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तश्तरी में खाना ना छोड़ क्या पेट पर अत्याचार कर लें ?

    आज सुबह नाश्ता करने गये थे तो ऐसे ही बात चल रही थी, एक मित्र ने कहा कि फ़लाना व्यक्ति नाश्ते में या खाने की तश्तरी में कुछ भी छोड़ना पसंद नहीं करते और यहाँ तक कि अपने टिफ़िन में भी कुछ छोड़ते नहीं हैं। वैसे हमने इस प्रकार के कई लोग देखे हैं जो इन साहब की तरह ही होते हैं जो कि अपने तश्तरी में कुछ छोड़ना पसंद नहीं करते। शायद कुछ लोग अपनी लुगाई के डर से नहीं छोड़ते, नहीं तो घर में महासंग्राम हो जायेगा, “अच्छा तो अब हमारे हाथ का खाना भी ठीक नहीं लगता जो तश्तरी में खाना छोड़ा जा रहा है।”

    हमारा मत थोड़ा अलग है, हम सोचते हैं कि तश्तरी में खाना छोड़ना, न छोड़ना अपने अपने व्यक्तिगत विचार हैं, जिस पर किसी और व्यक्ति का अपने विचार थोपना ठीक नहीं है। अब अगर कोई किसी होटल में खा रहा है और खाने का समान ज्यादा है तो इसका मतलब यह तो नहीं कि खाते नहीं बने फ़िर भी बस भकोस लिया जाये । छोड़ने से होटल वाला किसी गरीब को भी नहीं देने वाला है, क्योंकि वह तो फ़ेंकेगा ही।

    जो लोग ऐसे उपदेश देते हैं, वे कहते हैं कि हम अन्न की कीमत जानते हैं, भई अन्न की कीमत तो हम भी जानते हैं, परंतु वे खुद ही सोचें क्या व्यवहारिकता में यह संभव है। हम तो सोचते हैं कि रोजमर्रा के व्यवहार में यह संभव नहीं है। आदमी कितना ही गरीब हो वह इज्जत की रोटी खाना चाहता है, जो आदमी ये खाना खाता भी होगा, क्या कभी उसके मन को पढ़ने की कोशिश की है, कि वो किस दर्द से गुजर रहा होगा। अगर पढ़ने की कोशिश की होती और आपका मन उसकी मदद करने को होगा तो आप कम से कम उसे खाना नहीं देंगे उसे किसी और तरह से मदद कर देंगे, जैसे कि कोई छोटा काम दे दें, मेहनत के पैसे कमाने से उसे भी खुशी होगी।

    हाँ कुछ ढीट होते हैं जो कि काम करना ही नहीं चाहते और मुफ़्त में ही माल खाना चाहते हैं, तो मैं कहता हूँ कि अगर हम ऐसे ही उन लोगों के लिये सोचते रहेंगे तो वो लोग भी कभी सुधरने वाले नहीं हैं। बल्कि हम उन लोगों को बढ़ावा ही दे रहे हैं।

    हाँ आप अगर बफ़ेट में खा रहे हैं तो आप खाना उतना ले सकते हैं जितना आप खा सकते हैं, परंतु अगर कहीं पूरी प्लेट ही आपको ऑर्डर करनी है तो यह संभव नहीं है कि आप पूरा खा लें और अपने पेट पर अत्याचार करें। मैं तो खाने की तश्तरी में छोड़ना या ना छोड़ने के बारे में ज्यादा सोचता नहीं, क्योंकि यह निजता है और हम अपनी निजता का उल्लंघन नहीं होने देना चाहते, सबके अपने व्यक्तिगत विचार होते हैं, उनका सम्मान करना चाहिये।

    पेट पर अत्याचार (हमारे मित्र विनित जी द्वारा बहुतायत में उपयोग किया जाने वाला वाक्य है ।)

धूम्रपान कक्ष, खालिस उर्दू और विमान दल का देरी से आना जेद्दाह यात्रा भाग ३ (Smoking chamber, Urdu and Late Crew Jeddah Travel Part 3)

