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आखिरकार कम्प्यूटर से वायरस निकलने को सहमत हुए

    पिछले ६४ वर्षों से कम्प्यूटर में वायरसों ने अपनी पैठ बना ली थी और घूस तंत्र जबरदस्त तरीके से तैयार कर लिया था, पर आखिर कार आम सॉफ़्टवेयर और हार्डवेयर की जबरदस्त माँग और अनशन के मद्देनजर सभी घूसखोर डिवाईसों ने आश्वासन दिया है कि इसके लिये एक एन्टीवायरस तैयार किया जायेगा।

     जब कम्प्यूटर बनाया गया था तब उसमें बहुत कम चीजें थीं पर जैसे जैसे जरूरत पड़ती गई, वैसे वैसे नई डिवाइसों के अविष्कार होते गये जैसे सीडी, डीवीडी, पेनड्राईव, माऊस इत्यादि। अविष्कार तो इनका किया गया था कि ये आम आदमी की जरूरतों को पूरा करेंगे और कम्प्यूटर को पूर्ण सहयोग करेंगे, उस समय यह न सोचा गया था कि ये सभी घूस नामक वायरस से प्रभावित हो जायेंगे। सोचा गया था कि कोई सा भी ऑपरेटिंग सिस्टम होगा उनके साथ सहयोग करेंगे।

    परंतु कालांतर में घूसखोरी बड़ती गई और अब ये हालात हो गये थे कि सीडी ड्राईव रीड करने के पहले घूस मांगती है, डीवीडी ड्राईव सीडी रीड करने से मना कर देती है, कह देती है कि लैंस ठीक से काम नहीं कर रहे हैं, परंतु घूस पकड़ाते ही सारे लैंस अपने आप ठीक हो जाते हैं और फ़्लॉपी भी रीड करने को तैयार करने को हो जाती है ये डीवीडी ड्राईव । भले ही फ़्लॉपी लगाने की जगह नहीं हो परंतु फ़्लॉपी रीड करने का भी वादा कर लेगी ये डीवीडी ड्राईव। पेनड्राईव ने डाटा कॉपी करने से मना कर दिया, पेनड्राईव कहती है कि पहले घूस दो नहीं तो मैं कम्प्य़ूटर को करप्ट दिखने लगूँगी, तो हम कहते चिंता मत कर हम तुझे फ़ोर्मेट कर देंगे, तो पेनड्राइव हँसकर बोली कि तुम्हारा डाटा चला जायेगा जो पहले से तुमने मेरे अंदर स्टोर कर रखा है, चुपचाप घूस दे दो और अपना काम करो, नहीं तो करना फ़िर मेहनत, फ़िर डाटा के लिये भागते रहना इधर उधर।

    वो तो भला हो रैम का जो आजकल घूस नहीं मांगती, रैम बेचारी को विन्डोज के भारीभरकम सॉफ़्टवेयरों ने इतना काम दे दिया है कि उसे सर उठाने की फ़ुरसत ही नहीं मिलती। यही हाल प्रोसेसर का है, बेचारा भाग भागकर कैलकुलेशन करता रहता है, और घूस के चक्कर में सोच ही नहीं पाता है, वैसे सही भी है जो मेहनत ज्यादा करता है उसी को ज्यादा काम भी दिया जाता है जिससे कम से कम संस्था की साख बची रहती है, ये तो मानेंगे कि रैम और प्रोसेसर के दम पर ही कम्प्यूटर संस्था की साख बची हुई है।

    सबसे जबरद्स्त घूसखोर थी 1.44” की फ़्लॉपी ड्राईव, इतनी जबरदस्त कि अगर घूस न दी तो बिल्कुल काम ही नहीं करती थी यहाँ तक कि फ़्लॉपी अंदर तक लेने से मना कर देती थी, और तो और आलम यह था उसकी घूसखोरी का कि घूस खाने के बाद भी फ़्लॉपी पर रीड और राईट करने का अधिकार उसी का था, मर्जी होगी तो करेगी नहीं तो नमस्ते, पैसे भी गये और डाटा भी।

    आखिरकार रैम और प्रोसेसर ने दम दिखाया और एकता जगाई और कम्प्य़ूटर के सारे आम पार्ट्स इकट्ठा हुए और उन्होंने अनशन शुरू कर दिया, परंतु कम्प्यूटर ने उनकी सुनने से मना कर दिया कह दिया कि हमारे पास एक्स्ट्रा रैम नहीं है हार्ड डिस्क नहीं है हम आपकी माँगे नहीं मान सकते और छोटे ब्यूरोक्रेट्स की तो बिल्कुल भी नहीं, पर कम्प्यूटर के आम पार्ट्स मानने को तैयार नहीं थे और उन्होंने मदरबोर्ड पर ही धरना देना शुरू कर दिया। कम्प्यूटर को लगा कि ये मान जायेंगे परंतु जब देखा कि प्रोसेसर से रैम तक निकलने वाले घूसखोरी मुहीम के आंदोलन में आम पार्ट्स की संख्या बड़ती ही जा रही है, तब जाकर कम्प्यूटर को चिंता हुई और उन्होंने अपने सदन को बुलाया और अनशनकारियों से बात करना शुरू की, तो कीबोर्ड और माऊस जो कि कम्प्यूटर की तरफ़ से बातें कर रहे थे वे जब मर्जी होती अनशनकारियों से बातचीत में धोखा देते, पर आम पार्ट्स के आंदोलनकारियों की संख्या देखकर आखिरकार कम्प्यूटर को झुकना ही पड़ा।

