोगों का बहुत ध्यान रखती है, यह फ़ोन लगभग हमने सुबह १०.२५ पर लगाया था, फ़िर हमने ठान ली कि बैंगलोर के हर स्टोर पर फ़ोन लगाकर पता करते हैं, जिससे प्राथमिक जानकारी जुटाई जा सके और तीसरे स्टोर कोरमंगला पर फ़ोन लगाया, यहाँ फ़ोन लगाकर खुशी हुई, जिस गर्मजोशी से यहाँ बात की गई और उत्पाद के बारे में भी प्राथमिक जानकारी प्रदान की गई, लगा कि रिलायंस में अच्छे कर्मचारी भी हैं। (वैसे यह सत्य है कि हरेक कंपनी में कुछ बहुत अच्छे कर्मचारी होते हैं, जो कंपनी का नाम बड़ाते हैं।)
हम वही पास वाले फ़िनिक्स माल के रिलायंस स्टोर गये और LED TV उत्पाद का पूरा निरिक्षण किया, वह LED TV 32 इंच का था और रिलायंस डिजिटल का खुद का ब्रांड था, (रिलायंस के खुद के LED TV Reconnect and ORZ कंपनियों के होते हैं), जिस पर क्रमश: २ एवं १ वर्ष की पूर्ण गारण्टी दी जा रही थी, हमने टीवी पसंद कर लिया और फ़िर खरीदने की बात आई तो जब हमने बताया कि हम इस ऑफ़र के तहत यह LED TV खरीदना चाहते हैं, तो हमें कहा गया कि आप ५ मिनिट का समय दें आपको सारी जानकारी जुटा देते हैं, उन १० मिनिटों में हमने iPhone 4S का निरिक्षण किया।
वह कर्मचारी फ़िर हमारे पास आया और बोला कि ’सर’ यह कंपनी की दूसरी टीम जो कि पुराने टीवी खरीदती है, वह आपके घर पर आकर टीवी देखेगी, हमने कहा कि ठीक है आज दोपहर तक यह भी करवा दो तो शाम को हम टीवी ले लेते हैं, घर पहुँचे दूसरी टीम का फ़ोन आया कि आपका टीवी २१ इंच का है और यह ऑफ़र केवल २९ इंच सीटीवी के लिये है, हमने कहा कि विज्ञापन में तो रिलायंस डिजिटल ने ऐसा कुछ लिखा नहीं है और अगर कभी भी इस तरह की शर्त होती है तो स्टॉर(*) लगाकर जरूर छोटे अक्षरों में लिख दिया जाता है, अगर कुछ लिखा नहीं है इसका मतलब कि आपको कोई भी सीटीवी स्वीकार्य है। परंतु वह कर्मचारी बोला कि ’सर’ यही ऑफ़र है, हमने कर्मचारी की मजबूरी समझते हुए कहा कि हमें अब LED TV लेने में अब कोई रूचि नही है, धन्यवाद।
हमें टीवी अगले दो वर्ष के लिये लेना था तो सोचा कि १९,९०० में 32 इंच LED TV under exchange offer with working CTV में बुरा नहीं है। परंतु रिलायंस डिजिटल विज्ञापने में कुछ और लिखती है और स्टोर पर कुछ और होता है जो कि जनता के साथ खुली धोखाधड़ी है। हम तो अपने पैसे की पूरी कीमत वसूलना जानते हैं, इसलिये अब तय किया गया कि अभी यही टीवी थोड़े दिन और देखी जाये।