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गालों पर तिरंगा.. भ्रष्टाचार..जन्माष्टमी..इस्कॉन..और अमूल बेबी बॉय
शाम को घर से निकले कृष्णजी के दर्शन के लिये तो देखा कि घर के सामने ही चाट की दुकान पर युवाओं की भीड़ उमड़ी हुई है और चाटवाले भैया का हाथ खाली नहीं है, कहीं किसी नौजवान युवक और युवतियों के गालों पर तिरंगा बना हुआ है तो किसी ने तिरंगे रंग की टीशर्ट पहन रखी थी। सब भ्रष्टाचार का विरोध कर के आ रहे थे। बैंगलोर में भ्रष्टाचार का विरोध फ़्रीडम पार्क में हो रहा है जिसके बारे में आज बैंगलोर मिरर में एक समाचार भी आया है कि ऑटो वाले जमकर चाँदी काट रहे हैं, मीटर के ऊपर ५०-१०० रूपये तक माँगे जा रहे हैं और पुलिस वाले चुपचाप हैं और लोगों को कह रहे हैं कि यही तो इनके कमाने के दिन हैं।
बड़ा अजीब लगता है कि लोग ऑटो वालों के भ्रष्टाचार से परेशान हैं और ज्यादा पैसा लेना भी तो जनता के साथ भ्रष्टाचार है और उसके बाद जनता भ्रष्टाचार का विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं, “मैं अन्ना हूँ।” और भी फ़लाना ढ़िकाना… पर खुद भ्रष्टाचार खत्म नहीं करेंगे, अरे भई जनता समझो कि भ्रष्टाचार खुद ही खत्म करना होगा।
यहीं घर के पास ही एक कन्वेंशन सेंटर में इस्कॉन बैंगलोर ने जन्माष्टमी के अवसर पर आयोजन किया था, आयोजन भव्य था। दर्शन कर लिये पर पता नहीं चल रहा था कि ये मधु प्रभू वाला इस्कॉन है या मुंबई इस्कॉन वाला, आपकी जानकारी के लिये बता दूँ कि मधु प्रभू वाले राजाजी नगर, विजय नगर वाले मंदिर का इस्कॉन संस्था ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बहिष्कार किया हुआ है। इस्कॉन मुंबई ने बैंगलोर में शेषाद्रीपुरम में अपना एक मंदिर बनाया है और अब एच.बी.आर. लेआऊट में एक और मंदिर बन रहा है।
दर्शन करने के बाद महामंत्र “हरे कृष्णा हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे हरे, हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे” का श्रवण किया और फ़िर चल दिये प्रसादम की और जहाँ पर हलवा और पुलैगेरा चावल थे दोनों ही अपने मनपसंद बस पेटभर कर आस्वादन किया गया।
घर आये फ़िर न्यूज चैनल देखे तो पता चला कि अन्ना फ़ौज से भगौड़े नहीं हैं जो कि थोड़े दिनों पहले शासन करने वाली राजनैतिक पार्टी के लोग बयान दे रहे थे। अब तो वे बेचारे किसी को मुँह दिखाने लायक भी नहीं रहे, अरे भई बोलो मगर यह तो नहीं कि जो आये मुँह में बोल डालो, सब के सब दिग्विजय सिंह से टक्कर लेने में लगे हैं। वैसे आजकल ये महाशय चुप हैं, और नौजवान अमूल बेबी बॉय मुँह में निप्पल लेकर बैठे हुए हैं, क्योंकि उनको पता है कि अगर उन्होंने अन्ना का नाम भी लिया तो उन्हें मिलेगा गन्ना ।
बेचारे बाबा नौजवानों को अपने साथ लाना चाहते थे और देखकर हर कोई दंग है कि ७४ वर्षीय अन्ना के साथ सारे नौजवान सड़क पर उतर आये हैं, मम्मी अमरीका गई है बाबा की निप्पल बदले कौन ?
