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बैंकिंग में एक नया फ्रॉड

एक बंदे के पास बैंक की तरफ से फोन आया कि आपके रिवॉर्ड पॉइंट के बदले में आपके मोबाइल दिया जा रहा है, क्योंकि आपकी बहुत सारे रिवार्ड पॉइंट्स इकट्ठे हो गए हैं, तो आप अपना एड्रेस बता दीजिए आपके मोबाइल डिलीवर कर दिया जाएगा।

उसे बंदे के पास अगले दिन फोन डिलीवर हो गया। फिर उसके बाद बैंक से फोन आया कि अब आपको अपने सारे बैंकिंग ट्रांजैक्शन इसी फोन से करने हैं। यह बैंक की शर्त है, क्योंकि आपको यह फोन रिवॉर्ड पॉइंट के बदले में दिया गया है।

तो उसे बंदे ने उसे फोन पर बैंक के एप में लॉगिन किया और उपयोग करने लगा। लगभग 10 दिन के बाद जब वह अपने बैंक का स्टेटमेंट देख रहा था, तो उसे पता चला कि उसकी 2.80 करोड़ की एचडी प्रीमेच्योर हो गई है और कहीं और उसका पैसा ट्रांसफर हो चुका है।

अब बताइए – अगर आपके पास भी ऐसा फोन आएगा, तो आप क्या करेंगे? आप अपना कॉमनसेंस का उपयोग करेंगे या फिर नए फोन में बैंक की एप में लॉगिन करेंगे।

क्या ट्रम्प 1829 वाला दौर दुबारा ला रहे हैं?

अमेरिकी राजनीति में यह दौर असाधारण लग सकता है। विशेष रूप से डोनाल्ड ट्रम्प के आलोचक उन्हें अभूतपूर्व रूप से चित्रित कर रहे हैं। नवंबर का चुनाव युगों के बाद वापसी का था- एक ऐसे व्यक्ति की सत्ता में वापसी होती है, जो यह मानता है कि उसके प्रतिद्वंद्वी ने चार साल पहले उससे राष्ट्रपति पद छीन लिया था। उद्घाटन के लिए उमड़ी भीड़ से वाशिंगटन की सांस्कृतिक और राजनीतिक व्यवस्था स्तब्ध थी।

ट्रम्प ने अपने राष्ट्रपति पद के अधिकार का प्रयोग करने में बिल्कुल समय बर्बाद नहीं किया। उन्होंने राजनीति, मीडिया, व्यवसाय और संस्कृति में देश के अभिजात वर्ग पर तुरंत हमला किया। सत्ता-विरोधी लोगों को जो कि संघीय सेवा में कर्मचारी थे, उनको धड़ाधड़ निकालना शुरू कर दिया। ट्रम्प ने कामचोरी, धोखाधड़ी, दुरुपयोग और अक्षमता के आरोपों को उचित ठहराया।

राष्ट्रपति के इन कार्यों ने आलोचक मीडिया और राजनीतिक विरोधियों ने उन्हें एक राजा के रूप में चित्रित करने की कोशिश करी। उन्होंने डेनमार्क से शुरू करके विदेशी देशों के बहुत से नेताओं को नाराज़ किया – जहाँ उन्हें लगा कि कोई और देश अमेरिका में मिला लेना चाहिए। उन्होंने यह कहकर वैश्विक राय को और भड़का दिया कि पड़ोसी देश को राज्य बना दिया जाना चाहिए।

आर्थिक मोर्चे पर, उन्होंने उच्च टैरिफ का बचाव किया और ब्याज दरों को लेकर सेंट्रल बैंक को विरोध किया। लेकिन सच्चाई तो यह है कि जो कुछ भी ट्रम्प ने किया है, कुछ भी नया नहीं है। लगभग 200 साल पहले, एंड्रयू जैक्सन के रूप में अमेरिका ने यह सब पहले भी देखा है। 1828 में जैक्सन का चुनाव भी ऐसे ही हुआ था, जिन्होंने दावा किया था कि पिछले चुनाव में उन्हें “भ्रष्टाचार और सौदेबाज” के ग़लत संदेश हराया था।

