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देखा पापा टीवी पर विज्ञापन देखकर IDBI Life Childsurance Plan लेने का नतीजा, “लास्ट मूमेंट पर डेफ़िनेटली पैसा कम पड़ेगा”।

हाल ही में आप सभी लोग टीवी पर आई.डी.बी.आई. फ़ेडेरल जीवन बीमा कंपनी का बच्चों के जीवन बीमा का  एक विज्ञापन बहुत देख रहे होंगे “देखा पापा, ऐसा वैसा प्लॉन लोगे तो लास्ट मूमेंट पर पैसा कम पड़ सकता है” और फ़िर कहता है कि “आई.डी.बी.आई. लाईफ़ चाईल्ड्श्योरेंस प्लॉन खरीदें – प्लॉन जो फ़ैल न हो”।
विज्ञापन वाकई बहुत ही भावनात्मक है, विज्ञापन एजेन्सी ने अपना काम बहुत अच्छे से किया है। मुझे लगता है कि आप सभी लोग भी इस भावनात्मक विज्ञापन से जरूर प्रभावित हुए होंगे और बच्चों के लिये इस प्लॉन को लेने की सोच रहे होंगे।
बद्किस्मती से जिसने भी यह प्लॉन बनाया है उसे हम शून्य (0) देंगे क्योंकि यह प्लॉन निवेशक के लिये अच्छा नहीं है। एक मित्र ने भी यह विज्ञापन देखा और फ़ोन करके पूछा कि विज्ञापन बहुत अच्छा है, पर यह देखकर बताओ कि उत्पाद अच्छा है या नहीं ? मुझे यह प्लॉन खरीदना चाहिये या नहीं ?
मैं वेबसाईट पर गया और उनका ब्रॉऊशर डाऊनलोड किया, और उनके चार्जेस को देखकर संत्रस्त हो गया । ( जो कि कभी भी निवेशक को बताये ही नहीं जाते हैं।) ये देखिये –
idbichildsuranceplanअगर @10% भी इस प्लॉन से मिलता है जो कि बीमा कंपनी द्वारा प्रदर्शित और विज्ञापित किया जा रहा है, तो भी आपको शायद ही सकारात्मक रिटर्न्स मिल पायेंगे, और इस बात पर हम यह कह सकते हैं, अगर आप यह प्लॉन खरीदते हैं तो “लास्ट मूमेंट पर डेफ़िनेटली पैसा कम पड़ेगा”।

सबसे बढ़िया है कि एस.आई.पी. से म्यूचयल फ़ंड में निवेश किया जाये और परिवार को सुरक्षित रखने के लिये टर्म प्लॉन लिया जाये। यह काफ़ी समय से आजमाया हुआ समीकरण है पर दुर्भाग्य से केवल 5% लोग ही इसे समझते हैं।
एक और सलाह, अगर पिछले ३-४ वर्षों में आपने कोई भी बच्चों का बीमा प्लॉन खरीदा है तो उसका वापिस से विश्लेषण कर लेना चाहिये और अगर जरूरत पड़े तो उस बीमा को खत्म करके म्यूचयल फ़ंड में एस.आई.पी. के जरिये निवेश करें। आपको लंबे समय में इस प्लॉन से तो अच्छा रिटर्न मिलेगा।

यह एटिका वेल्थ के ईमेल का अनुवादित स्वरूप है।

जिनका स्लोगन मुझे बहुत ही अच्छा लगता है – “What is good for the client is also good for the firm” – T Rowe Price Jr.

IDBI Federal Childsurance Engineer Advertisment –

IDBI Federal Childsurance Doctor Advertisment –

पोलिथीन के रूपये फ़ट से डेबिट और बैग के देने में आनाकानी

आजकल बड़े बाजारों से ही खरीदारी की जाती है, फ़ायदा यह होता है कि हरेक चीज मिल जाती है और लगभग हरेक ब्रांड की चीजें मिल जाती हैं, तो अपनी पसंद से ले सकते हैं, चीजों को हाथ में लेकर देख सकते हैं। जबकि किराने की दुकान पर चीजों को बोलकर लेना होता है तो क्या क्या नया बाजार में आया है पता ही नहीं चलता है।

सब ठीक चल रहा था परंतु कुछ दिनों पहले पोलिथीन पर सरकार का फ़रमान क्या आया, आम आदमी के लिये आफ़त हो गई, अब अपने साथ पोलिथीन या थैले लेकर जाओ नहीं तो ये बड़े बाजार वाले लोगों को पोलिथीन के लिये १ रूपये से लेकर ५ रूपये तक का भुगतान करो। और लगभग सभी बाजार अपने थैले लाने पर कुछ छूट देते हैं या प्वांईंट्स आपके मेम्बरशिप कार्ड में जोड़ देते हैं।