अपनी कॉफ़ी खत्म करने के बाद वापिस से कस्टम फ़्री के लंबे से हॉल में फ़िर से घूमने लगे, थोड़ी देर बाद थक गये तो सोचा चलो अपने दिये गये द्वार के पास ही बैठा जाये, बीच में एक जगह सिगरेट की कसैली गंध आ रही थी, आस पास देखा तो समझ नहीं आया कि कहाँ से आ रही है, फ़िर हमारे सहकर्मी जो कि हमारे बहुत अच्छॆ मित्र भी हैं, उन्होंने इशारे में सिगरेट की गुमटी जैसी चीज दिखाई, बस अंतर यह था कि यह गुमटी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डॆ के अंदर है, उसके पीछे ही काँच का एक केबिन बना हुआ है, जहाँ लगभग ६ बड़े ऐश ट्रे रखे हुए थे और उस छोटे से धूम्रपान कक्ष में कई लोग धूम्रपान कर रहे थे । लोगों ने अपने सुविधा अनुसार कैसी कैसी चीजें इजाद कर ली हैं ।

जहाँ हमारा द्वार था, वही एक कोने में ३ सीटें खाली थी, जिस पर हम दोनों जाकर पसर लिये, जब हम वहाँ बैठे तो उसी समय कुछ मलेशियन युवतियाँ भी उस सीट की और बढ़ीं थीं, परंतु हमे विराजमान होते देख दूसरी और मुड़ गईं । थोड़ी देर बाद ही एयर इंडिया की कोई फ़्लाईट उड़ने वाली थी तो एयर इंडिया का स्टॉफ़ वॉकी टॉकी लेकर नाम लेकर पुकार रहा था, हवाई अड्डे पर द्वार के पास यह आम बात है ।

उसी दिन से सऊदी में रमजान शुरू हो चुका था और भारत में एक दिन बाद शुरू होने वाला था, इसलिये उमराह करने वाले लोगों की संख्या ज्यादा थी, अधिकतर लोग सफ़ेद कपड़ों में दिखाई दे रहे थे, उमराह (एक तरह से तीर्थयात्रा) करने वाले लोग अपने कपड़ों में अलग ही नजर आ जाते हैं। चूँकि हमारी यह फ़्लाईट मुँबई से सीधी जेद्दाह की थी, इसलिये मुस्लिम धर्मालुओं की संख्या हमें ज्यादा ही दिखाई दे रही थी, बिजनेस के सिलसिले में हमें तो केवल २५-३० लोग ही जाते दिखे, बाकी सब उमराह करने वाले थे।

हमारी फ़्लाईट की उद्घोषणा हुई, उद्घोषणा पहले अंग्रेजी और फ़िर हिन्दी में हुई, हिन्दी में उद्घोषणा सुनकर बहुत खुशी हुई। अपना बोर्डिंग पास लेकर हम भी द्वार पर जा पहुँचे, बोर्डिंग पास का एक टुकड़ा अपने पास रखने के बाद और सुरक्षा टैग पर सील देखने के बाद हमें विमान की और जाने वाली एयरलाईंस की बस में चढ़ा दिया गया, और उसी रास्ते से वापिस हवाईपट्टी पर ले जाने लगे जिस रास्ते से शटल आई थी । और इस बस में बैठने के लिये मात्र ६-८ सीटें होती हैं और बाकी लोगों को केवल खड़ा होना होता है। हमने सोचा देखो जब इमिग्रेशन के लिये छोड़ा था तो कितनी इज्जत के साथ शटल से लेकर गये थे और अब बस में खड़ा करके ले जा रहे हैं।

बस में सब भेड़ बकरियों जैसे ठूँस दिये जाते हैं और कई लोग थे जो पहली बार ही हवाई यात्रा कर रहे थे और कई लोग थे जो पहली बार अंतर्राष्ट्रीय हवाई यात्रा कर रहे थे, अधिकतर उमराह वाले थे, बस में हमारे पास ही दो तीन परिवार खड़े थे जो कि फ़ोन पर अपनी सलामती की खबर दे रहे थे और लोगों की दुआ ले रहे थे क्योंकि वाकई मक्का जाना सबकी किस्मत में कहाँ होता है।

कई बार खालिस उर्दू ही कानों में सुनाई देती थी, उर्दू का अपना ही एक अदब है एक लहजा है और एक शालीनता है।

हवाई पट्टी पर हमारी बस पहुँच चुकी थी और हम बस से उतरने ही वाले थे कि पता चला कि अभी तक हवाई जहाज का उडानदल पहुँचा नहीं है, उडान दल भी हमारी बस में से आगे के दरवाजे से उतरा और हमें बताया गया कि  लगभग ५ मिनिट इंतजार कीजिये और दल ने हवाई जहाज में जाकर पहले आना समान रखा और जो भी प्राथमिक औपचारिकताएँ होती हैं वे पूरी करीं और फ़िर ग्राऊँड स्टॉफ़ को निर्देशित किया गया कि यात्रियों को भेजा जाये।