    इसी बीच कई मध्यस्थ आये बहुत सारे व्यवसायी अपने अपने एन्टिवायरस लेकर आये परंतु अनशनकारियों की माँग थी कि ऐसा एन्टीवायरस बने जो कि किसी भी प्रकार के घूस के वायरस से निपटने में सक्षम हो, और आखिरकार कम्प्य़ूटर सदन में ध्वनिमत से घूस के एन्टीवायरस के लिये प्रस्ताव पारित हो गया है। अनशनकारियों का आंदोलन खत्म हो गया है। और चारों तरफ़ खुशियों का माहौल है, विन्डोज के सारे वर्शन खुश हैं कि अब मुझे काम करने के लिये ज्यादा जगह मिलेगी और इसी खुशी में विन्डोज ने अपना स्क्रीनसेवर चला दिया है जिसमें से रंगबिरंगी आतिशबाजी चालू है।

    परंतु घूसखोरी चालू है, क्योंकि अभी तो एन्टीवायरस कौन सा हो और कैसे काम करेगा इस पर आखिरी मोहर कीबोर्ड और माऊस की समिती को लगाना है जो कि चारा, कैश रकम देना और २ जी जैसे बड़े बड़े घोटालों में लिप्त हैं। अब देखते हैं कि कौन सा एन्टीवायरस लाया जाता है और इस घूसतंत्र से निपटने में कितनी आसानी होती है और कम्प्यूटर अच्छी तरह से काम करने लगता है।

गालों पर तिरंगा.. भ्रष्टाचार..जन्माष्टमी..इस्कॉन..और अमूल बेबी बॉय

    शाम को घर से निकले कृष्णजी के दर्शन के लिये तो देखा कि घर के सामने ही चाट की दुकान पर युवाओं की भीड़ उमड़ी हुई है और चाटवाले भैया का हाथ खाली नहीं है, कहीं किसी नौजवान युवक और युवतियों के गालों पर तिरंगा बना हुआ है तो किसी ने तिरंगे रंग की टीशर्ट पहन रखी थी। सब भ्रष्टाचार का विरोध कर के आ रहे थे। बैंगलोर में भ्रष्टाचार का विरोध फ़्रीडम पार्क में हो रहा है जिसके बारे में आज बैंगलोर मिरर में एक समाचार भी आया है कि ऑटो वाले जमकर चाँदी काट रहे हैं, मीटर के ऊपर ५०-१०० रूपये तक माँगे जा रहे हैं और पुलिस वाले चुपचाप हैं और लोगों को कह रहे हैं कि यही तो इनके कमाने के दिन हैं।

    बड़ा अजीब लगता है कि लोग ऑटो वालों के भ्रष्टाचार से परेशान हैं और ज्यादा पैसा लेना भी तो जनता के साथ भ्रष्टाचार है और उसके बाद जनता भ्रष्टाचार का विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं, “मैं अन्ना हूँ।” और भी फ़लाना ढ़िकाना… पर खुद भ्रष्टाचार खत्म नहीं करेंगे, अरे भई जनता समझो कि भ्रष्टाचार खुद ही खत्म करना होगा।

    यहीं घर के पास ही एक कन्वेंशन सेंटर में इस्कॉन बैंगलोर ने जन्माष्टमी के अवसर पर आयोजन किया था, आयोजन भव्य था। दर्शन कर लिये पर पता नहीं चल रहा था कि ये मधु प्रभू वाला इस्कॉन है या मुंबई इस्कॉन वाला, आपकी जानकारी के लिये बता दूँ कि मधु प्रभू वाले राजाजी नगर, विजय नगर वाले मंदिर का इस्कॉन संस्था ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बहिष्कार किया हुआ है। इस्कॉन मुंबई ने बैंगलोर में शेषाद्रीपुरम में अपना एक मंदिर बनाया है और अब एच.बी.आर. लेआऊट में एक और मंदिर बन रहा है।

    दर्शन करने के बाद महामंत्र “हरे कृष्णा हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे हरे, हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे” का श्रवण किया और फ़िर चल दिये प्रसादम की और जहाँ पर हलवा और पुलैगेरा चावल थे दोनों ही अपने मनपसंद बस पेटभर कर आस्वादन किया गया।

    घर आये फ़िर न्यूज चैनल देखे तो पता चला कि अन्ना फ़ौज से भगौड़े नहीं हैं जो कि थोड़े दिनों पहले शासन करने वाली राजनैतिक पार्टी के लोग बयान दे रहे थे। अब तो वे बेचारे किसी को मुँह दिखाने लायक भी नहीं रहे, अरे भई बोलो मगर यह तो नहीं कि जो आये मुँह में बोल डालो, सब के सब दिग्विजय सिंह से टक्कर लेने में लगे हैं। वैसे आजकल ये महाशय चुप हैं, और नौजवान अमूल बेबी बॉय मुँह में निप्पल लेकर बैठे हुए हैं, क्योंकि उनको पता है कि अगर उन्होंने अन्ना का नाम भी लिया तो उन्हें मिलेगा गन्ना ।

    बेचारे बाबा नौजवानों को अपने साथ लाना चाहते थे और देखकर हर कोई दंग है कि ७४ वर्षीय अन्ना के साथ सारे नौजवान सड़क पर उतर आये हैं, मम्मी अमरीका गई है बाबा की निप्पल बदले कौन ?

