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अब IRCTC की वेबसाईट अच्छा काम कर रही है।

कल काफ़ी दिनों बाद रेल्वे के आरक्षण के लिये IRCTC की वेबसाईट पर जाना हुआ। हालत यह थी की अपना यूजर आई डी और पासवर्ड भी याद करने में काफ़ी समय लगा। खैर IRCTC की वेबसाईट की रफ़्तार पहले जैसी तेज थी, बस जब तत्काल का समय होता है तभी या तो मंद हो जाती थी या फ़िर बंद हो जाती थी। परंतु कल आलम अलग था, हम तो पौने आठ से ही लॉगिन करके बैठे थे, पुरानी आदत जो थी 🙂 अब आदत इतनी जल्दी जाती भी नहीं है।

खैर जैसे ही आठ बजे वैसे ही IRCTC को जोर का झटका लगा और एक Error message हमारे सामने आ गया, सारे अरमान धूमिल होते नजर आये। खैर साथ में हम indianrail.gov.in साईट पर भी सीट की उपलब्ध संख्या पर नजर रखे हुए थे। पहले १८४ सीटें मात्र ३-४ मिनिट में ही खत्म हो लेती थीं परंतु जब कल देखा तो लगभग ८.१० तक मात्र १० सीट ही आरक्षित हुईं थीं। फ़िर भी वेबसाईट मंदगति से चलती रही और आखिरकार आरक्षण हो ही गया।

तत्काल में आरक्षण जब से एक दिन पहले हुआ है तब से लगता है कि सुविधाएँ अच्छी हुई हैं और Quick Book भी  8 – 10 सुबह बंद रहने लगा है, वरना तो पहले Quick Book ही सहारा था। खैर हमारे मित्र बहुत खुश हुए कि आरक्षण मिल गया क्योंकि मुंबई उज्जैन अवंतिका एक्सप्रैस में हमेशा मारा मारी रहती है। हमारे मित्र आज सुबह बाहर से प्रवास करके आज मुंबई लौटे हैं, बड़ी लंबी फ़्लाईट थी, लगभग २० घंटे की, तो कल सुबह उज्जैन पहुँच जायेंगे।

धन्यवाद रेल्वे को जो आम आदमी की उसे याद आई, और IRCTC को भी धन्यवाद कि अपना Infrastructure अच्छा किया जिससे कम से कम वेबसाईट चल रही है।

देखा पापा टीवी पर विज्ञापन देखकर IDBI Life Childsurance Plan लेने का नतीजा, “लास्ट मूमेंट पर डेफ़िनेटली पैसा कम पड़ेगा”।

हाल ही में आप सभी लोग टीवी पर आई.डी.बी.आई. फ़ेडेरल जीवन बीमा कंपनी का बच्चों के जीवन बीमा का  एक विज्ञापन बहुत देख रहे होंगे “देखा पापा, ऐसा वैसा प्लॉन लोगे तो लास्ट मूमेंट पर पैसा कम पड़ सकता है” और फ़िर कहता है कि “आई.डी.बी.आई. लाईफ़ चाईल्ड्श्योरेंस प्लॉन खरीदें – प्लॉन जो फ़ैल न हो”।
विज्ञापन वाकई बहुत ही भावनात्मक है, विज्ञापन एजेन्सी ने अपना काम बहुत अच्छे से किया है। मुझे लगता है कि आप सभी लोग भी इस भावनात्मक विज्ञापन से जरूर प्रभावित हुए होंगे और बच्चों के लिये इस प्लॉन को लेने की सोच रहे होंगे।
बद्किस्मती से जिसने भी यह प्लॉन बनाया है उसे हम शून्य (0) देंगे क्योंकि यह प्लॉन निवेशक के लिये अच्छा नहीं है। एक मित्र ने भी यह विज्ञापन देखा और फ़ोन करके पूछा कि विज्ञापन बहुत अच्छा है, पर यह देखकर बताओ कि उत्पाद अच्छा है या नहीं ? मुझे यह प्लॉन खरीदना चाहिये या नहीं ?
मैं वेबसाईट पर गया और उनका ब्रॉऊशर डाऊनलोड किया, और उनके चार्जेस को देखकर संत्रस्त हो गया । ( जो कि कभी भी निवेशक को बताये ही नहीं जाते हैं।) ये देखिये –
idbichildsuranceplanअगर @10% भी इस प्लॉन से मिलता है जो कि बीमा कंपनी द्वारा प्रदर्शित और विज्ञापित किया जा रहा है, तो भी आपको शायद ही सकारात्मक रिटर्न्स मिल पायेंगे, और इस बात पर हम यह कह सकते हैं, अगर आप यह प्लॉन खरीदते हैं तो “लास्ट मूमेंट पर डेफ़िनेटली पैसा कम पड़ेगा”।

