झाबुआ छोड़े हुए काफ़ी समय हो गया लगभग १४ वर्ष परंतु नवरात्र की बात याद आते ही अकस्मात ही झाबुआ की यादें आ जाती हैं क्योंकि उन दिनों हम कालेज में थे और अपना दोस्तों का दायरा भी अच्छाखासा था। नवरात्र शुरु होने के १०-१५ दिन पहले से ही
रोज शाम को गरबा की प्रेक्टिस करने वालों की और सीखने वालों की भीड़ लगी होती थी। चूँकि झाबुआ गुजरात से बिल्कुल लगा हुआ है इसलिये पारंपरिक गुजराती गरबा वहाँ देखने को मिलता है।
गरबा लगभग ७ बजे से शुरु होता था और देर रात तक चलता रहता था लगभग १२ बजे तक, गरबा आयोजक मंडलियां अच्छे गरबा गायकों को पहले से ही बुक करके रखती थीं जिनकी डिमांड बाहर से भी खूब आती थी। गरबा करने के लिये कोई ड्रेस कोड नहीं होता था बस आपको गरबा आना चाहिये, ड्रेस कोड केवल आखिरी २-३ दिनों के लिये होता था। डांडिये भी जरुरी नहीं कि आप अपने साथ लायें और उस गरबा आयोजक से पहचान होना भी जरूरी नहीं था बस श्रद्धा होनी चाहिये मन में। वहाँ हरेक आयोजन में १ या २ गोले वाला गरबा नृत्य करने वाले होते थे और लगभग २०-३० मिनिट का एक गरबा होता था। पर आजकल के गरबे में पहले आयोजक के साथ रजिस्ट्रेशन करवाना जरुरी होता है हरेक जगह पर, झाबुआ में अभी भी ये सब जरुरी नहीं है। हाँ एक और बात सब जगह केवल लड़्कियों को ही गरबे करते देखते हैं, लड़्कों को नहीं परंतु झाबुआ में ऐसा नहीं है। जब तक हम झाबुआ में थे तब तक हमने भी गरबा किया परंतु उसके बाद कहीं गरबा करने को न मिलने के कारण हम डांडिया से दूर हो गये।
वहाँ हमने गरबे में बहुत से करतब देखे जैसे कि गरम कटोरों में कण्डों में आग लगाकर दोनों हाथों में और सिर पर तगारी रखकर नृत्य करते हुए, २ तलवारों के साथ नृत्य करते हुए। लोग कहते थे कि जिनको देवीजी आती है केवल यह सब कठिन नृत्य वही कर पाते हैं। हमें पता नहीं कि ये सब आराधना से आता है या प्रेक्टिस से पर इतना पता है कि कोई न कोई शक्ति जरुर होती है।
नवरात्री सबके लिये मंगलमय हो और माँ अपना आशीर्वाद सबके ऊपर बनाये रखें यही कामना है।