भ्रष्टाचार के खिलाफ बिगुल फ़ूँकना होगा । (Fight against corruption)
आजकल कुछ ठीक नहीं लग रहा है, जो इस काल में देश और समाज में घटित हो रहा है वह सब ठीक नहीं हो रहा है। क्या बतायेंगे हम आने वाली पीढ़ी को कि कैसे भ्रष्टाचार का दीमक हमारे समाज, देश और अर्थव्यवस्था को चाट गया। सरकार और राजनैतिक दल अपना स्वार्थ साधने के लिये शांतिपूर्ण आंदोलनकारियों को विदेशी ताकत का हाथ बताने लगते हैं। क्या ऐसे लोगों को सरकार और उससे जुड़े पदों पर रहने का अधिकार है ?
क्या यह उसी तरह की क्रांति की तस्वीर भारत में उभर रही है जैसी कि सिंगापुर में १९७० के दशक में उकेरी गई थी, हमारी सरकार और राजनैतिक नुमाईंदे बैकफ़ुट पर हैं और जनता हावी होती जा रही है। क्या चुने हुए लोग इतने बेशरम हो गये हैं कि जनता की बात सुनना ही नहीं चाहते हैं, और अगर ऐसा है तो यह तो तय है कि अहिंसक तरीके से जनता आंदोलन कर रही है और अगर आंदोलन ऐसा ही चलता रहा तो सरकार का गिरना तय है, क्योंकि इससे एक बात तो साफ़ हो रही है कि सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ़ नहीं है और अगर है तो उसे मिटाने की प्रतिबद्धता सरकार में नहीं है।
खैर जनता कितना भी आंदोलन कर ले परंतु ये प्रशासनिक और सरकारी लोग वही करेंगे जो इनको करना होगा या आदेशित होगा। अगले चुनाव में क्या मुँह लेकर जनता के पास जायेंगे ? इससे अच्छा है कि जनता को ही अपने समूह बनाने होंगे और जो भ्रष्टाचार करे उसकी सरेआम बेईज्जती की जाये और मुँह काला कर गधे पर बैठाकर घुमाया जाये। परंतु हमारे संस्कार हमें इस बात की भी इजाजत नहीं देते, हमारे संस्कार कहते हैं कि अगले को सुधरने का पूरा मौका दिया जाना चाहिये।
अब तो जो होना है वह होना है, परंतु गांधीवादी युग से क्या हासिल होगा, जनता का विद्रोह अगर लीबिया जैसा हो गया तब सरकार क्या कर लेगी। जनता को अराजक बताकर अपनी पूरी ताकत इनको खत्म करने में लगा देगी। लेकिन भ्रष्टाचार खत्म करने के लिये कोई ठोस कदम उठाने कि बात नहीं करेगी।
कुछ बातें ठीक लग रही हैं जैसे इलेक्ट्रानिक मीडिया बराबर कवरेज दे रहा है और हो सकता है कुछ चैनलों को तो मजबूरी में टी.आर.पी. के चक्कर में ना चाहते हुए भी कवरेज देना पड़ रहा हो। कुछ बातें ठीक नहीं लग रही हैं क्या पुलिस वाले मानव ह्र्दय नहीं रखते या उनको सही गलत की समझ नहीं होती या फ़िर वे हमेशा अपने ऊपर भ्रष्टाचार का दाग लेकर घूमना चाहते हैं, जो कि सरकार की बातें मान रहे हैं, क्यों सरकारी कर्मचारी भ्रष्टाचार के महाआंदोलन में साथ नहीं हैं।
हो सकता है कि आंदोलन के सूत्रधारों की रणनीति ठीक नहीं हो या एजेंडा थोड़ा सा भटका हुआ हो, परंतु है तो भ्रष्टाचार के खिलाफ़ ही, अगर आज उठे नहीं तो कभी उठ नहीं पायेंगे, भ्रष्टाचार मुक्त भारत देश बनाने का सपना साकार करने के लिये यह पहला कदम है, अभी तो इस राह में बहुत सारी क्रांतियाँ हैं।
आज फ़िर भारतीय बाजारों के लिये काला सोमवार है (Today again a Black Monday for Indian Share Market..)