सबसे बढ़िया है कि एस.आई.पी. से म्यूचयल फ़ंड में निवेश किया जाये और परिवार को सुरक्षित रखने के लिये टर्म प्लॉन लिया जाये। यह काफ़ी समय से आजमाया हुआ समीकरण है पर दुर्भाग्य से केवल 5% लोग ही इसे समझते हैं।
एक और सलाह, अगर पिछले ३-४ वर्षों में आपने कोई भी बच्चों का बीमा प्लॉन खरीदा है तो उसका वापिस से विश्लेषण कर लेना चाहिये और अगर जरूरत पड़े तो उस बीमा को खत्म करके म्यूचयल फ़ंड में एस.आई.पी. के जरिये निवेश करें। आपको लंबे समय में इस प्लॉन से तो अच्छा रिटर्न मिलेगा।

यह एटिका वेल्थ के ईमेल का अनुवादित स्वरूप है।

जिनका स्लोगन मुझे बहुत ही अच्छा लगता है – “What is good for the client is also good for the firm” – T Rowe Price Jr.

IDBI Federal Childsurance Engineer Advertisment –

IDBI Federal Childsurance Doctor Advertisment –

पोलिथीन के रूपये फ़ट से डेबिट और बैग के देने में आनाकानी

आजकल बड़े बाजारों से ही खरीदारी की जाती है, फ़ायदा यह होता है कि हरेक चीज मिल जाती है और लगभग हरेक ब्रांड की चीजें मिल जाती हैं, तो अपनी पसंद से ले सकते हैं, चीजों को हाथ में लेकर देख सकते हैं। जबकि किराने की दुकान पर चीजों को बोलकर लेना होता है तो क्या क्या नया बाजार में आया है पता ही नहीं चलता है।

सब ठीक चल रहा था परंतु कुछ दिनों पहले पोलिथीन पर सरकार का फ़रमान क्या आया, आम आदमी के लिये आफ़त हो गई, अब अपने साथ पोलिथीन या थैले लेकर जाओ नहीं तो ये बड़े बाजार वाले लोगों को पोलिथीन के लिये १ रूपये से लेकर ५ रूपये तक का भुगतान करो। और लगभग सभी बाजार अपने थैले लाने पर कुछ छूट देते हैं या प्वांईंट्स आपके मेम्बरशिप कार्ड में जोड़ देते हैं।

जब काऊँटर पर जबरदस्त भीड़ होती है तो कैशियर बैग के प्वाईंट्स क्रेडिट करना भूल जाता है परंतु अगर पोलिथीन ली है तो उसके पैसे झट से बिल में जोड़ देता है। और अगर शिकायत करो तो जवाब होता है कि भीड़ बहुत थी तो भूल गये, तो हमने कहा भई अगर भीड़ में भूल जाते हो तो पोलिथीन बैग्स के भी पैसे लेने भूल जाया करो। कैशियर खिसिया गये और चुप हो गये।

खैर है छोटी सी बात परंतु हम भारतीय ग्राहक क्यों अपना हक छोड़ें, और ऐसा पता नहीं कितने ग्राहकों के साथ होता होगा, इसलिये एक शिकायत ईमेल से कर दी गई है। पता नहीं इन लोगों के कान भी होते हैं या नहीं, सुनेंगे या नहीं।