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जब सीढ़ियों से विमान में चढ़ रहे थे तो विमान के बड़े पंखे और बड़े प्रोपेलर देखते ही बनते थे, प्रोपेलर पर स्पष्ट रूप से लिखा गया था कि प्रोपेलर के आगे किसी भी मानव का खड़ा होना निषेध है, अब अपन कोई वैज्ञानिक तो है नहीं, हो सकता है कि ये प्रोपेलर में इतनी ताकत होती हो कि वह मानव को अपने अंदर खींच ले । विमान में दोनों तरफ़ दरवाजे होते हैं, मतलब आगे और पीछे की तरफ़, परंतु उस दिन संसाधनों की कमी के वजह से एक ही दरवाजा आगे वाला खोला गया था।

विमान के अंदर पहुँचे तो विमान देखकर लगा कि यह तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर की सेवा नहीं है, क्योंकि इसके पहले भी हम वाया दुबई होकर एक यात्रा कर चुके थे, तो अब हम स्पष्ट रूप से अंतर कर सकते थे। खैर अपना समान रखा और अपनी खिड़की वाली सीट सँभाली, खिड़की वाली सीट का अपना ही एक महत्व होता है, चाहे बच्चा हो या वृद्ध सबको खिड़की वाली सीट ही चाहिये होती है।

थोड़ी देर बाद टीवी स्क्रीन अवतरित हुई जिसमें लगभग एक ही पंक्ति के १६ लोग देख सकते थे, और आवाज सुनने के लिये अपनी सीट पर हेडफ़ोन को लगाना था, और फ़िल्म “कहानी” शुरू हुई, हालांकि हमने फ़िल्म देखी हुई थी परंतु करने के लिये और कुछ था भी नहीं सोचा चलो एक बार और देख ली जाये, फ़िर खाना भी साथ में खा लिया गया। और फ़िल्म खत्म होने के बाद और कुछ करने के लिये था ही नहीं, तो मजबूरी में सो लिया गया।

रात ११.४० अरब समय से हम जेद्दाह पहुँच चुके थे और उस समय भारत में लगभग सुबह २.१० हो रहे थे, हमने तब तक अपनी अरब की सिम अपने मोबाईल में लगा ली थी और घर पर फ़ोन करके बता दिया कि हम सही सलामत पहुँच गये हैं।

हवाई अड्डे पर इंतजार और शटल जेद्दाह यात्रा भाग १ (Mumbai Airport & Shuttle Jeddah Travel Part 1)

इमिग्रेशन, सुरक्षा जाँच और अपने घर के परांठे जेद्दाह यात्रा भाग २ [Security, Immigration and Home made Parathe Jeddah Travel Part 2]

इमिग्रेशन, १२० की रफ़्तार, अलग तरह की कारें और रमादान महीना– जेद्दाह यात्रा भाग–४ (Immigration, Speed of 120Km, Different type of Cars and Ramadan Month Jeddah Travel–4)