आज फ़िर से भारतीय बाजारों के लिये काला सोमवार है, आज सेन्सेक्स कितना नीचे जाता है यह तो बाजार खुलने के बाद ही पता चलेगा, मगर शेयर बाजार के विशेषज्ञों के अनुसार सेन्सेक्स १५,००० का लेवल तोड़ सकता है। शनिवार और रविवार यूरोप और भारत के बाजार बंद रहते हैं, परंतु मिडिल ईस्ट के बाजार खुले होते हैं और वहाँ भारी गिरावट देखने को मिली है। मसलन सऊदी अरब, UAE, इस्राइल, कुवैत यहाँ के बाजारों में ७% तक की गिरावट दर्ज की गई है।
दरअसल शुक्रवार को बाजार बंद होने के बाद स्टैंडर्ड् एन्ड पूअर्स (Standard and Poor’s) ने अमेरिका की डेब्ट रेटिंग AAA से AA+ कर दी, अमेरिका की रेटिंग कम होने से उन संस्थाओं पर अब अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर दबाब पढ़ने लगा है जो कि केवल AAA रेटिंग वाले देशों में ही निवेश कर सकते हैं, इसका मतलब यह हुआ कि अब अमेरिका से निवेश निकलकर AAA रेटिंग वाले देशों में याने कि जर्मनी, फ़्रांस, कनाडा और ब्रिटेन में जायेगा। यहाँ तक कि स्टैंडर्ड और पूअर्स ने अमेरिका को यह भी चेताया है कि अगले कुछ दिनों में अगर अमेरिकी अर्थव्यवस्था नहीं सुधरी तो अमेरिका की डेब्ट रेटिंग AA+ से घटाकर AA की जा सकती है।
आज के परिदृश्य में भारतीय अर्थव्यवस्था पर वैश्विक परिस्थितियों का गहन असर पड़ता है। इसलिये आने वाला समय बाजारों के लिये ठीक नहीं है, शेयर बाजार विशेषज्ञों की राय में अभी बाजार में निवेश करने से बचें और निचले लेवलों पर धीरे धीरे निवेश करते रहें, एकसाथ निवेश न करें।
अमेरिका देश की साख दाँव पर लगी है, अब देखते हैं कि ओबामा सरकार इससे कैसे निपटती है या अपने देश की डेब्ट रेटिंग AA या AA- पर आने देती है।
एक बात और स्टैंडर्ड और पूअर्स के चैयरमैन हैं देवेन शर्मा जो कि झारखंड के जमशेदपुर से हैं, और उन्होंने अपनी टीम के साथ ओबामा की छुट्टी कर दी।
स्टैंडर्ड और पूअर्स के बारे में ज्यादा जानने के लिये क्ल्कि करें।
हॉकर द्वारा पोंगली बनाकर अखबार फ़ेंकना और हमारा अखबार सुबह गायब होना ।
अखबार तो बचपन से घर पर आते हुए देख रहे हैं, कभी पूरा अखबार प्रेस करा हुआ मिलता था, तो कभी अखबार को हॉकर पोंगली बनाकर उसे ऊपर रबड़ाबैंड लगाकर या सुतली से बांधकर घर में फ़ेंकता था।
मुंबई में हम बड़ी बिल्डिंग में रहते थे और वहाँ पोंगली बनाकर फ़ेंकना हॉकर के लिये संभव नहीं था, इसलिये हॉकर सबसे पहले लिफ़्ट से सबसे ऊपरी माले पर जाता था और फ़िर वहाँ से फ़्लेटों में अखबार डालते हुए सीढियों से नीचे आता था। कई बार सामने वाले या अगल बगल वाले फ़्लेट का अखबार नहीं आने पर वे लोग चुपके से अखबार उठालेते तो फ़िर अखबार वाले को फ़ोन करना पड़ता, आज अखबार नहीं डाला तो वह वापिस आता और कहता कि अखबार तो डाला था फ़िर मिला कैसे नहीं, इसके बाद फ़्लेट का नंबर भी अखबार पर लिखा मिलता जिससे किसी दूसरे को वह अखबार अपना ना लगे। और सुबह जब अखबार रख कर जाता तो घर की घंटी भी बजा जाता जिससे हमें पता चल जाता कि अखबार आ चुका है।