आज की पीढ़ी और अविष्कार…

अविष्कार मानव इतिहास में जिज्ञासा से उत्पन्न होने वाली एक महत्वपूर्ण बात है। मानव ने जब अविष्कार करना शुरू किया तब उसे जरूरत थी, आज हमारे पास इतने संसाधन मौजूद हैं परंतु अब उनको बेहतर करने की जरूरत है। अभी भी नई नई चीजों खोजी जा रही हैं।
जब पहिया खोजा गया होगा तो वह अपने आप में एक क्रांतिपूर्वक अविष्कार था, आज पहिये के बल पर ही दुनिया चल रही है अगर पहिया ना होता तो सब रुका हुआ होता, और ऐसा सोचना ही दुष्कर प्रतीत होता है।
ऐसे ही जब संगणक को बनाया गया तो बनाने वालों ने कभी सोचा नहीं था कि यह एक क्रांतिकारी बदलाव लायेगा और लगभग हर उपक्रम में इसका उपयोग होगा, तब यह भी नहीं सोचा गया था कि y2k की समस्या भी आयेगी।
आजकल किसी नौजवान से बात की जाये तो वह केवल नौकरी करना चाहता है कोई अविष्कार नहीं क्योंकि नौकरी एक सहज और सरल उपाय है जीविका का, परंतु  शोध कार्य उतना ही दुष्कर। कुछ नये विचारों को असली जामा पहनाना ही अविष्कार है। ऐसा नहीं है कि दुनिया में सभी चीजें आ चुकी हैं, हो सकता है कि चीजें अभी जिस प्रक्रिया से अभी चल रही हैं वे धीमी हों, अगर उस प्रक्रिया को और सुगम बना दिया जाये तो शायद वह चीज और भी ज्यादा लोकप्रिय हो जाये।
अभी के कुछ उदाहरण देखिये जो कि प्रक्रिया के सरलीकरण के उदाहरण हैं, यह अविष्कार अंतर्जाल के संदर्भ में हैं, जैसे गूगल, फ़ेसबुक इत्यादि।
क्या गूगल के पहले अंतर्जाल पर ढूँढ़ने के लिये खोज के साधन उपलब्ध नहीं google थे, जी बिल्कुल थे, परंतु वे इतने तकनीकी भरे थे और जो आम आदमी देखना चाहता था वह परिणाम उसे दिखाई नहीं देता था। गूगल ने एक साधारण सा पृष्ठ दिया जो कि एकदम ब्राऊजर पर आ जाता था, केवल डायल अप पर भी खुल जाता था, जबकि डायल अप की रफ़्तार उन दिनों लगभग ४० केबीपीएस. होती थी, जो कि ठीक मानी जाती थी और १२८ केबीपीएस तो सबसे बेहतरीन रफ़्तार होती थी। गूगल ने सर्च इंजिन के क्षैत्र में क्रांतिकारी बदलाव किया और lycos, AltaVista, Yahoo, Ask Jeeves, MSN Search, AOL इत्यादि को बहुत पीछे छोड़ दिया।
ऐसे ही दूसरा उदाहरण है फ़ेसबुक, फ़ेसबुक के आने के पहले क्या अंतर्जाल में facebook सोशल नेटवर्किंग वेबसाईट्स नहीं थीं ? थीं बिल्कुल थीं, परंतु उनका उपयोग करना इतना आसान नहीं था और उन सोशल नेटवर्किंग वेबसाईट्स में फ़ेसबुक जितनी सुविधा नहीं थीं। Hi5, Orkut जैसे अपने प्रतियोगियों को बहुत पीछे धकेल दिया और आज फ़ेसबुक का कोई प्रतिद्वन्दी नहीं है। क्योंकि फ़ेसबुक के निर्माताओं ने इसे बहुत ही सरल रूप दिया और आज जिसे देखो वो मोबाईल पर भी फ़ेसबुक का उपयोग कर रहा है।
आज की पीढ़ी को इस और खास ध्यान देने की जरूरत है कि नये अविष्कार भी किये जा सकते हैं, यहाँ केवल मैंने अंतर्जाल से संबंधित ही बातें करी हैं परंतु यह हरेक क्षैत्र में लागू होता है, या तो नई चीजें खोजी जाये या फ़िर जो चीजें चल रही हैं, उन्हें परिष्कृत किया जाये। तभी हमारा भविष्य युवा है।

हम बोलेगा तो बोलोगे कि बोलता है… एक मेमशाब है साथ में शाब भी है..

एक गँवार आदमी को एक देश का सूचना तकनीकी मंत्री बना दिया गया, जिसे संगणक और अंतर्जाल का मतलब ही पता नहीं था। उस गाँव के संविधान में लिखा था कि सभी को अपनी बातें कहने की पूर्ण स्वतंत्रता है, परंतु उस जैसे और भी गँवार जो कि पेड़ के नीचे लगने वाली पंचायत में बैठते थे। उस पंचायत का मुखिया बनाया गया एक ईमानदार और पढ़े लिखे आदमी को, परंतु पंचायत पर राज उनके पीछे बैठी एक भैनजी और उनके बबुआ चलाते थे।