जब काऊँटर पर जबरदस्त भीड़ होती है तो कैशियर बैग के प्वाईंट्स क्रेडिट करना भूल जाता है परंतु अगर पोलिथीन ली है तो उसके पैसे झट से बिल में जोड़ देता है। और अगर शिकायत करो तो जवाब होता है कि भीड़ बहुत थी तो भूल गये, तो हमने कहा भई अगर भीड़ में भूल जाते हो तो पोलिथीन बैग्स के भी पैसे लेने भूल जाया करो। कैशियर खिसिया गये और चुप हो गये।

खैर है छोटी सी बात परंतु हम भारतीय ग्राहक क्यों अपना हक छोड़ें, और ऐसा पता नहीं कितने ग्राहकों के साथ होता होगा, इसलिये एक शिकायत ईमेल से कर दी गई है। पता नहीं इन लोगों के कान भी होते हैं या नहीं, सुनेंगे या नहीं।

आज की पीढ़ी और अविष्कार…

अविष्कार मानव इतिहास में जिज्ञासा से उत्पन्न होने वाली एक महत्वपूर्ण बात है। मानव ने जब अविष्कार करना शुरू किया तब उसे जरूरत थी, आज हमारे पास इतने संसाधन मौजूद हैं परंतु अब उनको बेहतर करने की जरूरत है। अभी भी नई नई चीजों खोजी जा रही हैं।
जब पहिया खोजा गया होगा तो वह अपने आप में एक क्रांतिपूर्वक अविष्कार था, आज पहिये के बल पर ही दुनिया चल रही है अगर पहिया ना होता तो सब रुका हुआ होता, और ऐसा सोचना ही दुष्कर प्रतीत होता है।
ऐसे ही जब संगणक को बनाया गया तो बनाने वालों ने कभी सोचा नहीं था कि यह एक क्रांतिकारी बदलाव लायेगा और लगभग हर उपक्रम में इसका उपयोग होगा, तब यह भी नहीं सोचा गया था कि y2k की समस्या भी आयेगी।
आजकल किसी नौजवान से बात की जाये तो वह केवल नौकरी करना चाहता है कोई अविष्कार नहीं क्योंकि नौकरी एक सहज और सरल उपाय है जीविका का, परंतु  शोध कार्य उतना ही दुष्कर। कुछ नये विचारों को असली जामा पहनाना ही अविष्कार है। ऐसा नहीं है कि दुनिया में सभी चीजें आ चुकी हैं, हो सकता है कि चीजें अभी जिस प्रक्रिया से अभी चल रही हैं वे धीमी हों, अगर उस प्रक्रिया को और सुगम बना दिया जाये तो शायद वह चीज और भी ज्यादा लोकप्रिय हो जाये।
अभी के कुछ उदाहरण देखिये जो कि प्रक्रिया के सरलीकरण के उदाहरण हैं, यह अविष्कार अंतर्जाल के संदर्भ में हैं, जैसे गूगल, फ़ेसबुक इत्यादि।
क्या गूगल के पहले अंतर्जाल पर ढूँढ़ने के लिये खोज के साधन उपलब्ध नहीं google थे, जी बिल्कुल थे, परंतु वे इतने तकनीकी भरे थे और जो आम आदमी देखना चाहता था वह परिणाम उसे दिखाई नहीं देता था। गूगल ने एक साधारण सा पृष्ठ दिया जो कि एकदम ब्राऊजर पर आ जाता था, केवल डायल अप पर भी खुल जाता था, जबकि डायल अप की रफ़्तार उन दिनों लगभग ४० केबीपीएस. होती थी, जो कि ठीक मानी जाती थी और १२८ केबीपीएस तो सबसे बेहतरीन रफ़्तार होती थी। गूगल ने सर्च इंजिन के क्षैत्र में क्रांतिकारी बदलाव किया और lycos, AltaVista, Yahoo, Ask Jeeves, MSN Search, AOL इत्यादि को बहुत पीछे छोड़ दिया।
ऐसे ही दूसरा उदाहरण है फ़ेसबुक, फ़ेसबुक के आने के पहले क्या अंतर्जाल में facebook सोशल नेटवर्किंग वेबसाईट्स नहीं थीं ? थीं बिल्कुल थीं, परंतु उनका उपयोग करना इतना आसान नहीं था और उन सोशल नेटवर्किंग वेबसाईट्स में फ़ेसबुक जितनी सुविधा नहीं थीं। Hi5, Orkut जैसे अपने प्रतियोगियों को बहुत पीछे धकेल दिया और आज फ़ेसबुक का कोई प्रतिद्वन्दी नहीं है। क्योंकि फ़ेसबुक के निर्माताओं ने इसे बहुत ही सरल रूप दिया और आज जिसे देखो वो मोबाईल पर भी फ़ेसबुक का उपयोग कर रहा है।
आज की पीढ़ी को इस और खास ध्यान देने की जरूरत है कि नये अविष्कार भी किये जा सकते हैं, यहाँ केवल मैंने अंतर्जाल से संबंधित ही बातें करी हैं परंतु यह हरेक क्षैत्र में लागू होता है, या तो नई चीजें खोजी जाये या फ़िर जो चीजें चल रही हैं, उन्हें परिष्कृत किया जाये। तभी हमारा भविष्य युवा है।

हम बोलेगा तो बोलोगे कि बोलता है… एक मेमशाब है साथ में शाब भी है..