1824 में, जैक्सन ने चार उम्मीदवारों की दौड़ में 40.5% जीत दर्ज करी, 24 राज्यों में से 11 पर कब्जा किया। लेकिन वे बहुमत से 32 इलेक्टर दूर थे। 47वें राष्ट्रपति कई मायनों में सातवें राष्ट्रपति की तरह हैं।

जब फरवरी 1825 में सदन में मत हुआ तो चार राज्य पलट गए जिन्होंने जैक्सन के विरोध में मतदान किया था। नवंबर में दूसरे स्थान पर रहे जॉन क्विंसी एडम्स ने 24 में से 13 राज्यों और व्हाइट हाउस पर कब्ज़ा कर लिया। जैक्सन ने कथित तौर पर कहा, “लोगों को” “धोखा दिया गया है”। “भ्रष्टाचार और षड्यंत्रों ने लोगों की इच्छा को हरा दिया।” उन्होंने चार साल बाद दक्षिण कैरोलिना के उप राष्ट्रपति जॉन कैलहॉन के साथ जीत दर्ज की।

जैक्सन के जीतने के समारोह के दौरान, जश्न मनाने वाले समर्थकों ने सड़कों को जाम कर दिया, कैपिटल को उनसे हाथ मिलाने के लिए भर दिया, फिर व्हाइट हाउस को घेर लिया। जैक्सन ने, श्री ट्रम्प की तरह, अपने समय की सरकार की निंदा की, 1824 में अपनी पत्नी से कहा कि वह “देश को लोकतंत्रवादियों के शासन से बचाएंगे।”

सत्ता संभालने के बाद, उन्होंने बहुत से सरकारी कर्मचारियों को तुरंत ही पद से हटा दिया, जैक्सन राष्ट्रपति पद की शक्ति बढ़ाना चाहते थे। उनके अत्याचारी कार्यों और कांग्रेस को नज़रअंदाज़ करने के कारण विरोधियों ने 1832 में उन्हें “राजा एंड्रयू प्रथम” कहकर प्रसिद्ध करने लगे, जो मुकुट और वस्त्र पहने हुए थे और राजदंड लिए हुए थे।

नेपोलोनिक युद्धों के दौरान जब्त किए गए अमेरिकी जहाजों के लिए लूट के दावों को लेकर उनका डेनमार्क और अन्य यूरोपीय शक्तियों के साथ विवाद हो गया। जैक्सन चाहते थे कि टेक्सास-जो 1836 में स्वतंत्रता की घोषणा करने से पहले मेक्सिको का हिस्सा था-एक राज्य बन जाए। उन्होंने “टैरिफ ऑफ़ एबोमिनेशन” की अध्यक्षता की, जो इतने अधिक थे कि 1832 में दक्षिण कैरोलिना ने उनसे अलग होने की धमकी दी। उन्होंने बैंक ऑफ़ अमेरिका की उच्च ब्याज दरों का कड़ा विरोध किया।

दोनों राष्ट्रपति आत्म-मुग्ध व्यक्तित्व वाले, कट्टर पक्षपाती और प्रतिशोध लेने वाले थे। लेकिन दोनों में उल्लेखनीय अंतर हैं। जैक्सन युद्ध नायक थे; ट्रम्प नहीं हैं। जैक्सन गरीबी में पैदा हुए थे, ट्रम्प अमीरी में। जैक्सन भ्रष्टाचार को रोकना चाहते थे; ट्रम्प को राष्ट्रपति-चुनाव के दौरान अपना स्वयं का क्रिप्टो जारी करने में कोई हिचक नहीं थी। जैक्सन ने राष्ट्रीय ऋणों का भुगतान किया; ट्रम्प ने अपने पहले कार्यकाल में इसमें भारी वृद्धि की।