भ्रष्टाचार के खिलाफ बिगुल फ़ूँकना होगा । (Fight against corruption)

    आजकल कुछ ठीक नहीं लग रहा है, जो इस काल में देश और समाज में घटित हो रहा है वह सब ठीक नहीं हो रहा है। क्या बतायेंगे हम आने वाली पीढ़ी को कि कैसे भ्रष्टाचार का दीमक हमारे समाज, देश और अर्थव्यवस्था को चाट गया। सरकार और राजनैतिक दल अपना स्वार्थ साधने के लिये शांतिपूर्ण आंदोलनकारियों को विदेशी ताकत का हाथ बताने लगते हैं। क्या ऐसे लोगों को सरकार और उससे जुड़े पदों पर रहने का अधिकार है ?

    क्या यह उसी तरह की क्रांति की तस्वीर भारत में उभर रही है जैसी कि सिंगापुर में १९७० के दशक में उकेरी गई थी, हमारी सरकार और राजनैतिक नुमाईंदे बैकफ़ुट पर हैं और जनता हावी होती जा रही है। क्या चुने हुए लोग इतने बेशरम हो गये हैं कि जनता की बात सुनना ही नहीं चाहते हैं, और अगर ऐसा है तो यह तो तय है कि अहिंसक तरीके से जनता आंदोलन कर रही है और अगर आंदोलन ऐसा ही चलता रहा तो सरकार का गिरना तय है, क्योंकि इससे एक बात तो साफ़ हो रही है कि सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ़ नहीं है और अगर है तो उसे मिटाने की प्रतिबद्धता सरकार में नहीं है।

    खैर जनता कितना भी आंदोलन कर ले परंतु ये प्रशासनिक और सरकारी लोग वही करेंगे जो इनको करना होगा या आदेशित होगा। अगले चुनाव में क्या मुँह लेकर जनता के  पास जायेंगे ? इससे अच्छा है कि जनता को ही अपने समूह बनाने होंगे और जो भ्रष्टाचार करे उसकी सरेआम बेईज्जती की जाये और मुँह काला कर गधे पर बैठाकर घुमाया जाये। परंतु हमारे संस्कार हमें इस बात की भी इजाजत नहीं देते, हमारे संस्कार कहते हैं कि अगले को सुधरने का पूरा मौका दिया जाना चाहिये।

    अब तो जो होना है वह होना है, परंतु गांधीवादी युग से क्या हासिल होगा, जनता का विद्रोह अगर लीबिया जैसा हो गया तब सरकार क्या कर लेगी। जनता को अराजक बताकर अपनी पूरी ताकत इनको खत्म करने में लगा देगी। लेकिन भ्रष्टाचार खत्म करने के लिये कोई ठोस कदम उठाने कि बात नहीं करेगी।

    कुछ बातें ठीक लग रही हैं जैसे इलेक्ट्रानिक मीडिया बराबर कवरेज दे रहा है और हो सकता है कुछ चैनलों को तो मजबूरी में टी.आर.पी. के चक्कर में ना चाहते हुए भी कवरेज देना पड़ रहा हो। कुछ बातें ठीक नहीं लग रही हैं क्या पुलिस वाले मानव ह्र्दय नहीं रखते या उनको सही गलत की समझ नहीं होती या फ़िर वे हमेशा अपने ऊपर भ्रष्टाचार का दाग लेकर घूमना चाहते हैं, जो कि सरकार की बातें मान रहे हैं, क्यों सरकारी कर्मचारी भ्रष्टाचार के महाआंदोलन में साथ नहीं हैं।

    हो सकता है कि आंदोलन के सूत्रधारों की रणनीति ठीक नहीं हो या एजेंडा थोड़ा सा भटका हुआ हो, परंतु है तो भ्रष्टाचार के खिलाफ़ ही, अगर आज उठे नहीं तो कभी उठ नहीं पायेंगे, भ्रष्टाचार मुक्त भारत देश बनाने का सपना साकार करने के लिये यह पहला कदम है, अभी तो इस राह में बहुत सारी क्रांतियाँ हैं।

कैलोरी वजन और व्यायाम जलाओ जलाओ कैलोरी जलाओ.. (Burn Calorie, weight and exercise..)