चिकन समोसा मटन समोसा और आलू समोसा

अभी दो तीन पहले ही अपनी वेज थाली पार्सल करवाकर चैन्नई दरबार अल शर्फ़िया से टैक्सी पकड़ने के लिये अल शर्फ़िया की मुख्य सड़क तक आये थे कि वहाँ देखा समोसे, पकोड़े, चाट और फ़्रूटचाट वाली दुकान भी है। बस फ़िर क्या था, झट से दुकान में घुस गये देखा कि मिठाईयाँ, नमकीन, टोस्ट भी दुकान में उपलब्ध थे।
पर सबसे ज्यादा इस दुकान में बिक्री पकोड़े, समोसे, कचोरी और दहीबड़े की ही थी। हमने दुकानदार से पूछा कि हाँ भई क्या क्या है, तो जनाब आवाज आई “चिकन समोसे, मटन समोसे, आलू समोसे, कचोरी, बीफ़ समोसे, दही वड़ा और फ़्रूटचाट”, हम तो समोसे के इस नॉनवेज प्रकार पर दंग थे।
हमने कहा क्या बात है, इतने सारे प्रकार के समोसे, हमने पहली बार नॉनवेज समोसे अपनी जिंदगी में सुने हैं, हमारे मित्र ने चिकन समोसा पार्सल करवाया, हमने आलू समोसा पार्सल करवाया। जब होटल पहुँचकर खाया तो स्वाद ठीक ठाक था, खाया जा सकता था।
अब दही वड़े हमारे दिमाग में हलचल मचा रहे थे, अगले दिन दही वड़े लिये जिसमें उसने आलू चाट, काबुली चने की चाट और जबरदस्त मसाला मिलाया और दही भी जबरदस्त था। साथ में बड़ी पपड़ी या यूँ कह लें कि बड़ी मठरी थी और कुछ रंग बिरंगी सेंव नमकीन।
होटल पहुँचकर खाया तो अहा ! मजा आ गया, क्या स्वाद था, अब हमारे दिमाग में पकौड़े घूम रहे थे, अगले दिन दही वड़े के साथ ही पकौड़े भी लिये गये और चटकारे मारकर खाया गया।
हमारे एक मित्र ने कल आधा किलो रसगुल्ले लिये थे और अकेले निपटा दिये, खैर हमें कोई आश्चर्य नहीं हुआ, परंतु हमारे आश्चर्य न करने से उसको जरूर आश्चर्य हुआ, हमें आश्चर्य इसलिये नहीं हुआ क्योंकि हम भी पहले १ – २ किलो रसगुल्ले एक बार की बैठक में ही निपटा दिया करते थे।
वैसे कल वहाँ जलेबी और इमरती भी देखी है, सोच रहे हैं कि आज इनका भी स्वाद ले लिया जाये।

जेद्दाह में रेस्त्रां खाना और स्वाद (South Indian, Malyalai and North Indian food in Restaurant’s @ Jeddah Saudi Arabia)

जब से सऊदी आये हैं तब से भारतीय स्वाद बहुत याद करते हैं, भारतीय खाना तो जरूर मिल जाता है फ़िर भी बिल्कुल वह स्वाद मिलना बहुत मुश्किल है। यहाँ पर दक्षिण भारतीय स्वाद तो मिल जाता है, परंतु उत्तर भारतीय स्वाद मिलना मुश्किल होता है।

यहाँ पर जो थालियाँ भी उपलब्ध होती हैं, उसे दक्षिण भारतीय और उत्तर भारतीय व्यंजनों को मिलकर बनी होती हैं। परंतु फ़िर भी दक्षिण भारतीय व्यंजन ज्यादा होते हैं। उत्तर भारतीय में केवल दाल होती है या यह भी कह सकते हैं कि दाल उत्तर भारतीय तरीके से बनी होती है। मसाला ठीक ठाक होता है।

रोटी जो है वह बिल्कुल मैदे की होती है और गेहूँ की रोटी ढूँढ़ना बहुत ही मुश्किल काम है। चावल बासमती या फ़िर दक्षिण में खाया जाने वाला मोटा केरल का चावल होता है।

यह तो दक्षिण भारतीय रेस्टोरेंट की बातें हैं, यहाँ पर लगभग आसपास के देशों के रेस्ट्रोरेंट भी उपलब्ध हैं, जैसे पाकिस्तानी, अफ़गानी, फ़िलिपीन्स, बांगलादेशी, इजिप्ट इत्यादि..। खाने में पाकिस्तानी स्वाद कुछ भारतीय स्वाद के करीब है, यहाँ मसाला अच्छा मिलता है, बस तेल या घी ज्यादा होता है।

यहाँ मिनी भारत अल-शर्फ़िया के इलाके में पाया जाता है, जहाँ भारत ही नहीं सभी आसपास के देशों की दुकानें हैं और ऐसे ही रेस्टोरेंट भी बहुत सारे हैं, हर ८ – १० दुकान के बाद एक रेस्टोरेंट मिल ही जाता है, कुछ रेस्टोरेंट जिसमें हम जाते हैं जो कि दक्षिण भारतीय हैं, चैन्नई दरबार, इंडिया गेट, मेट्रो, विलेज (मलयाली) कुछ पाकिस्तानी रेस्तरां हैं जैसे कि निराला, मक्काह इत्यादि.. निराला की सबसे अच्छी चीज लगी हमें रोटी, तंदूरी रोटी कम से कम १२ या १५  इंच के व्यास की रोटी होगी और बिल्कुल नरम, कम से कम दो रोटी तो खा ही जाये। यहाँ की कुल्फ़ी भी बहुत अच्छी है । बस यहाँ सब्जियों और दाल में तेल बहुत मिलता है तो पहले हम तेल निकाल देते हैं फ़िर ही खाना शुरू करते हैं, जो कुछ लोग कैलोरी कान्शियस होते हैं, वे लोग तो पहली बार को ही आखिरी बताकर निकल लेते हैं। पर यहाँ का स्वाद वाकई गजब है। साथ ही पाकिस्तानी वेटरों की मेहमनानवाजी देखते ही बनती है।