जैक्सन ने लोकतंत्र का समर्थन किया और अधिक आर्थिक समानता के लिए काम किया। क्या ट्रम्प ऐसा करेंगे? समय बहुत अलग है और आज दांव पर भी बहुत कुछ लगा हुआ है। दुनिया आर्थिक रूप से बहुत अधिक परस्पर निर्भर और खतरनाक तरीके से चल रही है।

19वीं शताब्दी के मध्य में यूरोपीय शक्तियों के बीच युद्ध ने अमेरिका के लिए उतना खतरा पैदा नहीं किया था, जितना आज है। विशाल महासागर अब हमारी शांति और समृद्धि की गारंटी नहीं हैं। इन अतिरिक्त चुनौतियों के साथ, क्या राष्ट्रपति ट्रम्प अपने जैक्सनियन वादों को पूरा करेंगे? क्या सीमा की सुरक्षा पर उनकी प्रगति मुद्रास्फीति के अंत और सभी अमेरिकियों के लिए बढ़ती समृद्धि को आगे बढ़ा पायेंगे? क्या अमेरिका फिर से एक मजबूत, सम्मानित शक्ति के रूप में खड़ा होगा या कमजोर दिखाई देगा और अपना विश्वास बचा पायेगा? क्या संवैधानिक सुरक्षा व्यवस्था कायम रहेगी?

त्रिफला जबरदस्त औषधि

त्रिफला जबरदस्त औषधि है, आयुर्वेद में लिखा है जो 10 साल तक त्रिफला लगातार ले लेता है। उसका कायाकल्प हो जाता है। हाँ इसके सेवन करने के तरीके मौसम के अनुसार बदल जाते हैं।

1 भाग हरड, 2 भाग बहेड़ा, 3 भाग आंवला 1:2:3 मात्रा वाला त्रिफला ही लेना चाहिये, हम अमेजन से मंगवाते हैं, लोकल में इधर अत्तार नहीं हैं। हमने थोड़े दिन पहले शुरू किया जबरदस्त फायदा है।

फायदे जो गिनाये जाते हैं वे इस प्रकार हैं –

एक वर्ष तक नियमित सेवन करने से शरीर चुस्त होता है।

दो वर्ष तक नियमित सेवन करने से शरीर निरोगी हो जाता हैं।

तीन वर्ष तक नियमित सेवन करने से नेत्र-ज्योति बढ जाती है।

चार वर्ष तक नियमित सेवन करने से त्वचा कोमल व सुंदर हो जाती है।

पांच वर्ष तक नियमित सेवन करने से बुद्धि का विकास होकर कुशाग्र हो जाती है।

छः वर्ष तक नियमित सेवन करने से शरीर शक्ति में पर्याप्त वृद्धि होती है।

सात वर्ष तक नियमित सेवन करने से बाल फिर से सफ़ेद से काले हो जाते हैं।

आठ वर्ष तक नियमित सेवन करने से वृद्धाव्स्था से पुन: योवन लोट आता है।

नौ वर्ष तक नियमित सेवन करने से नेत्र-ज्योति कुशाग्र हो जाती है और सूक्ष्म से सूक्ष्म वस्तु भी आसानी से दिखाई देने लगती हैं।

दस वर्ष तक नियमित सेवन करने से वाणी मधुर हो जाती है यानी गले में सरस्वती का वास हो जाता है

₹80 में नार्थ कर्नाटका थाली, जिसे जोलड़ा रोटी उटा भी कहते हैं।

लोग कहते हैं कि इधर सबसे सस्ती थाली मिलती है या उधर, पर मैंने बैंगलोर से सस्ती थाली कहीं नहीं खाई, मात्र ₹80 में नार्थ कर्नाटका थाली मिलती है, जिसे जोलड़ा रोटी उटा (oota) मील कहते हैं। oota का मतलब कन्नड़ में भोजन होता है।