एक बार एक आदमी विदेश से आया और साथ में अखबार लाया और उसमें उसने पंचायत के सामने वह अखबार रखा कि देखो कि फ़ैबुक और विटेर पर लोग क्या क्या अलाय बलाय लिखते हैं और फ़ोटो अपने तरीके से बनाकर छापते हैं। पहले तो जब पंचायत और लोगों को जब वह अखबार दिखाया गया तो सभी लोग अपनी हँसी मुँह दबाकर छिपाते रहे, परंतु तभी उस पंचायत के सूचना तकनीकी मंत्री जो कि उस गाँव के टेलीफ़ोन के खंबे भी ढंग से गिन नहीं पाते थे, कहने लगे अरे ये तो हम भी अपने ही गाँव में कहीं देखे थे, उस दिन बड़ा अच्छा लग रहा था, उस दिन हम केवल फ़ोटू देखे थे कि मुखिया राजदूत चला रहे हैं और भैन जी उनके पीछे बैठकर फ़टफ़टिया के मजे ले रही हैं, उस दिन हमें लगा था कि वाह मुखिया ने भैनजी के संग क्या फ़ोटू हिंचवाया है।

आज पता चला कि ये तो जनता ने खुदही बनाकर डाल दिया है, असल में तो हमारे मुखिया और भैन जी बहुत ही सीधे हैं, मुखिया ने तो कभी फ़टफ़टिया चलाई ही नहीं है और भैन जी भी कभी फ़टफ़टिया पर बैठी नहीं हैं। खैर मंत्री जी ने तुरत आदेश दिया कि सारे टेलीफ़ोन के खंबे तुड़वा दिये जायें जिससे ना ये इंटर-नेट आयेगा और ना ही लोग ऐसी खुराफ़ात कर पायेंगे। अब बताओ मंत्री जी को कि लोग मोबाईल पर भी नेट का उपयोग करते हैं, बेचारे कुत्तों का एक मात्र सहारा खंबा भी छीन लिया।

अब बाकी तो आप समझदार हैं ही… अब ज्यादा बोलेंगे तो बोलोगे कि बोलता है।

विटर से कुछ विटर विटर –

जैसे वाहनों का चालान बनाया जाता है वैसे ही ब्लॉगों, फ़ेसबुक मैसेज और ट्विट्स का चालान बनाया जायेगा

I have never commented on them 🙂 hamane to kaha Mummy ji, Yuvraj aur mannu 😉

प्राण साहब का मशहूर गाना फ़िल्म कसौटी से –

एफ़डीआई का हल्ले के बहाने महँगाई और रूपये के अवमूल्यन पर भी चिंतन, हलकान है जनता.. [FDI, Inflation and Depreciation of Rupee… my views]

जहाँ देखो वहीं विदेशी खुदरा दुकानों का हल्ला मचा हुआ है और जनता महँगाई के मारे हलकान हुई जा रही है। महँगाई सर चढ़कर बोल रही है।

किसान को सब्जी का क्या भाव मिलता है और दुकानें किस भाव में बेचती हैं यह एक शोध का विषय है। और अगर शोध किया जाये तो शायद दुनिया चकित रह जायेगी कि किसान को टमाटर का ३ रू. किलो मिलता है और जनता दुकानदार को ४० रू. किलो दे रही है, तो बाकी का बीच का ३७ रू. ये बड़े खुदरा दुकानों के मालिक खा रहे हैं।

जब मुंबई में थे तो वहाँ कोई भी सब्जी कम से कम ४० रू. किलो मिलती थी और अधिकतर तो १६० रू. किलो तक भाव होते थे। पता नहीं कहाँ से महँगाई आई, और यही सब्जी चैन्नई या बैंगलोर में देखें तो अधिकतम ४० रू. किलो सब्जी मिल रही है। टमाटर मुंबई में आज भी ४० रू. किलो हैं और यहाँ बैंगलोर में १६ रू. किलो मिल रहे हैं।

खैर नेता लोग चिल्ला रहे हैं कि विदेशी खुदरा दुकानें आ गईं तो हम आग लगा देंगे, खुलने नहीं देंगे, परंतु क्यों नहीं खुलने देंगे ये नहीं बता रहे हैं, जब रिलायंस रिटेल खुल रहा था तब भी लोगों ने बहुत तोड़ फ़ोड़ की थी, अब हालत यह है कि वही तोड़ फ़ोड़ करने वाले लोग रिलायंस रिटेल से समान खरीद रहे हैं।

थोड़े दिनों बाद विरोधी स्वर विदेशी खुदरा दुकानों के फ़ीता काटते नजर आयेंगे। जनता को समझाइये कि विदेशी खुदरा दुकानों से क्या नुक्सान होगा। आज अखबार में पढ़ा कि जयपुर में कैनोफ़र ने जयपुर के सभी थोक अंडा व्यापारियों से करार कर लिया है, अब सभी खुदरा व्यापारियों को अंडे मिलना बंद हो जायेगा। पहली बात तो यह उन थोक व्यापारियों की गलती है जिन्होंने ये करार किये हैं और वैसे भी भारत है जहाँ हर चीज का जुगाड़ होता है, जब सरकार जुगाड़ से चल सकती है तो ये व्यापार क्या चीज है। खैर आगे क्या होगा यह तो ये करार कार्यांन्वयन होने के बाद ही पता चलेगा। हमारे खुदरा व्यापारी कोई ना कोई तोड़ निकाल ही लेंगे।