एक गँवार आदमी को एक देश का सूचना तकनीकी मंत्री बना दिया गया, जिसे संगणक और अंतर्जाल का मतलब ही पता नहीं था। उस गाँव के संविधान में लिखा था कि सभी को अपनी बातें कहने की पूर्ण स्वतंत्रता है, परंतु उस जैसे और भी गँवार जो कि पेड़ के नीचे लगने वाली पंचायत में बैठते थे। उस पंचायत का मुखिया बनाया गया एक ईमानदार और पढ़े लिखे आदमी को, परंतु पंचायत पर राज उनके पीछे बैठी एक भैनजी और उनके बबुआ चलाते थे।

एक बार एक आदमी विदेश से आया और साथ में अखबार लाया और उसमें उसने पंचायत के सामने वह अखबार रखा कि देखो कि फ़ैबुक और विटेर पर लोग क्या क्या अलाय बलाय लिखते हैं और फ़ोटो अपने तरीके से बनाकर छापते हैं। पहले तो जब पंचायत और लोगों को जब वह अखबार दिखाया गया तो सभी लोग अपनी हँसी मुँह दबाकर छिपाते रहे, परंतु तभी उस पंचायत के सूचना तकनीकी मंत्री जो कि उस गाँव के टेलीफ़ोन के खंबे भी ढंग से गिन नहीं पाते थे, कहने लगे अरे ये तो हम भी अपने ही गाँव में कहीं देखे थे, उस दिन बड़ा अच्छा लग रहा था, उस दिन हम केवल फ़ोटू देखे थे कि मुखिया राजदूत चला रहे हैं और भैन जी उनके पीछे बैठकर फ़टफ़टिया के मजे ले रही हैं, उस दिन हमें लगा था कि वाह मुखिया ने भैनजी के संग क्या फ़ोटू हिंचवाया है।

आज पता चला कि ये तो जनता ने खुदही बनाकर डाल दिया है, असल में तो हमारे मुखिया और भैन जी बहुत ही सीधे हैं, मुखिया ने तो कभी फ़टफ़टिया चलाई ही नहीं है और भैन जी भी कभी फ़टफ़टिया पर बैठी नहीं हैं। खैर मंत्री जी ने तुरत आदेश दिया कि सारे टेलीफ़ोन के खंबे तुड़वा दिये जायें जिससे ना ये इंटर-नेट आयेगा और ना ही लोग ऐसी खुराफ़ात कर पायेंगे। अब बताओ मंत्री जी को कि लोग मोबाईल पर भी नेट का उपयोग करते हैं, बेचारे कुत्तों का एक मात्र सहारा खंबा भी छीन लिया।

अब बाकी तो आप समझदार हैं ही… अब ज्यादा बोलेंगे तो बोलोगे कि बोलता है।

विटर से कुछ विटर विटर –

जैसे वाहनों का चालान बनाया जाता है वैसे ही ब्लॉगों, फ़ेसबुक मैसेज और ट्विट्स का चालान बनाया जायेगा

I have never commented on them 🙂 hamane to kaha Mummy ji, Yuvraj aur mannu 😉

प्राण साहब का मशहूर गाना फ़िल्म कसौटी से –

एफ़डीआई का हल्ले के बहाने महँगाई और रूपये के अवमूल्यन पर भी चिंतन, हलकान है जनता.. [FDI, Inflation and Depreciation of Rupee… my views]

जहाँ देखो वहीं विदेशी खुदरा दुकानों का हल्ला मचा हुआ है और जनता महँगाई के मारे हलकान हुई जा रही है। महँगाई सर चढ़कर बोल रही है।

किसान को सब्जी का क्या भाव मिलता है और दुकानें किस भाव में बेचती हैं यह एक शोध का विषय है। और अगर शोध किया जाये तो शायद दुनिया चकित रह जायेगी कि किसान को टमाटर का ३ रू. किलो मिलता है और जनता दुकानदार को ४० रू. किलो दे रही है, तो बाकी का बीच का ३७ रू. ये बड़े खुदरा दुकानों के मालिक खा रहे हैं।