ऐसे ही शाम को फ़िलिस्तीन स्ट्रीट जहाँ कि हम मैरियट होटल में रहते हैं, वहाँ तो खाना खाते नहीं हैं कारण है कि इतना महँगा खाना जो हम अफ़ोर्ड नहीं कर सकते, तो पास ही होटल बहुत सारे हैं, पर कुछ ही होटलों पर शाकाहारी खाना भी उपलब्ध होता है। पास ही एक अफ़गानी होटल है जिससे दक्षिण भारतीय सहकर्मी चावल लेकर खाते हैं। पास ही एक इजिप्शियन रेस्तरां भी है जहाँ अलग तरह की करियों के साथ चावल मिलते हैं, हमने भी एक बार खाकर देखा था, कभी कभार खा सकते हैं, एक मलयाली रेस्त्रां है रेजेन्सी, जहाँ डोसा वगैरह के साथ आलू गोभी और मिक्स वेज सब्जी मिल जाती है साथ में रोटी या केरल परांठा खा सकते हैं। अभी एक और नया रेस्त्रां ढूँढ़ा है लाहौर गार्डन जैसा कि नाम से ही पता चलता है यह एक पाकिस्तानी रेस्त्रां है परंतु खाना अच्छा है। कलकत्ता रोल्स पर भी शाकाहारी रोल मिल जाता है साथ में ज्यूस ले सकते हैं। नाम से कलकत्ता है परंतु है बांग्लादेश का।

यहाँ अधिकतर रोटियाँ करी के साथ फ़्री होती हैं, केवल करी का बिल ही लिया जाता है, वैसे ही यहाँ सऊदी के खुबुस बहुत प्रसिद्ध हैं, तंदूर में बनाये जाते हैं। हमने भी खाकर देखा मैदे के होते हैं, रोज नहीं खा सकते।

मांसाहारी लोग ध्यान रखें पहले ही पूछ लें कि क्या आर्डर कर रहे हैं, क्योंकि यहाँ बीफ़, लेम्ब और मीट बहुतायत में खाया जाता है।

बहुत खाने की बातें हो गईं, और शायद इससे किसी को तो मदद मिल ही जायेगी, खाने के लिये सऊदी बहुत अच्छी जगह है और विशेषत: उनके लिये जो कि मांसाहारी हैं, उनके लिये कई प्रकार के व्यंजन मिल जायेंगे।

हम ठहरे शाकाहारी तो हमारे लिये सीमित संसाधन मौजूद हैं।

बिहार की लिट्ठी ऑन व्हील्स बैंगलोर में (Littionwheels.com in Bangalore)

पिछले ४ दिनों से यहीं घर के पास एक नई प्रकार की खाने की चीज दिखी जो कि दक्षिण भारत की नहीं थी, यह थी बिहार की लिट्ठी चोखा। दाम भी कम और चीज भी बेहतरीन, लिट्ठी हमने पहली बार पटना में फ़्रेजर रोड पर कहीं खाई थी, हमें तो वही स्वाद लगा। अब बैंगलोर में अगर बिहारी स्वाद मिल रहा हो तो और क्या चाहिये, आज दोपहर का भोजन बनी यही लिट्ठी चोखा, लिट्ठी छोला और लिट्ठी चना, लेने गये थे एक प्लेट दाल बाटी परंतु दाल खत्म हो गई तो हमने कहा बाकी का सब बाँध दो 🙂
खास बात कि पूरी योजनाबद्ध तरीके से इसकी शुरूआत की गई है और फ़ेसबुक, ट्विटर और वेबसाईट बनाई गई है।
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उम्मीद है कि कुछ और भी चीजें इसी तरह से खाने को मिलें जैसे कि पोहे जलेबी ।

हरी मिर्च वाली धनिये की चटनी का स्वाद (Taste of Green Chilli Chutney)