ऐसा नहीं है कि मैं विदेशी खुदरा दुकानों का समर्थक हूँ परंतु हाँ यह अर्थव्यवस्था के लिये ठीक होगा और रूपये के अवमूल्यन होने से कुछ हद तक रोकेगा। परंतु रूपये का अवमूल्यन रोकने के लिये क्या इस तरह के हथकंडे अपनाना उचित है ? कतई नहीं !

परंतु नेता जनता को कितना बेवकूफ़ बनायेंगे, अगर इन नेताओं ने घोटाले नहीं किये होते, भ्रष्टाचार पर लगाम कसी होती और भारत के विकास में उस रूपये का योगदान किया होता तो शायद रूपये के मूल्य का अवमूल्यन नहीं होता उल्टा डॉलर कमजोर होता, परंतु सरकार विदेशी लोगों को बाजार में भी तरह तरह के साधन उपलब्ध करवाती है कि ये लोग आसानी से भाग लेते हैं, और जनता ठगी से देखती रह जाती है।

जरूरत है सरकार में नेताओं में विकास की इच्छाशक्ति की कमी की, अगर इन नेताओं में यह इच्छाशक्ति आ जाये तो हम विकास के पथ पर अग्रसर होंगे। लोग कहते हैं कि दस वर्ष में हम नंबर वन बना देंगे, पिछले पाँच वर्ष में भारत को कौन से नंबर पर लाये हैं, ये तो सब जानते हैं।

बात रही [बेचारे] खुदरा दुकानदारों की तो वे बेचारे तो रोजमर्रा कि चीजों को बेचकर अपना घर चला लेंगे। जैसे अगर आपको ब्रेड लेने जाना हो तो आप विदेशी खुदरा दुकानों में तो नहीं जायेंगे ना, बस ऐसे ही बहुत सारी चीजें हैं जो कि आप बिना पार्किंग में अपनी गाड़ी लगाये लेना चाहेंगे या घर से गाड़ी नहीं निकालकर पास के दुकान से लेंगे। तो सरकार को यह समझ लेना चाहिये कि १० लाख से ज्यादा जनता वाले शहर बहुत समझदार हैं।

मुंबई में जहाँ हम रहते थे वहाँ भी आसपास बहुत मॉल थे, परंतु लगभग सभी लोग एक किराने वाले से ही समान लेते थे, वजह वह कीमत में सीधी छूट देता था और उसकी स्कीमें भी आकर्षक होती थीं। फ़िर घर पहुँच सेवा, आप जाकर बोल दीजिये और घर पर समान पहुँच जायेगा। अगर आपकी घर से निकलने की इच्छा नहीं है तो केवल फ़ोन लगा दीजिये और समान घर पर होगा। उस किराना व्यवसायी का स्वभाव बहुत अच्छा था और मृदु भाषी है। यह सब बातें कहाँ देशी और कहाँ विदेशी खुदरा दुकानों पर मिलेंगी।

क्यों बच्चे आज भावनात्मक नहीं हैं ? क्या इसीलिये आत्महत्या के आंकड़े बढ़ रहे हैं ? (Why Childs are not emotional ? why suicidal cases are increasing ?)

शिक्षा में बदलाव बेहद तेजी से हो रहे हैं और शिक्षक और छात्र के संबंध भी उतनी ही तेजी से बदलते जा रहे हैं। कल के अखबार की मुख्य खबर थी यहाँ बैंगलोर में इंजीनियरिंग महाविद्यालय के छात्र ने होस्टल के कमरे में पंखे से फ़ांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। खबर लगते ही हजारों के झुंड में छात्र इकठ्ठे हो गये और महाविद्यालय प्रशासन के खिलाफ़ नारेबाजी करने लगे। पुलिस बुलाई गई, परंतु छात्रों ने पुलिस को भी खदेड़ दिया और महाविद्यालय की इमारत को भी नुक्सान पहुँचाया। बाद में महाविद्यालय के मालिक का बयान आया कि वह छात्र कमजोर दिल का था और लगातार पिछले तीन वर्षों से उस छात्र का प्रदर्शन बहुत कमजोर था।