इसमें पतली पतली ज्वार की 2 रोटी, 1 सब्जी, 1 दाल, चटपटी चटनी, स्प्रोउट सलाद, दही, चावल और सांभर मिलता है, साथ ही प्याज व तली हुई हरी मिर्च। सब्जी, दाल, चटनी व सांभर अनलिमिटेड होता है।

रोटी व चावल की मात्रा इतनी होती है कि आराम से एक व्यक्ति का पेट भर जाता है, क्योंकि चावल की मात्रा बहुत ज्यादा होती है, हम 2 लोग जाते हैं तो एक थाली का चावल लौटा ही देते हैं।

साथ ही अगर ज्वार रोटी और चाहिये तो भी ₹20 की और मिल जाती है। इन रेस्टोरेंट्स के नाम बसवेश्वरा काना वाली के नाम से होते हैं, कुछ ब्राह्मिन के नाम से भी होते हैं। पर जो स्वाद बसवेश्वरा रेस्टोरेंट्स में मिलता है, वह ब्राह्मिन में नहीं मिलता। हमारे घर के पास कम से कम 5-6 रेस्टोरेंट हैं। पर अधिकतर लोग इनको एक्सप्लोर ही नहीं कर पाते, क्योंकि उनको पता ही नहीं होता।

क्या आपके शहर में ₹80 में या इससे कम में थाली मिलती है?

#bengaluru

कानों का चक्कर

कई बार कान वही सुनते हैं जो सुनना चाहते हैं और इस चक्कर में कई बार गड़बड़ियां हो जाती हैं।

आज की गड़बड़ी बड़ी जबरदस्त रही, एक पारिवारिक आयोजन में जाना था। जिसकी डेट हमें आज की याद थी। पर मम्मी जी बोली कि बुधवार को जाना है और फिर तुरंत उन्होंने फोन लगाकर कंफर्म भी कर लिया।

हम गाड़ी धो रहे थे तब उन्होंने पूछा था कि आज गाड़ियां क्यों धो रहे हो तो हमने बोला कि आज वहां जाना है तो गाड़ी थोड़ी साफ सुथरी होगी तो अच्छा लगेगा।

अब जब बात हुई तब पता चला आयोजन आज नहीं चल ही है अपने ऊपर थोड़ा क्षोभ हुआ, सोचा कहीं बुढ़ा तो नहीं गए हैं या फिर अपने हिसाब से अपना मन अपनी बातें करने लगता है आजकल क्या हो गया है मुझे!

ऐसे ही अभी फ्लिपकार्ट मिनिट्स से ऑर्डर किया और तैयार होने के बाद पापाजी से पूछा समान आ गया क्या? वो बोले – नहीं आया। मैंने फिर एप्प पर देखा कि वाकई ऑर्डर हो भी गया था या नहीं, क्योंकि पेमेंट कन्फर्म होने के बाद मैंने मोबाईल का स्क्रीन बंद कर दिया था, देखा तो पता चला कि ऑर्डर तो हो गया है, पर फ्लिपकार्ट ने मिनिट्स का आधा घँटा कर दिया है। यह भी कन्फ्यूजन रहा।

हर शख्स के होते हैं कई चेहरे

कई बार सोचता हूँ जिनके बारे में ऐसा लगता है कि इनको मैं अच्छे से जानता हूँ, तो क्या सही लगता है?