    वजन कम करना भी एक टेढ़ी खीर है, और अब तो यह एक व्यवसाय बन गया है। जिस चौराहे पर देखो उधर वजन कम करने का और कमर कम करने का विज्ञापन दिखाई देता है। विज्ञापन देखकर वजन कम करने के लिये प्रेरित तो होते हैं, परंतु जब वजन कम करने के लिये पसीना बहाना होता है तो अच्छे अच्छों को नानी याद आ जाती है।

    १५ मिनिट का व्यायाम भी १५ घंटे के बराबर लगता है, वह एक घंटा बहुत ही मुश्किल से बीतता है, फ़िर हाथ पैरों में जो ऐंठन और दर्द होता है, उसका तो पूछना ही क्या । वजन कम करने के लिये आत्मप्रेरित होना होता है, जब शरीर व्यायाम करता है तो सारे शरीर में खून का प्रवाह ठीक होने लगता है और दिमाग के स्नायु भी अच्छे से कार्य करने लगती हैं। मानसिक उत्पादन बड़ता है और व्यक्ति को भी अच्छा लगता है।

 धीमी चाल

आज सुबह ही प्रवचन (कहाँ से और किस से ना पूछें तो मेहरबानी होगी) में सुन रहे थे कि  एक घंटे में धीमी गति से अगर ३.२ कि.मी. चला जाये तो २०० कैलोरी जलती है और अगर तीव्र गति से चला जाये तो ११०० कैलोरी जलती है, एक किलो वजन कम करने के लिये लगभग ८३०० कैलोरी जलाना पड़ती हैं। तो हमने भी झट से एक्सेल में गणना की तो लगा कि बहुत मेहनत का कार्य है यह भी !

धीमी गति से चलने पर तीव्र गति से चलने पर
1 किलो कम करने के लिये कैलोरी 8300 8300
1 घंटे में जली कैलोरी 200 1100
कुल घंटे एक किलो कम करने के लिये 41.5 7.545454545

तेज चाल     अब गणना तो कर ली है, सोचते हैं कि खाने में कभी ध्यान नहीं देते हैं, और खाते समय कैलोरी गणना को पाप मानते हैं। जैसे कॉफ़ी पीते हैं तो एक कप में २०० कैलोरी होती है, यह कैलोरी तो कॉफ़ी की होती है और शक्कर की अलग, ऐसे ही चाय की। बिस्किट्स और चिप्स की भी कैलोरी बहुत ज्यादा होती हैं। मिठाई और नमकीन की कैलोरी भी बहुत ज्यादा होती हैं। मैगी, कोल्डड्रिंक्स, मक्खन, चीज में भी भरपूर कैलोरी होती हैं। इसलिये अब कैलोरी का भी ध्यान रखना होगा।

    अभी तक जबान के स्वाद के लिये खाते थे, अब कैलोरी खायेंगे और कैलोरी ही निकालेंगे। सुना है ग्रीन टी, गरम पानी, कच्ची सब्जियाँ, उबली सब्जियाँ कम कैलोरी और कैलोरी का नाश करने वाली होती हैं, परंतु बिना स्वाद कैसे यह सब जबान के रास्ते उदर तक पहुँचेगी। खाना भरपूर खाना चाहिये, क्योंकि डायटिंग से कुछ होने वाला नहीं हैं। जरूरत है अपनी खाई गई कैलोरी को जलाने की और अगर उससे ज्यादा जलायेंगे तो थोड़ा वजन भी कम होगा, आगे आगे देखते हैं कि कितनी कैलोरी खा पाते हैं और कितनी जला पाते हैं।

निवेश कब और कहाँ करना चाहिये ? निवेश के लिये सबसे अच्छी क्या है ? (Where and how to Invest ? what is the best investment ?)

निवेश कब और कहाँ करना चाहिये ? निवेश के लिये सबसे अच्छी क्या है ?

इस तरह के बहुत सारे प्रश्न मन में घुमड़ते रहते हैं और हम यही चीज हमेशा ढूँढ़ते रहते हैं।

    निवेश सभी जगह करना चाहिये और कहाँ और कैसे करना चाहिये यह पूर्णतया: व्यक्तिगत होता है, यह निर्भर करता है कि निवेशक की उम्र क्या है, उसकी क्या वित्तीय और पारिवारिक जिम्मेदारियाँ हैं और निवेशक की जोखिम लेने की क्षमता ।

    जैसे हमें भोजन में रोज अलग अलग व्यंजन चाहिये कोई एक व्यंजन जो हमें अच्छा लगता है उसे हम लगातार नहीं खा सकते, अगर खा भी लिया तो एक समय के बाद उसी प्रिय व्यंजन से चिढ़ हो जाती है, इसलिये सभी व्यंजन का उपभोग करते हैं, वैसे ही निवेश है, अगर कोई एक निवेश की जगह पसंद है तो ये हो सकता है कि आपका जोखिम ज्यादा हो और फ़ायदे की जगह नुक्सान ज्यादा हो जाये या फ़िर साधारण फ़ायदा भी न हो। एक अंग्रेजी की कहावत है कि अपनी फ़लों की डलिया में सभी प्रकार के फ़ल रखें।