जब मुंबई में थे तो वहाँ कोई भी सब्जी कम से कम ४० रू. किलो मिलती थी और अधिकतर तो १६० रू. किलो तक भाव होते थे। पता नहीं कहाँ से महँगाई आई, और यही सब्जी चैन्नई या बैंगलोर में देखें तो अधिकतम ४० रू. किलो सब्जी मिल रही है। टमाटर मुंबई में आज भी ४० रू. किलो हैं और यहाँ बैंगलोर में १६ रू. किलो मिल रहे हैं।

खैर नेता लोग चिल्ला रहे हैं कि विदेशी खुदरा दुकानें आ गईं तो हम आग लगा देंगे, खुलने नहीं देंगे, परंतु क्यों नहीं खुलने देंगे ये नहीं बता रहे हैं, जब रिलायंस रिटेल खुल रहा था तब भी लोगों ने बहुत तोड़ फ़ोड़ की थी, अब हालत यह है कि वही तोड़ फ़ोड़ करने वाले लोग रिलायंस रिटेल से समान खरीद रहे हैं।

थोड़े दिनों बाद विरोधी स्वर विदेशी खुदरा दुकानों के फ़ीता काटते नजर आयेंगे। जनता को समझाइये कि विदेशी खुदरा दुकानों से क्या नुक्सान होगा। आज अखबार में पढ़ा कि जयपुर में कैनोफ़र ने जयपुर के सभी थोक अंडा व्यापारियों से करार कर लिया है, अब सभी खुदरा व्यापारियों को अंडे मिलना बंद हो जायेगा। पहली बात तो यह उन थोक व्यापारियों की गलती है जिन्होंने ये करार किये हैं और वैसे भी भारत है जहाँ हर चीज का जुगाड़ होता है, जब सरकार जुगाड़ से चल सकती है तो ये व्यापार क्या चीज है। खैर आगे क्या होगा यह तो ये करार कार्यांन्वयन होने के बाद ही पता चलेगा। हमारे खुदरा व्यापारी कोई ना कोई तोड़ निकाल ही लेंगे।

ऐसा नहीं है कि मैं विदेशी खुदरा दुकानों का समर्थक हूँ परंतु हाँ यह अर्थव्यवस्था के लिये ठीक होगा और रूपये के अवमूल्यन होने से कुछ हद तक रोकेगा। परंतु रूपये का अवमूल्यन रोकने के लिये क्या इस तरह के हथकंडे अपनाना उचित है ? कतई नहीं !

परंतु नेता जनता को कितना बेवकूफ़ बनायेंगे, अगर इन नेताओं ने घोटाले नहीं किये होते, भ्रष्टाचार पर लगाम कसी होती और भारत के विकास में उस रूपये का योगदान किया होता तो शायद रूपये के मूल्य का अवमूल्यन नहीं होता उल्टा डॉलर कमजोर होता, परंतु सरकार विदेशी लोगों को बाजार में भी तरह तरह के साधन उपलब्ध करवाती है कि ये लोग आसानी से भाग लेते हैं, और जनता ठगी से देखती रह जाती है।

जरूरत है सरकार में नेताओं में विकास की इच्छाशक्ति की कमी की, अगर इन नेताओं में यह इच्छाशक्ति आ जाये तो हम विकास के पथ पर अग्रसर होंगे। लोग कहते हैं कि दस वर्ष में हम नंबर वन बना देंगे, पिछले पाँच वर्ष में भारत को कौन से नंबर पर लाये हैं, ये तो सब जानते हैं।

बात रही [बेचारे] खुदरा दुकानदारों की तो वे बेचारे तो रोजमर्रा कि चीजों को बेचकर अपना घर चला लेंगे। जैसे अगर आपको ब्रेड लेने जाना हो तो आप विदेशी खुदरा दुकानों में तो नहीं जायेंगे ना, बस ऐसे ही बहुत सारी चीजें हैं जो कि आप बिना पार्किंग में अपनी गाड़ी लगाये लेना चाहेंगे या घर से गाड़ी नहीं निकालकर पास के दुकान से लेंगे। तो सरकार को यह समझ लेना चाहिये कि १० लाख से ज्यादा जनता वाले शहर बहुत समझदार हैं।

मुंबई में जहाँ हम रहते थे वहाँ भी आसपास बहुत मॉल थे, परंतु लगभग सभी लोग एक किराने वाले से ही समान लेते थे, वजह वह कीमत में सीधी छूट देता था और उसकी स्कीमें भी आकर्षक होती थीं। फ़िर घर पहुँच सेवा, आप जाकर बोल दीजिये और घर पर समान पहुँच जायेगा। अगर आपकी घर से निकलने की इच्छा नहीं है तो केवल फ़ोन लगा दीजिये और समान घर पर होगा। उस किराना व्यवसायी का स्वभाव बहुत अच्छा था और मृदु भाषी है। यह सब बातें कहाँ देशी और कहाँ विदेशी खुदरा दुकानों पर मिलेंगी।