अब यहाँ बैंगलोर में पहले हमारा अखबार वाला हमारे फ़्लेट के दरवाजे के सामने प्रेस करा हुआ अखबार रख जाता था, परंतु कुछ दिनों से वह भी अखबार की पोंगली बनाकर फ़ेंकने लगा है। अब फ़िर वही गलतफ़हमी शुरू हुई, पड़ोसी के साथ, हम सुबह ६ बजने से पहले ही बिस्तर छोड़ देते हैं और कई बार पड़ोसी भी, जब तक प्रेस करा हुआ अखबार हमारे दरवाजे पर मिलता था कभी गायब नहीं हुआ परंतु जहाँ पोंगली बनाकर फ़ेंकना शुरू किया वहीं अखबार गायब होने लगा, हम अखबार वाले को फ़ोन करते भई किधर गया हमारा अखबार वो भी हतप्रभ, फ़िर उसी ने पता लगाकर बताया कि आपका अखबार आपका पड़ौसी उठा लेते हैं, उनसे कहिये कि उनका अखबार सुबह ७.३० के बाद आता है और उनका इकॉनामिक्स टाईम्स साथ में नहीं आता है। फ़िर एक दिन हमने खुद देखा और पड़ौसी से बात कर मामला सुलझा लिया, अब सुकून से रोज सुबह पोंगली में अखबार हमें ही मिलता है।
पोंगली में अखबार फ़ेंकने के कुछ फ़ायदे भी हैं तो नुक्सान भी हैं, फ़ायदे तो केवल हॉकर के लिये है कि उसे हर मंजिल पर जाना नहीं पड़ता है। और फ़ायदा सभी के लिये है, रबड़ बैंड मिलती है, अलार्म नहीं लगाओ तब भी समय का पता चल जाता है।
बहुत पहले एक फ़िल्म देखी थी जिसमें संजीव कपूर था या कोई और याद नहीं, वह बालकनी में आकर अंगड़ाईयाँ लेता है और हॉकर उसी समय पर पोंगली बना हुआ अखबार फ़ेंकता है, जो सीधा उसके मुँह में घुस जाता है।
अब हमारा अखबार हमारा इंतजार कर रहा है, हम अब अपने अखबार को पढ़ते हैं ।
पोलिथीन याने कि प्लास्टिक की थैलियाँ हम कितनी उपयोग करते हैं ? और कपड़े के थैले कहाँ गये ?
आजकल जिधर देखो उधर हर किसी के हाथ में पोलिथीन की थैलियाँ दिखती हैं, कपड़े और जूट के थैले तो हाथों से गायब ही हो गये हैं, अगर कहीं भूले भटके दिख भी गये तो बड़ा आश्चर्य होता है।
मुझे बहुत अच्छे से याद है कि जब छोटा था तब हमारे घर में कम से कम पाँच छ: थैले हुआ करते थे, जिसमें सब्जी लाने का अलग और किराने लाने का अलग थैला होता था। कपड़े के थैले बाजार में तो मिलते नहीं थे तो मम्मीजी घर पर ही सिलाई मशीन पर सिलती थीं, अगर किसी काम के लिये कोई कपड़ा आया हो और उसमें से कोई कपड़ा बच गया तो उसका थैला सिल जाता था, और थैले भी अलग अलग अनुपात के होते थे, कम सब्जी वाले और ज्यादा सब्जी वाले, इसी तरह कम किराने वाले और ज्यादा किराने वाले।