    उम्र के अनुसार निवेशक को निवेश करना चाहिये, उम्र निवेश के लिये एक बहुत बड़ा कारक है। साधारण सिद्धांत यह है कि जितनी उम्र है उतना प्रतिशत निवेश हमेशा सुरक्षित जमा में करें, जैसे कि पी.पी.एफ़. (PPF), एफ़.डी. (FD), किसान विकास पत्र और इसी प्रकार के अन्य निवेश, इसमॆं अपना पी.एफ़. (PF) भी जोड़ें क्योंकि यह भी एक सुरक्षित निवेश ही है। अपनी उम्र को १०० में से घटा लें, अब जितनी उम्र है उतना निवेश तो सुरक्षित निवेश में ही करना है और बाकी का बचा हुआ अपने जोखिम और जानकारी के अनुसार निवेश करना है, जैसे कि शेयर (Equity), म्य़ूचयल फ़ंड (Mutual Fund), कमोडिटी (Commodity), Metal (सोना, चांदी), जमीन इत्यादि।

    अगर एक २२ वर्षीय युवक / युवती कहे निवेश के लिये तो उसे सलाह होगी कि वे अपनी बचत का २२ % निवेश सुरक्षित जमा में करे । और बाकी का ८८ % बाजार में निवेश करे।

    परंतु ध्यान रखें व्यक्ति खासकर नौकरी पेशा व्यक्ति को जोखिम ४५ वर्ष तक की आयु तक ही लेना चाहिये उसके बाद उसे अपना निवेश सुरक्षित जगह में ही करना चाहिये, क्योंकि जो जोखिम वाले निवेश हैं उनकी समय सीमा कम से कम १० वर्ष माननी चाहिये तभी ये निवेश अच्छे रिटर्न दे सकते हैं।

आज फ़िर भारतीय बाजारों के लिये काला सोमवार है (Today again a Black Monday for Indian Share Market..)

काला सोमवार     आज फ़िर से भारतीय बाजारों के लिये काला सोमवार है, आज सेन्सेक्स कितना नीचे जाता है यह तो बाजार खुलने के बाद ही पता चलेगा, मगर शेयर बाजार के विशेषज्ञों के अनुसार सेन्सेक्स १५,००० का लेवल तोड़ सकता है। शनिवार और रविवार यूरोप और भारत के बाजार बंद रहते हैं, परंतु मिडिल ईस्ट के बाजार खुले होते हैं और वहाँ भारी गिरावट देखने को मिली है। मसलन सऊदी अरब, UAE, इस्राइल, कुवैत यहाँ के बाजारों में ७% तक की गिरावट दर्ज की गई है।

काला सोमवार बम     दरअसल शुक्रवार को बाजार बंद होने के बाद स्टैंडर्ड् एन्ड पूअर्स (Standard and Poor’s) ने अमेरिका की डेब्ट रेटिंग AAA से AA+ कर दी, अमेरिका की रेटिंग कम होने से उन संस्थाओं पर अब अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर दबाब पढ़ने लगा है जो कि केवल AAA रेटिंग वाले देशों में ही निवेश कर सकते हैं, इसका मतलब यह हुआ कि अब अमेरिका से निवेश निकलकर AAA रेटिंग वाले देशों में याने कि जर्मनी, फ़्रांस, कनाडा और ब्रिटेन में जायेगा। यहाँ तक कि स्टैंडर्ड और पूअर्स ने अमेरिका को यह भी चेताया है कि  अगले कुछ दिनों में अगर अमेरिकी अर्थव्यवस्था नहीं सुधरी तो अमेरिका की डेब्ट रेटिंग AA+ से घटाकर AA की जा सकती है।

आज के परिदृश्य में भारतीय अर्थव्यवस्था पर वैश्विक परिस्थितियों का गहन असर पड़ता है। इसलिये आने वाला समय बाजारों के लिये ठीक नहीं है, शेयर बाजार विशेषज्ञों की राय में अभी बाजार में निवेश करने से बचें और निचले लेवलों पर धीरे धीरे निवेश करते रहें, एकसाथ निवेश न करें।

अमेरिका देश की साख दाँव पर लगी है, अब देखते हैं कि ओबामा सरकार इससे कैसे निपटती है या अपने देश की डेब्ट रेटिंग AA या AA- पर आने देती है।

एक बात और स्टैंडर्ड और पूअर्स के चैयरमैन हैं देवेन शर्मा जो कि झारखंड के जमशेदपुर से हैं, और उन्होंने अपनी टीम के साथ ओबामा की छुट्टी कर दी।

स्टैंडर्ड और पूअर्स के बारे में ज्यादा जानने के लिये क्ल्कि करें।

देखो ऑटो में जवानी उछल रही है

    रोज रात्रि भोजन के पश्चात अपनी घरवाली के साथ एकाध घंटा घूम लेते हैं, जिससे बहुत सारी बातें भी हो जाती हैं, और पान खाना भी हो जाता है।