सुपारी देना किसको कहते हैं और सुपारी के गुण और उसकी गाथा

सुपारी देना शब्द कहाँ से आया बहुत ढूँढ़ा कहीं मिला नहीं, वैसे हमें तो केवल इतना पता है कि सुपारी पान बीड़ा का एक अवयव है, परंतु यही सुपारी कब इस अलग रूप में आ गई, पता ही नहीं चला, खासकर फ़िल्मों और सीरियलों में बहुत सुनने को मिलता है कि फ़लाने की सुपारी दे दी, मतलब कि हत्या करने के लिये किसी को पैसे दिये गये ।
वैसे सुपारी तो हमारी संस्कृति का अंग है और सुपारी को पूजा में भी रखा जाता है। आखिरकार अपने पुराने जमाने वाले लोगों ने जिन्होंने सुपारी को खाने लायक समझा होगा, उनको दाद देनी होगी कि इतने कठोर फ़ल को भी खाने में और पूजा में प्रयुक्त किया, और सुपारी को खाने के लिये सरौते का भी अविष्कार किया, अब कहते हैं ना कि आवश्यकता ही अविष्कार की जननी होती है।
सुपारी के बहुत सारे औषधीय उपयोग भी हैं –
 मुंह के रोग : 10-10 ग्राम बड़ी इलायची और सुपारी को जलाकर मुंह में छिड़कने से मुंह के सभी रोग ठीक हो जाते हैं।
और भी उपयोग होंगे परंतु और याद नहीं हैं, स्वाद बिल्कुल पानी जैसा कि कोई स्वाद नहीं परंतु हाँ कुछ मिला लो तो इसका स्वाद बेहतरीन है तभी तो आजकल मीठी सुपारी मिलती है, परंतु वह भी प्रोसेस्ड होती है, उसे तो बिल्कुल खाना ही नहीं चाहिये।
सुपारी भी कई प्रकार की होती है, हमें तो बस इतना ही पता है कि सुपारी कच्ची भी होती है और पक्की भी या शायद भुनी हुई होती हो। सुपारी भी अलग अलग तरह में काटी जाती है, जैसे कि बोल्डर, चिप्स इत्यादि, अब सुपारी इतनी कठोर होती है कि हमें खाने में बहुत दिक्कत होती है और मसूढ़े भी छिल जाते हैं, तो हम चिप्स खाते थे परंतु अब यहाँ दक्षिण में भाई लोग बोल्डर ही देते हैं।
एक हमारे मित्र हैं जिनके केरल में समुद्रीय इलाके में खेत हैं वह भी सुपारी के, वहाँ सुपारी की ही खेती होती है और उनसे पता चला कि किसान को ज्यादा पैसा नहीं मिलता, सुपारी महँगी है और उसके पीछे कारण है बिचौलिये और सेठ लोग जो कि सुपारी खरीदते हैं।
सुपारी कहाँ से याद आई थी और उस पर इतना सारा लिख भी दिया, दरअसल कहीं से एक सुपारी खाने के लिये मिली थी जो कि पूजा के बाद की थी और उसे हमें ही खाना था, पहले तो इसी आस में जेब में पड़ी रही कि कभी हाथ से तोड़कर खा लेंगे । बहुत प्रयास किया हाथ से नहीं टूटी, फ़िर दाँत से तोड़ने की कोशिश की तो उसमें भी असफ़ल रहे और जल्दी ही समझ में आ गया सुपारी तो नहीं टूटेगी अपने दाँत जरूर टूट जायेंगे, फ़िर मूसल से तोड़ने की कोशिश की उसमें भी नाकाम। आखिरकार पान की दुकान पर जाकर सरौते से कटवाना पड़ी, पान वाले से पूछा कि सुपारी और किस तरीके से तोड़ी या काटी जा सकती है तो उसने बताया कि केवल सरौते से ही काटी जा सकती है, वह तो अच्छा हुआ कि हमने जितने उपाय किये थे वे नहीं बताये वरना सुपारी के ऊपर हमारे किये गये एक्सपीरियमेंट पर हँस हँस कर लोट पोट हो लेता। सोचा कि अपना ब्लॉग वो थोड़े ही पढ़ेगा तो यहीं लिख देते हैं।