विषादग्रसित यह खब्रर पढ़ने के लिये नहीं लिखी हैं मैंने, सही बताऊँ तो मैंने कल अखबार ही नहीं पढ़ा था पर कल रात्रि  भोजन पर भाई से चर्चा हो रही थी तब इस और ध्यान गया और आज सुबह कल का अखबार पढ़ पाया । मन अजीब हो उठा और लगा क्या महाविद्यालय प्रशासन ने कभी उस छात्र के मन में क्या चल रहा है, यह जानने की कोशिश की। महाविद्यालय प्रशासन महज छात्र के घर एक पत्र भेजकर अपनी जिम्मेदारी से तो नहीं बच सकता ।

आज छात्र बहुत ही संवेदनशील परिस्थितियों से गुजर रहे हैं, क्योंकि वे अब भावुक नहीं रहे, अब छात्रों से भावनाओं के बल पर कोई भी कार्य करवाना असंभव है। उसके पीछे बहुत सारे कारण जिम्मेदार हैं, परवरिश के बेहतर माहौल में कमी, शिक्षकों से अच्छा समन्वयन न होना । ऐसे बहुत सारे कारण हैं। क्योंकि आजकल बच्चों को इंटरनेट पर सब मिल जाता है तो कई बच्चे तो दोस्त भी नहीं बनाते हैं और इंटरनेट पर ही अपना समय बिताते पाये जाते हैं।

अब मेरे मन में जो सवाल उठ रहे हैं कि क्या महाविद्यालय का छात्र पर अच्छे प्रदर्शन के लिये दबाब बनाना उचित था, और अगर दबाब बनाया गया तो उसे क्या उचित मार्गदर्शन दिया गया । छात्र के घर पर पत्र भेजने से छात्र की मानसिक हालात को समझा जा सकता है। हरेक छात्र के माता-पिता यही सोचते हैं कि बेटा अच्छा पढ़ रहा है परंतु अगर महाविद्यालय से इस प्रकार का पत्र मिले तो वे यकीनन ही अपने बेटे पर क्रुद्ध होंगे, और उसे परिस्थिती से बचने के लिये उस छात्र ने आत्महत्या कर ली हो ? छात्र तो पहले से ही विषादग्रसित था, उसको मनोवैज्ञानिक तरीके से संभालना चाहिये था। परंतु ऐसा ना हुआ, अब उन माता-पिता पर क्या गुजर रही होगी जिन्होंने अपना जवान बेटा इसलिये खो दिया क्योंकि वह पढ़ाई में कमजोर था, नहीं ? वह पढ़ाई में कमजोर होने के कारण विषादग्रसित हो चला था।

पढ़ाई में कमजोर होना कोई बुरी बात तो नहीं, पढ़ाई ही तो सबकुछ नहीं है, उससे बढ़कर होता है जीवन जीने का हौसला और उस विषादित परिस्थिती से निकालने में सहायक परिवेश और परवरिश। कमजोर पढ़ाई वाले पता नहीं कितनी आगे निकल गये हैं और पढ़ाई वाले कहीं पीछे रह गये हैं।

मुख्य सवाल जो मेरे मन में है और उसका उत्तर खोजने की कोशिश जारी है मनन जारी है, क्यों बच्चे आज भावनात्मक नहीं हैं ? और उनके आधुनिक परिवेश में उन्हें कैसी परवरिश देनी चाहिये ?