    वैसे तो यहाँ बैंगलोर में हमने जितने जवान लोग भारत के हरेक हिस्से से आये हुए देखे हैं, उतने शायद ही किसी और शहर में होंगे, क्योंकि बैंगलोर आई.टी. हब है। पर यहाँ लोगों को (जवान लोगों)  अपनी मर्यादा में ही देखा था, परंतु आज जब हम मैन आई.टी.पी.एल. (ITPL is a IT Park in Bangalore) रोड होते हुए घर की ओर जा रहे थे, तो अचानक एक ऑटो पर नजर पड़ गयी, उस ऑटो में एक जवान जोड़ा बैठा हुआ था और अचानक बात करते करते लड़की लड़के के सीने से चिपट गई। और हमारे मुंह से निकल गया “देखो ऑटो में जवानी उछल रही है”।

    बैंगलोर में यह हमारे लिये नया सा है, क्योंकि यहाँ का वातावरण उतना स्वच्छंद नहीं है जितना कि मुंबई का। मुंबई में तो दो जवान दिलों का मिलन कहीं भी हो जाता है, और ऑटो में तो ये समझ लीजिये कि बस यही होता है, अगर जवान जोड़ा है तो, वहाँ यह सब साधारण सा लगता था, परंतु जब यहाँ आये तो थोड़ा कसा हुआ वातावरण पाया, इसलिये आज थोड़ा ठीक नहीं लगा। इसका कारण यह भी हो सकता है कि कभी हमें यह मौका नहीं मिला।

    मुंबई में तो ऑटो वाले खुद ही कई बार चिल्लाकर ऐसी सवारियों को दूर कर देते हैं, परंतु जवान दिलों को कोई रोक सका है ?

क्रोधित पक्षी याने के एंग्री बर्ड्स (Angry Birds..)

    कुछ दिनों पहले प्रशांत की एक बज्ज या फ़ेसबुक स्टेटस से एंग्री बर्ड्स  (Angry Birds) नामक खेल का पता चला। हमने इसकी खोजबीन की गूगल महाराज पर तो देखा यह तो क्रोम ब्राऊजर में ऑनलाईन उपलब्ध है, और तो और अगर एक बार खेल शुरू कर लिया जाये तो नेट कनेक्शन बंद भी कर सकते हैं, तो कुछ लेवल ऑफ़लाईन खेल ही सकते हैं।

    खैर ब्लॉगर बांधव की सहायता से फ़ेसबुक के सहारे हमें एंग्री बर्ड्स को संस्थापित करने की लिंक मिल गई और हम खुश हो गये। मुझे याद है कि यह एंग्री बर्ड्स कुछ महीने पहले हमने नोकिया के N8 मोबाईल पर खेला था जब वह लांच हो रहा था।

एंग्री बर्ड्स

    एंग्री बर्ड्स खेल को खेलना किसी नशे से कम भी नहीं है, जब भी समय मिलता है तो हम पिल पड़ते हैं एंग्री बर्ड्स के साथ। यहाँ तक कि हमारे बेटॆ का तो सबसे प्रिय खेल यही है, इस चक्कर में महाराज की पढ़ाई लिखाई भी एक तरफ़ हो गई थी, तो हमने आखिरकार डेस्कटॉप से शार्टकट हटा दिया, प्रोग्राम फ़ाईल से भी प्रोग्राम हटा दिया, अब वे एंग्री बर्ड्स नहीं खोल पाते हैं, हाँ अगर उन्होंने पढ़ाई का कार्यक्रम पूरा कर लिया तो हम उन्हें खुद ही एंग्री बर्ड्स लगाकर दे देते हैं।

    एंग्री बर्ड्स मूलत: एक वीडियो गेम पहेली है, जो कि फ़िनलैंड की रोवियो मोबाईल ने विकसित की है। यह खेल सर्वप्रथम एप्पल के लिये दिसंबर २००९ में विमोचित किया गया था और इसकी खूब बिक्री हुई तो कंपनी ने अन्य टच स्क्रीन उपकरणों के लिये भी इस खेल को विकसित किया ।

    एंग्री बर्ड्स में मूलत: कुछ गुस्सा हुए पक्षी हैं जिन्हें गुलेल के द्वारा नियंत्रित कर सामने खड़े ढांचे को गिराकर उसमें बैठे हुए सूअरों को खत्म करना है। यह एक प्रकार से कूटनीतिक खेल है, जिसमें आपको पूरी योजना के साथ इन सूअरों को मारना होता है। यह खेल दिमाग को तो तेज करता ही है, परंतु इस खेल की लत भी लगाता है।

    इस खेल का छठा एपीसोड हाल ही में बाजार में उतारा गया है “ माईन एन्ड डाईन”, जिसमें १५ लेवल हैं।

आज एंग्री बर्ड्स खेल शायद मोबाईल में खेलने वाला सार्वाधिक लोकप्रिय खेल है।

एंग्रीबर्ड्स को क्रोम ब्राऊजर में खेलने की लिंक –

http://chrome.angrybirds.com/

 

 

तो देर किस बात की है, अब खेलिये एंग्री बर्ड्स और लत ना लग जाये तो कहना ।

पोलिथीन याने कि प्लास्टिक की थैलियाँ हम कितनी उपयोग करते हैं ? और कपड़े के थैले कहाँ गये ?