गालों पर तिरंगा.. भ्रष्टाचार..जन्माष्टमी..इस्कॉन..और अमूल बेबी बॉय

    शाम को घर से निकले कृष्णजी के दर्शन के लिये तो देखा कि घर के सामने ही चाट की दुकान पर युवाओं की भीड़ उमड़ी हुई है और चाटवाले भैया का हाथ खाली नहीं है, कहीं किसी नौजवान युवक और युवतियों के गालों पर तिरंगा बना हुआ है तो किसी ने तिरंगे रंग की टीशर्ट पहन रखी थी। सब भ्रष्टाचार का विरोध कर के आ रहे थे। बैंगलोर में भ्रष्टाचार का विरोध फ़्रीडम पार्क में हो रहा है जिसके बारे में आज बैंगलोर मिरर में एक समाचार भी आया है कि ऑटो वाले जमकर चाँदी काट रहे हैं, मीटर के ऊपर ५०-१०० रूपये तक माँगे जा रहे हैं और पुलिस वाले चुपचाप हैं और लोगों को कह रहे हैं कि यही तो इनके कमाने के दिन हैं।

    बड़ा अजीब लगता है कि लोग ऑटो वालों के भ्रष्टाचार से परेशान हैं और ज्यादा पैसा लेना भी तो जनता के साथ भ्रष्टाचार है और उसके बाद जनता भ्रष्टाचार का विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं, “मैं अन्ना हूँ।” और भी फ़लाना ढ़िकाना… पर खुद भ्रष्टाचार खत्म नहीं करेंगे, अरे भई जनता समझो कि भ्रष्टाचार खुद ही खत्म करना होगा।

    यहीं घर के पास ही एक कन्वेंशन सेंटर में इस्कॉन बैंगलोर ने जन्माष्टमी के अवसर पर आयोजन किया था, आयोजन भव्य था। दर्शन कर लिये पर पता नहीं चल रहा था कि ये मधु प्रभू वाला इस्कॉन है या मुंबई इस्कॉन वाला, आपकी जानकारी के लिये बता दूँ कि मधु प्रभू वाले राजाजी नगर, विजय नगर वाले मंदिर का इस्कॉन संस्था ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बहिष्कार किया हुआ है। इस्कॉन मुंबई ने बैंगलोर में शेषाद्रीपुरम में अपना एक मंदिर बनाया है और अब एच.बी.आर. लेआऊट में एक और मंदिर बन रहा है।

    दर्शन करने के बाद महामंत्र “हरे कृष्णा हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे हरे, हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे” का श्रवण किया और फ़िर चल दिये प्रसादम की और जहाँ पर हलवा और पुलैगेरा चावल थे दोनों ही अपने मनपसंद बस पेटभर कर आस्वादन किया गया।

    घर आये फ़िर न्यूज चैनल देखे तो पता चला कि अन्ना फ़ौज से भगौड़े नहीं हैं जो कि थोड़े दिनों पहले शासन करने वाली राजनैतिक पार्टी के लोग बयान दे रहे थे। अब तो वे बेचारे किसी को मुँह दिखाने लायक भी नहीं रहे, अरे भई बोलो मगर यह तो नहीं कि जो आये मुँह में बोल डालो, सब के सब दिग्विजय सिंह से टक्कर लेने में लगे हैं। वैसे आजकल ये महाशय चुप हैं, और नौजवान अमूल बेबी बॉय मुँह में निप्पल लेकर बैठे हुए हैं, क्योंकि उनको पता है कि अगर उन्होंने अन्ना का नाम भी लिया तो उन्हें मिलेगा गन्ना ।

    बेचारे बाबा नौजवानों को अपने साथ लाना चाहते थे और देखकर हर कोई दंग है कि ७४ वर्षीय अन्ना के साथ सारे नौजवान सड़क पर उतर आये हैं, मम्मी अमरीका गई है बाबा की निप्पल बदले कौन ?

भ्रष्टाचार के खिलाफ बिगुल फ़ूँकना होगा । (Fight against corruption)

    आजकल कुछ ठीक नहीं लग रहा है, जो इस काल में देश और समाज में घटित हो रहा है वह सब ठीक नहीं हो रहा है। क्या बतायेंगे हम आने वाली पीढ़ी को कि कैसे भ्रष्टाचार का दीमक हमारे समाज, देश और अर्थव्यवस्था को चाट गया। सरकार और राजनैतिक दल अपना स्वार्थ साधने के लिये शांतिपूर्ण आंदोलनकारियों को विदेशी ताकत का हाथ बताने लगते हैं। क्या ऐसे लोगों को सरकार और उससे जुड़े पदों पर रहने का अधिकार है ?