जीवन का कोई एक पहलू नहीं होता, ऐसे ही चेहरे का, हर शख्स के होते हैं कई चेहरे, ऑफिस में किसी के सामने कुछ किसी ओर के सामने कुछ, बाहर कुछ, बाजार में कुछ, घर में पत्नी के सामने कुछ, माँ बाप के सामने कुछ, बच्चों के सामने कुछ।

शख्स एक ही है, पर वह दिखाता अलग अलग शख्सियत है। कहीं सीधा सादा, कहीं जालिम क्रूर, कहीं बेवकूफ, कहीं बुद्धिमान कहीं कमजोर, कहीं पागल प्रेमी, तो कहीं आज्ञाकारी।

बस ऐसे ही चोले ओढ़े जीवन बीतता जाता है, और ऐसे ही अपने आपको बड़ा आदमी समझते हुए एक दिन खुद को रहस्यमयी दिखाता हुआ,इस दुनिया से वह चल देता है।

भारत में लेबर लॉ लचर हैं

हमारे भारत में लेबर लॉ को और कड़ा करने की व कड़ाई से पालन करवाने की जरूरत है।

एक महीने में 3 मौतें हो चुकी हैं।

  1. एना सेबस्टियन EY
  2. सदफ फातिमा Hdfc Bank
  3. तरुण Bajaj Finance

और भी ऐसे कई केस होंगे जो पता ही नहीं चले
आजकल काम की जगहों पर स्ट्रेस इतना है, कि जान की कीमत बहुत सस्ती हो गई है।

तरुण वर्क प्रेशर के चलते 45 दिन सो नहीं पाया और अंततः आत्महत्या कर ली।

जीवन कठिन है, पर अगर वर्क प्रेशर है तो काम छोड़ दीजिये, पर अपने जीवन की हत्या न करें, कोई न कोई रास्ता जरूर निकल आयेगा।

IIT Dhanbad के दलित का केस

IIT Dhanbad के दलित का जो केस आया है जिसमें वह समय से फीस जमा नहीं कर पाया और इस कारण उसे एडमिशन नहीं दिया गया तब वह कोर्ट के पास गया और कोर्ट ने आदेश दिया की इस नौजवान को एडमिशन दिया जाए।

उस नौजवान के परिवार ने फीस के लिए पूरे गांव से चंदा लिया, इंग्लिश में जिसे क्राउड फंडिंग कहा जाता है, फीस भी मात्र ₹17,000 थी, कोई ऐसा सिस्टम जरूर होना चाहिए कि ऐसा हम लोगों को भी पता चले और हम उनकी मदद कर पायें।

हम सोचते हैं हम मदद कर देंगे लेकिन हमें सही समय पर जानकारी नहीं मिल पाती और बहुत सारे टैलेंटेड बुद्धिमान नौजवान इन सब चीजों से महरूम रह जाते हैं।

हालांकि हमारा सिस्टम इस मामले में बहुत तेज होना चाहिए लेकिन लचर है, इसके लिए कोई तो प्लेटफार्म होना चाहिए जिससे की मदद एकदम से मिल पाए और केस genuine है यह भी साबित हो पाए।

क्यों हमारे राजनेता इन सब में आकर मदद नहीं करते? उनका सामाजिक दायित्व सबसे पहले बनता है। क्या वे जनता को पढ़ा लिखा नहीं देखना चाहते?

Limitless Review

Book – Limitless
Writer – Radhika Gupta

जब राधिका गुप्ता को मैंने पहली बार शार्क टैंक में देखा और आत्मविश्वास से भरपूर आवाज सुनी तो अच्छा लगा, फिर किसी पॉडकास्ट में सुन रहा था तो पता चला कि इन्होंने एक किताब भी लिखी है, पर इस पॉडकास्ट में राधिका नहीं थीं, किसी और ने इस किताब का नाम लिया था। सोचा चलो पढ़ते हैं, देखते हैं कि एक एंटरप्रेन्योर की यात्रा कैसी रही और उनके क्या अनुभव रहे।

