यह एक ज्वलंत प्रश्न है पारिवारिक मुद्दों में, माँ बाप को एक ही बेटे या बेटी से ज्यादा लगाव क्यों होता है।
माँ-बाप के लिये तो सभी बच्चे एक समान होने चाहिये परंतु मैंने लगभग सभी घरों में देखा है कि किसी एक बेटे या बेटी से उन्हें ज्यादा लगाव होता है और वह भी काफ़ी हद तक अलग ही दिखता है कि उसकी सारी गलतियों पर परदा करते हैं और दूसरे बच्चों से ज्यादा उसका ध्यान रखते हैं, भले ही वो उद्दंड, सिद्धांन्तहीन हो, मुझे आज तक यह समझ में नहीं आया कि इसके पीछे क्या भावना कार्य करती है, जो कि इस हद तक किसी एक बेटे या बेटी से भावनात्मक लगाव की स्थिती बन जाती है। भले ही वह उनकी सेवा न करे, उन्हें बोझ माने, उन्हें अपने सामाजिक स्थिती के अनुरुप न माने।
माँ-बाप के लिये तो हर बच्चा एक समान होना चाहिये, बड़ा या छोटा बच्चा होना तो विधि का विधान है, उसमें माँ-बाप या बच्चे का कोई श्रेय नहीं होता है। जब विधि अपने विधान में अन्तर नहीं करती है, सबको बराबार शारीरिक सम्पन्नता देती है, फ़िर इस भौतिक जीवन में यह अन्तर क्यों होता है। जैसे शरीर के लिये दो आँखें बराबर होती हैं वैसे ही माँ-बाप के लिये अपने सारे बेटे-बेटी बराबर होना चाहिये, परन्तु बिड्म्बना है कि ऐसा नहीं होता है, कहीं बेटा या कहीं बेटी किसी एक से ज्यादा भावनात्मक लगाव होता है।
क्यों ? यह प्रश्न है, जिसका उत्तर मैं ढूँढ़ रहा हूँ……..?
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