    हरी मिर्च वाली धनिये की चटनी बचपन से खाते आ रहे हैं, पहले जब मिक्सी घर में नहीं हुआ करती थी तब सिलबट्टे पर मम्मी या पापा चटनी पीसकर बनाते थे, अभी भी अच्छे से याद है कि थोड़ा थोड़ा पानी पीसने के दौरान डालते थे और चटनी बिल्कुल बारीक पिसती थी, अच्छी तरह से याद है कि उस समय धनिया पत्ती की एक एक पत्ती तोड़कर पीसने के लिये रखते थे, एक भी धनिये का डंठल नहीं गलती से भी नहीं छूटता था। मसाला धनिया, मिर्च, ट्माटर को ओखली में डालकर मूसल से कूटते थे और फ़िर सिलबट्टे पर चटनी को पिसा जाता था।

    हरी मिर्च वाली धनिये की चटनी बाद में मिक्सी घर पर आ गई तो उसी में चटनी बनने लगी और धनिया पत्ती पहले की तरह ही तोड़ी जाती, बिना डंठल के, पर एक बार चटनी हम बना रहे थे तो धनिया पत्ती तोड़ने में बहुत आलस आता था, कि एक एक पत्ती तोड़ते रहो और फ़िर चटनी बनाओ, हमने धनिया की गड्डी धोई और चाकू से पीछे की जड़ें काटकर नजर बचाकर धनिये की चटनी बना डाली, घर में बहुत शोर हुआ कि लड़का बहुत आलसी है और आज चटनी में धनिये के डंठल भी डाल दिये, अब हम तो समय बचाने की कोशिश में नया प्रयोग कर दिये थे, पर फ़िर उसी में इतना स्वाद आने लगा कि हमारी विधि से ही चटनी घर में बनाई जाने लगी।

    चटनी भी मौसम के अनुसार स्वाद की बनाई जाती थी, साधारण धनिये की, पुदीना पत्ती के साथ, कैरी के साथ । मसाले में नमक, लाल मिर्च डालते थे फ़िर बाद में हींग और जीरा का प्रयोग भी होने लगा। प्याज और लहसुन के साथ भी चटनी का स्वाद परखा गया।

    हरी मिर्च तीखे के अनुसार कम या ज्यादा डालते हैं, अभी थोड़े दिनों पहले बहुत तीखी चटनी खाने की इच्छा हुई तो खूब सारी मिर्च डाल दी तो उस चटनी में से एक चम्मच चटनी भी नहीं खा पाये। अब सोचा कि कम मिर्च की चटनी बनायें तो पता चला कि मिर्च ही इतनी तीखी है कि ५-६ मिर्च में तो बहुत तीखा हो जाता है। बचपन की याद है ७-८ मिर्च में भी चटनी इतनी तीखी नहीं होती थी तो लाल मिर्च डालते थे।

    सिलबट्टे पर चटनी पीसने से बैठकर मेहनत करनी होती थी, परंतु मिक्सी में वह सब मेहनत खत्म हो गई, आँखों में जो मिर्च की चरपराहट होती होगी उसका अहसास ही आँखों में पानी ला देता है। अब तो चटनी बनाते समय आँखों में चरपराहट का पता नहीं चलता है। मिक्सी में तो चटनी बनाते समय बीच में  दो बार चम्मच घुमाई और चटनी २-३ मिनिट में बन जाती है, हो सकता है कि चटनी उतनी ही बारीक पिसती हो जितनी कि सिलबट्टे पर, अब याद नहीं, और अब सिलबट्टा है नहीं कि पीसकर देख लें। पर हाँ गजब की तरक्की की है, पहले सिलबट्टे पर पीसने में चटनी का बनने वाला समय कम से कम ३० मिनिट का होता था और अब ज्यादा से ज्यादा ५ मिनिट का होता है।

    पर यह तो है कि सिलबट्टे की चटनी का स्वाद अब मिक्सी वाली चटनी में नहीं आता ।

रीयल एक्टिव फ़ाईबर प्लस (Real Activ Fiber +)

    रीयल एक्टिव फ़ाईबर प्लस (Real Activ Fiber +) डाबर इंडिया लिमिटेड का उत्पाद है जो कि पूरी तरह से देशी है। दावा किया गया है कि यह १०० प्रतिशत फ़लों का रस है, अलग से शक्कर नहीं डाली गई है और न ही किसी प्रिजर्वेटिव का उपयोग किया गया है।

    dabur_active_fiber यह गुणकारी है इसका एक ग्लास जूस पीने से जो कि लगभग २०० मि.ली. होता है से एक फ़ल की आपूर्ती करता है, और ४०% तक कम कैलोरी आपको मिलती हैं जो कि आपके मनपसंदीदा नाश्ते में होती हैं। नाश्ता – एक समोसा, या पिज्जा की स्लाईस या फ़िर बटर सैडविच।