हम किंडल पर पढ़ते हैं, किताब में अब वह फील नहीं आती, आदत की बात है।

किताब में बहुत ही अच्छे से कई महत्वपूर्ण चीजों को विस्तार में लिखा गया है, क्यों कुछ चीजें जीवन में बहुत महत्वपूर्ण होती हैं, डर सबको लगता है, पर जीत आपको ही पाना होगी। मुझे लगता था हो upenn से पढ़ा है, उसको कैसा डर, पर पता चला डर तो उसको भी था। जीवन में कभी कोई मौका न छोड़ना, आपको लग रहा है कि इतने सारे लोगों में मेरा ही क्यों होगा, पर हो सकता है कि वह मौका केवल आपके लिये ही हो।

रिजेक्शन, हर कोई रिजेक्ट होता है और उससे तकलीफ होती है, पर हार न मानकर बस आप गैंडे की खाल पहनकर परिस्थितियों का सामना करते जाओ, एक दिन सफलता जरूर मिलेगी। हाँ बचपन से अपने अंदर कोई न कोई एक शौक जरूर रखें और उस शौक को पैशन जैसा जीवन में रखें।

कितनी रिस्क कहाँ लेनी चाहिये, छोटी छोटी चीजें कैसे आपके लिये पावरफुल हो सकती हैं। हर बार दुनिया ही यही नहीं होती, आपको अपने लिये दुनिया को ठीक करना होता है।

नेटवर्किंग क्यों जरूरी है, इसके क्या फायदे होते हैं, इसके बारे में विस्तार से उदाहरणों के साथ लिखा है, जॉब क्यों बदलना चाहिये, पैसे के बारे में कैसे सोचना चाहिये, अगर आपको इंडस्ट्री स्टैंडर्ड के हिसाब से पैसे कम मिलते हैं, तो भी कोई बात नहीं, जब तक कि आपको लगता है कि अब ज्यादा ही फायदा उठाया जा रहा है।

कैसे कुछ लोग वर्क लाइफ बेलेंस की जगह अब इंटीग्रेशन की बात कर रहे हैं, जिससे वे परिवार और ऑफिस के बीच सामंजस्य बनाये रख सकें।

मुझे लगता है कि उन चंद क़िताबों में से है, जिसे सभी लोगों को पढ़ना चाहिये, खासकर जो बच्चे अपनी प्रोफेशनल लाईफ शुरू करने जा रहे हैं।

सुपर शूज़ की लड़ाई में Nike आगे बढ़ी

सुपर शूज़ की लड़ाई में Nike आगे बढ़ी, और किप्टम ने Nike के डेव 163 प्रोटोटाइप पहनकर दौड़ते हुए मैराथन विश्व रिकॉर्ड तोड़ा।

अभी दो सप्ताह पहले, दौड़ की दुनिया में तब हड़कंप मच गया जब टाइगस्ट असेफा ने बर्लिन मैराथन में 2:11:53 के समय में महिला मैराथन विश्व रिकॉर्ड तोड़ दिया। असेफा ने हाल ही में जारी एडिडास सुपर शू, एडिज़ेरो एडिओस इवो प्रो 1 पहनकर यह मैराथन दौड़ी थी। और उसके बाद असेफ़ा को गर्व से जूते को अपने सिर के ऊपर उठाते हुए और फिनिश लाइन पर चूमते हुए भी देखा गया था।

रेस से पहले उन्होंने कहा, ‘यह अब तक का सबसे हल्का रेसिंग जूता है जो मैंने पहना है।’ ‘उसे पहनकर दौड़ना एक अद्भुत अनुभव है – जैसा मैंने पहले कभी महसूस नहीं किया।’

लेकिन अब, ठीक दो हफ्ते बाद, नाइकी ने पलटवार किया है। इस वीकेंड शिकागो मैराथन में, केल्विन किप्टम ने 2:00:35 टाइमिंग में पुरुषों के मैराथन रिकॉर्ड को तोड़ दिया।

इन सुपर शूज में कार्बन की एक परत लगा दी गई है, जिससे ये शूज बेहद हल्के हो गये हैं और इसकी शुरुआत nike ने की थी, जिसे बाद में सभी कम्पनियों ने अपना लिया।