    आजकल जिधर देखो उधर हर किसी के हाथ में पोलिथीन की थैलियाँ दिखती हैं, कपड़े और जूट के थैले तो हाथों से गायब ही हो गये हैं, अगर कहीं भूले भटके दिख भी गये तो बड़ा आश्चर्य होता है।

    मुझे बहुत अच्छे से याद है कि जब छोटा था तब हमारे घर में कम से कम पाँच छ: थैले हुआ करते थे, जिसमें सब्जी लाने का अलग और किराने लाने का अलग थैला होता था। कपड़े के थैले बाजार में तो मिलते नहीं थे तो मम्मीजी घर पर ही सिलाई मशीन पर सिलती थीं, अगर किसी काम के लिये कोई कपड़ा आया हो और उसमें से कोई कपड़ा बच गया तो उसका थैला सिल जाता था, और थैले भी अलग अलग अनुपात के होते थे, कम सब्जी वाले और ज्यादा सब्जी वाले, इसी तरह कम किराने वाले और ज्यादा किराने वाले।

    आज भी घर पर समान लाने के लिये पापाजी थैले का ही उपयोग करते हैं, प्लास्टिक की थैलियों को तरजीह नहीं देते हैं, परंतु बहुत सारी चीजें बदल गई हैं, पहले जब कपड़े के थैले उपयोग करते थे तो सब्जी को घर पर आकर छांटना पड़ता था और उसमें भी काफ़ी मजा आता था, फ़ली, भिंडी, मटर और मिर्ची तो आपस में गुत्थमगुत्था ही मिलती थीं, शिमला मिर्च, आलू, प्याज और टिंडे एक दूसरे में मिल जाते थे, उनको अलग अलग करना एक रोमांच ही होता था। पर धीरे धीरे प्लास्टिक की थैलियों ने जगह बनाई, अब जब दुकान पर सब्जी खरीदी तो बेचारी सारी सब्जियाँ अपने अपने थैलियों में सिमट कर रह गई हैं, कभी एक दूसरे से गुत्थमगुत्था हो ही नहीं पाती हैं, खैर उस जमाने में फ़्रिज नहीं हुआ करता था तो लगभग रोज ही ताजी सब्जी मिलती थी, परंतु आजकल फ़्रिज आने से इतनी खराब आदत हो चली है कि शनिवार या रविवार को पूरे सप्ताह की सब्जियाँ लाकर फ़्रिज भार लेते हैं, और फ़िर पूरे सप्ताह भर खाते रहते हैं। बस पत्तेदार सब्जियाँ अब भी तभी आती हैं जिस दिन खानी होती हैं।

    अब मॉल में जाते हैं, कोल्डस्टोरेज की निकली हुई ताजी सब्जियाँ लेकर आते हैं, हर सब्जी के लिये अलग छोटी छोटी प्लास्टिक की थैलियाँ मौजूद रहती हैं, आजकल तो सब्जियाँ रेडीमेट पोलिथीन मॆं पैक वजन के साथ दाम लिखी हुई भी मिलती हैं, बस ये थोड़ी महंगी होती हैं ३०-३५% तक। हमने एक बात तो देखी कि बाजार में सब्जियाँ महंगी हैं और मॉल में सब्जियाँ सस्ती हैं, और कई बाहर ठेला लगाने वाले तो इन मॉलों से ही सब्जी खरीदते हैं और ज्यादा दामों पर बाहर बेचते हैं।

    खैर हमने वापिस से कपड़े के थैले का उपयोग करना शुरू किया है, जिसमें दूध, ब्रेड वगैरह लेकर आते हैं, वैसे यह भी मजबूरी में है क्योंकि सरकार ने प्लास्टिक की थैलियों पर रोक लगाई हुई है, जब रोक लगी थी, तब लगभग सभी दुकानों से थैलियाँ गायब हो गई थीं, परंतु थैलियाँ ना होने के वजह से धंधे पर असर होने लगा तो अब रोक के बाबजूद प्लास्टिक की थैलियाँ दुकानदारों को रखना पड़ती हैं।

    पहले कचरे के डिब्बे के लिये अलग से पोलिथीन लानी पड़ती थी, परंतु अब माह भर में मॉल से इतनी खरीदारी हो जाती है कि अलग से कचरे के लिये पोलिथीन खरीदने की जरूरत ही नहीं पड़ती है। एक प्रकार से हम पोलिथीन का सदुपयोग भी कर रहे हैं। पर हाँ अब कपड़े के थैले पर जाना बहुत मुश्किल लगता है।

आयकर रिटर्न की ईफ़ाईलिंग और नियोक्ता द्वारा कटा हुआ कर फ़ॉर्म 26A S से देखें। (E-filing of Income Tax Return and Check deducted Tax from employer in form 26A S)