    इसमें फ़लों का गूदा मिलाया गया है जिससे यह गाढ़ा और अच्छे स्वाद का होता है। यह आपको तरोताजा कर देगा।

    आज फ़ाईबर की जरूरत क्यों है ? क्योंकि हो सकता है कि आपको खाने मॆं भरपूर फ़ाईबर नहीं मिल रहा हो तो आहार को संतुलित रखने के लिये यह जरूरी है। रोज आहार में कितना फ़ाईबर लेना चाहिये ? रोज खाने में २५ ग्राम फ़ाईबर लेना चाहिये और इसके एक गिलास से ३ ग्राम फ़ाईबर की आपूर्ती शरीर को होती है।

इसके चार गुण बताये गये हैं –

Manage weight & Stay fit

Keep digestive system healthy

Maintain heart health

Enhance fullness

एक लीटर के पैक में लगभग ५३० कैलोरी होती हैं।

    इस पैक को रिसायकल्ड डब्बे में पैक किया गया है वैसे इसकी एम.आर.पी. ९० रुपये है, परंतु अभी ट्रायल ऑफ़र में ७० रुपये में उपलब्ध है। एक्स्पायरी छ: महीने की है।

    हमने इसके दो भिन्न स्वादों को चखा है पहला है मल्टी फ़्रूट और दूसरा है ओरेंज सिट्रस पंच।

    मल्टी फ़्रूट का स्वाद हमें बहुत भाया और ओरेंज सिट्रस पंच थोड़ा खट्टा है ऐसा लगता है कि जैसे संतरा ही मुंह में रख लिया है।

कुल मिलाकर अच्छा है और नये स्वादों को चखने की इच्छा है।

माइक्रोवेव में पॉपकॉर्न बनाना

हमने माइक्रोवेव लिया और उसे पर फ़िर तरह तरह के उपयोग भी शुरु हो गये।

माइक्रोवेव में पॉपकॉर्न बनाना – मक्का में २ चम्मच सरसों का तेल, नमक और हल्दी मिलाकर, टाईम्स ऑफ़ इंडिया के आधे पेज का लिफ़ाफ़ा बनाकर उसके अंदर मक्का डालकर लिफ़ाफ़ा बंदकर, माईक्रो में २ मिनिट चला दें, आपके पॉपकॉर्न तैयार। तेल को उसी समय काँच की प्लेट पर से साफ़ कर दें।

    फ़्रायम्स बनाना – पेपर नेपकीन लें और अगर नहीं हों तो अखबार भी चल सकता है और उस पर फ़्रायम्स रख कर माईक्रो मोड में ३० सेकण्ड्स रखें बस फ़्रायम्स बिना तले हो गया तैयार।

    पापड़ बनाना – कोई सा भी पापड़ हो उस पर थोड़ा सा पानी छिड़क लें और माईक्रो में ३० सेकण्ड से १ मिनिट पापड़ के अनुसार रखें बिना तेल के पापड़ तैयार।

    सैंडविच बनाना – सैंडविच समान के साथ तैयार करके, ग्रिल कर लें और २ मिनिट बाद पलट लें, पहला सैंडविच बनाने में ४ मिनिट लगेगें पर उसके बाद ३ मिनिट में हो जायेगा।

    केले बनाना – केले को छीलकर, लंबाई में दो फ़ाँकें कर लें और उस पर नमक नींबु अच्छे से लगाकर ग्रिल कर लें ३-४ मिनिट के लिये, बेहतरीन स्वाद मिलेगा।

और भी बहुत कुछ बनाते हैं अभी इतना ही… और हाँ अगर आप क्या बनाते हैं वह भी बतायें

जवानी के दिनों में पॉपकार्न

    कुछ दिन पहले समान लेने हॉपयर सिटी गये थे (हर पाँचवें दिन जाना ही पड़ता है), तो  हमारी पॉपकार्न की विशेषत: ढूँढ़ थी क्योंकि बाहर के पॉपकार्न हमें पसंद नहीं, और घर में बनाने के लिये मकई के दाने नहीं मिले, तो सोचा कि चलो वो कूकर वाले पॉपकार्न ले लिये जायें, पता चला कि अब कूकर वाले कम, और माइक्रोवेव वाले पॉपकार्न ज्यादा चलते हैं, हमें बहुत आश्चर्य हुआ कि ये माइक्रोवेव वाले पॉपकार्न कैसे होते हैं।