आज भी घर पर समान लाने के लिये पापाजी थैले का ही उपयोग करते हैं, प्लास्टिक की थैलियों को तरजीह नहीं देते हैं, परंतु बहुत सारी चीजें बदल गई हैं, पहले जब कपड़े के थैले उपयोग करते थे तो सब्जी को घर पर आकर छांटना पड़ता था और उसमें भी काफ़ी मजा आता था, फ़ली, भिंडी, मटर और मिर्ची तो आपस में गुत्थमगुत्था ही मिलती थीं, शिमला मिर्च, आलू, प्याज और टिंडे एक दूसरे में मिल जाते थे, उनको अलग अलग करना एक रोमांच ही होता था। पर धीरे धीरे प्लास्टिक की थैलियों ने जगह बनाई, अब जब दुकान पर सब्जी खरीदी तो बेचारी सारी सब्जियाँ अपने अपने थैलियों में सिमट कर रह गई हैं, कभी एक दूसरे से गुत्थमगुत्था हो ही नहीं पाती हैं, खैर उस जमाने में फ़्रिज नहीं हुआ करता था तो लगभग रोज ही ताजी सब्जी मिलती थी, परंतु आजकल फ़्रिज आने से इतनी खराब आदत हो चली है कि शनिवार या रविवार को पूरे सप्ताह की सब्जियाँ लाकर फ़्रिज भार लेते हैं, और फ़िर पूरे सप्ताह भर खाते रहते हैं। बस पत्तेदार सब्जियाँ अब भी तभी आती हैं जिस दिन खानी होती हैं।
अब मॉल में जाते हैं, कोल्डस्टोरेज की निकली हुई ताजी सब्जियाँ लेकर आते हैं, हर सब्जी के लिये अलग छोटी छोटी प्लास्टिक की थैलियाँ मौजूद रहती हैं, आजकल तो सब्जियाँ रेडीमेट पोलिथीन मॆं पैक वजन के साथ दाम लिखी हुई भी मिलती हैं, बस ये थोड़ी महंगी होती हैं ३०-३५% तक। हमने एक बात तो देखी कि बाजार में सब्जियाँ महंगी हैं और मॉल में सब्जियाँ सस्ती हैं, और कई बाहर ठेला लगाने वाले तो इन मॉलों से ही सब्जी खरीदते हैं और ज्यादा दामों पर बाहर बेचते हैं।
खैर हमने वापिस से कपड़े के थैले का उपयोग करना शुरू किया है, जिसमें दूध, ब्रेड वगैरह लेकर आते हैं, वैसे यह भी मजबूरी में है क्योंकि सरकार ने प्लास्टिक की थैलियों पर रोक लगाई हुई है, जब रोक लगी थी, तब लगभग सभी दुकानों से थैलियाँ गायब हो गई थीं, परंतु थैलियाँ ना होने के वजह से धंधे पर असर होने लगा तो अब रोक के बाबजूद प्लास्टिक की थैलियाँ दुकानदारों को रखना पड़ती हैं।
पहले कचरे के डिब्बे के लिये अलग से पोलिथीन लानी पड़ती थी, परंतु अब माह भर में मॉल से इतनी खरीदारी हो जाती है कि अलग से कचरे के लिये पोलिथीन खरीदने की जरूरत ही नहीं पड़ती है। एक प्रकार से हम पोलिथीन का सदुपयोग भी कर रहे हैं। पर हाँ अब कपड़े के थैले पर जाना बहुत मुश्किल लगता है।
आयकर रिटर्न की ईफ़ाईलिंग और नियोक्ता द्वारा कटा हुआ कर फ़ॉर्म 26A S से देखें। (E-filing of Income Tax Return and Check deducted Tax from employer in form 26A S)
1. Income Details – इस शीट में फ़ॉर्म १६ के अनुसार आय की जानकारियाँ, नाम और पता भरिये। Valideate करिये और Next बटन पर क्लिक कीजिये।2. TDS – इस शीट में नियोक्ता द्वारा काटे गये टैक्स की जानकारी, सैलेरी के अलावा अगर कहीं TDS कटा है और अग्रिम कर की जानकारी Transaction wise दें।3. Taxes paid and verification – इस शीट पर अपने बैंक का खाता नंबर और माइकर कोड टंकित करें साथ ही यहाँ पर आपका टैक्स के बारे में पता चलता है कि टैक्स सही है या और जमा करना है या रिफ़ंड है। अगर यह नहीं आ रहा है तो पहली शीट Income Details पर जाकर Calculate Tax बटन पर क्ल्कि करें।
क्या सरकार को हमसे किसी भी प्रकार का कर लेने का हक है ?