    क्या आपने आयकर रिटर्न भर दिया है, अगर नहीं तो कैसे भरने वाले हैं, हमने इस बार से इलेक्ट्रॉनिक तरीके से भरना शुरू किया है और बहुत ही आसान लगा।
    आयकर की ईफ़ाईलिंग की वेबसाईट पर जाकर अपने पान नंबर से रजिस्टर करें, और अपनी निजी जानकारियाँ भरें। डाऊनलोड में जाकर संबंधित फ़ॉर्म डाऊनलोड कर लें, जैसे अगर आप केवल नौकरी करते हैं तो आपको आई.टी.आर. १ सहज भरना है, सहज की एक्सेल फ़ाईल डाऊनलोड करें, और जब एक्सेल में फ़ाईल खोलें तो मेक्रो को इनेबल करें नहीं तो एक्सेल फ़ाईल के पुश बटन काम नहीं करेंगे।
एक्सेल में अपनी सही जानकारी भरें जो कि फ़ॉर्म १६ में दी गई है, इसमें तीन टैब दिये हैं –
1. Income Details – इस शीट में फ़ॉर्म १६ के अनुसार आय की जानकारियाँ, नाम और   पता भरिये। Valideate  करिये और Next बटन पर क्लिक कीजिये।
2. TDS – इस शीट में नियोक्ता द्वारा काटे गये टैक्स की जानकारी, सैलेरी के अलावा अगर कहीं TDS कटा है और अग्रिम कर की जानकारी Transaction wise दें।
3. Taxes paid and verification – इस शीट पर अपने बैंक का खाता नंबर और माइकर कोड टंकित करें साथ ही यहाँ पर आपका टैक्स के बारे में पता चलता है कि टैक्स सही है या और जमा करना है या रिफ़ंड है। अगर यह नहीं आ रहा है तो पहली शीट Income Details पर जाकर Calculate Tax बटन पर क्ल्कि करें।
    अब तीसरी शीट पर दिये गये Generate बटन को दबायें तो यह आपकी एक्सेल फ़ाईल की .xml फ़ाईल बना देगा। जो कि Submit Return – Select Assessment Year में जाकर अपना वर्ष चुन लें, अपना फ़ॉर्म चुनें और अगर आपके पास डिजिटल सिग्नेचर है तो Yes करें नहीं तो No ही रहने दें। Next पर क्ल्कि करें, अब Choose file पर क्लिक करें और .xml फ़ाईल को चुनें। और अगर डिजिटल सिग्नेचर हैं तो इसके लिये जावा का संस्थापित होना आवश्यक है और अपनी .pfx फ़ाईल का पता दें। अब Upload बटन दबाकर फ़ाईल को Upload कर दें। जैसे ही फ़ाईल upload हो जायेगी, वैसे ही आपको फ़ॉर्म V की PDF लिंक मिल जायेगी, जिसे डाऊनलोड करके उसका प्रिंट निकालकर उसे आयकर बैंगलोर स्थित स्पेशल सैल के पते पर भेज दें। १२० दिनों के अंदर आपको फ़ॉर्म V आयकर विभाग को भेजना होता है जिसकी रसीद आयकर विभाग द्वारा आपके ईमेल पते पर भेज दी जायेगी। और इसका ऑनलाईन स्टेटस भी आयकर की साईट पर देख सकते हैं। अगर रसीद नहीं मिले तो फ़ॉर्म V वापिस से भेजें और ध्यान रखें कि फ़ॉर्म V केवल साधारण डाक या स्पीडपोस्ट से भेजें, रजिस्टर पोस्ट और कूरियर से डाक स्वीकार नहीं करते हैं। ज्यादा जानकारी के लिये आयकर विभाग की साईट पर देखें।
    अगर आपने डिजिटल सिग्नेचर भी अपलोड किये हैं तो फ़ॉर्म V भरकर भेजने की आवश्यकता नहीं है। सबसे सस्ता डिजिटल सिग्नेचर ईमुद्रा द्वारा दिया जाता है, मैंने भी सोचा था कि डिजिटल सिग्नेचर लूँ परंतु जब मात्र २० रूपये खर्च करने से काम चल जाता है तो उसके लिये ४०० रूपये का खर्चा क्यों किया जाये और डिजिटल सिग्नेचर का आयकर रिटर्न भरने के अलावा कहीं ओर व्यावहारिक उपयोग भी नहीं है।
    याद रखें पासवर्ड कभी भी कहीं भी नहीं लिखें, जैसे बैंक का पासवर्ड महत्वपूर्ण है वैसे ही आयकर की साईट का पासवर्ड महत्वपूर्ण है। कोई भी जानकारी अपलोड की जाती है, तो उसकी जिम्मेदारी केवल उस लॉगिन की ही है।
    अब आपको अपने नियोक्ता द्वारा जमा किये गये आयकर का विवरण देखना है तो आप पिछले वर्षों का भी विवरण यहाँ ऑनलाईन देख सकते हैं, फ़ॉर्म 26AS के द्वारा।
    My Account – View Tax Assessment ( Form 26A S), पूछी गई जानकारियों को भरें और View Form 26A S पर क्ल्कि करें। यह वेबसाईट एन.एस.डी.एल की साईट से कनेक्ट होकर सारी जानकारी आपको मुहैया करवा देता है।
    तो भूल जाईये ऑफ़लाईन आयकर रिटर्न भरना और भरिये ऑनलाईन रिटर्न, हाँ अगले वर्षों में अगर डिजिटल सिग्नेचर अगर सस्ता होता है या फ़िर उसका कहीं और भी व्यवहारिक उपयोग होता है तो डिजिटल सिग्नेचर भी ले लिया जायेगा।