    kettle corn वैसे माइक्रोवेव भी हमने यहाँ बैंगलुरु में आकर मजबूरी में लिया है (यह कहानी फ़िर कभी)। अब दस रुपये में और क्या भगवान चाहिये ? दस रुपये में आज की महँगाई में अच्छे बटर वाले पॉपकार्न। बस पोलिथीन फ़ाड़ी (जैसे फ़टा पोस्टर निकला हीरो), और एक सफ़ेद रंग का लिफ़ाफ़ा निकला, जिसमें पॉपकार्न थे एक तरफ़ से पीले रंग का कुछ कागज सा चिपका था और उसमें लिखा था कि यह माइक्रोवेव में नीचे की तरफ़ रखें, और माइक्रो पर करके २ मिनिट रखें बस आपके पॉपकार्न तैयार, वह लिफ़ाफ़ा पूरी तरह से हवा से फ़ूल चुका था। फ़िर उस लिफ़ाफ़े को फ़ाड़कर पॉपकार्न खाये तो अहा! भाईसाब्ब.. मजा आ गया।

    फ़िर सोचा कि जिसने इतनी आरएनडी (R&D) करी होगी अगले ने क्या दिमाग पाया होगा कि उसने कितनी सुविधाजनक चीज हम आलसियों के लिये बनाई है, कि बस पोलिथीन खोलो और दो मिनिट में माइक्रोवेव में रखने पर ही चरने के लिये पॉपकार्न तैयार।

    अभी तक याद है कि अपनी जवानी के दिनों में जब हम कार्तिक मेले में जाते थे तो २ रुपये में बहुत सारे पॉपकार्न मिलते थे, और हम कवि सम्मेलन सुनते समय २ रुपये वाले ५-६ पैकेट साथ में ही लेकर बैठते थे, कि शायद किसी कवि को हमारे पॉपकार्न ही पसंद आ जाये और हमें स्टेज पर बुला ले, पर कभी ऐसा हुआ नहीं ! 🙁

    खैर शुरु हो जाओ आलसियों और पॉपकार्न के दीवानों केवल २ मिनिट में अपनी हसरतें पूरी करें और यूट्यूब पर कवि सम्मेलन सुनते हुए पॉपकार्न खायें।

घर का खाना [Home Food]

    घर के खाने का महत्व केवल वही जान सकता है जो घर के बाहर रहता हो, उसके लिये तो घर का खाना अमृत के समान है। और जो घर में रहता है उसके लिये तो घर का खाना “अपने घर की मुर्गी” जैसा होता है, और बाहर का खाना अमृत के समान होता है।

    हम ५-६ दोस्त गेस्ट हाऊस में रहते थे, जिसमें से २ पट्ना के, ३ कोलकाता के और एक हम थे उज्जैन से। पर सभी एक दूसरे को बहुत अच्छे से जानते थे।

    जो पटना वाले मित्र थे उनके लोकल मुंबई में अच्छी दोस्ती थी और कुछ शादीशुदा मित्र भी रहते थे, तो वे मित्र बहुत भाग्यवान थे, और घर के खाने का लुत्फ़ उठाते रहते थे। कभी कभी दूसरे मित्र को भी साथ ले जाते थे।

    एक दिन बड़ी जबरदस्त रोचक घटना हुई कि पहले मित्र बहुत देर से आये तो दूसरे ने पूछा कि आज किधर थे, तो पहले मित्र बोले कि फ़लाने मित्र के यहाँ थाना गया था और “भाईसाब्ब. .. भाभीजी ने क्या जबरदस्त आलू के पराठें बनाये थे, मैं ५-६ पराठें खा गया और साथ में घर का अचार.. अह्हा”, दूसरे का पारा सुनते सुनते ही सातवें आसमान पर पहुँच गया था, फ़िर वो शुरु हुआ, उसके हाथ में गिलास था पहले तो गुस्से में वह फ़ेंककर पहले को मारा और जोर से बोला “अबे, एक तो बिना बताये गये थे, दूसरा हियाँ जला रहे हो कि घर का खाना खाकर आ रहे हो, और वो भी आलू के पराठें, आज हम तुमका छोड़े नाहीं, ससुरा का समझत हो के घर का खाना केवल तुहार ही पसंद हो” और बहुत घमासान हुआ।

तो इस तरह की झड़पें अक्सर दोस्तों में देखने को मिलती रहती हैं।

[हमें पटना की भाषा नहीं आती है, पर कोशिश की है, अगर कोई सुधार हो तो बताईयेगा]