यह एक बहुत बड़ा सवाल है, क्या सरकार को हमसे किसी भी प्रकार का कर लेने का हक है ? जब सरकार आम आदमी की रक्षा नहीं कर सकती, आम आदमी को मूलभूत सुविधाएँ नहीं प्रदान कर सकती तो सरकार हमसे कर कैसे ले सकती है ?
जब हमें सड़क अच्छी नहीं मिल सकती, बस अच्छी नहीं मिल सकती और तो और सरकार चलाने वाले जनता के मुलाजिम हैं क्योंकि उनको तन्ख्वाह जनता के जमा किये गये कर से मिलती है, वे मुलाजिम ही जनता से आँखें लड़ाते हुए अपना रूतबा दिखाते हैं और जिस काम की तन्ख्वाह लेते हैं, उसका शुल्क भी जनता से भ्रष्टाचार के रूप में बटोरते हैं और बेचारी निरीह जनता इनके दमन चक्र में पिसी जा रही है, अगर कोई आवाज उठाता है तो सचान को जैसे मारा वैसे मारकर मुँह बंद करवा दिया जाता है या फ़िर बाबा रामदेव के ऊपर जैसा दमनकारी चक्र सरकार ने चलाया, चला दिया जाता है।
सरकार अपनी ताकत केवल जनता पर दिखा सकती है, सरकार आतंकवाद, माओवाद और नक्सलियों से निपटने में असक्षम है और वहाँ केवल अपनी राजनीति की रोटियाँ सेकने में लगी है, क्या अगर सरकार सेना की टुकड़ी को नक्सली इलाके में भेज दे तो ये नक्सलवाद एक दिन में खत्म नहीं हो सकता ? या माओवाद खत्म नहीं हो सकता ? हमारे खूफ़िया विभाग समय पर सभी सुरक्षा विभागों को जानकारियाँ दे देते हैं, परंतु उन जानकारियों को फ़ाईलों में दबा दिया जाता है और ढुलमुल रवैया अपनाया जाता है। सुरक्षा विभाग आपस में ही एक दूसरे से बराबर संपर्क में नहीं रहते और समय पर इस प्रकार की जानकारियों का उपयोग नहीं कर पाते, ये लोग असक्षम नहीं है, बल्कि इसके पीछे राजनैतिक इच्छाशक्ति की कमी है।
इतने सब के बाद भी सरकार को क्या हमसे किसी भी प्रकार का कर लेने का हक है ? सरकार हमसे हरेक चीज में तो कर ले रही है, फ़िर वह खाना, पहनना हो या ऐश करना, उस कर से भी पेट नहीं भरता तो तरह तरह के घोटाले भी सामने आते हैं ? और जनता के साथ धोखा किया जाता है ?
हम किसी भी प्रकार का कर देने में कोई आपत्ति नहीं है, परंतु हमारे कर के रुपयों से क्या किया जा रहा है, वह तो हमें बताया जाये।
मानते हैं कि सेना का शासन अच्छा नहीं होता, परंतु अब स्थिती इतनी खराब हो चुकी है कि अगर सेना का शासन लगा दिया जाये तो भी हमें अपने भारत को सुधारने में बहुत समय लगेगा, या फ़िर जनता को ही कानून अपने हाथ में लेकर अपने हिसाब से कानून का पालन करवाना पड़ेगा ?
क्या आप २० रुपये में एक दिन का खाना खा सकते हैं ?
क्या आप २० रुपये में एक दिन का खाना खा सकते हैं ?