    क्या यह उसी तरह की क्रांति की तस्वीर भारत में उभर रही है जैसी कि सिंगापुर में १९७० के दशक में उकेरी गई थी, हमारी सरकार और राजनैतिक नुमाईंदे बैकफ़ुट पर हैं और जनता हावी होती जा रही है। क्या चुने हुए लोग इतने बेशरम हो गये हैं कि जनता की बात सुनना ही नहीं चाहते हैं, और अगर ऐसा है तो यह तो तय है कि अहिंसक तरीके से जनता आंदोलन कर रही है और अगर आंदोलन ऐसा ही चलता रहा तो सरकार का गिरना तय है, क्योंकि इससे एक बात तो साफ़ हो रही है कि सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ़ नहीं है और अगर है तो उसे मिटाने की प्रतिबद्धता सरकार में नहीं है।

    खैर जनता कितना भी आंदोलन कर ले परंतु ये प्रशासनिक और सरकारी लोग वही करेंगे जो इनको करना होगा या आदेशित होगा। अगले चुनाव में क्या मुँह लेकर जनता के  पास जायेंगे ? इससे अच्छा है कि जनता को ही अपने समूह बनाने होंगे और जो भ्रष्टाचार करे उसकी सरेआम बेईज्जती की जाये और मुँह काला कर गधे पर बैठाकर घुमाया जाये। परंतु हमारे संस्कार हमें इस बात की भी इजाजत नहीं देते, हमारे संस्कार कहते हैं कि अगले को सुधरने का पूरा मौका दिया जाना चाहिये।

    अब तो जो होना है वह होना है, परंतु गांधीवादी युग से क्या हासिल होगा, जनता का विद्रोह अगर लीबिया जैसा हो गया तब सरकार क्या कर लेगी। जनता को अराजक बताकर अपनी पूरी ताकत इनको खत्म करने में लगा देगी। लेकिन भ्रष्टाचार खत्म करने के लिये कोई ठोस कदम उठाने कि बात नहीं करेगी।

    कुछ बातें ठीक लग रही हैं जैसे इलेक्ट्रानिक मीडिया बराबर कवरेज दे रहा है और हो सकता है कुछ चैनलों को तो मजबूरी में टी.आर.पी. के चक्कर में ना चाहते हुए भी कवरेज देना पड़ रहा हो। कुछ बातें ठीक नहीं लग रही हैं क्या पुलिस वाले मानव ह्र्दय नहीं रखते या उनको सही गलत की समझ नहीं होती या फ़िर वे हमेशा अपने ऊपर भ्रष्टाचार का दाग लेकर घूमना चाहते हैं, जो कि सरकार की बातें मान रहे हैं, क्यों सरकारी कर्मचारी भ्रष्टाचार के महाआंदोलन में साथ नहीं हैं।

    हो सकता है कि आंदोलन के सूत्रधारों की रणनीति ठीक नहीं हो या एजेंडा थोड़ा सा भटका हुआ हो, परंतु है तो भ्रष्टाचार के खिलाफ़ ही, अगर आज उठे नहीं तो कभी उठ नहीं पायेंगे, भ्रष्टाचार मुक्त भारत देश बनाने का सपना साकार करने के लिये यह पहला कदम है, अभी तो इस राह में बहुत सारी क्रांतियाँ हैं।

आज फ़िर भारतीय बाजारों के लिये काला सोमवार है (Today again a Black Monday for Indian Share Market..)

काला सोमवार     आज फ़िर से भारतीय बाजारों के लिये काला सोमवार है, आज सेन्सेक्स कितना नीचे जाता है यह तो बाजार खुलने के बाद ही पता चलेगा, मगर शेयर बाजार के विशेषज्ञों के अनुसार सेन्सेक्स १५,००० का लेवल तोड़ सकता है। शनिवार और रविवार यूरोप और भारत के बाजार बंद रहते हैं, परंतु मिडिल ईस्ट के बाजार खुले होते हैं और वहाँ भारी गिरावट देखने को मिली है। मसलन सऊदी अरब, UAE, इस्राइल, कुवैत यहाँ के बाजारों में ७% तक की गिरावट दर्ज की गई है।

काला सोमवार बम     दरअसल शुक्रवार को बाजार बंद होने के बाद स्टैंडर्ड् एन्ड पूअर्स (Standard and Poor’s) ने अमेरिका की डेब्ट रेटिंग AAA से AA+ कर दी, अमेरिका की रेटिंग कम होने से उन संस्थाओं पर अब अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर दबाब पढ़ने लगा है जो कि केवल AAA रेटिंग वाले देशों में ही निवेश कर सकते हैं, इसका मतलब यह हुआ कि अब अमेरिका से निवेश निकलकर AAA रेटिंग वाले देशों में याने कि जर्मनी, फ़्रांस, कनाडा और ब्रिटेन में जायेगा। यहाँ तक कि स्टैंडर्ड और पूअर्स ने अमेरिका को यह भी चेताया है कि  अगले कुछ दिनों में अगर अमेरिकी अर्थव्यवस्था नहीं सुधरी तो अमेरिका की डेब्ट रेटिंग AA+ से घटाकर AA की जा सकती है।

