आप ने बहुत गुस्से मै यह पोस्ट लिखी है, ओर आप की बात से सहमत हुं, लेकिन फ़िर भी हमे ऎसा नही करना चाहिये, अगर हम सब ऎसा करने लग गये तो भारत के टुकडे टुकडे हो जायेगे,चारो तरफ़ खुन खरावा होगा, बल्कि हमे इन राजनीति करने वालो को घेरना चाहिये, लोगो को जागरुक करन चाहिये कि इन की बातो मै ना आये, वोट उसे दे जो साफ़ हो गुंडो मवालियो ओर चोर उच्चाको को मत दे अपना वोट चाहे बेकार चला जाये, जो धर्म भाषा, जात पात ओर राज्य की बात करे, अपनी ताकत की बात करे , जिस का चरित्र सब को पता हो, जो झुठे वादे करे मत दो उस कमीने को वोट, ओर बिरोध करे सब मिल कर.
अगर यह ठाकरे इअतन ही बलवान था तो क्यो नही उस समय अपनी बिल से निकला जब आतंकवादियो ने अपना भायंकर खेल खेला, कुछ बेवकुफ़ लोगो के लिये सब को बुरा मत कहो.
हाँ मैंने यह पोस्ट बहुत गुस्से में लिखी क्योंकि मैंने ये सब बहुत करीब से देखा है, और रोज ही देखता हूँ, ऐसा नहीं है कि सारे मराठी मानुष वैसे ही हैं, मेरे बहुत सारे अभिन्न मित्र मराठी हैं और बहुत मेहनत करते हैं मेरी पोस्ट उन लोगों के लिये हैं जो बात उछालकर राजनैतिक फ़ायदा ले रहे हैं और कहीं न कहीं वे लोग भी हैं जो मूक रहकर उन लोगों का समर्थन कर रहे हैं।
वाह वाह क्या बात है इलाहाबाद का नाम खूब रोशन हो रहा है 🙂
वीनस जी यह तो संयोग है कि सारे इलाहाबाद के मिले नहीं तो हमें तो रोज ही बिहार, उत्तरप्रदेश और भी अन्य राज्यों के लोग मिलते ही रहते हैं। वैसे इलाहाबादियों की भाषा में बहुत मिठास होती है।
बी एस पाबला जी ने लिखा है –
किसी भी क्षेत्र के स्थानीय निवासियों की बनिस्बत बाहरी व्यक्ति अपना स्थान व आजीविका सुरक्षित कर ही लेता है। फिर चाहे वह पंजाब हो या कनाडा, अमेरिका या फिर महाराष्ट्र!
क्योंकि बाहरी व्यक्ति अपना सर्वस्व छोड़कर कुछ कर दिखाने की तमन्ना से आया होता है इसलिये उसका परफ़ार्मेन्स हमेशा स्थानीय निवासियों से अच्छा होता है।
बड़े गुस्से में हैं भाई!! खैर, है तो बात सरासर गलत. विरोध होना ही चाहिये।
समीर जी गुस्से में तो हैं पर इस गलत बात का विरोध तो करना ही होगा नहीं तो हम भी उस मूक भीड़ का हिस्सा हो जायेंगे जिनके विरोध के लिये हम मुखर हुए हैं।
"अगर ये लोग उत्तर भारत के लोगों को मार रहे हैं तो उत्तर भारत के लोगों को मराठी लोगों को मारना चाहिये जो वहाँ रह रहे हैं और उनको महाराष्ट्र भेज देना चाहिये।"
1. आपकी पीड़ा समझी जा सकती है मगर यह कोई हल नहीं है !
2. यह मामला राज सरकार /केंद्र सरकार का है वह सख्ती से निपटे
पर इस राज सरकार पर केंद्र सरकार भी तो कोई कदम नहीं उठा रही है, क्योंकि इनके गुर्गे वहाँ पर भी हैं और गहरी पेठ जमा रखी है। इनके दिखाने के मुँह और ओर बोलने के कुछ ओर हैं।
आपकी सोंच सही है .. मेरे ख्याल से भारत के सभी महानगर पूरे भारत के हैं .. जो भी उसे अपने प्रदेश का समझते हैं .. वो महानगर छोडकर उस प्रदेश के गांवों में चले जाएं .. इससे समस्या समाप्त हो सकती है !!