यह प्रश्न बहुत ही व्यवहारिक है, क्योंकि सरकार ने गरीबी रेखा के लिये जो सीमा निर्धारित की है वह है २० रूपये प्रतिदिन, अगर कोई २० रूपये प्रतिदिन से ज्यादा कमाता है तो वह गरीबी रेखा में नहीं आता है।
भारतीय प्रबंधन संस्थान, बैंगलोर के ७५ छात्रों ने समूहों में बँटकर गरीबी रेखा के नीचे रहने वालों का जमीनी संघर्ष जाना। भारतीय प्रबंधन संस्थान के छात्रों के लिये २० रूपये कोई बहुत बड़ी चीज नहीं है, जब वे चले तो उन्होंने अपने पास केवल २० रूपये ही रखे और खाने की कोई भी सामग्री नहीं रखी।
जब उन्होंने २० रूपयों में पूरा दिन गुजारा तो उन्हें पैसे की कीमत पता चली और उन्होंने देखा कि गरीबी रेखा के नीचे वाले कैसे जीवन यापन करते होंगे। २० रूपये से ज्यादा की तो एक दिन में नाश्ता या सिगरेट पीने वाले प्रबंधन संस्थान के छात्र सकते में थे, और इन लोगों के लिये मूलभूत सुविधाओं को कैसे जुटाया जाये ये सोचने पर मजबूर थे। मूलभुत सुविधाओं का न होने के लिये सरकार को ही दोषी नहीं माना जा सकत है।
इस महँगाई के जमाने में उन्हें अगर सब्जी खाना हो तो पत्तेदार सब्जी थोड़ी बहुत आ सकती है, या फ़िर शाम को बची हुई गली सी सब्जी में से उन्हें सब्जी खरीदनी पड़ती है। चावल भी अगर १० रूपये किलो मिले तब जाकर उनके लिये खाना २० रूपये में एक दिन का पड़ेगा। परंतु चावल अगर देखें तो कम से कम २०-२२ रूपये है, वह भी लोकल सोना मसूरी मोटा चावल। अगर गेहूँ ही देखें तो कम से कम १६ रूपये किलो है और पिसवाने का ४ रुपये तो २० रूपये किलो तो आटा भी पड़ता है।
अपने को तो सोचकर ही पसीने आते हैं, कि कैसे २० रूपये में दिन भर में खाना खाया जा सकता है जबकि १० रूपये की चाय या कॉफ़ी ही बाजार में मिलती है। नाश्ते में भी २० रूपये कम पड़ते हैं।
वाकई २० रूपये में एक दिन निकालना बहुत मुश्किल है, और गरीबी रेखा के नीचे वालों को तो तब तक दिन निकालने हैं, जब तक कि वे इस गरीबी रेखा को पार नहीं कर लेते।
भारतीय प्रबंधन संस्थान के छात्रों ने गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले लोगों का जीवन स्तर सुधारने और मूलभूत सुविधाएँ उपलब्ध करवाने के लिये संकल्प लिया।
स्पीड पोस्ट के भाव देखकर होश उड़ गये ?
अभी बहुत दिनों बाद कूरियर और स्पीडपोस्ट करने की जरूरत पड़ी, तो बदले हुए भाव देखकर होश उड़ गये, भाव इतने बड़े हुए हैं कि अच्छे अच्छों के होश उड़ जायें।
कूरियर सेवा शुरू हुए भारत में लगभग २ दशक हो चले हैं, परंतु कूरियर ने पिछले एक दशक से जो जोर पकड़ा है वह ऐतिहासिक है और कूरियर सेवाओं ने डाक विभाग को हाशिये पर ला खड़ा किया है। आज भारत में कुकुरमुत्तों की तरह जाने कितनी ही कूरियर सेवाएँ हैं, कूरियर सेवाएँ निजी हैं तो यह विश्वास करना लाजिमी है कि सेवाएँ अच्छी होंगी, परंतु यह सत्य नहीं है। कूरियर सेवा किसी हद तक जनता का विश्वास जीतने में कायम तो रहीं, परंतु जो लोग डाक विभाग की सेवाओं का उपयोग करते रहे उनको डिगा नहीं पायी।