आज के परिदृश्य में भारतीय अर्थव्यवस्था पर वैश्विक परिस्थितियों का गहन असर पड़ता है। इसलिये आने वाला समय बाजारों के लिये ठीक नहीं है, शेयर बाजार विशेषज्ञों की राय में अभी बाजार में निवेश करने से बचें और निचले लेवलों पर धीरे धीरे निवेश करते रहें, एकसाथ निवेश न करें।

अमेरिका देश की साख दाँव पर लगी है, अब देखते हैं कि ओबामा सरकार इससे कैसे निपटती है या अपने देश की डेब्ट रेटिंग AA या AA- पर आने देती है।

एक बात और स्टैंडर्ड और पूअर्स के चैयरमैन हैं देवेन शर्मा जो कि झारखंड के जमशेदपुर से हैं, और उन्होंने अपनी टीम के साथ ओबामा की छुट्टी कर दी।

स्टैंडर्ड और पूअर्स के बारे में ज्यादा जानने के लिये क्ल्कि करें।

हॉकर द्वारा पोंगली बनाकर अखबार फ़ेंकना और हमारा अखबार सुबह गायब होना ।

    अखबार तो बचपन से घर पर आते हुए देख रहे हैं, कभी पूरा अखबार प्रेस करा हुआ मिलता था, तो कभी अखबार को हॉकर पोंगली बनाकर उसे ऊपर रबड़ाबैंड लगाकर या सुतली से बांधकर घर में फ़ेंकता था।

    मुंबई में हम बड़ी बिल्डिंग में रहते थे और वहाँ पोंगली बनाकर फ़ेंकना हॉकर के लिये संभव नहीं था, इसलिये हॉकर सबसे पहले लिफ़्ट से सबसे ऊपरी माले पर जाता था और फ़िर वहाँ से फ़्लेटों में अखबार डालते हुए सीढियों से नीचे आता था। कई बार सामने वाले या अगल बगल वाले फ़्लेट का अखबार नहीं आने पर वे लोग चुपके से अखबार उठालेते तो फ़िर अखबार वाले को फ़ोन करना पड़ता, आज अखबार नहीं डाला तो वह वापिस आता और कहता कि अखबार तो डाला था फ़िर मिला कैसे नहीं, इसके बाद फ़्लेट का नंबर भी अखबार पर लिखा मिलता जिससे किसी दूसरे को वह अखबार अपना ना लगे। और सुबह जब अखबार रख कर जाता तो घर की घंटी भी बजा जाता जिससे हमें पता चल जाता कि अखबार आ चुका है।

    अब यहाँ बैंगलोर में पहले हमारा अखबार वाला हमारे फ़्लेट के दरवाजे के सामने प्रेस करा हुआ अखबार रख जाता था, परंतु कुछ दिनों से वह भी अखबार की पोंगली बनाकर फ़ेंकने लगा है। अब फ़िर वही गलतफ़हमी शुरू हुई, पड़ोसी के साथ, हम सुबह ६ बजने से पहले ही बिस्तर छोड़ देते हैं और कई बार पड़ोसी भी, जब तक प्रेस करा हुआ अखबार हमारे दरवाजे पर मिलता था कभी गायब नहीं हुआ परंतु जहाँ पोंगली बनाकर फ़ेंकना शुरू किया वहीं अखबार गायब होने लगा, हम अखबार वाले को फ़ोन करते भई किधर गया हमारा अखबार वो भी हतप्रभ, फ़िर उसी ने पता लगाकर बताया कि आपका अखबार आपका पड़ौसी उठा लेते हैं, उनसे कहिये कि उनका अखबार सुबह ७.३० के बाद आता है और उनका इकॉनामिक्स टाईम्स साथ में नहीं आता है। फ़िर एक दिन हमने खुद देखा और पड़ौसी से बात कर मामला सुलझा लिया, अब सुकून से रोज सुबह पोंगली में अखबार हमें ही मिलता है।

    पोंगली में अखबार फ़ेंकने के कुछ फ़ायदे भी हैं तो नुक्सान भी हैं, फ़ायदे तो केवल हॉकर के लिये है कि उसे हर मंजिल पर जाना नहीं पड़ता है। और फ़ायदा सभी के लिये है, रबड़ बैंड मिलती है, अलार्म नहीं लगाओ तब भी समय का पता चल जाता है।

    बहुत पहले एक फ़िल्म देखी थी जिसमें संजीव कपूर था या कोई और याद नहीं, वह बालकनी में आकर अंगड़ाईयाँ लेता है और हॉकर उसी समय पर पोंगली बना हुआ अखबार फ़ेंकता है, जो सीधा उसके मुँह में घुस जाता है।

अब हमारा अखबार हमारा इंतजार कर रहा है, हम अब अपने अखबार को पढ़ते हैं ।