सुपारी देना किसको कहते हैं और सुपारी के गुण और उसकी गाथा

सुपारी देना शब्द कहाँ से आया बहुत ढूँढ़ा कहीं मिला नहीं, वैसे हमें तो केवल इतना पता है कि सुपारी पान बीड़ा का एक अवयव है, परंतु यही सुपारी कब इस अलग रूप में आ गई, पता ही नहीं चला, खासकर फ़िल्मों और सीरियलों में बहुत सुनने को मिलता है कि फ़लाने की सुपारी दे दी, मतलब कि हत्या करने के लिये किसी को पैसे दिये गये ।
वैसे सुपारी तो हमारी संस्कृति का अंग है और सुपारी को पूजा में भी रखा जाता है। आखिरकार अपने पुराने जमाने वाले लोगों ने जिन्होंने सुपारी को खाने लायक समझा होगा, उनको दाद देनी होगी कि इतने कठोर फ़ल को भी खाने में और पूजा में प्रयुक्त किया, और सुपारी को खाने के लिये सरौते का भी अविष्कार किया, अब कहते हैं ना कि आवश्यकता ही अविष्कार की जननी होती है।
सुपारी के बहुत सारे औषधीय उपयोग भी हैं –
 मुंह के रोग : 10-10 ग्राम बड़ी इलायची और सुपारी को जलाकर मुंह में छिड़कने से मुंह के सभी रोग ठीक हो जाते हैं।
और भी उपयोग होंगे परंतु और याद नहीं हैं, स्वाद बिल्कुल पानी जैसा कि कोई स्वाद नहीं परंतु हाँ कुछ मिला लो तो इसका स्वाद बेहतरीन है तभी तो आजकल मीठी सुपारी मिलती है, परंतु वह भी प्रोसेस्ड होती है, उसे तो बिल्कुल खाना ही नहीं चाहिये।
सुपारी भी कई प्रकार की होती है, हमें तो बस इतना ही पता है कि सुपारी कच्ची भी होती है और पक्की भी या शायद भुनी हुई होती हो। सुपारी भी अलग अलग तरह में काटी जाती है, जैसे कि बोल्डर, चिप्स इत्यादि, अब सुपारी इतनी कठोर होती है कि हमें खाने में बहुत दिक्कत होती है और मसूढ़े भी छिल जाते हैं, तो हम चिप्स खाते थे परंतु अब यहाँ दक्षिण में भाई लोग बोल्डर ही देते हैं।
एक हमारे मित्र हैं जिनके केरल में समुद्रीय इलाके में खेत हैं वह भी सुपारी के, वहाँ सुपारी की ही खेती होती है और उनसे पता चला कि किसान को ज्यादा पैसा नहीं मिलता, सुपारी महँगी है और उसके पीछे कारण है बिचौलिये और सेठ लोग जो कि सुपारी खरीदते हैं।
सुपारी कहाँ से याद आई थी और उस पर इतना सारा लिख भी दिया, दरअसल कहीं से एक सुपारी खाने के लिये मिली थी जो कि पूजा के बाद की थी और उसे हमें ही खाना था, पहले तो इसी आस में जेब में पड़ी रही कि कभी हाथ से तोड़कर खा लेंगे । बहुत प्रयास किया हाथ से नहीं टूटी, फ़िर दाँत से तोड़ने की कोशिश की तो उसमें भी असफ़ल रहे और जल्दी ही समझ में आ गया सुपारी तो नहीं टूटेगी अपने दाँत जरूर टूट जायेंगे, फ़िर मूसल से तोड़ने की कोशिश की उसमें भी नाकाम। आखिरकार पान की दुकान पर जाकर सरौते से कटवाना पड़ी, पान वाले से पूछा कि सुपारी और किस तरीके से तोड़ी या काटी जा सकती है तो उसने बताया कि केवल सरौते से ही काटी जा सकती है, वह तो अच्छा हुआ कि हमने जितने उपाय किये थे वे नहीं बताये वरना सुपारी के ऊपर हमारे किये गये एक्सपीरियमेंट पर हँस हँस कर लोट पोट हो लेता। सोचा कि अपना ब्लॉग वो थोड़े ही पढ़ेगा तो यहीं लिख देते हैं।

इंडियाप्लाजा की अच्छे ऑफ़रों पर घटिया सर्विसेस (Bad services on Great offers by Indiaplaza.com)

लगभग एक सप्ताह होने आया इंडियाप्लाजा से ईमेल पर एक ऑफ़र आया था, और ऑफ़र बहुत अच्छा लगा, मैंने सोचा कि इससे अच्छी डील और कहीं नहीं मिलेगी, तो फ़टाफ़ट ऑनलाईन ऑर्डर कर दिया।

इसके पहले भी कई अन्य साईटों पर ऑनलाईन ऑर्डर कर चुके हैं, तो उसका अनुभव पहले से ही था, उसके मुकाबले इंडियाप्लाजा के साथ खरीदारी का अनुभव बहुत ही खराब रहा।

जैसे ही हमने भुगतान किया एक नया पेज खुला जिस पर ट्रांजेक्शन रिफ़ेरेन्स नंबर दिया गया, यह तो अच्छा हुआ कि हमने उसे पीडीएफ़ बनाकर सहेज लिया, जो कि मैं अधिकतर ऑनलाईन ट्रांजेक्शन करने के बाद करता हूँ, और तब तक सहेज कर रखता हूँ जब तक कि समान मुझे मिल नहीं जाता है। इधर ट्रांजेक्शन पूरा हुआ नहीं कि हमने सोचा कि अब ईमेल से संपूर्ण जानकारी भेज दी गई होगी। परंतु कोई ईमेल इंडियाप्लाजा की तरफ़ से नहीं आया। हमने सोचा शायद थोड़ी देर बाद आयेगा, परंतु ईमेल न आना था और न ही आया ।