कूरियर सेवा की अपनी एक पहुँच होती है, वह ज्यादा से ज्यादा जिला स्तर तक या तहसील स्तर तक ही अपनी सेवाएँ प्रदान करते हैं, और भारतीय डाक विभाग की सेवाएँ पूरे विश्व में सबसे बड़ी हैं, भारतीय डाक विभाग की सेवाएँ छोटे से छोटे गाँव तक में मौजूद हैं।
एक जगह स्पीड पोस्ट करना था तो मजबूरी में हमें पोस्ट ऑफ़िस जाना पड़ा तो पता चला कि शनिवार को १२.३० बजे ही पोस्ट ऑफ़िस बंद् हो जाता है, फ़िर सोमवार को घरवाली को भेजना पड़ा, तो पता चला कि लाईन लगी हुई थी, और लगभग सभी लोग टेलीफ़ोन का बिल जमा करने के लिये लाईन में लगे हुए थे, अब बताईये डाक जो कि डाकविभाग का मुख्य कार्य है उसे हाशिये पर डाक विभाग ने धकेल दिया है और टेलीफ़ोन बिल जमा कर रहा है। हाँ यह है कि टेलीफ़ोन विभाग से डाक विभाग को कमीशन मिलता है, तो क्या डाक विभाग अपने मुख्य कार्य को प्राथमिकता से करना छोड़ देगा। अब पोस्ट ऑफ़िस के लाल डिब्बे भी हर चौराहों पर नहीं दिखते हैं।
परंतु एक बात अच्छी लगी जो शायद सबको अच्छी लगे कि उतने ही वजन के कूरियर के और उतनी ही दूरी पर भेजने के कूरियर सेवा ने ५० रुपये लिये और जबकि स्पीडपोस्ट सेवा ने २५ रुपये लिये। दोनों ही सेवाओं में लगभग ४८ घंटों से ज्यादा का समय लगता है, परंतु अगर आप अपने कूरियर या स्पीडपोस्ट को ट्रेक करना चाहते हैं, तो यहाँ पर भी स्पीडपोस्ट की बेहतर ट्रेकिंग विश्वस्तर की है और कूरियर सेवाओं को इसमें भी मात करती है। यहाँ तक कि कई विश्वस्तर कूरियर कंपनियाँ भी इस तरह की जबरदस्त ट्रेकिंग का इस्तेमाल नहीं करती हैं।
उसके बाद हमने सोचा कि आखिर क्यों डाक विभाग की सेवाओं से लोग भागने लगे हैं, तो पाया कि कूरियर सर्विसेस लगभग हर गली चौराहों के नुक्कड़ पर किसी न किसी दुकान में मिल जाती है, और लगभग पूरे समय आप कभी भी कूरियर कर सकते हैं, जबकि डाक विभाग का सरकारी समय निर्धारित है, और उस पर भी आपको लाईन में लगना पड़ता है तो आजकल समय किस के पास है, जो लाईन में लगे और डाक विभाग की सेवाओं का उपयोग करे।
६-७ वर्ष पहले उज्जैन में डाक विभाग ने कार्यालयों के लिये एक सेवा शुरू की थी, जिसके तहत शाम के समय डाकविभाग से कर्मचारी आता था और सारी डाक ले जाता था, अब पता नहीं कि वह सेवा उपलब्ध है या नहीं, परंतु उस समय लगभग हर बैंक और सरकारी कार्यालयों ने इसे तत्काल प्रभाव से उपयोग करना शुरू कर दिया था। अब शायद यह सेवा नहीं है, क्यूँकि अभी जब उज्जैन गये थे तो बैंकों में वापिस से कूरियर सेवाओं ने अपनी जड़ें जमा ली थीं, परंतु अन्य सरकारी कार्यालयों का पता नहीं है।
कूरियर में एक अच्छी बात यह है कि आप फ़ोन कर दो वह आपके स्थान से ही आपकी डाक पिक अप कर लेगा और आप निश्चिंत हो जायेंगे, परंतु डाकविभाग के साथ ऐसा नहीं है, डाकविभाग को अपने तंत्र को प्रभावी रूप से इस्तेमाल करना होगा और उन्हें व्यावसायिक बुद्धि का परिचय देते हुए ठोस कदम उठाने होंगे। कुछ अच्छी सेवाएँ ग्राहकों के लिये देना होंगी, जिससे डाकविभाग के मजबूत तंत्र का फ़ायदा आम जनता को हो।