बिल्कुल सही है भारत के सभी महानगर पूरे भारत के हैं, पर ये लोग जो सवाल उठा रहे हैं ये लोग भी मराठी प्रदेश के किसी हिस्से से आये हैं और अब खुद को मुंबई का कर्ता धर्ता बताने में लगे हैं।
पहले भी मराठियों को "गोड़से" होने की वजह से 50 साल पहले मार-मार कर भगाया गया था, अब फ़िर से हिन्दी प्रदेशों से "ठाकरे" होने की वजह से मार-मार कर भगा दो भाई… कौन रोक सकता है… मूल समस्या को समझने की बजाय किसी एक व्यक्ति के कर्मों की सजा पूरे समुदाय को दे दो…।
नोट – "सरकारी कार्यालयों" में काम करने वाले सचमुच के "हरामखोरों" में से कितने प्रतिशत मराठी हैं यह भी पता करना पड़ेगा अब तो
सुरेश जी का दर्द उभर कर आया है मराठियों के लिये, पर सुरेशजी ये सभी मराठियों के लिये नहीं है आप देखें मैंने सबसे आखिरी में एक वाक्य लिखा है – “थू है मेरी ऐसे लोगों पर जो ये सब कर रहे हैं और जो इनको समर्थन कर रहे हैं। मैं अपना विरोध दर्ज करवाता हूँ।”
केवल एक या दो लोगों के कारण पूरे समुदाय को बिल्कुल सजा नहीं मिलनी चाहिये.. बिल्कुल सही कहा है, पर समुदाय के लोगों को खुलकर विरोध भी तो दर्ज करवाना चाहिये कि तुम लोग हमारे पूरे समुदाय को बदनाम कर रहे हो।
“अरे दम है तो रोको प्राईवेट बैंको को, व्यावसायिक संस्थाओं को, सॉफ़्टवेयर कंपनियों को जिनमें बाहर के लोग याने कि अधिकतर उत्तर भारतीय या दक्षिण भारतीय लोग चला रहे हैं, वहाँ मराठियों का प्रतिशत देखो तो इनको अपनी औकात पता चल जायेगी। ये वहाँ टिक नहीं पायेंगे क्योंकि इन लोगों को काम नहीं करना है केवल हरामखोरी करना है सरकारी कार्यालयों में।”
यहाँ प्रतिशत निकालने की जरुरत नहीं है क्योंकि हरेक प्रदेश में प्रदेशवासियों के लिये अपना कोटा फ़िक्स होता है, ये जो मारा मारी हो रही है वो हो रही है केन्द्र की नौकरियों के लिये। प्राईवेट में इनका प्रतिशत देखिये सब बात साफ़ हो जायेगी। आप कभी कार्पोरेट्स में सर्वे करवाईये तो सब पता चल जायेगा।
वन्दना जी और डॉ टी एस दराल जी की बातों से भी सहमत हैं
हरामखोरी तो भाई इधर यू0 पी० और बिहार में भी कम नहीं है. यही लौंडे जो मुंबई, दिल्ली, अहमदाबाद, सूरत में जाकर ठेला-रिक्शा खींचते हैं, मजदूरी करते हैं, सब्जी- दूध बेचते हैं, यहाँ अपने खेतों में काम करते इनकी नानी मरती है. गाँव में मजदूर ढूंढें नहीं मिल रहे और यह जूता -गाली खाने चले जाते हैं मुंबई-दिल्ली. यहाँ अपने खेतों में काम करते शर्म आती है. खेत दे दिया है बटाई पर और बम्बई जाकर कलक्टरी कर रहें हैं.जिस कारण से पिट रहे हैं वो गलत है लेकिन हैं पिटने के काबिल ही।
निशाचर जी हरामखोरी तो कहीं भी कम नहीं है क्योंकि उसकी तुलना नहीं की जा सकती है, अब एक बात आप ही बताईये कि अगर वह अपने खेतों में काम भी करेगा तो वह कितना कमा लेगा, उसकी भी बहुत सी मजबूरियां होती हैं, जिसके कारण वह अपने परिवार से दूर रहकर ये सब काम करता है, अगर वहाँ कमायेगा तो कितना १५०० या ज्यादा से ज्यादा २००० पर यहाँ उतनी ही मेहनत करके वो १० से १२ हजार कमा लेता है, और आधे से ज्यादा पैसे अपने घर पर भेजकर अपना घर परिवार को सुकून देता है। हाँ ये लोग मुम्बई में आकर कलक्टरी नहीं कर रहे हैं पर अपने परिवार को वो सब दे पा रहे हैं जो वे वहाँ रहकर नहीं दे सकते थे। मैं रोज ही इन चीजों को बहुत करीब से देखता हूँ और उनका दर्द भी समझता हूँ। ये पिटने के काबिल हैं या नहीं ये तो समाज बता सकता है, और इस पर सार्थक बहस हो सकती है।
ऊपर जो कुछ उद्धरित किया है आपके आलेख से, अत्यंत आपत्तिजनक और निंदनीय है। आप पूरे मराठी समाज का ऐसा जनरलाइजेशन कैसे कर सकते है वह भी उस मराठी ट्रक ड्राईवर के बहाने। एक और बात आपके संज्ञान मेंलाना चाहूंगा कि ड्राईवर पुरे हिन्दुस्तान यहां तक कि फौज के भी एक मामले में एकमत हैं कि हम सामान उतारने चढ़ाने में हाथ नहीं बंटायेंगे।
मैंने केवल मराठी ट्रक ड्राईवर के बहाने मराठियों का जनरलाईजेशन नहीं किया है आपसे विनती है कि आप एक बार फ़िर पोस्ट को पढ़ लें, मैंने लिखा है उनके लिये जो ये कर रहे हैं और जो इस चीज का समर्थन कर रहे हैं और जो मूक रहकर भी इनका समर्थन कर रहे हैं।
कुछ गिने चुने स्वार्थी तत्वों के कारण सबको गाली देना कितना उचित है . यह देश की विडंबना है कि अपने प्रदेश में काम नहीं करना चाहते लेकिन बाहर जाकर सब करने को तैयार हैं. अपने क्षेत्र में लोगों को सिर्फ बरगलाना ही धंदा है।
महेश जी मैंने उन स्वार्थी तत्वों की ही भर्त्सना की है और उनके समर्थकों की, मैंने सभी मराठियों को बुरा नहीं कहा है।
कुछ दिन बाद जब आप फिर से ये पोस्ट पढेगे तो लगेगा कि शायद आप गलत है… अच्छे बुरे हर प्रदेश/समाज/देश/जाती में होते है.. आप सामान्यकरण नहीं कर सकते…
रंजन जी मैंने कहीं भी सामान्यकरण नहीं किया है और अगर आप उससे जोड़कर देख रहे हैं तो कृप्या पोस्ट का मेरा आख्रिरी वाक्य भी पढ़ लीजिये।