दो दिन पहले एक ईमेल इंडियाप्लाजा से ईमेल आया कि शिपिंग में देरी हो रही है और कल शिपिंग होगी, हमने सोचा कि चलो इंडियाप्लाजा वालों ने इतना तो ध्यान रखा कि देरी के लिये ईमेल लिख दिया। खैर अभी तक तो हमें समान नहीं मिला है और न ही कोई अन्य ईमेल देरी के लिये मिला है।

अगर किसी अन्य ऑनलाईन साईट पर ऑर्डर किया होता तो वे बिल के साथ साथ कूरियर का रिफ़रेन्स नंबर भी ईमेल कर देते हैं। जिससे आप कूरियर ऑनलाईन ट्रेक कर सकते हैं।

उम्मीद है कि एक दो दिन में समान मिल जाना चाहिये, आगे टिप्पणी में बताते हैं कि कब समान आता है।

बैंकों के अकाऊँट नंबर पोर्टेबिलिटी भारतीय रिजर्व बैंक के लिये आसान नहीं होगी (Bank Account Number Portability will not be easy task for RBI)

बैंकों के अकाऊँट नंबर पोर्टेबिलिटी भारतीय रिजर्व बैंक के लिये आसान नहीं होगी, यह बैंकों के लिये तकनीकी रूप से बहुत बड़ी चुनौती होगा, अभी बैंकें जितने भी सॉफ़्टवेयरों का उपयोग कर रही हैं, उसमें बैंकें अकाऊँट नंबर में अधिकतम अंकों का उपयोग कर रही हैं, और एक और व्यवहारिक समस्या है कि कई बैंकों में एक ही अकाऊँट नंबर अभी पाया जा सकता है।
बैंक पोर्टेबिलिटी
अभी बैंकों के अकाऊँट नंबर यूनिक नहीं हैं, इसलिये यह भारतीय रिजर्व बैंक के लिये बड़ी समस्या होगी, और व्यवहारिक तौर पर उतना आसान भी नहीं है। ऐसा लगता भी नहीं कि इस बैंक अकाऊँट नंबर पोर्टेबिलिटी का कोई फ़ायदा होने वाला है, क्योंकि अकाऊँट कोई सा भी हो या खाता नंबर कोई सा भी हो, बैंक का नाम तो बदल ही जायेगा।
कुछ और बातें भी हैं, खाताधारक का बैंक बदलने पर IFSC  कोड भी बदल जायेगा, जिससे उसे NEFT & RTGS में समस्या होगी, इसके लिये खाताधारक को सभी जगह बैंकों के नाम भी बदलने होंगे।
बैंकों के अकाऊँट नंबर पोर्टेबिलिटी बहुत ही मुश्किल साबित होगा भारतीय रिजर्व बैंक के लिये, क्योंकि अभी भारतीय बैंकों में अकाऊँट नंबर में अधिकतम १६ नंबर तक का उपयोग किया जाता है, और उन नंबरों से कैसे भी तकनीकी तौर पर दूसरी बैंकों के साथ मैपिंग करना बहुत मुश्किल है।
भारतीय वित्त बाजार में केवल अकाऊँट नंबर से काम नहीं चलता है, वहाँ बैंक का नाम भी देना जरूरी होता है, और तो और कोर बैंकिंग सुविधा के बावजूद ग्राहक से शाखा की जानकारी ली जाती है, जबकि वह ग्राहक उस शाखा का ग्राहक ना होकर बैंक का ग्राहक है।
मोबाईल नंबर और बैंक अकाऊँट नंबर पोर्टिबिलिटी दोनों ही बहुत अलग चीज हैं, जब से मोबाईल आया है क्या आपको कभी अपने किसी भी फ़ार्म पर यह बताने को कहा जाता है कि मोबाईल कौन सी कंपनी का है और कौन सा सर्विस प्रोवाईडर है, नहीं ना, परंतु बैंकों के लिये ऐसा नहीं है। अगर आप डीमैट खाता भी खुलवाने जायेंगे तो वहाँ फ़ॉर्म पर बैंक का नाम, शाखा, IFSC  कोड और अकाऊँट नंबर सभी जानकारी ली जायेगी।
अब देखते हैं कि भारतीय रिजर्व बैंक क्या निर्णय लेती है, वैसे अगर यह निर्णय आया भी तो फ़िर बैंकिंग क्षैत्र में तकनीकी तौर पर भारी फ़ेरबदल की जरूरत होगी।